पूरा समा लेना तुम

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पूरा समा लेना तुम

लेखक : रविराम69 © ( मुसाफिर- मस्तराम )

बहुत अँधेरा है कमरे में रौशनी कर दो ,

उतार दो यह पैराहन, चांदनी कर दो .


चली भी आओ मैं जकड़ूँगा तुम को बाँहों से ,

मैं पीना चाहता हूँ आज बस निगाहों से .


दिखा के अपना हुस्न मेरे होश गुम कर दो ,

कि आज प्यार की पहली पहल भी तुम कर दो .


चले भी आओ तड़प के हमारी बाँहों में ,

कि अपनी सांस मिला दो हमारी सांसों में .


मेरे जलते हुए होठों पे अपने लब रख दो ,

उतार दो ये कपडे पलंग पे सब रख दो .


मैं अपने लबों को रख दूँ तेरे रुखसारों पे ,

और अपने हाथ फिराऊँ तेरे उभारों पे .


तुझे सर से पाँव तक मैं चूमता ही रहूँ ,

तेरे कंधे , तेरी छाती को चूसता ही रहूँ .


मैं चाहता हूँ छेड़ना तेरे तेरे अंगारों को ,

दबा के चूस के पी लूँगा इन उभारों को .


तेरा वोह अंग जो दुनिया में सब से प्यारा है ,

मैं उसे जीभ से चाटूं तेरा इशारा है .


फिरा के हाथ बदन पे मैं सज़ा दूँ तुझको ,

फिर अपनी जीभ से ज़न्नत का मज़ा दूँ तुझको .


मेरे लिए भी तो यह काम एक बार करो ,

मुंह में लेके चूसो इसे और प्यार करो .


फिर आओ इसके बाद एक हो जाएँ हम तुम ,

मुझे अपने बदन में पूरा समा लेना तुम .


और इस खेल में आखिर में वोह मुकाम आये ,

मेरे बदन में जो भी कुछ है तेरे काम आये .


चले आओ मेरी खुशियों को सौ गुणी कर दो ,

बहुत अँधेरा है कमरे में रौशनी कर दो .


आपके जवाब के इंतेज़ार में ...

आपका अपना

रविराम69 © ( मुसाफिर- मस्तराम )

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