औलाद की चाह 009

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दीक्षा भाग 4.
2.1k words
4.45
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00

Part 10 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 2 पहला दिन

दीक्षा

Update 4

मैं उस कमरे से बाहर आ गयी और अपने कमरे में चली आई, समीर भी मेरे साथ था।

समीर--मैडम, गुरुजी के पास ले जाने के लिए मैं कल सुबह 6: 15 पर आऊँगा और आपके अंडरगार्मेंट्स भी ले आऊँगा। कुछ देर में परिमल आपका डिनर लाएगा।

फिर समीर चला गया।

मैं बहुत तरोताजा महसूस कर रही थी, शायद उस जड़ी बूटी वाले पानी से स्नान करने की वज़ह से ऐसा लग रहा था। गुरुजी की पूजा से भी मैं संतुष्ट थी।

फिर थोड़ी देर मैंने बेड में आराम किया।

कुछ समय बाद किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया।

मैने जल्दी-जल्दी ब्लाउज के तीन हुक लगाए । ऊपर के दो हुक लग ही नहीं रहे थे। इससे मेरी चूचियों का आधा ऊपरी भाग दिख जा रहा था। मैंने अच्छी तरह से साड़ी से ब्लाउज को ढक लिया।

समीर ने कहा था कि परिमल डिनर लेकर आएगा तो मैंने सोचा 10 बज गये हैं, वही आया होगा। मैंने दरवाज़ा खोला तो परिमल ही आया था पर वह डिनर नहीं लाया था।

परिमल--मैडम, दीक्षा कैसी रही?

"ठीक रही। मुझे गुरुजी की पूजा अच्छी लगी।"

परिमल--जय लिंगा महाराज!! .गुरुजी पर आस्था बनाए रखना, वह आपके जीवन की सारी बाधाओं को दूर कर देंगे।

परिमल मुस्कुरा रहा था।

नाटे कद के परिमल को देखते ही मेरे होठों पर मुस्कान आ जाती थी। मैंने सोचा थोड़ी देर इसके साथ मस्ती करती हूँ।

ना जाने क्यूँ पर परिमल के साथ मुझे संकोच नहीं लगता था शायद उसके ठिगने कद की वज़ह से। इसीलिए मैं भी उसके साथ मस्ती कर लेती थी, वरना अपने शर्मीले स्वभाव की वज़ह से पहले तो कभी किसी मर्द के सामने मैं ऐसे बात नहीं करती थी।

परिमल--मैडम, मैं आपके लिए डिनर ले आऊँ?

"नही, अभी 10 ही बजे हैं। मैं तो 10: 30 के बाद ही डिनर करती हूँ।"

कुछ रुककर मैं बोली, "परिमल, तुमने जो बात मुझसे कही थी, मैंने उसके बारे में सोचा। मुझे लगता है तुम सही बोल रहे थे। स्कूल यूनिफॉर्म की स्कर्ट मुझे फिट नहीं आएगी। इसलिए मैं अपने शब्द वापस लेती हूँ।"

परिमल ने ऐसा मुँह बनाया की मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकी। उसके लिए 'हाथ आया पर मुँह ना लगा' वाली बात हो गयी थी। वह सोच रहा था कि दीक्षा के बाद मुझे स्कूल यूनिफॉर्म लाके देगा और उस छोटी ड्रेस में मुझे देखने की कल्पना से उसकी आँखें चमक रही थी। वह मुझे अपने जाल में फँसा हुआ समझकर निश्चिंत था। पर अब मैंने हार मान ली थी तो उसका चेहरा ही उतर गया।

परिमल--लेकिन मैडम वह ।आपने तो कहा था कि एक बार ट्राइ कर के देखोगी।

"हाँ, पहले मैंने ऐसा सोचा था, पर अब मैं तुम्हारी बात मान रही हूँ की मुझे स्कूल यूनिफॉर्म फिट नहीं आएगी।"

मैंने अपने अंगों का नाम नहीं लिया की कहाँ पर स्कर्ट फिट नहीं आएगी जैसे जांघें या नितंब।

परिमल ऐसे दिख रहा था जैसे अभी-अभी इसकी कुछ कीमती चीज़ खो गयी हो, मुझे छोटी स्कूल ड्रेस में देखने का उसका सपना टूट गया था। उसको निराश देखकर मैंने बातचीत बदल दी। मैं उसका उत्साह बनाए रखना चाहती थी ताकि उससे मस्ती चलती रहे।

"मेरी एक दूसरी समस्या है । क्या तुम कोई उपाय बता सकते हो?"

