औलाद की चाह 080

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कुछ पल विश्राम.
887 words
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Part 81 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 6-पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update-26

कुछ पल विश्राम ​

मैंने एक गहरी सांस ली मेरा पूरा शरीर अब दर्द कर रहा था, क्योंकि मेरे नितम्बो से एक लम्बी अवधि के किये पुरुषो ने छेड़खानी और खिलवाड़ किया था और ये बहुत थकाने वाला था। मैंने अपनी साडी का पल्लू समायोजित किया और साड़ी को अपने नितंबो पर ठीक कर सभ्य दिखने की कोशिश की। दीपू को अपने बैग में सिलाई के नोट्स और टुकड़ों को इकट्ठा करने की जल्दी थी और मास्टर जी ने रात में 9 बजे तक वापस आने का वादा करते हुए मुझसे जाने की इजाज़त ली।

मेरे कमरे से दर्जी-युगल केजाने होने के बाद भी, मैं कुछ समय के लिए एक मूर्ति की तरह खड़ी हुई यह महसूस करने की कोशिश कर रही थी कि मैं पिछले एक घंटे में क्या कर रहे थी और इसके आगे मेरे साथ और क्या-क्या होने वाला है। मैं शौचालय गयी और ठंडे पानी से अपना चेहरा, गर्दन और हाथ धोये और अपनी जगी हुई कामुक भावनाओंको शांत करने की असफल कोशिश की। मैंने अपना चेहरा भी नहीं पोंछा और कमरे में वापस आयी और बिस्तर में कूद कर लेट गयी।

मेरे साथ जो हुआ था उसे याद करके मैंने अपनी चूत में ऊँगली करके अपनी वासना को शांत करने को कोशिश की जिससे मैंने अपनी योनि से अपनी पैंटी में कुछ तरल पदार्थों का निर्वहन किया और फिर ख़ुद को इन 'गर्म' भावनाओं से बाहर निकालने का प्रयास किया।

इस हस्त मैथुन करके मैं कुछ समय बाद सफल हुई और फिर मैंने महा-यज्ञ के लिए मानसिक रूप से तैयार होने का प्रयास किया। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और उस पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन ये मुझे बहुत कठिन लगा। ध्यान करते ही नींद बहुत जल्दी आती है और मेरे साथ भी यही हुआ ।

एक बिंदु पर मुझे बहुत नींद आने लगी और मैंने थोड़ी देर के लिए सोने का फ़ैसला किया। मैंने बस अपनी लेटी हुई पोज़िशन से अपनी कमर उठाई और अपनी साड़ी और पेटीकोट के अन्दर हाथ डाल कर अपनी गीली पैंटी को बाहर निकाल लिया। मैंने उसे कमरे के कोने में फेंक दिया और ततकाल झपकी ले ली। मुझे नहीं पता था कि मैं कितनी देर सोयी, लेकिन कुछ समय बाद दरवाजे पर दस्तक से मेरी नींद बाधित हुई। मैंने दरवाज़ा खोला तो परिमल दरवाजे पर था।

परिमल: जय लिंग देव मैडम। आप इस समय सो रही है?

मुझे हमेशा इस छोटे कद वाले परिमल को देखा कर हसी आती थी और मैंने किसी तरह से अपनी हसि को रोका। मुझे नहीं पता था कि हर बार उसे देख कर मुझे मज़ा क्यों आता था।

मैं: वास्तव में मास्टर-जी को माप देने में काफ़ी समय लग गया था इसलिए।

परिमल: हूँ। वास्तव में गुरु-जी ने आपके लिए यह पुस्तक दी। मैडम, आप फ्रेश हो जाओ तब तक मैं आपके लिए चाय ले लाऊंगा। फिर आप इस पुस्तक को पढ़ लीजियेगा।

यह एक विचार अच्छा लगा। मुझे अभी भी कुछ नींद आ रही थी और मैंने अपनी चूत के आस-पास हल्की खुजली महसूस की, मुझे तुरंत याद आया कि मैंने पैंटी नहीं पहनी हुई थी। मैंने अपनी आँख के कोने से कमरे के कोने तक देखा, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वह कहाँ पड़ी हुई है। भगवान का शुक्र है! परिमल ने एक कोने में पड़ी हुई मेरी पैंटी पर ग़ौर नहीं किया था। लेकिन निश्चित रूप से उसकी आँखें मेरी साड़ी के पल्लू के नीचे मेरी छाती और मेरे स्तनों पर घूम रही थीं, हालाँकि उसकी ऊँचाई इतनी ही थी कि उसकी नज़रसीढ़ी मेरे स्तनों पर ही पड़ती थी।

निर्मल: मैडम, गुरु-जी ने भी आपको ये भी सूचित करने के लिए कहा था कि आप रात 11 बजे तक महा-यज्ञ के लिए तैयार रहें। हालाँकि अभी उसमे काफ़ी समय है और आप आराम से त्यार हो सकती हैं, फिर भी मैंने आपको गुरु जी के आदेश से अभी ही अवगत करा दिया है।

मैं: ठीक है, धन्यवाद।

वह चला गया और मैंने तुरंत अपनी पैंटी लेने के लिए कमरे के कोने में भाग कर गयी और उसे उठा कर अलमारी में रख दिया। मैं पैंटी के बिना बेहतर महसूस कर रही थी और मैंने कुछ देर पेंटी ना पहनने का फ़ैसला किया, क्योंकि अब मैं अब काफ़ी देर तक केवल अपने कमरे तक ही सीमित रहने वाली थी। परिमल कुछ ही मिनटों में ही चाय ले कर वापस आ गया और उस समय तक मैंने शौचालय का इस्तेमाल किया। चाय ख़त्म होने के बाद, मैंने किताब ली और उसके पन्ने पलटे। यह तांत्रिक पूजा पर एक किताब थी। पुस्तक में लिंग पूजा, योनी पूजा, स्त्री पूजा इत्यादी के विषय और उनका विशद विवरण और व्याख्याएँ थी।

मैं काफ़ी लंबे समय तक पुस्तक से चिपकी रही सबसे पहले पुस्तक में तांत्रिक क्रियाओ के बारे में संक्षेप में बताया था की लिंग पुराण में सृष्टि के नैसर्गिक सामंजस्य का तात्विक ज्ञान दिया है। सभी ग्रन्थ मनुष्य मात्र के लिए ध्यान योग के अभ्यास से ही आत्मज्ञान पाने का सहज मार्ग दिखलाते हैं।

जब तक कोई भी व्यक्ति स्वयं आत्मज्ञान पाने के लिए आत्म ध्यान नहीं करता तब तक कोई ग्रन्थ और गुरु उसका कल्याण नहीं कर सकते।

कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार

नोट - जिन्हे इस विषय पर कोई भी आपत्ति है वो इस अंश के लिए योनि तंत्र नामक पुस्तक पढ़े उसे बाद पुस्तक में ने पूरी विधि और नियम विस्तार से समझायी हुई है।

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