औलाद की चाह 081

Story Info
योनि पूजा के बारे में ज्ञान.
900 words
2.75
347
1
0

Part 82 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

औलाद की चाह

CHAPTER 6-पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update-27

योनि पूजा के बारे में ज्ञान

मैं काफ़ी लंबे समय तक पुस्तक से चिपकी रही सबसे पहले पुस्तक में तांत्रिक क्रियाओ के बारे में संक्षेप में बताया था कि लिंग पुराण में सृष्टि के नैसर्गिक सामंजस्य का तात्विक ज्ञान भगवान् शिव ने दिया है। सभी ग्रन्थ मनुष्य मात्र के लिए ध्यान योग के अभ्यास से ही आत्मज्ञान पाने का सहज मार्ग दिखलाते हैं।

पुस्तक में स्पष्ट लिखा था कि क्रिया की साधना के द्वारा गृहस्थ भी साधू है, धारण करने योग्य कर्म ही धर्म है और धारण न करने योग्य कर्म ही अधर्म है। मैं लिंग में ही ध्यान करने योग्य हूँ। मुझ से उत्पन्न यह जगत की योनी है, प्रकृति है। लिंग वेदी हैं और लिंग ही पुरुष है हैं। पुर अर्थात देह में शयन करने के कारण पुरुष कहा जाता है। लिंग पुरुष रूप हूँ और योनि प्रकृति का रूप है, सब नरों के शरीर में दिव्य रूप विराजमान हैं, इसमें संदेह नहीं करना चाहिए. सब मनुष्यों का शरीर दिव्य शरीर है। युक्त योगियों का शरीर शुभ भावना से है।

हर स्त्री में योनि का अंश है। दसो पूजनीय रूप भी योनी में निहित है। अतः पुरुष को अपना आध्यात्मिक उत्थान करने के लिए मन्त्र उच्चारण के साथ देवी के दस रूपों की अर्चना योनी पूजा द्वारा करनी चाहिए।

सभी योगेश्वर भी योनी पूजा कर योनी तत्त्व को सादर मस्तक पर धारण करते थे ऐसा योनी तंत्र में कहा गया है क्योंकि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुष की आध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है। सभी स्त्रियाँ में योनि का अंश होने के कारण इस सम्मान की अधिकारिणी हैं"। अतः अपना भविष्य उज्ज्वल चाहने वाले पुरुषों को कभी भी स्त्रियों का तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए।

यह वैज्ञानिक सत्य है कि पुरुष शरीर में निर्मित होने वाले शुक्राणु किसी अज्ञात शक्ति से चालित होकर अंडाणु से संयोग करने के लिए गुरुत्वाकर्षण के नियम का उल्लंघन करके आगे बढ़ते हैं। योग और अध्यात्म विज्ञान के अनुसार शुक्राणु जीव आत्मा होते हैं जो शरीर पाने के लिए अंडाणु से संयोग करने के लिए भागते हैं। इस सत्य से यह सिद्ध होता है कि अरबों खरबों शुक्राणुओं में से किसी दुर्लभ को ही मनुष्य शरीर प्राप्त होता है। इस भयानक संग्राम में विजयी होना निश्चय ही जीव आत्मा की सब से बड़ी उपलब्धि है जो हमारी समरण शक्ति में नहीं टिकती।

मानव शरीर प्रकृति के चौबीस तत्वों से बना है जो हैं-पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (आँख, नाक, कान, जीभ व त्वचा), पांच कर्मेन्द्रियाँ (हाथ, पैर, जननेद्रिय, मलमूत्र द्वार और मूंह), पञ्च कोष (अन्नमय, प्राण मय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय), पञ्च प्राण (पान, अपान, सामान, उदान, व्यादान), मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। आत्मा इनका आधार और दृष्टा है और ईश्वर का ही प्रतिबिम्ब है जो दिव्य प्रकाश स्वरूप है जिसका दर्शन ध्यान और समाधि में किसी को भी हो सकता है।

