मैं बना बलविंदर की पत्नी

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Reluctant sissy seduced to be a maleWife of Teacher.
4.7k words
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हम दोनो लगभग २ मिनिट तक ऐसे ही शांत लेटे रहे, मेरे अश्रु पीड़ा से बह रहे थे और बलविंदर मेरे उपर अपना पूरा भार डाल कर विश्राम कर रहा था, उसका लिंगमुंड मेरी गुदा मे धंसा हुआ था ओर मेरा मुहँ उसकी छाती के बालो पर| वो हल्के हाथों से मेरे सिर के बालो के सहलाने लगा व अल्पमात्र नीचे की और खिसका, जब वो नीचे सरका तब जाकर मैं खुल कर साँस ले पाया| बलविंदर ने मेरे बहते अश्रुओं को देखा और उन्हें चाटने लगा, मैने अपने भीतर की ग्लानि से आँखे बंद रखी, वो मुझे चूमता व चाटता रहा|

मेरी इस हालत से बलविंदर सकपका गया उसे प्रतीत हुआ की मैं सहभाग नहीं कर रहा हूँ व निराश हो गया हूँ तो उसके कहा, "नंदन, I am sorry Yaar", बलविंदर मेरे उपर से हटने लगा व अभी अपना लिंग खीच के बाहर निकालने लगा| मेरी स्थिति असमंजस की थी अभी कुछ क्षण पहले मैं कामुक्त भाव से सहयोग व सहभागी था यथाशीघ्र ही मैं अपरधाबोध व ग्लानि मनोस्थिति मे परवर्तित हो गया, इसी उधेड़बुन मे मैने अपने दायें पैर को बलविंदर की चेहरे के आगे से घुमाकर यौनलिंगन से छूटने का प्रयास किया तो मेरा गुदाछिद्र तनिक सा सहज हुआ और धपाक से उसका लिंग फिसल का बाहर आ गया|

इसी क्रमवश मे निश्चित ही बलविंदर भी कदापि हीन भाव मे आ गया था| वो बिछोने से उठकर नग्न ही सामने रखे आसान पर बैठ गया व बची हुई मदिरा पीने लगा, मैं भी अपनी वही कछ्छी (panty, जो की सत्य मे उसकी पुत्री रूपॅल की थी) उठा कर पहनने लगा तो ज्ञात हुआ वो भी गीली हो चुकी है, क्योंकि इसी कछ्छी (panty) से बलविंदर ने कई बार अपने लिंग व मेरी गुदा से टपकते हुए द्रव्य को साफ किया था अत: लाचारवश मुझे भी नग्न अवस्था मे बिछोना छोड़ना पड़ा|

मैं जैसे ही बलविंदर के समीप से निकला उसने बिना मेरी और देखे, बुद्बुदाया "भेंचो सारा मूड ही खराब कर दिता" ओर फिर से मदिरा पात्र से घूँट लेने लगा| मैं भीतर वाले कक्ष मे नग्न ही बैठ गया और विचार करने लगा की विपिन भैया ने जब मेरे से यौन संबंध बनाए थे तब तो मुझे लेश मात्र भी पीड़ा नही हुई थी, फिर अब क्यों? फिर विपिन भैया की वो सीख भी स्मरण हो गई जब उन्होने मुझे यौन संबंधो मे समझोते का महत्व, उनके अनुसार पत्नी भी पति से यौन संबंध इसी समझौते के कारण ही निभाती है जो नही निभाती उन्हें उसका मूल्य भी चुकाना होता है| तभी बाहर से बलविंदर का स्वर सुनाई पड़ा "नंदन तू भेन्चौ कल घार चला ज़ाइं, तैनू कोई लोड नही टुशण दी". हम सभी छात्र उनकी पंजाबी व हिन्दी मिश्रित भाषा को समझते थे इसी कारण मुझे उनकी बातों कर अर्थ समझने मे किंच मात्र भी समस्या नही आई, मैं बिना कोई उत्तर दिए बैठा रहा|

अब मुझे काटो तो लहू नहीं मैं निस्तबध हो गया, समझ नही आ रहा था की प्रसन्न होऊं कि दुखी| प्रसन्नता इस पीड़ा से बचने की थी और दुखी बुद्धि कर रही थी, पिताजी को क्या कहूँगा, क्योंकि सत्य हम दोनो से कोई बताएगा नही और अगर गुरुजी ने मुझे घर वापिस भेज दिया तो निश्चित दोष मेरा ही माना जाएगा| मैं भीतर चुप्पी साधे बैठने के अतिरिक्त कुछ कर भी नही सकता था, वस्त्र धो दिए थे, अपराध बोध से नींद भी नही आ रही थी और बाहर बलविंदर रुष्ट होकर मदिरपान कर रहा था उसके सामने जा भी नही सकता था वार्तालाप का तो कोई अर्थ ही नही था|

