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Click hereछाया का नया जीवन
नयी नौकरी.
[मैं छाया]
मैं अपनी नई नौकरी ज्वाइन कर चुकी थी. मेरा ऑफिस घर से कुछ दूरी पर था. ऑफिस की गाड़ी मुझे लेने आती और ऑफिस खत्म होने के बाद घर छोड़ जाती. मेरी जिंदगी में यह एक नया अनुभव हो रहा था. ऑफिस के बाकी दोस्तों से मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगता. हम सब दिन भर अपने बारे में एक दूसरे से बातें किया करते. ऑफिस में अधिकतर पुरुष थे और कुछ महिलाएं थी. मेरे पक्की सहेली पल्लवी भी इसी कंपनी में थी. हमारे दिन बड़े अच्छे से बीतने लगे. घर पर मानस और सीमा के साथ मेरी रातें रंगीन थीं ही दिन भी अच्छे से कट जा रहा था. सारे सुख मिल गए थे एक ही कमी थी वो सम्भोगसुख.
2 महीने की ट्रेनिंग के बाद हमें हमारे डिपार्टमेंट में शिफ्ट किया गया मेरे नए बॉस मिस्टर एस के मल्होत्रा थे उनकी उम्र लगभग मानस के जैसी होगी. वह अत्यंत सुंदर और आकर्षक व्यक्तित्व के थे. वह हष्ट पुष्ट भी थे. वह हमेशा सख्त स्वभाव के लगते थे हम लोग उनके पास मिलने गए पर जितने कठोर वो दिखते थे उतनी ही नम्रता से हम सब से मिले.
कुछ ही दिनों में हम सब अपने कार्य में व्यस्त हो गए. मल्होत्रा जी मुझसे हमेशा अच्छे से बात करते थे. डिपार्टमेंट के बाकी लोग उनसे डरते थे परंतु मुझे उन से डर नहीं लगता था. मैं अपने कार्य में दक्ष थी और इस बात को वह पूरी तरह पसंद करते थे. कुछ ही दिनों में वह मेरे अच्छे दोस्त बन गए थे. वह मुझे हर बात में गाइड करते और मेरे कार्यों से खुश रहते थे. कभी-कभी वह मेरे निजी जीवन के बारे में भी पूछते. मैं उन्हें उचित दूरी बनाकर अपने बारे में बताती. बातों ही बातों में मुझे यह भी मालूम चला कि वह शादीशुदा नहीं थे. घर पर हमेशा मानस और सीमा मुझे शादी के लिए प्रेरित करते रहते थे वह दोनों भी मेरे लिए कोई अच्छा लड़का देख रहे थे मुझे मल्होत्रा जी धीरे-धीरे अच्छे लगने लगे थे परंतु मैं यही प्रतीक्षा कर थी कि वह खुद ही प्रपोज करें पर ऐसा नहीं हो रहा था. हम दोनों एक दोस्त की भांति कई महीने तक रहे पर हमारे बीच में हमेशा एक मर्यादा कायम रही..
मैंने सीमा भाभी को मल्होत्रा जी के बारे में बता दिया था. हम दोनों उनके बारे में बातें करते थे. सीमा भाभी उन्हें देखने की जिद करती थी. एक दिन मैंने ऑफिस में उनके साथ एक सेल्फी ली और सीमा भाभी को दिखाया वह देखते ही चौक गई. मैंने पूछा
"क्या हुआ" वह बात टाल गयीं और बोलीं
"अरे यह तो बहुत हैंडसम है. तुम्हें इससे बात आगे बढ़ानी चाहिए "
मुझे सीमा दीदी के विचार जानकर बहुत खुशी हुई.
मैं और मल्होत्रा जी आने वाले समय में और करीब आते गए.
सीमा और सोमिल
[मैं सीमा]
छाया द्वारा उसके बॉस के साथ फोटो देखकर मेरे होश फाख्ता हो गए. यह तो सोमिल था. सोमिल कुमार मल्होत्रा. वह बेंगलुरु में था यह जानकर मैं अपने आप को उससे मिलने से रोक नहीं पायी. मैंने किशोरावस्था में जीवन के दो-तीन साल उसके साथ गुजारे थे और अब छाया उसके संपर्क में आई थी. मैं सोमिल से मिलने को बेचैन हो उठी. मैंने छाया के ऑफिस से सोमिल का फोन नंबर प्राप्त किया और उसे एक दिन फोन किया
" सोमिल"
"जी, आप कौन"
"मैं सीमा को जानती हूँ"
"सच. मुझे बताइए ना आप कौन हैं?"
