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Click hereमेरी अब तक की कहानी "जन्नत की 72 हूरे" जो की "खाला को चोदा, खाला की चुदाई के बाद आपा का हलाला, मजो की दुनिया में मेरे अनुभव और खड़े लण्ड की अजीब दास्ताँ" के अगले भाग हैं में आपने पढ़ा मैंने कैसे जन्नत के मजे लुटेl
अब थोड़ा से अलग हट कर आपको कुछ और हूरो की कहानी बता रहा हूँ जिनसे मैंने अभिसार किया। उनमे से एक है विद्युत् प्रभा पर कहानी सिर्फ़ विद्युत् प्रभा की ही नहीं है इसमें कुछ और पात्र भी हैं आनंद लीजिये।
जन्नत की 72 हूरो की कहानी अलग से चलती रहेगी।
विधुत प्रभा—बिलकुल नाम के जैसी-चमकती हुई बिजली-उसे देख के लगता था जैसी कोई बिजली चमकी और स्वाभाव भी एकदम कड़क। विधुत प्रभा हमारी एक टीचर का नाम था जिसने हमे स्कूल में कोई तीन महीने पढ़ाया होगा। नयी-नयी सनातक होकर के टीचर लगी थी और शायद उसकी पहली नौकरी थी वह भी अल्पकालीन। वह हमारी रेगुलर टीचर जो मेटरनिटी लीव पर गयी थी उसके बदली आयी थी और उसके आते ही हमने उसे स्कूल में कभी नहीं देखा।
जब वह स्कूल में थी तो मैं चूकि क्लास में फर्स्ट आता था और पढ़ने में ख़ूब अच्छा था तो जल्द ही उसका पसंदीदा स्टूडेंट बन गया था। वह अपने तेज स्वाभाव अनुसार सब को डांटती थी पर कभी मुझे डांटने का मौका नहीं मिला और उसने कभी डांटा भी नहीं।
एक और बात जब वह पहली बार क्लास में आयी तो उसके साडी ब्लॉउज पहना था। उसका ब्लॉउज थोड़ा पारदर्शी था और उसके लाल रंग की ब्रा दिख रही और उसकी डोरी ब्लाउज के नीचे से बाहर निकल रही थी। लग रहा था उसके बड़े-बड़े गोल गोल बूब्स ब्लाउज से निकलने के बेताब हैं और जिसे देख मेरा तो लंड खड़ा हो गया था। जब उसे परिचय देने के लिए मैं खड़ा हुआ और बोला मेरा नाम है आमिर तो उसकी नज़र सीधे मेरे उभार पर गयी वह बोली ठीक है आमिर बैठ जाओ।
बाकी जब तक वह स्कूल में थी वह स्कूल की सबसे हॉट आइटम थी और सब स्कूल की लड़किया और टीचर उसके आगे पानी भर्ती थी। मनचले उसके पीछे लगे रहते थे पर उसने कभी किसी को कोई भाव नहीं दिया।
हाँ जाने से पहले वह मेरे घर आयी थी क्योंकि वह मेरी सौतेली बहनो को टूशन पढ़ाती थी और बोल गयी थी अब नहीं आएगी क्योंकि वह दूसरी नौकरी की तलाश में जा रही है।
कुछ साल बाद एक दिन उसका ख़त आया तो अब्बू ने वैसे ही बातो-बातो में बताया अब वह शिमला में किसी गर्ल्स स्कूल में प्रिंसिपल हो गयी है। और बताया उसके पिताजी मेरे अब्बू के दोस्त थे और उनका आकस्मिक देहांत हो गया था माँ पहले ही विधुत के छोटे भाई के पैदा होते हुए गुजर गयी थी।
पिता के निधन के बाद मेरे अब्बू ने उसकी पढ़ाई पूरी करने में मदद की थी और हमारे स्कूल में नौकरी भी उन्ही ने लगवाई थी। शिमला का स्कूल भी उन्ही के दोस्त का था जिसमे वह बाद में नौकरी करने लग गयी थी और अब वहाँ की प्रिंसिपल हो गयी थी। उसके छोटे भाई ने इंजीनियरिंग कर ली थी।
अब्बू ऐसे काम करते रहते थे और बात आयी गयी हो गयी।