लगभग १० मिनिट पश्चात बलविंदर ने प्रवेश किया, वो अभी भी निर्वस्त्र था व उसका लिंग सिकुड चुका था हालाँकि अभी भी उसमे से चाशनी की धार जैसे द्रव्य टपक रहा था, अभी भी उसकी आँखों मे कामुकता भरी हुई थी| वो मेरे समीप आकर खड़ा हो गया व मेरे बालों को सहलाते हुए मेरे चेहरे को अपने पेट से सटा कर कहने लगा, "यार, ग़लती मेरी सी मई तेनू अपनी लुगाई बना रया सी, बुरा ना मनि होर किसी नू कुछ ना कहिन, सब भूल जा होर काल अपने घार चला ज़ाइन" यह सब कहते कहते वो मेरे गालों पर प्रेम से हल्के हल्के थप्पड़ मार रहा था| किंतु बलविंदर अभी भी यौनासीन मद मे था मुझे इस तरह से चिपटा के खड़ा था जैसे वो मुझे छोड़ना ही ना चाहता हो, मैं चुप्पी साधे केवल सुन रहा था वो उसके हल्के स्पर्शों व थपेड़ों से ना केवल सहज हो रहा था अपितु आनन्दित भी था|

अब हम दोनो शांत थे व सहज हो रहे थे कि मुझे उसके लिंग की गंध आने लगी जो स्वत: ही किसी रास्यानिक प्रतिकिया हेतु मुझे मादित करने लगी| उसका लिंग अभी भी अपने मुख से हल्की तार की तरह से रिस रहा थे जो निश्चित उसका वीर्यद्रव्य (precum ) था, बीच-बीच मे उसका लिंग हल्के-हल्के झटके भी मार रहा था| बलविंदर ने मुझे सहलाते हुए अपने शरीर को तनिक सा सीधा किया तो मेरा चेहरा खिसक कर लगभग उसकी झान्टो पर आ गया| एक तो उसके मुख से आती मदिरा की गंध उपर से रिसते हुआ लिंग व थूक, वीर्य व मुख लार से लिप्त उसकी झान्टो की गंध ने स्वत: ही अपने रासायनिक व्यवहारानुसार (chemical reaction) मुझे फिर से मादित करना प्रारम्भ कर दिया| मेरी सांसो से निकलती गर्म वायु उसके लिंग से टकराते ही उसका लिंग अपनी यौवन रूप मे प्रकट होने लगा| अचानक तीव्रता के साथ उसके लिंग ने झटके लेने आरंभ किए व लिंग के नसे उभरने लगी, लिंग कसाव के साथ साथ अधिका मात्रा मे द्रव्य मेरे पैरों पर एक धार की भाँति रिसने लगा| अभी उसका लिंग पूर्ण रूप से आकार नही ले पाया था की उसने मेरे होठों व नाक के छिद्र मे घुसने के प्रयास आरंभ कर दिए| निश्चित ही बलविंदर की पश्चाताप वाली भावना सुप्त रूप मे चली गई और कामुकता फिर से जाग गई|

अब उसका सहलाना सिर से सरककर मेरी पीठ पर आ गया व मुझे अपनी बलिष्ठ हथेलियों से अपनी जंघाओं के भीतर मेरे मुँह को धकेलने लगा| उसने एक हाथ से मेरा मुँह पकड़कर अपनी झान्टो पर दबा दिया मुझे श्वास लेने मे असुविधा होने लगी तो मैने बलपूर्वक अपने सिर को उसके चुंगल से मुक्त किया वा लंबी श्वांस ली, बलविंदर ने क्षणभर मे दूसरे हाथ से अपने लिंग को पकड़कर मेरे होंठों पर रगड़ना आरंभ कर दिया| मैं कुछ समझता इस से पूर्व ही उसने अपना लिंग मेरे मुँह के भीतर प्रविष्ट करा दिया|