सहस्रार में प्रकाश दीखने पर वहाँ से अमृत वर्षा का-सा आनंद प्राप्त होता है जो मनुष्य शरीर की परम उपलब्धि है। जिसको अपने शरीर में दिव्य आनंद मिलने लगता है वह फिर चाहे भीड़ में रहे या अकेले में; चाहे इन्द्रियों से विषयों को भोगे या आत्म ध्यान का अभ्यास करे उसे सदा परम आनंद और मोह से मुक्ति का अनुभव होता है।

मनुष्य का शरीर अनु-परमाणुओं के संघटन से बना है। जिस तरह इलेक्ट्रौन, प्रोटोन, सदा गति शील रहते हैं किन्तु प्रकाश एक ऊर्जा मात्र है जो कभी तरंग और कभी कण की तरह व्यवहार करता है उसी तरह आत्म सूर्य के प्रकाश से भी अधिक सूक्ष्म और व्यापक है। यह इस तरह सिद्ध होता है कि सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में कुछ मिनट लगे हैं जब की मनुष्य उसे आँख खोलते ही देख लेता है। अतः आत्मा प्रकाश से भी सूक्ष्म है जिसका अनुभव और दर्शन केवल ध्यान के माध्यम से होता है।

जब तक मन उस आत्मा का साक्षात्कार नहीं कर लेता उसे मोह से मुक्ति नहीं मिल सकती। मोह मनुष्य को भय भीत करता है क्योंकि जो पाया है उसके खोने का भय उसे सताता रहता है जबकि आत्म दर्शन से दिव्य प्रेम की अनुभूति होती है जो व्यक्ति को निर्भय करती है क्योंकि उसे सब के अस्तित्व में उसी दिव्य ज्योति का दर्शन होने लगता है।

योनी में तीन चक्र होते हैं, तीसरे चक्र में गर्भ शैय्या स्थित होती है। लाल रंग की पेशी वीर्य को जीवन देती है। शरीर में एक सो सात मर्म स्थान और तीन करोड़ पचास लाख रोम कूप होते हैं। जो व्यक्ति योग अभ्यास में निरत रहता है वह नाद ब् तीनों लोकों को सुखपूर्वक जानता और भोगता है। मूल आधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार नामक साथ ऊर्जा केंद्र शरीर में हैं जिन पर ध्यान का अभ्यास करने से शक्ति प्राप्त होती है।

इस ज्ञान को धारण कर जब पति पत्नी आध्यात्मिक तादात्म्य स्थापित कर दैहिक सम्बन्ध द्वारा किसी अन्य जीव आत्मा का आव्हान संतान के रूप में करते हैं तो वह सृष्टि के कल्याण और संरचना के लिए महान यग्य संपन्न करते हैं।

कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार

नोट 1. निश्चित तौर पर योनि तंत्र काफी रह्स्य पूर्ण है और गुप्त विद्या है और इसे बिना गुरु की आज्ञा, समर्पण के बिना और सहायता के नहीं करना चाहिए. योनि तंत्र साधना सम्पूर्ण तौर पर योनि पूजा पर ही आधारित है ।

2. जिन्हे इस विषय पर कोई भी आपत्ति है वो इस अंश के लिए योनि तंत्र नामक पुस्तक पढ़े उसे बाद पुस्तक में ने पूरी विधि और नियम विस्तार से समझायी हुई है।

दीपक कुमार

Please rate this story
The author would appreciate your feedback.
  • COMMENTS
Anonymous
Our Comments Policy is available in the Lit FAQ
Post as:
Anonymous
Share this Story

story TAGS

Similar Stories

वासना का नशा एक मध्यमवर्गीय पुरुष की अपनी नौकरानी के प्रति वासना का अंजाम.in Erotic Couplings
Broken Beauty: Friday the 13th 13th of Friday, Aphrodite, body issues, worth & worship.in Audio
My Initiation into Adulthood Alisha undergoes her initiation into adulthood.in Lesbian Sex
एक नौजवान के कारनामे 001 एक युवा के पड़ोसियों और अन्य महिलाओ के साथ आगमन और परिचय.in Incest/Taboo