एक नौजवान के कारनामे 131

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अर्धनग्न तरुण- नर्तकी
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Part 131 of the 278 part series

Updated 04/23/2024
Created 04/20/2021
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पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे

VOLUME II

विवाह

CHAPTER-1

PART 53

अर्धनग्न तरुण- नर्तकी

अगले दिन सुबह फिर मैंने स्नान किया तो स्नान घर में बाल्टी में भी जड़ी बूटी वाला पानी था और उसमे से भी बड़ी मनमोहक ख़ुशबू आ रही थी। उससे स्नान करने के बाद मैं एकदम तरोताज हो गया। फिर मैंने मंदिर जाकर मैंने महर्षि अमर मुनि गुरूजी की आज्ञा अनुसार विधि पूर्वक पूजन करने के लिए दूध और दही गऊ के लिए रोटी, चींटी के लिए आटा और अनाज दाल, पक्षियों के लिए अनाज और आटे की गोली और कुछ रोटी घी और-चीनी का दान किया और उसके बाद विधि विधान से कुल पुरोहित ने पूजन करवाया और बारात विवाह और सुबह के नाश्ते के बाद वधु को लिवाने हिमालय राज महाराज वीरसेन की राजधानी की और हवाई जहाज से निकल गयी ।

हिमालय राज महाराज वीरसेन की राजधानी में पहुँचने के बाद बारात का परम्परागत स्वागत किया गया और सबको बारात घर ठहरा दिया गया भाई महाराज के विवाह की रस्मे रात में होनी थी । दोपहर के भोजन के बाद. और कक्ष में रखी किताब के कुछ पन्नो को पढ़ा और फिर कुछ देर आराम किया और फिर उठा कपडे बदले और मैं अकेला ही बाज़ार घूमने निकला गया।

बाज़ार में चौक में एक जगह भीड़ लगी हुई थी और बीच भीड़ में चौक के बीचो बीच में दूध के समान गोरी, लगभग अर्धनग्न तरुण युवती नृत्य कर रही थी। अति सुंदर उन्मुख यौवन, नीलमणि-सी ज्योतिर्मयी बड़ी-बड़ी आंखें वाली, तीखे कटाक्षों से भरपूर नर्तकी की आँखे शराब के नशे में डूबी हुई थी, उसकी आँखों में नशे के कारण लाल डोरे थे, उसके शंख जैसी लम्बी सुराहीदार गर्दन और उसका चेहरा सुंदर था। उसके गोल-गोल गाल जिन पर उसके बड़े-बड़े गहरे लाल ओंठ चमक रहे थे। उसके दांत मोतियों की माला की तरह चमक रहे थे, गले में सुंदर चमकती हुई स्वर्ण माला बंधी हुई थी और सांप के जैसे लम्बी सघन, गहन, काली, धुंघराली बालो को वेणी थी, जिनमें गुंथे ताज़े फूल और गले में सुंदर फूलो की माला थी । उसके स्तन बड़े और सुदृढ़ थे जो उसकी छोटी-सी चोली में आधे छुपे हुए और आधे उजागर थे उसकी मांसल भुजाओं में सोने के बाजूबंद और उसकी पतली कमर में सोने का कमर बंद था उसके गोल और मोठे नितम्ब, चिकने जाँघे, पैरो में स्वर्ण-पैंजनियाँ थी जो उसके नृत्य के साथ ताल मिला कर सुंदर ध्वनि उतपन्न कर रही थी, सुंदर छोटे-छोटे थिरकते हुए पैरो के साथ लहराती हुई किशोरी चौराहे पर गाती हुई नृत्य कर रही थी ।

उसकी नग्न मांसल बाजुए हवा में लहरा रही थी। पैरो की उंगलियाँ और पैरो के धरती पर लगने से पैजनिया उसी ताल में ध्वनि उत्पन्न कर रही थीं। उसके चारों ओर बच्चे वृद्ध युवा उसे मन्त्र मुघ्ध हो नृत्य करते हुए देख रहे थे। वह किशोरी बहुत देर तक नृत्य करती रही, गाती रही, हंसती रही, हंसाती रही, देखने वाली जनता को लुभाती और रिझाती रही। सभी पुरुष विमोहित हो उस अनावृत उन्मुख यौवन के नृत्य और असौंदर्य को देख हर्षोन्मत्त हो गए।

