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Click hereपड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे
CHAPTER-1
एक युवा के अपने पड़ोसियों और अन्य महिलाओ के साथ कारनामे
परिचय
"हाँजी कहिये आपको क्या चाहिए?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पूछा, मुस्कुराते हुए उसके होंठों की दो पंखुड़ियों के बीच सफ़ेद प्रमुख दांतों के मोती दिखाई दे रहे थे।
"मैं दीपक कुमार हूँ," एक विस्तृत मुस्कान के साथ मैंने उत्तर दिया।
"ओह्ह, माई गॉड, कृपया अंदर आईये। आपका स्वागत है।"
उसने उसे अपने फ़्लैट पर ले गयी और मुझे अपने ड्राइंग रूम के खुले स्थान मेंएक सोफे पर बैठने का संकेत दिया, जिसे ड्रॉइंग रूम और भोजन स्थान के रूप में उनका परिवार इस्तेमाल करता था।
रूपाली ने विनम्रता से कहा, "मैं रूपाली हूँ, आपके फ़्लैट की लेफ्ट साइड वाली पड़ोसन, मोता भाई (सुरेश जी) ने उनके फ़्लैट की चाबी मुझे सौंपी है आपको देने के लिए।"
उसने अपनी दो बेटियों, सबसे बड़ी बेटी, काजल और सबसे छोटी बेटी दीप्ति को मुझ से मिलवाने के लिए बुलाया। दोनों बेटियों ने आकर मेरे पैर छूने चाहे तो मैंने उन्हें पैर छूने से रोक दिया, यह कहते हुए कि पंजाब में हम अपनी बेटियों को अपने पैरों को छूने नहीं देते हैं, बल्कि हम नवरात्र के दौरान उनके पैर छूकर उनकी पूजा करते हैं और मैंने दोनों लड़कियों को आशीर्वाद दिया। दोनों बेटियाँ अपनी माँ से भी ज़्यादा खूबसूरत हैं। रूपाली ने उसके बाद मुझे नाश्ते की एक प्लेट और एक कप चाय की पेशकश की। चाय पीते समय रूपाली ने अपने परिवार के बारे में, विशेष रूप से अपने पति, बेटियों के बारे में सब बताना शुरू कर दिया और मुझे जल्दी आने के लिए उन्हें धन्यवाद दिया फिर वह बोली अब हमे अकेले नहीं रहना पड़ेगा।
इस बीच, माणवी, दूसरी पड़ोसी महिला ने अपने पड़ोसन के फ़्लैट में कुछ शोर और अजनबी आवाजे सुनी और बच्चो से पुछा तो उन्हें मेरे आने का पता चला तो वह तुरंत मुझसे मिलने आ गयी और बोली मैं मानवी हूँ आपकी दाईं और रहने वाली पड़ोसन और उसने मुझे दोपहर के भोजन के लिए अपने घर बुलाया।
इन दो महिलाओं रूपाली और मानवी के बीच सुरेश का फायदा उठाने के लिए हमेशा एक अंतर्निहित प्रतियोगिता थी और अब वे मुझे भी प्रभावित करना चाहती थी क्योंकि उन्हें पता लगा गया था मैं काफ़ी अमीर परिवार से थाl
श्री चंद की पत्नी मानवी की उम्र 40 साल थी। वह वास्तव में मोटी महिला नहीं थी, लेकिन उसकी कमर के चारों ओर वज़न थोड़ा बढ़ा हुआ था और पीछे की तरफ़ उसके नितम्ब काफ़ी मांसल थे। उसका चेहरा गोल, होंठ मोटे रसीले और स्तन बड़े-बड़े थे। मैंने उसे बहुत ध्यान से देखा। उसके बड़े-बड़े बूब्स टाइट ब्रा और ब्लाउज के माध्यम से उभरे हुए थे जैसे कि हुक खोल कर बाहर आ जाएंगे। उसके स्तन 38 साइज के थे और उनके बीच की खाई साफ़ नज़र आ रही थी। फिर मैं उन दो महिलाओं की तुलना करने लगा, रूपाली एक मॉडल की तरह पतली थी और इसके विपरीत, मानवी ज़्यादा भरी हुई थी। मुझे दोनों बहुत सेक्सी लगीl मुझे लगा उनका ऐसा रूप देखकर मेरा आठ इंची जगने लगा और उसने खड़ा होना शुरू कर दिया। जैसे ही मुझे उसके कठोर होने का आभास हुआ मैंने तुरंत, कहा मैं सुरेश जी का फ़्लैट देखना चाहूंगा।
उसके बाद मानवी ने अपने बेटे को राजन जिसकी उम्र 18 साल थी को बुलाया, राजन एक कॉलेज का छात्र था और फिर अपनी नवी क्लास में पढ़ने वाली बेटी चंदा से मिलवाया। दोनों बच्चो ने आकर मेरे पैर छुए। फिर से मैंने चंदा को मेरे पैर छूने से रोक दिया और उससे कहा कि वह मेरे पैर न छुए क्योंकि हम बेटियों से अपने पाँव नहीं छुआते और उनके सिर पर दाहिने हाथ को छूकर दोनों को आशीर्वाद दिया। मैंने उसका नाम पूछा और कहा कि तुम वास्तव में पूर्णिमा के चाँद की तरह सुंदर हो ... गॉड ब्लेस यू।
