अम्मी बनी सास 031

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भाई पर बहन की चुदाई का भूत सवार हुआ.
1.4k words
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Part 31 of the 92 part series

Updated 06/10/2023
Created 05/04/2021
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शाज़िया इस स्टाइल में सोने से उस की दोनों टाँगों के दरमियाँ काफ़ी गॅप आ गया था।

शाज़िया के सोने इस स्टाइल को देख कर ज़ाहिद के ज़हन में एक ख़्याल आया और वह आहिस्ता से अपनी बहन के बिस्तर पर चढ़ गया।

बेड पर जाते ही ज़ाहिद आहिस्ता से अपनी बहन की टाँगों के दरमियाँ वाली खाली जगह पर बैठा और फिर अपने दोनों बाजुओं को शाज़िया के जिस्म के दाए और बाईं (राइट और लेफ्ट) रख कर आहिस्ता से गहरी नींद में मदहोश अपनी बहन शाज़िया के जिस्म के ऊपर इस तरह झुकता चला गया। कि उस के अपने जिस्म का सारा बोझ उस की अपनी कोहनियों पर आ गया।

ज़ाहिद के इस तरह शाजिया के बिल्कुल ऊपर लेटने से ज़ाहिद का मुँह शाज़िया के मुँह के बिल्कुल नज़दीक आ गया।

ज़ाहिद का मुँह शाज़िया के इतने नज़दीक पहुँच हुआ था। कि ज़ाहिद के मुँह से निकलती उस की गरम साँसें शाज़िया के मुँह से टकराने लगीं।

सोई होने के बावजूद शाज़िया को अपने भाई की गरम साँसे अपने चेहरे पर महसूस होने लगीं थी।

जिन को महसूस करते ही शाज़िया ऐसा लगा कि कोई चीज़ उस के बदन के ऊपर माजूद है। जिस वज़ह से शाज़िया एक दम हडबड़ा कर अपनी नींद से जाग गई।

ज्यों ही शाज़िया ने अपनी नींद से बे दार हो कर रात के अंधेरे में अपने जिस्म पर अपने भाई को झुका हुआ पाया। तो उस का चेहरा खोफ़ और शरम कर मारे पसीने से भीग गया।

"ज़ाहिद भाई ये आप क्या कर रहे हैं" शाज़िया ने अपने ऊपर पड़े अपने भाई के मज़बूत जिस्म को हटाने की नाकाम कोशिस करते हुए कहा।

"में आज वह ही करने जा रहा हूँ, जो मुझे बहुत पहले कर लेना चाहिए था" ज़ाहिद ने जब अपनी बहन को नींद से जागते देखा। तो उस के जिस्म के ऊपर अपने जिस्म का बोझ डालते हुए बोला।

"क्या मतलब, आप अपनी बहन से जबर्जस्ती करेंगे आज" शाज़िया ने अपने भाई के वज़न के तले डूबते हुए पूछा।

"हाँ जब घी सीधी उंगली से ना निकले तो उंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है शाज़िया" ज़ाहिद ने अपनी बहन के गालो को अपने दाँतों से काटते हुए कहा।

"कुछ तो खुदा का खोफ़ करें आप, सग़ी बहन हूँ में आप की, भाई तो अपनी बहन की इज़्ज़त के रखवाले होते हैं और आप हैं कि ख़ुद ही अपनी बहन से जबर्जस्ती पर उतर आए हैं" शाज़िया ने अपने भाई को गैरत दिलाने की कोशिश करते हुए कहा।

"बहन हो तो क्या फरक पड़ता है? वैसे भी चूत और लंड का सिर्फ़ एक रिश्ता होता है, इस रात की तन्हाई में चूत तुम्हारे पास है और लंड मेरे पास, तो क्यों ना इन दोनों का आज आपस में मिलाप करवा दिया जाय," ज़ाहिद ने शाज़िया के जवाब में चूत और लंड के अल्फ़ाज़ का खुलम खुल्ला इस्तेमाल करते हुए अपनी बहन को जवाब दिया।

साथ ही ज़ाहिद ने शाज़िया के एक हाथ को पकड़ा और उस को खैंचता हुआ अपने नंगे लंड पर ला कर रख दिया।

अपने भाई के नंगे मोटे गरम लंड को अपने हाथ में महसूस करते ही शाजिया शरम से कांप गई।

शाज़िया को अपनी हथेली पर बहुत ज़्यादा गर्मी-सी महसूस हुई और उस ने एक दम से अपना हाथ ज़ाहिद के लंड से वापिस खींच लिया।

आज काफ़ी अरसे के बाद शाज़िया ने किसी मर्द के लंड को छुआ था और भाई के लंड को छूते ही शाजिया को भाई के लंड की सख्ती और उस की तपिश का अंदाज़ा हो गया था।

"उफफफफफफफफफ्फ़! भाई आप को शरम आनी चाहिए अपनी बहन के सामने ऐसी गंदी ज़ुबान इस्तेमाल करते और ऐसी गंदी हरकत करते हुए" शाज़िया ने अपने भाई के मुँह से लंड और चूत का ज़िक्र सुनते और उस को अपना लंड पकड़ाने की हरकत पर गुस्से में आते हुए भाई से कहा।

ज़ाहिद ने अपनी बहन की बात अनसुनी करते हुए शाज़िया के जिस्म से थोड़ा-सा ऊपर उठ कर अपनी कमीज़ भी उतार फैंकी और अपनी बहन के जिस्म के ऊपर पूरा नंगा लेट गया।

शाज़िया को आज अपने सामने अपने ही भाई को नंगा होते देख कर बहुत शरम आई और उस ने मारे शरम के उस ने फॉरन अपना मुँह दूसरी तरफ़ फेर लिया।