बलविंदर धीरे-धीरे फिर मदमस्त होने लगा व मुझे भी मादित करने लगा| वो मेरे चेहरे को सहलाते हुए इंच इंच कर घुसता जा रहा था अब उसने लगभग तीन चौथाई लिंग को मेरे मुँह के भीतर प्रविष्ट करा दिया था| मेरे मुँह से स्वत: ही धीं-धीं का स्वर निकलने लगा व जैसे जैसे लिंग भीतर घुसता गया मेरी नाक व आँख से पानी टपकने लगा व मुँह से धीं-धीं की आवाज़ आने लगी| बलविंदर ने बलपूर्वक मेरे सिर को धकेल कर दीवार के सहारे टिका दिया जिस कारण मेरे लाख छटपटाने अथवा प्रयत्न करने के बाद भी उसने अपना पूरा लिंग मेरे मुँह से गले तक प्रविष्ट करा दिया व हल्के-हल्के धक्को से आगे-पीछे करने लगा| मेरी अवस्था बुरी हो रही थी और बलविंदर आँखे मुंदे छत के और देख रहा था|

लगभग २-३ मिनट पश्चात उसने एक ज़ोर के झटके के साथ पूरा लिंग मूँह मे ठूंस दिया, मेरा मूँह उसकी झांटों से चिपक गया| मुझे उसके लिंग के फड़फड़ाने की त्रीवता अपने कंठ मे स्पष्ट रूप से आभासित हो रही थी, उसने अपने लिंग को फिर से एक बार खींचकर बाहर किया और मेरे मूँह से निकलती लार व नाक व आँख से टपकते पानी से उसका लिंग भीग गया, उसके लिंग की नसें मानो फटने को व्याकुल हों उनका रंग व सुर्ख नीला हो गया था और मोटाई तो मानो किसी पाइप मे पानी भर गया हो ऐसी हो गई थी| मैने तुरंत ही लंबी लंबी श्वांस ली ही थी कि बलविंदर ने फिर से अपना लिंग मेरे मुख मे ५-१० बार आगे-पीछे किया और अंत मे जड़ तक मेरे अंदर समा दिया| हम दोनो को पसीने आ गये थे उसने मेरे सिर को मजबूती से थामे रखा व फिर उसके लिंग ने छटपटाते हुए मेरे मुख के भीतर वीर्य उडेलना आरंभ कर दिया|

ज्ञात नही कितना और कितनी देर तक वो मेरे मुँह को अपने वीर्य से भरता रहा, कुछ क्षणों के बाद उसके लिंग ने सिकुड़ना प्रारम्भ किया तब जा कर उसने अपनी पकड़ ढीली की| जैसे ही बलविंदर ने अपनी पकड़ ढीली की मैने तुरंत अपने को पीछे धकेला व श्वांस लेने का प्रयत्न किया, उसका लिंग मेरे मूख से धड़ाम से किसी माँस के लोथडे की तरह फिसलकर बाहर आ गया, वो किसी शहद के पात्र मे से भिगो कर निकाली गई उंगली की तरह चमक व पूर्ण रूप से मेरी लार व अपने वीर्य के मिश्रण से टपक रहा था| बलविंदर के शरीर से पसीने व लिंग से वीर्य टपक रहा था व मेरे शरीर से पसीने के अतिरिक्त मेरी आँखो व नाक से पानी बह रहा था और मुख तो मानो कोई माखन का पात्र था इतना वीर्य से भर गया था की मेरे होठों से टपक रहा था| टांगे काँप रही थी व शरीर थर्रा रहा था| मेरी अवस्था बेहद दयनीय हो गई थी|

मैं उठाकर शौचालय मे गया व अपने मूँह को धोया, हाथ डालकर जिव्हा को साफ करने लगा तो मानो उल्टी आ गई हो कुछ नही तो कम से कम ५० ग्राम घी की तरह गाढ़ा द्रव्य निकालने लगा जो की संभवत: मेरा थूक, लार व बलविंदर के वीर्य का मिश्रण था, ऐसा प्रतीत हो रहा था की शरीर से सब कुछ निकल गया है पेट तक की आंते हिल गई थी, गला मानो अंदर से किसी ने घीस दिया हो| यह समझ आ गया था की संभवत: ये मेरे जीवन के प्रथम वास्तविक मुख मैथुन था| अपने को साफ करके जब मैने भीतर कमरे मे प्रवेश किया तो पाया बलविंदर भी आसन मे यूँही नग्न बैठा हुआ हाँफ रहा था| मैने शौचालय मे ही निश्चित कर लिया था की मैं यथा संभव समझोता व सहयोग करूँगा व परीक्षा मे उत्रीण हो जाउँगा और कल घर लौट कर माताजी को मना लूँगा तो वो पिताजी को समझा कर शांत कर देंगी| मैने मन ही मन मे निश्चय कर लिया था की मैं घर लौट जाउँगा, जैसा बलविंदर चाहता है किंतु उस से पहले विपिन भैया के दिए मंत्र समझोता व सहयोग देकर अपने उत्रीण होने की संम्भावना को पक्का कर लूँगा| मुझे ऐसा लगा की संभवत: बलविंदर का कार्य पूरा हो गया है मुझे और कुछ नही करना है, सहयोग व समझोता तो मैं पहले ही कर चुका हूँ|