"आप चाहे तो अपनी पुरानी मित्र सीमा से मिल सकते है . कावेरी गार्डन, आज शाम ६.०० बजे."
"मैं जरूर आउंगा"
मैंने फ़ोन काट दिया.
मैं उस दिन सोमिल से मिलने को लेकर बहुत उत्साहित थी. आज कई वर्षों बाद हम एक दूसरे से मिलने वाले थे. अब मैं शादीशुदा थी परंतु उससे मिलकर अपनी स्थिति को बताना जरूरी था वरना मैं हमेशा इस अपराध बोध में रहती कि मैंने सोमिल के साथ किया वादा नहीं निभाया. यह अलग बात थी कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं थी पिछले दो-तीन वर्षों में हमारा संपर्क पूरी तरह टूट गया था और हम चाह कर भी एक दुसरे से संपर्क नही कर पा रहे थे.
मैं शाम को सज धज कर सोमिल से मिलने के लिए निकल रही थी. मैंने जानबूझकर आज साड़ी पहनी थी और माथे पर सिंदूर भी स्पष्ट रूप से लगाया था. मुझे लगा यदि सोमिल मुझे इस स्थिति में देखेगा तो एक बार में ही सारी बातें स्पष्ट हो जाएंगीं और हम आसानी से बात कर पाएंगे वरना हम अपनी पुरानी बातों और किए गए वादों में ही डूबे रहेंगे. मैं तैयार होकर घर से निकल चुकी थी.
पार्क में सोमिल मेरा इंतजार कर रहा था. उसके हाथ में एक फूलों का गुलदस्ता था. मुझे देखते ही वह मेरी तरफ दौड़ पड़ा और बिना कुछ कहे मुझे अपनी बाहों में भर लिया. मैंने भी उसे निराश नहीं किया और हम दोनों एक बार गले मिल गए. अचानक उसने मेरे माथे पर सिंदूर देखा और जिसका मुझे अंदाजा था वही बात हुयी वह एक झटके में ही सारी कहानी समझ गया और उसकी आंखों में आंसू भर आए. उसने मेरी तरफ देख कर कहा
"सीमा में पिछले दो-तीन वर्षों से तुम्हें पागलों की तरह ढूंढ रहा हूं. मैंने भी उसे यही बात बतायी.
"हम लोगों ने भी तुम्हें ढूंढने की बहुत कोशिश की मैं अपने पापा के साथ चंडीगढ़ भी गई परंतु तुमने अपना मकान छोड़ दिया था. आस पड़ोस में पूछने पर भी कोई तुम्हारा पता नहीं बता पा रहा था. मैं क्या करती? मेरे पिता मुझ पर लगातार दबाव बना रहे थे और अंततः मैं तुम्हारे सामने इस स्थिति में खड़ी हूं."
सोमिल पूरी तरह मेरी बात समझ रहा था. मैंने उससे पूछा कि
"तुमने अभी तक शादी नहीं की? हालांकि यह बात मुझे पता थी पर फिर भी मैंने पूछा."
सोमिल की आंखों में अभी तक आंसू सूखे नहीं थे. उसने कहा
"सीमा मैंने सिर्फ तुमसे प्यार किया है और मैं तुमसे ही शादी करना चाहता था. याद है, मैंने तुम्हारे सामने एक वचन भी दिया था".
मुझे उसका वजन याद जरूर था पर मैं उसे अपने मुंह से नहीं कहना चाहती थी. मैंने हल्की अनभिज्ञता जताते हुए उससे पूछा
"कौन सा वचन"
वह बोला
"जाने दो"
मैंने फिर उससे पूछा "बताओ ना कौन सा वचन"
उसने फिर से टाल दिया.
