अम्मी बनी सास 007

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बहकते जज़्बात.
1k words
4.06
266
00

Part 7 of the 92 part series

Updated 06/10/2023
Created 05/04/2021
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कमरे में एक पूर सरार खामोशी थी और ऐसा लग रहा था कि वक़्त जैसे थम-सा गया हो।

जब भाई ने देखा कि में अपने पहलू में रखे हुए शॉपिंग बॅग की तरह ना तो नज़र उठा कर देख रही हूँ और ना ही उस के मुतलक कुछ पूछ रही हूँ।

तो थोड़ी देर बाद भाई ने वह मेरे पास से वह बैग उठाया और वह ही चूड़ियाँ जो कि में दुकान में चढ़वा रही थी।वो बैग से निकाल कर मेरी गोद में रख दीं और बोला"बाजी में आप की चूड़ियाँ दुबारा ले आया हूँ"

में ने उस की बात सुन कर अपनी नज़रें उठा और पहले अपनी गोद में रखी हुई चूड़ियों की तरफ़ और फिर भाई की तरफ़ देखा और बोली "रहने देते तुम ने क्यों तकलीफ़ की"

"तकलीफ़ की क्या बात है बाजी, आप को यह ही चूड़ियाँ पसंद थीं सो में ले आया" भाई ने मेरी बात का जवाब दिया।

भाई की बात और लहजे से यह अहसास हो रहा था।कि वह दुकान वाली बात को नज़र अंदाज़ कर के एक अच्छे भाई की तरह मेरा ख़्याल रख रहा है।

जमशेद भाई का यह रवईया देख कर मेरी हालत भी नॉर्मल होने लगी और मेरे दिल में भी अपने भाई के लिए एक बेहन वाला प्यार उमड़ आया।

"अच्छा रात काफ़ी हो चुकी है इस लिए तुम जा कर सो जाओ में सुबह चूड़ीयाँ अम्मी से चढ़वा लूँ गी।" में ने भाई की लाई हुई चूड़ियों को बेड की साइड टेबल पर रखते हुए कहा।

"ईद सुबह है और चाँद रात आज और आप मुझ से बेहतर जानती हैं कि चूड़ियाँ चाँद रात को ही चढ़वाई जाती हैं, लाइए में आप के हाथों में चूड़ीयाँ चढ़ा देता हूँ" । इस से पहले कि में उस को रोक पाती। जमशेद ने एक दम मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और टेबल पर पड़ी चूड़ीयाँ को मेरे हाथ में चढ़ाने लगा।

अपने नर्मो नाज़ुक हाथ अपने भाई के मज़बूत हाथों में महसूस कर के मेरी वह साँसे जो अभी कुछ देर पहले ही ब मुश्किल संभली थी वह दुबारा तेज होने लगीं।

मुझे ज्यों ही अपनी इस बदलती हुई हालत का अहसास हुआ ।तो में ने भाई के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कॉसिश की।

"रहने दो भाई में सुबह अम्मी से चूड़ीयाँ चढ़वा लूँगी" यह कहते हुए में ने ज्यों ही भाई के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की। तो मेरे हाथ की उंगलियो के उपर आती हुई चूड़ियों में से एक चूड़ी टूट गई.जिस की वज़ह से मेरी एक उंगली ज़ख़्मी हो गई और उस में से खून निकलने लगा।

जमशेद भाई ने जब मेरी उंगली से खून निकलता देखा तो वह एक दम घबडा गया और उस ने खून को रोकने के लिए बे इक्तियार में मेरी उंगली को अपने मुँह में डाला और मेरी उंगली से बैठे हुए खून को चूसना शुरू कर दिया।

मेरे भाई की इस हरकत ने मेरी जवानी के उन जज़्बात को जिन्हे में ने अपने शोहर के जाने के बाद बहुत सबर और मुस्किल से सुलाया था। उन को एक दम से भड़का दिया और मेरे सबर का पैमाना लब्राइज़ होने लगा।

सर से ले कर पैर तक मेरे जिस्म में एक करंट का दौड़ गया और में कॉसिश के बाजूद अपने आप को रोक ना पाईl

मुझे अपने भाई के मुँह और होंठो की गर्मी और लज़्जत ने बे चैन कर दिया और इस बेचैनी के मारे मेरी सांसो में एक हल चल मची और मेरे मुँह से एक "सिसकी" -सी निकल गई l

बे शक मेरे भाई की अभी शादी नहीं हुई थी। मगर इस के बावजूद वह शायद एक माहिर खिलाड़ी था। जो यह जानता था कि जब किसी औरत के मुँह से इस क़िस्म की सिसकारी निकलती है तो उस का क्या मतलब होता है।

इसी लिए मेरे मुँह से सिसकारी निकलने की देर थी। कि मेरे भाई जमशेद ने मेरी आँखों में बहुत ग़ौर से झाँका और इस से पहले के में कुछ समझती। मेरे भाई ने एक दम मुझे अपनी बाहों में भर लिया।

भाई की इस हरकत से में अपना तवज्जो खो बैठी और बिस्तर पर कमर के बल गिरती चली गईl

मेरे यूँ बिस्तर पर गिरते ही जमशेद भाई मेरे जिस्म के उपर आया और उस के होन्ट मेरे होंठो पर आ कर जम गये।

साथ ही साथ उस का एक हाथ मेरी शलवार के ऊपर से मेरी टाँगो के दरमियाँ आया और मेरे जिस्म के निचले हिस्से को अपने काबू में कर लिया।

में ने अपनी भाई को अपने आप से अलहदा करने की कोशिश की।मगर वह मुझ से ज़्यादा ज़ोर अवर था।

अपने शोहर से दूरी की सुलगती हुई आग को दुकान में मेरे भाई के हाथ और जिस्म ने भड़का तो दिया ही था। अब उस आग को शोले की शकल देने में अगर कोई कसर रह गई थी। तो वह मेरे भाई के प्यासे होंठो और उस के मेरे जिस्म के निचले हिस्से हो मसल्ने वाले हाथ ने पूरी कर दी थी।

में बहन होने के साथ आख़िर थी तो एक जवान प्यासी औरत।

और जब रात की तरीकी में मेरे अपने घर में मेरे अपने ही भाई ने मेरे जिस्म के नाज़ुक हिस्सो के तार छेड़ दिए. तो फिर मेरे ना चाहने के बावजूद मेरा जिस्म मेरा हाथ से निकलता चला गया।

मुझे होश उस वक़्त आया। जब मेरा भाई अपनी हवस की दास्तान मेरे जिस्म के अंदर ही रख कर के पसीने से शरा बोर मेरे पहलू में पड़ा गहरी साँसे ले रहा था।

होश आने पर जब हमे अहसास हुआ कि जवानी के जज़्बात में बह कर हम दोनों कितनी दूर निकल चुके हैं। तो हमारे लिए एक दूसरे से आँख मिलाना भी मुस्किल हो गया।

में अपने इस गुनाह से इतनी शर्मिंदा हुई कि बिस्तर पर करवट बदलते ही में फूट-फूट कर रोने लगी।

जमशेद भाई ने जब मुझे यूँ रोते देखा तो वह खामोशी से अपने कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकल गया।

दूसरे दिन ईद थी और ईद अम्मी अब्बू के घर गुज़ार कर में वापिस अपने सुसराल चली आईl

इस बात को एक हफ़्ता गुज़र गया और इस दौरान में ने अपने भाई से किसी क़िस्म का राबता ना रखा।

कहानी जारी रहेगी

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