नृत्य की समाप्ति पर सभी पुरुष उस युवती पर धन बरसाने लगे। उसका यौवन और रूप किसी ने आँखों से पिया तो किसी ने उसके रूप की ज्वाला को हंसकर आत्मसात् किया। किसी ने धन देते हुए उसका कोमल हाथ को स्पर्श किया तो उसने मुस्कुराकर उस पुरुष का हाथ झटक दिया।

वो किसी को देखकर हंस दी तो कई मनचलो ने उसे देख कर आँख मारी और किसी ने उसे देख सीटी मार उसे बुलाया और उसे कुछ रूपये पकड़ा दिये। उसने एकत्रित हुए धन को अपनी कमर में बाँधे थैले में रखा और अपने पैरो में अपनी चप्पलें पहनी और हस्ती मुस्कुराती वही चौक में मधुशाला की और चल दी. उसके पीछे-पीछे उसके न्मत्त अनावृत उन्मुख यौवन को आंखों से पीते उस पर मोहित भीड़ भी चलने लगी। मैं उस का नृत्य मधुशाला के समीप ही खड़ा देख रहा था

वो नर्तकी मधुशाला पर पहुँची तो उसने दूकानदार जो उसका नृत्य देख मग्न हो रहा था

मधुशाला का मालिक दुकानदार उससे बोला । खूब नाची तुम!

उसने दूकानदार से कहा-आपको अच्छा लगा?

दूकान दार बोला-हाँ अच्छा नाचती हो तुम!

वो बोली- लाला! तो फिर शराब दो!

दूकानदार-रूपये निकालो।

नर्तकी-कौन से रूपये, लाला?

दूकानदार-वही रूपये, जो अभी थैले में रखे हैं।

नर्तकी- लाला! वह तो मेरे परिवार के लिए है।

दूकानदार-तो यहाँ शराब कहाँ है?

नर्तकी- लाला, इन बर्तनो और बोत्तलो में क्या है?

दूकानदार-जो पैसे नहीं देते है, उनके लिए इनमे जहर है।

नर्तकी-अरे लाला! तो जहर ही दे दो।

दूकानदार-मेरे पास जहर बेचने का लाइसेंस नहीं है। शराब लेनी हो तो लो नहीं तो चलती बनो दूकानदार ने दांत निकाल दिए!

नर्तकी- अरे लाला नौटंकी मत करो जल्दी से शराब दो।

दूकानदार-तो ला जल्दी से थैली ढीली कर। पैसे निकाल।

नर्तकी- लाला, तुझे धन क्यों दू?

दूकानदार-यहाँ शराब मुफ्त नहीं बंटती है इसके लिए धन देना पड़ता है, शुल्क लगता है हमे सरकार को टैक्स देना पड़ता है।

नर्तकी-क्या तुमने मेरा नृत्य देखा है, लाला?

दूकानदार-क्यों नहीं देखा, नेत्र है तो देखना पड़ा, पर इसमें मेरा दोष नहीं है। तुम मेरी मधुशाला के सामने आकर क्यों नाची?

नर्तकी पास खड़े हुए मेरे को देख कर बोली बाबू जी इस लाला ने मेरा नृत्य देखा वह भी मुफ्त में और अब शराब देने में नियम बता रहा है? आप ही फैसला कीजिये

मैंने जेब से रूपये निकल कर 500 / - का एक नोट दुकानदार के सामने फेंककर कहा-"पैसे मैं दे रहा हूँ-आप इसको शराब दे दीजिये।

दुकानदार ने हंसकर मेरे दिए रुपयों के नोट को परखा और एक बोतल उठाकर उस तरुण नर्तकी को दे दी और बोतल को खोल कर मुँह में लगाकर वह तरुणी गटागट शराब पीने लगी। आधी बोतल पीकर उसने तृप्त होकर सांस ली, जीभ से होंठों को चाटा-हंसी, फिर झूमती हुई दो कदम आगे बढ़, अपना अनावृत, उन्मुख यौवन मेरे वक्ष से बिल्कुल सटाकर मुझे घूरा और दोनों भुजाओं में बोतल को थाम, ऊंचा कर उसे मेरे होंठों से लगाकर कहा- अब तुम भी पियो।

मैंने तुरंत अपनी भुजाओं में उस तरुणी को समेट लिया और एक ही सांस में वह सारी शराब पी गया। फिर मैंने उस तरुणी के लाल-लाल होंठों पर अपने शराब में भीगे हुए ओंठ रखकर उसे चूमा और कहा-" अब चले ।

कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार

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