अब हम एक पेड़ के छांव के नीचे बने बेंच पर बैठ गए थे. वह मुझ से तरह-तरह की बातें कर रहा था उसने पूछा
"तुम्हारी शादी किससे हुई है? मैंने उसे बताया. वह धीरे-धीरे सामान्य हो रहा था. बातों ही बातों में मैंने उससे उसकी नौकरी के बारे में पूछा. उसने घर से बताया कि वह इस कंपनी में मैनेजर की भूमिका में है. और फिर मैंने उससे पूछा
"क्या पिछले दो-तीन वर्षों में तुम्हारा किसी से संपर्क नहीं हुआ है"
"नहीं सीमा. मैं दिल से तुम्हें ढूंढ रहा था परंतु मेरा सौभाग्य या दुर्भाग्य कि तुम आज मुझसे मिली वह भी इस अवस्था में."
"मैं मान ही नहीं सकती की पिछले दो-तीन वर्षों में तुम्हारा किसी लड़की से संपर्क ना हुआ हो . तुम तो शुरू से ही डोरे डालने में एक्सपर्ट हो"
वह हंसने लगा उसने कहा
"मुझे जो सुख तुमसे प्राप्त हुए थे वह मेरे लिए मेरी यादों में अपनी जगह बना चुके थे मुझे किसी और को लाने की जरूरत नहीं थी. मैंने तुम्हारे इंतजार में यह समय गुजार लिया था. पर अभी पिछले कुछ दिनों से तुम से मिलती जुलती एक लड़की मेरे ऑफिस में आई है. वह मुझे अच्छी लगने लगी है. तुम्हारे जैसी ही है पर अत्यंत कोमल और मासूम है.
"इसका मतलब मैं कोमल नहीं थी"
"अरे नहीं वह बात नहीं है शरीर की बनावट सबकी अलग-अलग होती है. पर बातचीत करने और बातचीत के अंदाज में तुम दोनों मुझे एक जैसी ही दिखाई देती हो"
मैं समझ गई थी कि वह छाया के बारे में बात कर रहा है. मैंने उससे उस लड़की के बारे में और पूछा. वह कुछ देर छाया के बारे में बात करता रहा फिर बात को वापिस मुझ पर ले आया. मैंने कहा
"तुम उससे मिलकर अपने प्यार का इजहार करो अब तो हमारा मिलना संभव नहीं है"
उसने बोला
"मैं शादी नहीं कर सकता"
"क्यों?"
"बस ऐसे ही"
मैंने जिद की.
"सीमा छोड़ो ना. जो बातें अब संभव नहीं है उनके बारे में क्या बात करना"
"मैं सब संभव कर दूंगी."
"पक्का" वो हँसने लगा."
"प्लीज बताओ ना"
उससे कहा
"मैंने चंडीगढ़ में तुम्हारे कहने पर एक तुम्हें एक वचन दिया था और जब तक वह वचन पूरा नहीं होता मैं अपनी पत्नी के साथ न्याय नहीं कर पाऊंगा"
मैं घबरा गई उसके इस बात पर मैं क्या जवाब दूं मैं सोच नहीं पा रही थी. मुझे उसका वचन तो याद था पर फिर भी मैंने दोबारा कहा
"देखो हम दोनों ने विवाह करने की सोची थी उस समय ये बातें ठीक थी पर अब मैं शादीशुदा हूं"
उसने फिर कहा
"शायद तुम उस वचन को भूल गई हो. मेरे बेंगलुरु आने से पहले तुम आशंकित थी कि मैं तुम्हारी अनुपस्थिति में किसी और लड़की के संपर्क में आ जाऊंगा और उससे संभोग कर लूंगा. मैंने तुम्हें बार बार यह बात समझायी कि मैं सिर्फ तुमसे ही प्रेम करता हूं और मैं कभी यह नहीं करूँगा. परंतु तुम मेरी बात नहीं मानी. और तुमने मुझसे वचन लिया या कि मैं अपना पहला संभोग तुम्हारे साथ ही करूंगा. तुम्हारी आशंका को मिटाने के लिए ही मैंने तुम्हें यह वचन दिया था."