"बस बहुत हो गया शरम वरम का ये नाटक, तुम जानती हो कि तुम्हारी इस जवानी को रोज़ मर्द की ज़रूरत है, और में तुम्हारे बदन की प्यास बुझाने के लिए तुम्हारी ख़िद्मत में हाज़िर हूँ, अब और मत तड़पाओ मुझे" ज़ाहिद ने ये कहते हुए अपने होन्ट शाज़िया के होंठो पर रखना चाहे। तो शाज़िया नहीं मानी और तकिये पर सर इधर उधर अपना सर हिला कर अपने होंठ अपने भाई के होंठो से बचाती रही।

"कोई फ़ायदा नहीं शाज़िया, यक़ीन मानो तुम्हारे इस तरह के नखरों से मेरा लंड और गरम होता है मेरी जान" ज़ाहिद ने अपनी बहन की हरकत पर मुस्कुराते हुए कहा।

इस के साथ ही जोश में आ कर ज़ाहिद ने अपने जिस्म को अपनी बहन के जिस्म से चिपकाते हुए शाज़िया के हाथों को उस के सर के पीछे कर के अपने हाथों से दबा दिया और अपने होन्ट अपनी बहन के होंठो पर रखने की कोशिश करने लगा।

मगर शाज़िया अपने सर को इधर उधर करके ज़ाहिद की इस कोशिश को नाकाम बनाने पर तुली हुई थी। इसीलिए अपनी बहन के होंठो को चूमने की कोशिश के दौरान कई दफ़ा ज़ाहिद का मुँह शाज़िया के मुँह से लगा लेकिन शाज़िया ने फॉरन ही अपना मुँह हटा लिया।

फिर कुछ देर बाद जब शाज़िया अपन सर हिला-हिला कर थक गई. तो ज़ाहिद भी आख़िर अपनी बहन के खुले मुँह पर अपना मुँह रख कर शाज़िया के मज़े दार होंठो का रस पीने लगा।

साथ ही ज़ाहिद अपने आधे नंगे धड़ (जिस्म) को अपनी बहन की शलवार में छुपी चूत के ऊपर लाया और किस्सिंग के साथ-साथ अपने नंगे लंड को अपनी बहन की चूत पर हल्का-हल्का रगड़ने लगा।

आज तक़रीबन दो साल के अरसे के बाद अपनी चूत के लबों पर एक मर्द का लंड फिसलता हुआ पा कर शाजिया की चूत को मज़ा आने लगा।

हर औरत की तरह शाज़िया की चूत के लिए भी लंड का मतलब सिर्फ़ लंड ही था। मगर साथ ही साथ शाज़िया का दिमाग़ ये भी जानता था।कि जिस लंड को वह आज अपने साथ रगड़ता हुआ पा कर उस की चूत अपना पानी छोड़ने के मूड में आ चुकी है। वह किसी आम मर्द का लंड नहीं बल्कि उस के अपने सगे भाई का लंड है और कुछ भी हो ये लंड शाज़िया की चूत के लिए रेगिस्तान में पानी है।

ये सोच दिमाग़ में गूंजते ही शाज़िया ने अपने भाई को अपने जिस्म के ऊपर से हटाने की फिर कॉसिश की। मगर अपने हट्टे कट्टे भाई के सामने उस की एक ना चली।

ज़ाहिद शाज़िया के एक हाथ को आज़ाद करते हुए अपना एक हाथ अपने और शाज़िया के जिस्मो के बीच लाया।और उस ने अपनी बहन की शलवार के नाडे को पकड़ कर खैंचने की कोशिश की।

शाज़िया ने फॉरन अपने आज़ाद हाथ से अपनी शलवार के नाडे को मज़बूती से पकड़ लिया।

"छोड़ो शाज़िया आज में रुकने वाला नही" ज़ाहिद ने जब शाज़िया को नाडा मज़बोती से पकड़े देखा तो बोला।

"नही भाई रहम कर मुझ पर और इतना बड़ा गुनाह मत करो" शाज़िया ने अपने भाई से फरियाद की।

ज़ाहिद पर तो चुदाई का भूत सवार था। इसीलिए उस के दिल पर आज अपनी बहन की किसी फरियाद का असर नहीं होने वाला था। इसीलिए उस ने शाज़िया की बात की परवाह ना करते हुए उस की शलवार का नाडा खोलने की ट्राइ करता रहा।

जब ज़ाहिद ने देखा कि शाज़िया अपनी शलवार का नाडा छोड़ने पर तैयार नही। तो वह नाडे को छोड़ कर आगे झुका और अपनी बहन की भारी छातियों को अपने हाथ में थामते हुए कमीज़ के ऊपर से ही उन को अपने मुँह से चूमने लगा।

साथ ही साथ शाज़िया का जिस्म थोड़ा ढीला पड़ा। तो ज़ाहिद का मोटा सख़्त लंड अपनी बहन की गुदाज रानो से रगड़ ख़ाता हुआ उस की दोनों रानो के दरमियाँ फँस गया।

नीलोफर या किसी और को चोदे हुए ज़ाहिद को आज काफ़ी दिन हो चुके थे।

इस अरसे के दौरान अपनी बहन के गरम जिस्म को देख कर और उस के साथ मस्तियाँ कर-कर के ज़ाहिद इतना गरम हो चुका था। कि अपनी बहन की चूत और रानो की बे इंतिहा गर्मी को उस की शलवार के अंदर से महसूस करते ही ज़ाहिद के लिए अपने आप को कंट्रोल करना मुहाल हो गया और एक झटके के साथ "अहह!" करते हुए ज़ाहिद के लंड ने अपना सारा थिक माल अपनी बहन की शलवार में पोषीदा फुद्दि के उपर उडेल दिया।

जारी रहेगी

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