परिमल का चेहरा अभी भी मुरझाया हुआ था पर मेरी बात सुनकर उसने नज़रें उठाकर मुझे देखा।

"समीर ने जो ब्लाउज मुझे दिया है वह मुझे टाइट हो रहा है। तुम कोई दूसरा ब्लाउज ला सकते हो?"

परिमल की आँखों में फिर से चमक आ गयी। शायद वह सोच रहा होगा अगर छोटी स्कर्ट में मेरे नितंब देखने को नहीं मिले तो टाइट ब्लाउज में चूचियाँ ही सही।

परिमल--क्यों? समीर ने आपको 34" साइज़ का ब्लाउज नहीं दिया क्या?

मेरी भौंहे तन गयी। इसको मेरा साइज़ कैसे पता? वह तो मैंने समीर को बताया था। हे भगवान! इस आश्रम में सबको पता है कि मेरी चूचियों का साइज़ 34" है।

"पता नही। लेकिन ब्लाउज फिट नहीं आ रहा। मुझे लगता है ग़लत साइज़ दे दिया।"

परिमल--नहीं मैडम। साइज़ तो वही होगा क्यूंकी आश्रम में अलग साइज़ को अलग बंड्ल में रखते हैं।

"अगर ब्लाउज फिट नहीं आ रहा है तो सही साइज़ कैसे होगा? यहाँ पर कितना टाइट हो रहा है।"

मैंने अपनी चूचियों की तरफ़ इशारा किया। मैं परिमल को थोड़ा टीज़ करना चाहती थी।

परिमल--मैडम, ये रेडीमेड ब्लाउज है, शायद इसीलिए आपको टाइट लग रहा होगा।

"परिमल, ये इतना टाइट है कि मैं ऊपर के दो हुक नहीं लगा पा रही हूँ।"

पहले कभी भी किसी मर्द के सामने मैंने ऐसी बातें नहीं की थी पर पता नहीं उस बौने के सामने मैं इतनी बेशरमी से कैसे बातें कर दे रही थी।

अब परिमल ने सीधे मेरी चूचियों की तरफ़ देखा। साड़ी के पल्लू से मेरा ब्लाउज ढका हुआ था। परिमल शायद अपने मन में कल्पना कर रहा था कि अगर पल्लू हट जाए तो आधे खुले ब्लाउज में मैं कैसी दिखूँगी।

परिमल--मैडम, तब तो आपको परेशानी हो रही होगी। बिना हुक लगाए आप कैसे रहोगी? मैं कोई दूसरा ब्लाउज ले आऊँ क्या अभी?

ओहो! देखो तो, ये बिचारा मुझ हाउसवाइफ के लिए कितना चिंतित है!

"अभी रहने दो। वैसे भी रात हो गयी है। अब तो मैं अपने कपड़े उतारकर नाइट्गाउन पहनूँगी।"

मैं देखना चाहती थी की मेरी इस बात का उस पर क्या रिएक्शन होता है।

मैंने देखा उसके पैंट में थोड़ा उभार आ गया है। शायद वह मेरे कपड़े उतारने की कल्पना कर रहा होगा। उसके रिएक्शन से मेरे दिल की धड़कने भी तेज हो गयी।

परिमल--ठीक है मैडम। आप कपड़े चेंज करो, मैं डिनर ले आता हूँ।

ये ठिगना आदमी बहुत चालू था। उसे मालूम था कि मेरे पास अंडरगार्मेंट्स नहीं है। जब मैं साड़ी ब्लाउज उतारकर नाइट्गाउन पहनूँगी तो सेक्सी लगूंगी।

मैंने हाँ बोल दिया और वह डिनर लेने चला गया। मैंने सोचा नाइट्गाउन में अगर अश्लील लग रही हूँगी तो नहीं पहनूँगी।

परिमल के जाने के बाद मैंने दरवाज़ा बंद किया और कपबोर्ड से नाइट्गाउन निकाला। नाइट्गाउन भगवा रंग का था। भगवान का शुक्र है ये पतले कपड़े का नहीं था और इसमे बाहें भी थी लेकिन लंबाई कुछ कम थी। रूखे कपड़े से बना हुआ छोटी नाइटी जैसा गाउन था। दिखने में तो मुझे ठीक ही लगा।

