एक नौजवान के कारनामे 072

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प्रातः काल भ्रमण मुलाकात.
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Part 72 of the 278 part series

Updated 04/23/2024
Created 04/20/2021
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पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे

VOLUME II

विवाह और शुद्धिकरन

CHAPTER-1

PART 03

प्रातः काल भ्रमण

सुबह हुई और मैं सुबह तड़के ही उठ गया तो देखा मैं नंगा ही अकेला सो रहा था और तीनो लड़किया लिली चेरी और डेज़ी पता नहीं कब उठ कर चली गयी थी मैंने दरवाज़ा खोला तो अभी भोर नहीं हुई थी और बहुत मीठी और ठंडी हवा चल रही थी... मेरा मन इस मौसम में घूमने का हुआ । अंदर से लगा जंगल में जा कर घूम कर आना चाहिए और मंदिर में पूजन दर्शन भी कर लेता हूँ फिर मुझे ध्यान आया की महर्षि अमर मुनि गुरूजी ने जो पांच कार्य सुबह-सुबह करने को कहे थे वह भी तो करने होंगेl

वहाँ देखा तो वहाँ एक मेज पर एक थैला पड़ा था मैंने उसे खोला तो उसमे महर्षि अमर मुनि गुरूजी की आज्ञा अनुसार विधि पूर्वक पूजन करने के लिए दूध और दही गऊ के लिए रोटी, चींटी के लिए आटा और अनाज दाल, पक्षियों के लिए अनाज और आटे की गोली और कुछ रोटी घी और-चीनी रखी हुई थी और साथ ही में एक टोर्च, एक बोतल पानी भी रखा हुआ था।

मुझे बहुत अच्छा लगा की महर्षि अमर मुनि गुरूजी के आदेश अनुसार सभी चीजों को प्राप्त व्यवस्था की गयी है और मैंने मंदिर जाने का निश्चय कर लिया फिर मैं हाथ मुंह धोकर कपडे पहने और जेब में पर्स मोबाइल इत्यादि रखा और सैर करने जंगल की तरफ़ निकला तो बाहर दो सुरक्षा कर्मी थी जिन्हे मेरी सुरक्षा के लिए नियुक्त किया गया था । वह मेरे पीछे आने लगे तो मैंने उन्हें कहा जब तब मुझे कोई ख़तरा न हो वह वो मुझसे दूरी बना कर रखेl

जब में अपने कक्ष से निकला तो सबसे पहले उद्यान के पास से निकला तो वहाँ बड़े सुन्दर फूल घास पर बिखरे हुए थे, मैंने फूल चुने और उन्हें थैले में रख लिया की इन्हे पूजा करते हुए मंदिर में अर्पण करूंगा।

आगे मेरी उसकी नज़र आम और जामुन के पेड़ो पर पड़ी वहाँ आम और जामुन के बहुत बड़े पेड़ थे जिसपे फल लगे हुए थे उसपे चढ़ना तो मेरे बस का नहीं था जब मैं-मैं उन पेड़ो के करीब गया वहाँ मैंने देखा कि पेड़ के नीचे कुछ पके हुए मीठे फल गिरे हुए हैं। मैंने एक फल चखा तो उसका स्वाद बहुत मीठा और अनोखा-सा था उन फलो को मैं जल्दी-जल्दी चुन कर रुमाल में बाँध कर थैले में डाल लिया और वहाँ से आगे बढ़ गया।

मंदिर के पाद पहुँचा तो मंदिर अभी खुला नहीं थाl मैंने बाहर से ही प्रणाम किया और मैंने सोचा थोड़ी सैर कर लेता हूँ फिर वापसी पर पूजा कर लूँगा और आगे बढ़ गयाl

आगे रास्ते में एक बहेलिया (शिकारी) मिला उसने कुछ तोते पकड़ कर पिंजरे में बंद कर रखे थे... मैंने उसे बोला इन पक्षियों का क्या करोगे तो उसने बोला इन्हे बेचूंगाl मैंने उसे बोला ये पक्षी मुझे दे दो, तो उसने बोलै इनका दाम दो तभी दूंगा, तो मैंने अपना पर्स निकाल कर उसने जितने पैसे कहे उतने उसे दे दिए और उसे बोला वह पक्षियों को पकड़ना और मारना छोड़ दे मैं उसे कोई काम दिला दूंगाl पक्षी आज़ाद ही ज़्यादा अच्छे लगते हैंl मैंने उन पक्षियों को आज़ाद कर दिया और मैंने उस बहेलिये को दिन में हमारे महाराज के ऑफिस आने को बोला l जहाँ उसे काम मैं दिलवा दूंगा और उसे निशानी के तौर पर अपना कार्ड दे दियाl मैंने कहा वहाँ ऑफिस में ये कार्ड दिखा देना तुम्हे काम मिल जाएगा।