मैं निरुत्तर हो गई थी
"पर अब यह असंभव है. क्या कोई और रास्ता नहीं है"
"मुझे नहीं पता. छाया मुझे अच्छी तो लगती है पर मैं उससे अपने प्यार का इजहार नहीं कर सकता क्योंकि मुझे पता है मैं अपने वचन को पूरा किए बिना उसके साथ न्याय नहीं कर पाऊंगा. देखते हैं नियति ने मेरे भाग्य में क्या लिखा है" वह चुप हो गया था.
लगभग 2 घंटे बीत चुके थे हमने पास के रेस्टोरेंट में जाकर कुछ नाश्ता किया और अब विदा लेने का वक्त था. सोमिल ने कहा फिर कब मुलाकात होगी मैंने भी उसे नियति पर ही छोड़ दिया था. हम दोनों अपने अपने घर की तरफ पर चल पड़े.
परिवारों की सहमति
[मैं सीमा]
छाया के कहने पर एक बार फिर हमारे शयनकक्ष में ब्लू फिल्म लगाइ गई. मैं और छाया दोनों ही पूर्ण नग्न होकर बिस्तर पर मानस का इंतजार कर रहे थे. फिल्म शुरू होते ही वह भी बिस्तर पर आ गए. हम तीनों एक दूसरे से लिपटकर फिल्म देखने लगे. सीडी में एक युवती से दो युवक प्यार कर रहे थे. उनका प्यार जैसे-जैसे परवान चढ़ता गया हम तीनों उत्तेजित होते चले गए. छाया बीच में थी उसके एक तरफ मैं थी और दूसरी तरफ मानस थे. हम दोनों ही उससे बहुत प्यार करते थे और उसे हर सुख देना चाहते थे क्योंकि वह अभी तक संभोग का सुख नहीं ले पायी थी. उसे हमारे होठों और उंगलियों की कला से ही काम चलाना था. इसलिए हम सबसे पहले उसका ही ध्यान रखते थे. वह भी हम दोनों का बहुत साथ देती थी. फिल्म में एक महिला को दो पुरुषों से संभोग करते हुए देखकर अचानक मेरे मुंह से निकल गया क्या हकीकत में ऐसा भी होता है. छाया तुरंत बोल पड़ी
"हां दीदी मैंने एक बार सपना भी देखा था." हम तीनों हंस पड़े मानस ने कुछ नहीं कहा वह चुप ही रहे फिल्म खत्म होने के बाद हम सब सामान्य हो चुके थे .
एक दिन मानस ने मुझसे पूछा उस दिन तुम किसी और पुरुष के साथ संभोग करने की बात कर रही थी. मैंने कहा
"हां. क्या यह सच में संभव होता है?
"आजकल इस दुनिया में सब कुछ संभव है. आजकल लोग अपनी कल्पनाओं को जीते हैं. कुछ को यह मौक़ा मिलता है और कुछ सिर्फ कल्पना में ही यह सोचते रह जाते हैं."
उन्होंने हंसते हुए कहा
"तुम यदि इस बात के लिए अपना मन बनाती हो तो हो सकता है तुम्हें कभी इसका मौका मिल जाए. पर तुम्हें यह बात मुझे स्पष्ट रूप से बतानी होगी" वो फिर हसने लगे और मेरी रानी पर हाथ फेरने लगे.
मैं कुछ बोल नहीं पायी
"पर मेरे मन में सोमिल का ख्याल आ गया"
मेरे दिमाग में एक योजना बनने लगी. आखिर छाया मेरी ननद थी और मानस की बहन भी उन दोनों की ख़ुशी में मुझे भी खुशी मिलती.
मैंने मानस से एस के मल्होत्रा की हकीकत बता दी और उसके वचन के बारे में भी। वह हंसने लगे मैंने कहा मुझे आपकी अनुमति चाहिए। उन्होंने मजाक किया हां तो वचन पूरा कर देना वह तुम्हारे नंदोई बनने वाले हैं इतना कहकर संभोग क्रिया में मस्त हो गए.
कुछ दिनों बाद मैं फिर एक बार फिर सोमिल से मिली वह बहुत खुश था. हम दोनों ने कई सारी बातें की. मैंने छाया की बात दोबारा छेड़ी तो वह बोल उठा छाया वास्तव में बहुत अच्छी है. मैंने कहा
"तुम उसके परिवार वालों से मिले हो या नहीं?"
