छाया - भाग 05

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[ मैं माया ]

मैं उसके पैरों पर तेल लगाते हुए उसकी नाभि तक जा रही थी बीच में उसका उत्तेजित लिंग मुझे आमंत्रण दे रहा था मैंने अपने हाथों से उसे पहली बार छुआ. राजकुमार में अचानक हलचल हुई मैंने मानस का चेहरा देखा उसने अभी भी अपनी आंखें बंद की हुई थी परंतु मेरे स्पर्श का उस पर असर हुआ था. उसके चेहरे पर सुखद अनुभूति हुई थी. अब मैं उसकी जांघों से कमर तक जाते समय अपने हाथ से उसके राजकुमार को स्पर्श कर रही थी और राजकुमार उछल रहा था. मानस का लिंग वास्तव में आकर्षक था. मेरी छाया उसे अकेला छोड़ गयी थी यह सोचकर मुझे मानस के लिंग को देखकर प्यार आ रहा था. मुझसे रहा नहीं गया और मैंने नीचे झुक कर उस लिंग को चूम लिया. मेरे होठों का स्पर्श पाकर मानस की आंखें कुछ देर के लिए खुलीं पर उसने आखें बंद कर लीं. वह समझदार था. शायद वह समझता था की उसे शर्म के परदे को कायम रखते हुए मैं उसे ज्यादा सिख दे सकती थी.

मेरे मन में एक पल के लिए आया कि मैं मानस के लिंग को पूरी तरह अपने मुंह में ले लूं. पर मैं रुक गई मैंने अभी उसे अपने हाथों में लेकर और उत्तेजित करने के लिए सोचा. मेरे दिमाग में बार-बार वही बातें आ रही थी. यह वाही लिंग है जिसने मेरी बेटी छाया की कोमल योनी के साथ पिछले कई वर्षों तक संसर्ग किया है. मैंने इस सुंदर लिंग से अपनी प्यारी बेटी की छाया को जुदा कर दिया था. यह छाया के लिए सर्वाधिक प्रिय रहा होगा ऐसा मेरा अनुमान था. मैंने लिंग के अग्रभाग को अपने हथेलियों से से सहलाया. मुझे अपने नितंबों पर मानस के पैरों का दबाव महसूस हुआ. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसा मानस अपनी जांघों को ऊपर उठा रहा था. मैंने अपने दोनों हाथों से उसके लिंग को सहलाना शुरू कर दिया. मेरा बाया हाथ लिंग के निचले हिस्से पर अपनी पकड़ बनाए हुआ था तथा अंगूठे उसके अंडकोष को भी सहला रहे थे. मैं दाहिने हाथ से उसके लिंग को नीचे से ऊपर तक सहला रही थी. शिश्नाग्र तक पहुंचते-पहुंचते मैं अपनी हथेलियों का दबाव बढ़ा देती और मानस के चेहरे पर उत्तेजना और बढ़ जाती. शिश्नाग्र एक दम लाल हो गया था. गोरे रंग के राज्कुमार का लाल मुह देख कर मुझे एसा लगा हैसे कोई छोटा बच्चा गुस्से से लाल हो गया हो. मुझे एक बार फिर उसे चुमने की इच्छा हुई.

मैंने अपने होठों को मानस के लिंग पर जैसे ही रखा वीर धारा फूट पड़ी. मैं इस अप्रत्याशित वीर्य स्खलन से अव्यवस्थित हो गई वीर्य की पहली धार मेरे होंठो और चेहरे पर गिरी. मैंने अपना चेहरा हटाया परंतु तब तक मानस का हाथ उसके लिंग पर आ चुका था. मैंने अपने हाथ से उसका लिंक पकड़े रखा था हमारी उंगलिया मिल गयीं. वीर्य उसके लिंग से लगातार बाहर हो रहा था और वह मानस के शरीर पर तथा मेरे शरीर पर गिर रहा था. हम दोनों वीर्य को अपने शरीर पर ही गिराना चाह रहे थे. मानस शर्म वश एसा कर रहा था और मैं उत्तेजनावश. मानस ने अब तक अपनी आंखें खोल लीं थी. मुझे अपने वीर्य में भीगा हुआ देखकर वाह मन ही मन प्रसन्न हो रहा था परंतु अब मैंने उसके चेहरे पर से नजर हटा ली थी.

मैं बिस्तर से उतर कर नीचे आ गई मेरी नाइटी ने स्वतः ही नीचे आकर मेरे नग्न जाँघों और को ढक लिया. मैं तेल का कटोरा अपने हाथों में लिये कमरे से बाहर आ गई. मेरे हाथ में मानस के वीर्य से सने हुए थे. यह वही वीर्य था जो आज से कुछ महीने पहले तक मेरी प्यारी छाया को भिगोया करता था. मैंने मानस के वीर्य से सने हाथों को एक बार फिर चूम लिया.

तीन-चार दिनों बाद छाया और मानस को एक साथ हंसते और साथ साथ बाहर घूमते हुए देख कर मेरे मन में एक बार लगा की फिर दोनों दोनों प्रेमी पास आ गए. अब मुझे मानस का हस्तमैथुन करने का थोड़ा अफसोस हो रहा था पर उस दिन अत्यधिक खुशी और कृतज्ञता में मैंने वह कदम उठा लिया था.

मुझे इस बात से खुशी थी की वो दोनों ही समझदार और जिम्मेदार थे. इसके अलावा वह दोनों एक साथ क्या करते होंगे यह मैं जानती तो जरूर थी पर उस बारे में मैंने सोचना बंद कर दिया. वह दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे मैंने भी उनकी खुशी में अपनी खुशी ढूंढ ली थी. अब मैं बिना किसी आत्मग्लानि के साथ शर्मा जी की बाहों में आनंद लेने देखने लगी.

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