मैं कमरे में अपने कपड़े उतारने लगी । उस टाइट ब्लाउज को उतारकर मुझे राहत मिली। उसमें मेरी चूचियाँ इतनी कस रही थी की दर्द करने लगी थी। नाइटी पहनकर मैंने अपने को उस बड़े से मिरर में देखा।

अंडरगार्मेंट्स तो मेरे पास थे नही। नाइटी के रूखे कपड़े के मेरी चूचियों पर रगड़ने से मेरे निपल तन गये और चूचियाँ कड़क हो गयी।

एक दिन में इतनी बार मैं पहले कभी गरम नहीं हुई थी । मुझे क्या पता था आने वाले दिनों के सामने तो ये कुछ भी नहीं है।

नाइटी काफ़ी फैली-सी थी और कपड़ा भी मोटा था, इसलिए बिना ब्रा पैंटी के भी अश्लील नहीं लग रही थी। लेकिन लंबाई कम होने से घुटने तक थी, पूरे पैर नहीं ढक रही थी।

मैंने मिरर में हर तरफ़ से देखा, मुझे ठीक ही लगी। सिर्फ़ मेरे तने हुए निपल्स की शेप दिख रही थी और बिना ब्रा के उसको ढकने का कोई उपाय नहीं था।

थोड़ी देर में परिमल डिनर की ट्रे लेकर आ गया। डिनर में सब्जी, दाल और रोटी थी।

परिमल नाइटी में मुझे घूर रहा था । मैंने कोशिश करी की ज़्यादा हिलू डुलू नहीं वरना मेरी बड़ी चूचियाँ बिना ब्रा के उछलेंगी।

परिमल--आप डिनर कीजिए. मैं यहीं पर वेट करता हूँ ताकि अगर आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो ला सकूँ।

"ठीक है परिमल।"

मुझे मालूम था कि परिमल अपनी आँखें सेकने के लिए ही मेरे साथ रुक रहा है। पर मैने उसे मना नहीं किया।

मैं बेड में बैठ गयी और डिनर की छोटी-सी टेबल को अपनी तरफ़ खींचा। लेकिन जैसे ही मैं बेड में बैठी मेरी नाइटी जो पहले से ही छोटी थी थोड़ी और ऊपर उठ गयी और घुटने दिखने लगे।

परिमल--मैडम, आप खाओ । मैं यहाँ पर बैठ जाता हूँ।

ऐसा कहते हुए वह मुझसे कुछ दूरी पर फ़र्श में बैठ गया।

पहले मैंने सोचा ये लोग आश्रम में रहते हैं तो ज़मीन में बैठने के आदी होंगे। कमरे में कोई चेयर भी नहीं थी, इसलिए परिमल फ़र्श पर बैठ गया होगा।

लेकिन कुछ ही देर में मुझे उस नाटे आदमी की बदमाशी का पता चल गया। असल में नाटे कद का होने से फ़र्श में बैठकर उसे मेरी नाइटी का 'अपस्कर्ट व्यू' दिख रहा था। इतना चालू निकला।

मैंने तो पैंटी भी नहीं पहनी थी। मैं एकदम से अलर्ट हो गयी और अपनी जांघों को चिपका लिया। एक हाथ से मैंने नाइटी को नीचे खींचने की कोशिश की लेकिन मेरे बड़े नितंबों की वज़ह से नाइटी नीचे को खिंच नहीं रही थी।

मैंने परिमल को देखा, उसकी नज़रें मेरी टांगों पर ही थी । लेकिन मेरे जांघों को चिपका लेने से उसके चेहरे पर निराशा के भाव थे। जो वह देखना चाह रहा था वह उसे देखने को नहीं मिल रहा था। उसके चेहरे के भाव देखकर मुझे हंसी आ गयी।

परिमल के सामने बैठे होने की वज़ह से मैंने जल्दी-जल्दी डिनर किया और हाथ धोने बाथरूम चली गयी।

परिमल अभी भी फ़र्श पर बैठा हुआ था तो पीछे से उस छोटी नाइटी में मेरे हिलते हुए नितंबों को वह देख रहा होगा। सूखने को रखा हुआ टॉवेल फ़र्श पर गिरा हुआ था तो जब मैं झुककर उसे उठाने लगी तो मेरी छोटी नाइटी पीछे से ऊपर उठ गयी, पता नहीं परिमल ने फ़र्श पर बैठे हुए कितना देख लिया होगा।