आगे गया तो वहाँ एक कुटिया नज़र आयी जिसके बाहर पेड़ के नीचे बैठने की जगह बनी हुई थी और उसपे एक साधु बाबा अकेले बैठे आँखे बंद किए साधना कर रहे थे।

मैं जाते-जाते रुक गया और थोड़ी देर खड़ा रहकर बाबा को देखने लगा। फिर बाबा उठे और अपनी कुटिया में चले गए मैं वहाँ गया तो देखा की साधू बाबा जिस जगह बैठे हैं वह जगह काफ़ी गंदी है और वहा कीड़े मकोड़े भी थे। मैंने वहाँ पड़ी कुछ पत्तिया उठायी और साधु बाबा के बैठने की जगह पर झाड़ू मार कर उसे साफ़ किया और वहाँ पर कुछ नर्म और आरामदायक पत्तिया बिछा दी ताकि वहाँ बाबा आराम से बैठ सके।

मैंने देखा साधू बाबा तब तक बाहर आ गए थे और थोड़ी ही दूर पर खड़े मेरी सारी हरकतें देख रहे थे।

उनके होठों पर एक मुस्कुराहट आ गई सफ़ाई करने के बाद मैंने कुछ हरी पत्तियों पर जो मैं फल चुन कर लाया था सजा दिए और साधु बाबा को बोला बाबा लीजिए बाबा मुझे रास्ते से आते-आते ये फल मिले हैं अब आप यहाँ आ जाईये और ये मीठे फल खा लीजिये ये बहुत मीठे फल हैं बाबा।

बाबा बोले तुम्हे पहले कभी नहीं देखा । कौन हो तुम?

बाबा मैं महाराज हरमोहिंदर का चचेरा भाई हूँ कल ही यहाँ आया हूँ बाबा

बाबा मैं जानता हूँ तुम्हारा नाम दीपक हैं यहाँ जंगल में क्या करने आये हो?

मैं अपना नाम सुन कर चौंका मैंने बोला बाबा आप तो सब जानते हो फिर भी मुझ से सुनना चाहते हो इसलिए मैंने उनको सारी बात बता दीl

बाबा मुस्कुरा कर मेरी तरफ़ देखते हुए बोले क्या तुमने कुछ खाया है?

मैंने ना में सिर हिला दिया और बोलै बस बाबा ये फल चखा था बहुत मीठा है आप भी खा लीजियेl

बाबा ने एक फल मेरे हाथ से लिया और खा कर बोले सच में बहुत मीठा है!

और जूठा फल मुझे दे दिया मैं हिचका तो बाबा बोले तुम इसे प्रसाद समझ कर खाओl

मैंने वह फल खाया उसके बाद बाबा ने मेरा दाहिना हाथ पकड़ लिया और अपनी आंखें बंद करके ध्यान करने लगे... तो मुझे अपने अंदर एक अजीब-सी ताकत और तरंगे महसूस हुई मुझे लग रहा था जैसे बाबा से कुछ तरंगे मेरे अंदर आ रही थी और उनके मन में चल रहा जाप मुझे स्पष्ट सुनाई दे रहा था। ये बहुत ही दिव्य और अनोखा एहसास था मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है?