बलविंदर को देख कर लेश मात्र भी नही प्रतीत हो रहा था की उसे कोई ग्लानि अथवा पछतावा है, इसके विपरीत मुझे देखकर वो अपने लिंग से खेल लगा था| मैने साहस करके कहा, "गुरुजी कल मैं वापिस अपने घर चला जाउँगा" और उसके समीप आ कर खड़ा हो गया| "चला ज़ाइन" कह कर बलविंदर फिर से अपने लिंग से खेलने लगा, उसमे अभी भी मदिरा व कामुकता का असर था, फिर उसने कहा, "गुरु मज़ा आ गया तेनू नई आया, बैठ इत्थे बैठ" और मुझे अपने संग बैठा लिया| "होर, सुन मैं गुरुजी नई बलविंदर हां, तू बूल गया, हून बलविंदर कॅन्ही", इतना कहकर मेरे झांघों पर हाथ रख दिया|

एक हाथ से अपने लिंग से खेलने लगा व दूसरे हाथ से मेरे लिंग से| उसके पूरे शरीर से गंध आ रही थी, मेरे हल्के से शरीर जो उस समय लगभग ५० किलो का होगा उठाकर अपनी गोद मे बैठा लिया| हम दोनो के चेहरे आमने सामने थे उसने एक हाथ से मुझे कमर से पकड़े रखा ताकि मैं गिर ना जाऊं व दूसरे हाथ से मेरी ठोडि को पकड़कर बोला, "I love you, I enjoyed तेरा पता नहीं, तू चाहे तो पुलिस बुला ले होर मैनउ जैल बेज दे, यार, don't do this! पता नहीं तूने की जादू किता मैं बहक गया सी, पर तू उदास ना हो, तू नेक बंदा सी होर तेनू पढाई विच कोई दिक्कत आवेगी ते मैं वेख लेवंगा, होर तू ज्योंदी चाना है ते कल घार वी चला ज़ाइन"

इतना कह कर वो फिर से मुझे चूमने लगा और मंद मंद उसका दूसरा हाथ चेहरे से हटकर मेरे नितंबों को सहलाने लगा| मेरे शिथिल पड़े लिंग मे हलचल होने लगी, उसकी दाढ़ी-मुँझे मुझे चुभ रहीं थी और नीचे से उसका लिंग फिर से मंद मंद झटके ले रहा था| फिर से बलविंदर उसी मादकता व कामुकता से मुझे चूमने लगा व बलपूर्वक अपने समीप और समीप सटाने लगा| मेरे मन के भीतर कल घर जाने के असमन्जता व सहयोग तथा समझोता का भाव था| पुन: कामुकता (lust) मेरे उपर हावी होने लगी व भय तथा संकोच कहीं दुबककर छुप गये, स्वत: ही हथेलियाँ बलविंदर की पीठ पर चली गई व उसे अपने समीप लाते हुए सहलाने लगी| चुंबन और कामुक व लंबे होते गये| इसे क्रम मे मुझे अपनी छाती से चिपकाए व एक हाथ से नितम्बो को थामे व दूसरे से कमर को वो खड़ा हुआ और रसोईघर की और चल पड़ा।

इस पूरे क्रम मे उसने मुझे अपने आलिंगन व चुंबन से मुक्त नहीं किया अपितु और कठोरता से चूमता रहा, चलते चलते वो रसोईघर मे पहुँचा और वहाँ से सरसों का तेल उठा कर लाया व वापिस आसान पर आकर बैठ गया| उसके कसे हुए आलिंगन ने मुझे मदहोश कर दिया व हमारे चुंबन मंद मंद से नशीले होने लगे मूँह से लार टपकने लगी हाथ एक दूसरे को सहलाने लगे व शरीर का कसाव मानो एक दूसरे मे समाहित हो जाना चाहता हो| कितने समय तक हम ऐसे ही मग्न रहे पता नहीं चला, आभास तब हुआ जब हम दोनो के लिंग से वीर्यद्रव्य (precum) रिसने लगा व हमारी झांघों व झान्टो को गीला करने लगा| बलविंदर का लिंग तनाव की सीमाएँ लाँघता हुआ विकराल रूप ले रहा था जबकि मेरे लिंग मे मंद तनाव था पर उसके लिंग के सामने मानो था ही नहीं|

