भाई बहन का पवित्र रिश्ता (भाग-3)

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मैं जब दीदी की क्लिट को छेड़ रहा था तब दीदी का शरीर कांप सा जाता था। उनको एक झुरझुरी सी होती थी। मैंने अपनी एक उंगली दीदी की चूत के छेद में घुसेड़ दी। ओह भगवान चूत अंदर से बहुत गर्म थी और मुलायम भी थी। चूत अंदर से पूरी रस से भरी हुई थी।

मैं अपनी उंगली को धीरे-धीरे चूत के अंदर और बाहर करने लगा। थोड़ी देर के बाद मैंने अपनी दूसरी उंगली भी चूत में डाल दी। ये तो और भी आसानी से चूत में समा गई। मैंने दोनों उँगलियों से दीदी चूत को चोदना शुरू किया।

दीदी की तेज सांसों की आवाज मझे साफ़-साफ़ सुनाई दे रही थी। थोड़ी देर के दीदी का शरीर अकड़ गया, कुछ ही देर के बाद दीदी शांत हो कर सीट पर बैठ गई। अब दीदी की चूत में से ढेर सारा पानी निकलने लगा। चूत की पानी से मेरा पूरा हाथ गीला हो गया।

मैं थोड़ी देर रुक कर फिर से दीदी की चूत में अपनी उंगली चलाने लगा। थोड़ी देर के दीदी दोबारा झड़ी। फिर मुझे जब लगा कि सिनेमा अब खत्म होने वाला है, तो मैंने अपना हाथ दीदी की चूत पर से हटा लिया। जैसे ही सिनेमा खत्म हुआ, मैं और दीदी उठ कर बाहर निकल आए।

बाहर आने के बाद मैंने दीदी से कहा- अगले शो में जो भी उस सीट पर बैठेगा उसका पैंट या उसकी साड़ी भीग जाएगी।

दीदी मेरे बातों को सुन कर बहुत शर्मा गई और मुझसे नज़र हटा ली। दीदी टॉयलेट चली गई हो सकता अपनी चूत और जाँघों को धो कर साफ़ करने के लिए और अपनी पैन्टी फिर से पहनने के लिए गई हों।

अभी सिर्फ़ तीन बजे थे और मैंने दीदी से बोला- तो बहुत टाइम है और माँ भी घर पर सो रही होंगी। क्या तुम अभी घर जाना चाहती हो? वैसे मुझे कुछ प्राइवेट में चलने का इच्छा हैं। क्या तुम मेरे साथ चलोगी?

दीदी मेरी आँखों में झाँकती हुई बोली- प्राइवेट में चलने की क्या बात हैं? वैसे मैं भी अभी घर नहीं जाना चाहती।

मैं बोला- प्राइवेट का मतलब है कि किसी होटल में जाना हैं?

दीदी बोली- सिर्फ़ होटल? या और कुछ?

मैं दीदी से बोला- सिर्फ़ होटल या और कुछ! मतलब?

दीदी बोली- तेरा मतलब होटल के कमरा से है?

“हाँ मेरा मतलब होटल के कमरे से ही है।” मैंने कहा।

दीदी ने तब मुझसे फिर पूछा- होटल के कमरे में ही क्यों?

मैंने दीदी की बातों को सुन कर यह समझा कि दीदी ने अभी भी होटल चलने के लिए ना नहीं किया हैं।

मैंने दीदी की आँखों में झाँकते हुए बोला- अभी तक मैंने कई बार तुम्हारी चूची को छुआ, दबाया, मसला और चूसा है, फिर मैंने तुम्हारी चूत को भी छुआ और उसके अंदर अपनी उंगली भी डाली। और तुमने कभी भी मना नहीं किया। मैं आगे बढ़ने से रुका तो इस बात से कि हमारे पास पूरी प्राइवेसी नहीं थी। इस बात के डर से कि कोई आ ना जाए, या हमें देख न ले। इसलिए मैं चाहता हूँ कि अब होटल के कमरे में जाकर हम लोगों को पूरी प्राइवेसी मिले।

मैं इतना कह कर रुक गया और दीदी की तरफ़ देखने लगा की अब दीदी भी कुछ बोले। जब दीदी कुछ नहीं बोली तो मैंने फिर उनसे कहा- तुम क्या चाहती हो?

दीदी मुझसे बोली- मतलब यह हुआ कि तुम इसलिए मेरे साथ होटल जाना चाहते हो ताकि वहाँ जा कर तू मुझे अच्छी तरफ़ से छू सके। मेरे दूध को चूस सके और मेरे पैरों के बीच अपना हाथ डाल कर मज़ा ले सके?

“ठीक कह रही हो, दीदी। मैं जब भी तुम्हें छूता हूँ तो हम लोगों के पास प्राइवेसी ना होने की वजह से रुकना पड़ता है, जैसे आज सिनेमा हॉल में ही देख लो” मैंने दीदी से कहा।

“तो तू मुझे ठीक से और बिना डर के छूना चाहता है। मेरी चूची पीना चाहता है, और मेरी टांगो के बीच हाथ डाल कर अपनी उंगली डाल कर देखना चाहता है?” दीदी ने मुझसे पूछा।

मैंने तब थोड़ा झल्ला कर दीदी से कहा- तुम बिल्कुल सही कह रही हो। और मुझे लगता हैं कि तुम भी यही चाहती हो।

दीदी कुछ नहीं बोली और मैं उनकी चुप्पी को उनकी हाँ समझ रहा था। फिर दीदी थोड़ी देर तक सोचने के बाद बोली- कमरे में जाने का मतलब होता है कि हम वो सब भी???

मैंने तब दीदी को समझाते हुए कहा- लेकिन तुम चाहोगी तभी। नहीं तो कुछ नहीं।

दीदी फिर भी बोली- पता नहीं रवि, यह बहुत बड़ा क़दम है।

मैंने तब फिर से दीदी को समझाते हुए बोला- बाबा, अगर तुम नहीं चाहोगी तो वो सब काम नहीं होगा और वही होगा जो जो तुम चाहोगी। लेकिन मुझे तुम्हारी दोनों मुसम्मियाँ बिना किसी के डर के साथ पीना है बस !

मैं समझ रहा था कि दीदी मन ही मन चाह तो रही थी कि मैं उनकी चूची को बिना किसी डर के चूसूं और उनकी चूत से खेलूँ।

दीदी बोली- बात कुछ समझ में नहीं आ रही है। लेकिन यह बात तो तय है कि मैं अभी घर नहीं जाना चाहती हूँ।

इसका मतलब साफ़ था कि दीदी मेरे साथ होटल में और होटल के कमरे में जाना चाहती हैं।

इसलिए मैंने पूछा- तो होटल चलें? दीदी मेरे साथ चल पडीं। मैं बहुत खुश हो गया। दीदी मेरे होटल में चलने के लिए राज़ी हो गई है।


क्रमशा: (अभी जारी है )

दोस्तो, कैसे लगी ये कहानी आपको,

कहानी पड़ने के बाद अपना विचार ज़रुरू दीजिएगा ...
मेरी इमेल है रविरम६९ @ रीडिफ़ मेल डॉट कॉम

आपके जवाब के इंतेज़ार में ..
आपका अपना

रविराम69 (c) "लॅंडधारी" (मस्तराम - मुसाफिर)

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