मेरी आंखें खुल नहीं पा रही थी और ताकत और बेचैनी महसूस हो रही थी और बहुत विचित्र समझ में ना आने वाली दिव्य ज्ञान की बाते बहुत तेजी से मेरे दिल और दिमाग़ में समा रही थी।

इस कुछ देर बाद मेरी बंद आँखों में ऐसा लग रहा था जैसे मैं बहुत तेजी से एक अनजान गुफा में जिसमे मुझे हल्का-सा प्रकाश नज़र आ रहा था उसकी तरफ़ मैं तेजी से जा रहा थाl या यु कहीये मैं उड़ कर उस प्रकाश ही तरफ़ जा रहा था, और बाबा की आवाज़ गूंज रही थी और प्रकाश ही प्रकाश दिख रहा था । जिसमे में भी उसी प्रकाश में खो गया और मेरा दिमाग़ और मन जैसे रोशन हो गया था।

मेरा मन एक दम शांत हो गया और मैंने मन में ही बाबा से पुछा बाबा ये क्या है बाबा ये मुझे क्या हो रहा है मुझे बंद आँखो से ये क्या-क्या नज़र आ रहा है। मुझे इतना भारी क्यों लग रहा है?

बाबा बोले बेटा तुम जन्म से ही दिव्य शक्तियों के मालिक हो यहाँ मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था मेरे गुरु दादा गुरु महर्षि अमर मुनि ने मुझे यहाँ तुम्हारे लिए ही भेजा है तुम्हारे अंदर की दिव्य शक्तिया अभी तक सोई हुई थी उनके जागने का समय आ गया है और जो शक्तियों मैंने तुम्हे दी हैं वह तुम्हारे अंदर की उन दिव्य शकितयों को जगा देंगी और तुम्हे जो और शकितया शीघ्र ही मिलने वाली हैं तुम उन्हें भी संभाल पाओगे और भी कई दिव्य शक्तिया तुम्हारे अंदर हैं पुत्र जो समय और साधना के साथ-साथ बढ़ती, निखरती और सवरती जाएंगी। अब तुम योगासन, प्रणाम और ध्यान किया करो और उन्होंने मुझे योगासन, प्रणाम और ध्यान का ज्ञान दिया और उसी अवस्था में सब सीखा भी दियाl

इन शक्तियों के कारण तुम्हारी शरीरिक और दिव्य आत्मिक ताकतों में भी बढ़ोतरी होगी।

हर ताकत मिलने से पहले वह दिव्य शक्तिया तुम्हारी परीक्षा लेंगी जिनमे तुम्हे उत्तीर्ण होना होगा और उसमे सहायक होगा तुम्हारा सरल स्वाभाव और तुम्हारे अंदर दूसरो की मदद करने का भाव । इनकी ही सहायता से तुम हर परीक्षा में उत्तीर्ण हो अपनी सभी पूर्व जन्मो में अर्जित दिव्य शक्तियों को पुनः प्राप्त कर लोगों।

आज भी तुम्हारी उस बहेलिये के रूप में एक देव ने तुम्हारी परीक्षा ली थी जिसमे तुम अपनी सात्विक शक्तियों और स्वभाव के कारण उत्तीर्ण हुए हो और आगे उनसे तुम्हे उनसे शीघ्र ही दिव्या शक्ति प्राप्त होगी।

तुम्हारे शरीर से एक ऐसी दिव्य सुगंध निकलती है जिसकी वज़ह से बहुत सारे लोग तुमसे आकर्षित होते हैं और इसी आकर्षण के कारण तुम ने अभी तक महसूस किया होगा जो तुमसे मिलता है वह तुम्हारा ही हो जाता है और तुम्हे ये बाते गुप्त ही रखनी होंगीl

गुरुदेव समय-समय पर तुम्हारी सहायता करते रहेंगे, जय गुरुदेव! जय महादेव ॐ शांति कह कर ग साधु बाबा ने आँखे खोल दी l मैंने उनके चरणों में गिर कर उन्हें प्रणाम कियाl

उन्हें ने मुझे आशीर्वाद दिया और बोलै इन दिव्य शक्तियों का प्रयोग सोच समझकर और किसी की मदद करने के लिए ही करना। पुत्र इनका ग़लत प्रयोग से हमेशा परहेज करनाl

और इन शक्तियों से घबराना मत ये तुझे कभी कोई हानि नहीं पहुँचाएंगी पर इनके प्रदर्शन करने से भी हमेशा बचना लोगों के सामने अपनी इन शक्तियों का दिखावा मत करना।

कुछ दिन तुझे अपनी इन शक्तियों की वज़ह से थोड़ा अजीब ज़रूर लगेगा लेकिन बाद में तुम्हे इन की आदत पड़ जाएगी।

और वह बोले अब जाओ कुमार अपनी प्रातः काल की भ्रमण पूरा करो ।

कहानी जारी रहेगी

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