"अभी तो नहीं पर वह बार-बार जिद करती है"
"तो एक बार मिल लो"
"पर इन सब मेल मुलाकात का अंत क्या होगा यही सोच कर मैं डर जाता हूँ. मेरे पास उसे देने के लिए कुछ नहीं है. तुमने मुझसे वह वचन लेकर मुझे मझधार में डाल दिया है"
"कोई बात नहीं. हो सकता है मैं तुम्हारा वचन पूरा कर दूं"
"क्या कहा तुमने"
"वही जो तुमने सुना"
"क्या सच में ऐसा संभव है"
"जब तुमने दिल से यह चाहा है तो हो सकता है संभव हो"
"मैं इतना कह कर वहां से उठकर चल दी"
मैनें मुड़कर देखा उसके चेहरे पर आश्चर्यमिश्रित खुशी थी. मैं भी मुस्कुराते घर वापस आ रही थी. रास्ते में टैक्सी को हाथ देती इससे पहले मानस अचानक आ गए उन्होंने मुझसे पूछा
"इधर कहां घूम रही हो"
"सोमिल से मिलने आयी थी."
"ओह.... कर किया वचन पूरा"
" हाँ कर लिया... आप भी ना?" मेरे उत्तर में हां और ना का मिश्रण था जिसे उन्होंने हाँ समझा और वह पूरे रास्ते शांत रहे. मैंने भी इस बारे में कोई बात करना उचित नहीं समझा. मैने मन ही मन सोच लिया कभी ऐसी ही एक छोटी मुलाकात में सोमिल के वचन को भी पूरा कर दूंगी जो इस विवाह की अनिवार्य कड़ी थी.
कुछ दिनों बाद छाया ने बताया कि मल्होत्रा जी शनिवार को हमारे घर आने के लिए तैयार हो गए हैं. हम सब बहुत खुश थे. छाया और मैंने उनके लिए कई पकवान बनाए और घर को भी बहुत अच्छे से सजाया था . मानस बाजार से दो बढ़िया बुके भी ले आए थे. हम सब उनका इंतजार कर रहे थे. आज सोमिल को यह बात पता चलनी थी कि जिस लड़की से वह प्रेम करता है वह मेरी ननंद थी. वह ठीक समय पर घर पर आ गया. दरवाजा मानस ने खोला था. उन्होंने बुके देकर उसका स्वागत किया और अंदर हाल में ले आए. हॉल में मुझे देखकर सोमिल कुछ बोल नहीं पाया वह मुझे एकटक देखता रहा. मैंने सिर्फ मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया. माया आंटी को देखकर उसने उनके चरण छुए उनसे आशीर्वाद लिया. मानस ने सोमिल को बैठने के लिए कहा और दूसरा बुके उसके हाथ में दे दिया. उसके दिमाग में ढेरों प्रश्न थे पर वह शांत था.
छाया ने एक बार हम सबका परिचय कराया उसने बताया
"यह मेरी माँ हैं, ये मानस भैया हैं और ये मेरी सीमा भाभी हैं और मैं आपकी जूनियर" कह कर हंसने लगी. धीरे-धीरे हम सब सामान्य हो गए और आपस में बातें करने लगे. सोमिल की निगाहों में अभी भी मुझे लेकर प्रश्न थे. काफी देर रात बातें करने के बाद हम लोगों ने खाना खाया. खाने के पश्चात सोमिल अपने घर की तरफ रवाना हो गया. उसके जाने के बाद मानस बहुत खुश थे मानस ने कहा
"मल्होत्रा जी वास्तव में एक जिम्मेदार व्यक्ति लगते हैं छाया तुम्हारी पसंद बहुत ही अच्छी है. पर क्या वह भी तुम्हें पसंद करते हैं "
"पसंद करते हैं तभी तो हम लोगों से मिलने यहां तक आ गए" मैंने कहा.
मानस और मैं दोनों ही बहुत खुश थे. माया आंटी तो सोमिल को देखकर फूली नहीं समा रहीं थीं. उनका होने वाला दामाद इतना खूबसूरत और काबिल होगा शायद उन्हें इसकी उम्मीद नहीं थी. मल्होत्रा जी को देखकर सभी काफी खुश हो गए थे.