जब मैं पढाई करते हुए छुटियो में एक बार वापिस आया, तो मेरी छोटी (सौतेली) बहन रुखसाना मेरे पास आयी और बोली भाई जान मेरी सहेली की बड़ी बहन जो सोलन में रहती है उसकी शादी है। आप मेरे साथ चलो नहि तो अब्बू जाने की इजाज़त नहीं देंगे।
मैंने कहा यार रुख ( रुखसाना) मैं वहाँ बोर हो जाऊँगा, तो वह बोली शादी मेरी सहेली रिया की बड़ी बहन रीमा की है। रिया और रीमा दोनों बहने मुझे काफ़ी पसंद थी और फिर रुखसाना बोली चलो शायद तुम्हारा भी कुछ फायदा हो जाए, क्योंकि रिया और रीमा दोनों बहुत ज़ोर दे रही थेी की तुम्हे ज़रूर साथ ले आऊँ।
अब कुछ वज़ह नज़र आ रही थी वहाँ जाने की तो मैंने अब्बू से इजाज़त ले ली और अपनी कार उठा कर रुख के साथ दिल्ली से सोलन के लिए चल दिया साथ में लूसी तो हमेशा की तरह थी ही।
वहाँ रिया और रीमा ने हमारा जोरदार स्वागत किया और हम शादी से चार पांच दिन पहले ही वहाँ पहुँच गए थे ये सोच कर के दो दिन बाद सगाई थी और फिर उसके दो दिन बाद शादी और हमने सोचा था बीच में एक दो दिन शिमला घूम आएंगेl अभी घर में और कोई मेहमान नहीं आये थे। घर में थे बंसल अंकल आंटी और उनकी दो बेटियाँ रिया और रीमा।
बंसल अंकल जो रीमा और रिया के पिताजी थे उनका घर काफ़ी बड़ा था। मेरा रुकने का इंतज़ाम किया गया उस कमरे में जो रिया रीमा के कमरे के ऊपर ही था और डुप्लेक्स स्टाइल में बने होने के कारण एक कमरे से दुसरे कमरे में आसानी जाया जा सकता था और मेरे कमरे के साथ वाले कमरे में लूसी थी और वहाँ पहुँच कर रुख तो मुझे भूल कर अपनी सहेलियों के साथ मस्त हो गयी।
रिया रीमा का कोई भाई नहीं था और मुझे उनके परिवार वाले बहुत मानते थे और उसके पिताजी बंसल अंकल मुझे अपना बेटा ही मानते थे और मुझे उन्हेने कहा आज आराम कर लो कल से कुछ कामो की जिम्मेदारी संभाल लेना।
रिया बोली आमिर कल आप प्लीज डैडी के साथ स्टेशन चले जाएंगे। वहाँ जीजा जी की बड़ी बहन विद्युत् प्रभा आ रही है। उन्हें ले कर होटल और बाक़ी एक दो जगह जाना है। वह देखना चाहती सब इंतज़ाम तो ठीक से किया गया है। उन्हें ड्राइवर के साथ भेजना ठीक नहीं रहेगा इसलिए आपको थोड़ी तकलीफ तो होगी।
अंकल बोले- बड़ी खब्ती है उसकी बड़ी बहन-विधुत प्रभा ।
क्योंकि ये नाम इतना आम नहीं है मैं ये नाम सुन कर चौंका।
मैंने कहा नहीं। अंकल कोई दिक्कत नहीं होगी मुझे यहाँ के रास्ते नहीं पता पर अब गूगल बाबा है तो कोई ख़ास दिक्कत नहीं होगी मुझे।
अंकल बोले- शिमला में विधुत प्रभा अकेली ही रहती है और उसका भाई बंगलोरे की नामी आईटी कंपनी में है। तीन चार महीने बाद वह भाई के पास बंगलोर चक्कर मार तो लेती है लेकिन रहती शिमला में ही है ... वह भी अकेली। विधुत प्रभा, करीब 5' 6″ लम्बी, गोरी-चिट्टी, गोल-गोल स्तन वाली, बेहद खूबसूरत पहाड़ी स्त्री है लेकिन चेहरे पर कोई मेकअप नहीं, कोई क्रीम नहीं, होंठों पर कोई लिपस्टिक नहीं, भवों की कोई थ्रेडिंग नहीं, कोई नेल-पालिश नहीं, कोई मैनीक्योर-पैडीक्योर नहीं बिकुल सादी रहने वाली अविवाहित, ऊपर से मुंहफट, दबंग, खुद-पसंद और बेहद बदतमीज़ है। विधुत प्रभा की भृकुटि हर वक़्त तनी रहती है हर किसी से उलझती रहती है। हर किसी को हर काम में हर बात में मीन-मेख निकालना, हर शख़्स को बात-बात पर नीचा दिखाना विधुत प्रभा की आदत है।