फिर परिमल ट्रे लेकर चला गया लेकिन उसकी आँखों की चमक बता रही थी की मेरे झुककर टॉवेल उठाने के पोज़ को वह अपने मन में रीवाइंड करके देख रहा है।

परिमल के जाने के बाद मैं सोने के लिए बेड में लेट गयी, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। मेरे मन में ये बात आ रही थी की कहीं मैंने परिमल के साथ अपनी हद तो पार नहीं की? जब मैं टॉवेल उठाने के लिए झुकी तो पता नहीं उसने क्या देखा।

मुझे बहुत बेचैनी होने लगी तो मैं बेड से उठ गयी और बाथरूम में मिरर के आगे उसी पोज़ में झुककर देखने लगी। मैंने झुककर बाथरूम के फ़र्श को हाथों से छुआ और पीछे मिरर में देखा।

हे भगवान! मेरी नाइटी जांघों तक ऊपर उठ गयी थी और पीछे को उभरकर मेरे सुडौल नितंबों का शेप बहुत कामुक लग रहा था। उस पोज़ में मेरी मांसल जांघें तो खुली हुई दिख रही थी।अगर नाइटी थोड़ी और ऊपर उठ जाती तो बिना पैंटी के मेरे नितंबों के बीच की दरार भी दिख जाती। क्या पता उस ठिगने परिमल को दिख भी गयी हो।

मुझे अपने ऊपर इतनी शरम आई की क्या बताऊँ। मेरी नींद ही उड़ गयी। मैं इतनी केयरलेस कैसे हो सकती हूँ। झुकने से पहले मुझे ध्यान रखना चाहिए था कि पीछे वह ठिगना आदमी बैठा है। मुझे अपने ऊपर बहुत गुस्सा आया और मैं ख़ुद को कोसने लगी।

खिन्न मन से मैं बेड में लेट गयी और आगे से ज़्यादा ध्यान रखूँगी, सोचने लगी।

मुझे नाइटी में ठीक नहीं लगा तो मैंने नाइटी निकाल दी और ऐसे ही लेट गयी।

आधे घंटे बाद संजीव के साथ एक बुज़ुर्ग महिला दरवाजे पर आयी। मैंने जल्दी से अपनी साड़ी अपने चारों ओर लपेट ली और दरवाज़ा खोल दिया। संजीव ने बुज़ुर्ग महिला को गुरु-माता कह मिलवाया, क्योंकि गुरु की माता ने उन्हें गुरु-माता कहकर सम्बोधित किया और तुरंत चला गया।

मैंने गुरु माता के चरण छू कर प्रणाम किया तो मेरी लपेटी हुई साडी खुल गयी और मैं लगभग नग्न हो गयी तो अपने कपडे उठाने लगी तो गुरु माता ने हाथ पकड़ लिया और बोली..

गुरु माता-तो तुम रश्मि हो, गुरुदेव के आषीर्वाद से तुयंहारी मनोकामा ज़रूर पूरी होगी। मैं तुम्हारा इस आश्रम में स्वागत करती हूँ। जैसे मैंने सुना था उससे भी अधिक सुन्दर हो तुम । मैं गुरुजी द्वारा तैयार कुछ क्रीम लायी हूँ। आप जब तक आश्रम ने रहोगी तब तक रात को सोने से पहले हर रात इन क्रीमों को अपने शरीर पर लगाना होगा और क्रीम को अगली सुबह धोना होगा। उन्होंने मुझे अपने पूरे शरीर, सेक्स अंगों और जननांगों पर क्रीम लगाने के लिए कहा। फिर बोली अगर तुम्हे अपने कमरे में कुछ भी चाहिए हो तो मझे संदेसा भिजवा देना। उसके बाद मुझे क्रीम का उपयोग करने के लिए आवश्यक निर्देश देने के बाद उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और कमरे से चली गई।

सोने से पहले मैंने जय लिंगा महाराज का जाप किया और अपना उपचार सफल होने की प्रार्थना की।

मैं सोने लगी तभी मुझे गुरु माता द्वारा दी गई क्रीम का उपयोग करने की याद आई और अपने पूरे शरीर पर क्रीम लगा दी जिसमें मेरी योनि, स्तन, कमर, कूल्हों और गुदा शामिल थे और उसके बाद नाइटी पहन मैं सो गयी ।

कहानी जारी रहेगी...

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