अगले दिन, मैं ठीक सुबह 9.30 अपने कार्यालय में पहुँच गया। मेरी कम्पनी का कार्यालय सूरत में एक बहुत व्यस्त, व्यावसायिक स्थान पर था। कार्यालय मुख्य सड़क के पास तीसरी मंज़िल में था। शाखा के कर्मचारियों में 3 पुरुष सहायकऔर मेरी सहायता के लिए एक नई भर्ती की गई, युवा लड़की सहायक महिला अधिकारी थीं जिसका नाम था कविता, उम्र 22 वर्ष, इसके इलावा एक सशस्त्र गार्ड और 40 वर्ष की आयु की एक महिला स्वीपर सविता थी। सभी कर्मचारियों ने मेरा स्वागत और अभिवादन किया। हालाँकि कार्यालय छोटा-सा था लेकिन मुख्य व्यावसायिक स्थान पर स्थित था। कम्पनी की शाखा का मुख्य उद्देश्य नवीनतम फैशन और रुझानों पर नज़र रखते हुए वस्त्रों की नियमित खरीद करना था।
शाम को, जब मैं ऑफिस से लौटा तो मैंने काजल, चंदा और दीप्ति तीनो लड़कियों को पहले तले के खुले स्थान में खेलते हुए देखा।
मुझे देखकर, सभी लड़कियों ने एक स्वर में मेरा अभिवादन किया, "अंकल, गुड इवनिंग।" मैं उनके पास रुका, मुस्कुराया, अपनी जेब से कैडबरी के पैकेट निकाले और उन्हें दे दिए। जिसे पाकर तीनो बहुत खुश हो गयी। उनके हाथमे चॉक्लेट देख कर राजन भी मेरे पास आया और मैंने उसे भी कैडबरी चॉक्लेट दी l
इस तरह मैं हर रोज़ ही बच्चों के लिए कुछ मिठाइयाँ या चॉकलेट ले आता था और मैं बच्चों का प्रिय बन गया l जल्द ही वे सभी बच्चे शाम को मेरे ऑफिस से लौटने का इंतज़ार करने लगे और उन्होंने मुझे प्यार से काका (पिता का छोटा भाई) कहना शुरू कर दियाl
इसी तरह एक महीना बहुत जल्दी बीत गया। मैं दोनों परिवारों के बीच घुलमिल गया और उनके साथ इस तरह से विलीन हो गया जैसे वह मेरे ही परिवार हो। मुझे बच्चों द्वारा अपने पिता के छोटे भाई-काका के रूप में स्वीकार किया गया था और दोनों महिलाओं द्वारा काका (देवर-छोटे भाई) के रूप में स्वीकार किया गया था और मैं भी उन्हें भाभी ही कहता थाl
मेरा फ़्लैट इन दोनों पड़ोसियों के बीच में था। इस एक महीने में मैंने सुरेश जी ने फ़्लैट को उनसे अनुमति लेकर आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित कर बदल दिया। मैंने ललित लकड़ी से बने आधुनिक फर्नीचर खरीदे और पूरे फ़्लैट को सुसज्जित कर दिया। तीनों बेडरूम में तकिए के साथ शानदार गद्दे लगवा दिए और एक बड़ी एलसीडी टीवी, (बिग स्क्रीन) भी खरीदी और एक टेलीफोन भी लगवाया (उन दोनों Mobile इतना प्रचलित नहीं था) मैंने एक वॉशिंग मशीन खरीदी और पूरे फ़्लैट में एयर कंडीशनर (एसी) भी लगवा दिया। इन बदलावों से अब सुरेश जी का फ़्लैट इन दो साधारण फ्लैटों के बीच एक आधुनिक और समृद्ध फ़्लैट बन गया।
मैंने इन दोनों परिवारों को हमेशा इन्फ्लुएंजा, खांसी, बुखार और अन्य छोटी बीमारी में बीमारी में होम्योपैथी दवाओं के उपचार के माध्यम से मदद की, जिससे उन्हें डॉक्टरों की फीस बचाने में मदद मिली। इसके इलावा भी मैंने अक्सर बच्चों को चॉकलेट, पेन, नोटबुक और विभिन्न पत्रिकाओं जैसे उपहार भेंट किए क्योंकि मुझे इन बच्चों से भरपूर प्यार और अपनापण मिलता था। मैंने अक्सर महिलाओं को साड़ी और सौंदर्य प्रसाधन भी भेंट किए। दोनों परिवार मुझे बहुत पसंद थे।
मेरे सूरत आने से पहले सुरेश जी एक नौकरानी, आशा बेन को अपने घर नौकरी पर रखा थाl वह 25 साल की एक युवा महिला थी और वह ही उनके जाने के बाद भी मेरे लिए, घर, बर्तन साफ़ करने और कपड़े धोने का काम करती रहीl वह सुबह-सुबह मेरे घर आती थी और मेरे ऑफिस जाने से पहले ही अपना काम ख़त्म कर चली जाती थीl उसकी शादी को 5 साल हो गए थे लेकिन उसके कोई बच्चा नहीं था।
कहानी जारी रहेगी..
दीपक कुमार