अब कोई परिवार में बड़ा तो है नहीं सो उसे कौन रोकेगा टोकेगा बिकुल आजाद और निरंकुश कड़कती हुई बिजली की तरह। अंकल बोल रहे थे
टीवी पर दामिनी फ़िल्म चल रही थी और उसमे डाइलोग आया ऐसी बिजलिया तो मेरे घर के पिछवाड़े में बहुत पड़ी रहती हैं।
मैं डायलॉग सुन हसने लगा और मैं बोला अंकल ये लगता है ये वह फ़िल्मी बिजली नहीं है और अंकल ऐसे परिवार में रीमा कैसे उसके पास एडजस्ट करेगी।
तो रिया बोली वह क्या है आपकी तो पता ही है रीमा दीदी ने भी इंजीनियरिंग की है ऐसे ही कॉलेज के किसी फंक्शन में जीजा जी ने दीदी को देखा था और फिर जीजा जी हाथ मांगने आये।
हमने पुछा घर में और कौन है तो जीजा जी बोले बस मैं और मेरी बड़ी बहन और वह शिमला में प्रिंसिपल है और मैं कुछ दिन में अमेरिका जा रहा हूँ। वही पर रीमा मेरे साथ रहेगी।
पहले रीमा दीदी भी मान नहीं रही थी पर फिर जीजा जी ने दीदी से बात करिl इतने अच्छे रिश्ते और जीजा जी के आगे हम और जीजा जी की दीदी दोनों मान गए और ये रिश्ता हो गया।
अंकल बोले अब रोके की ही बात ले लो फंक्शन घर पर ही थाl अब चूंकि घर मेरा था तो विद्युत् प्रभा की क़रीब-क़रीब सब बातों पर इस बिजली का नज़ला मुझ पर ही गिरता था। एक तो मुझ पर रीमा की शादी के कामों की जिम्मेवारी, ऊपर से इस औरत के बेकार के उलाहनों ने मेरा जीना हराम कर दिया था।
पता नहीं चलता किस का गुस्सा किस पर निकाल रही थी।
पिछली रात किसी ने मोटर नहीं चलाई तो मुझे उलाहना , पानी की टंकी खाली है, प्रैस ठीक से गर्म नहीं हो रही तो मुझे उलाहना, बाथरूम में टूथ-पेस्ट नहीं मिल रही तो मुझे उलाहना , केटरर ने लंच लेट कर दिया तो मुझे उलाहना , किचन में कैचअपकी बॉटल में कैचअप ख़त्म हो गया है तो मुझे उलाहना , कॉफ़ी में चीनी कम / ज्यादा तो मुझे उलाहना। और हद तो ये हो गयी, उसके अपने लोग देर तो आये तो मुझे उलाहना l
और तो और ... एक दोपहर को एक घंटे का पावर-कट लग गया तो भी मुझे उलाहना l
हे भगवान! ऐसी औरत मैंने ज़िन्दगी में पहले न देखी थी। मेरे ही बैडरूम में, मेरे ही बेड पर अपनी किसी सहेली के साथ अंदर से दरवाज़े लॉक कर के अगले दिन 8 बजे तक सोती रही और मैं बेचारा, सुबह-सबेरे बाथरूम के लिए कभी बच्चों के रूम का दरवाज़ा खटखटाता, कभी गेस्ट रूम का। दो दिन में ही मेरी बस करवा दी थी .. उस ने।
यहाँ तो शादी वाला घर था, सौ तरह के काम थे। अब घरवाले हर मेहमान की पूंछ से चौबीसों घंटे तो नहीं बंधे रह सकते थे और विधुत प्रभा ने तो रोके के समय ही बात-बात पर मुंह फुला लेती थी, हंगामा खड़ा कर देती थी। अंकल बेचारे बहुत दुखी हो गए सब याद करकेl
कहानी जारी रहेगी...
आपका आमिर खान हैदराबाद l