कुछ दिनों बाद मैंने सोमिल से फिर मुलाकात की बातों के दौरान मैंने उसके माता-पिता से मिलने के लिए समय मांगा उसने कहा
"आप लोग अगले शनिवार को हमारे घर पर आ जाइए मैं पापा मम्मी को बता दूंगा"
वह अब शादी के लिए मन बना रहा था.
उसने मुझसे फिर पूछा
"सीमा क्या यह सच में हो पाएगा"
मैंने उससे कहा
"अपने वचन को पूरा करने के बाद तुम कुवारें नहीं रहोगे. मैं तुम्हारे वचन की लाज रखूंगी पर इस बात का ध्यान रखना कि तुम्हारी छाया ने आज तक किसी के साथ संभोग नहीं किया है. और वह अक्षत यौवना है. यदि तुमने अपना पहला संभोग मेरे साथ किया तो तुम्हें उसके साथ किए गए पहले संभोग का सुख नहीं प्राप्त होगा." मैंने उससे यह बात उससे जोर देकर कही थी ताकि वह छाया जैसी सुन्दर , कोमल एवं कुंवारी लड़की के साथ संभोग करने की लालसा में मुझसे संभोग करने की जिद छोड़ दे.
"उसने कहा मैं वचनबद्ध हूं. छाया का कुवांरापन मेरे लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना मेरा वचन.मेरे वचन की उसकी लाज रखना"
मैंने उसे हंसते हुए कहा
"तथास्तु नंदोई जी" वह अपने संबोधन पर हंस पड़ा.
हम सब सोमिल के परिवार वालों से मिलने उसके घर पर आए जाये. सोमिल का घर हमारे घर से थोड़ा दूर था. उसका घर भी बहुत सुंदर था पर छोटा था. उसके माता-पिता के अलावा उसका एक छोटा भाई भी था. हम सभी का भव्य स्वागत किया गया. सोमिल के पिता मुझे पहचानते थे. वह मेरे और सोमिल के संबंधों के बारे में भी कुछ हद तक जानते थे. उन्होंने मुझसे कहा सीमा बिटिया तुम तो बहुत बड़ी हो गई और तुमने शादी कब कर ली.
"पिछले साल ही हुई है. यह मेरे पति मानस हैं यह मेरी ननद छाया है और यह मेरी सास माया जी हैं. छाया ने उठकर सोमिल के माता पिता के पैर छुए. सोमिल की मम्मी ने उसे अपने गले लगा लिया और बोला
"अरे यह कितनी सुंदर है. सोमिल मुझसे बार-बार कहता था पर मुझे यकीन नहीं होता था. आज छाया को देखने के बाद लग रहा है कि सोमिल सच कहता था"
वो छाया से मिलकर बहुत खुश थी. छाया पहली नजर में ही उन्हें पसंद आ गई थी. उसकी इतनी तारीफ सोमिल पहले ही कर चुका था. सिर्फ आंखों से देखना बाकी था . सोमिल के पिता जी ने कहा
"छाया हम लोगों को बहुत पसंद है मुझे लगता है सोमिल और छाया भी एक दूसरे को बहुत पसंद करते हैं. हमें इन दोनों का विवाह कर देना चाहिए." हम सब भी बहुत खुश हो गए. माया आंटी ने कहा
"सोमिल जैसा दामाद पाकर हम सब भी बहुत खुश हैं" हम सब ने साथ में खाना खाया और विदा लेने की बारी आ गयी. हम लोगों ने सोमिल उनके माता-पिता और उनके छोटे भाई के लिए कई तरह के उपहार ले गए थे. वापस आते समय सोमिल के माता पिता ने अपनी नई बहू और हम सभी के लिए कई सारे उपहार दिए.
सोमिल मुझे जाते हुए देख रहा था और मुस्कुरा रहा था.
आप इस उपन्यास को अमेजोन किंडल पर भी पढ़ सकते हैं।
मैंने शर्म से पलकें झुका लीं हुए आगे चल पड़ी. छाया का विवाह पक्का हो गया था।
कहानी में अच्छा नया मोड़ लाये है. अत्यंत रोचक और रसीली कथा है. वाह वाह.