बलविंदर का लिंग मेरे लिंग के आलिंगन से मुक्त हो मेरे नितंबो (ass-cheeks) के मध्य खाई मे हल्के हल्के प्रहार करने लगा| हमारा चुंबन प्रेमरस हमारे होठों से रिस्ता जा रहा था उसके हथेलियों ने मेरे नितंबो से खेलने के लिए अपने लिंग को लगा दिया था और ना जाने कहाँ अदृश्य हो गया| कुछ क्षण पश्चात मैने पाया की उसके हथेली मेरे और उसके लिंग से रिस्ते हुए वीर्यद्रव्य (precum) को एकत्रित कर रही है और सहजता से मेरे नितंबो के मध्य दरार मे उसे लीप रही है| बलविंदर की इस शरारत से मेरे अंदर काम वासना जागृत हो गई और उसकी गोद से उचकर उसका चुंबन लेने लगा|

मेरे उचकते ही उसने अपनी हथेली पर थुका व मेरे नितंबो व गुदछिद्र पर मलते हुए मध्य अंगुली मेरे गुदाछिद्र मे डाल दी, संभवत: मेरी कामुकता व उसकी वीर्यरस मे डूबी अंगुली बिना किसी पीड़ा पहुँचाए सरलता से प्रविष्ट हो गई| अब मैं चाह कर भी पुन: उसकी गोद मे नहीं बैठ पा रहा थे उसकी पकड़ मेरी कमर पर कठोर हो गई थी, वो इस क्रम को क्रमश: दोहराता रहा, अपनी उँगलियों को हमारे वीर्यरस से भिगोना व पुन: नितंबों पर चुपडना और गुदछिद्र मे सहजता से अंदर बाहर करना| मुझे तनिक-तनिक आनंद आने लगा ही था की बलविंदर ने तेल के पात्र को उठाकर पाने लिंग पर उडेल दिया, जिससे उसका लिंग नहा गया| इस से पूर्व की मैं कुछ समझ पता उसने अपनी पकड़ को ढीला किया व दूसरे हाथ से अपने लिंग को पकड़कर मेरे नितंबो को सहलाता हुआ मेरे गुदाछिद्र पर रगड़ने लगा व अचानक उचक कर लिंग को गुदा के भीतर धकेल दिया व मुझे अपनी गोद मे बैठा लिया| उसका लिंग मुझे पीड़ा देते हुए फिसलता हुआ पूर्ण रूप से मेरे गुदा मे अदृश्य हो गया| मेरे लिए ये पीड़ा असहनीय थी उसकी गोद से उठकर बैठना चाहता था किंतु उसकी मजबूत पकड़ ने मुझे हिलने तक नहीं दिया, वो शांत बैठा मेरे कानों (earlobes) को काटता व चूमता जा रहा था|

मुझे झटपटाता देख भी उसे कोई दया नहीं आ रही थी मेरी आँखों से अश्रु बह रहे थे तथा मैं अपनी गुदा को कभी सिकोडता कभी फैलाने का प्रयास करता ताकि मुझे इस पीड़ा से मुक्ति मिल सके| मेरे अनेक प्रयासों के विफल हो जाने से मैं थक कर उसकी छाती मे चेहरा छुपा कर निढाल हो गया और उधर मेरी गुदा मे समाहित उसका लिंग भी प्रतीत हो रहा था की उस तनाव मे नही है जितना मैने उसे अपने मुख-मैथुन के समय आभासित किया था| ऐसा प्रतीत हो रहा था पिछली बार की भाँति बलविंदर कोई भी जोखिम नहीं लेंगा चाहता था इसी कारणवश उसने ये निर्दयी प्रयास किया और मुझे बिना कोई आश्वासन दिए अपने लिंग को मेरे भीतर डालकर भी शांत है ना ही मुझे उठने दे रहा है और ना ही लिंग को बाहर निकाल रहा है|

कितनी देर हम यूँही पड़े रहे ज्ञात नही हुआ, आभास तब हुआ जब मेरी गुदा (rectum) के भीतर उसके लिंग ने हलचल की, मैने आँख खोल कर बलविंदर की और देखा वो मुस्करा रहा था| पुन: वो अपनी हथेलियों से मेरे चुतडो को सहलाने लगा व और दूसरी हथेली से नीचे पड़े तेल मे लपेट कर मेरे गुदाछिद्र (asshole) व अपने लिंग पर मलने लगा| मंद मंद उपर नीचे होते हुए अपने लिंग से मेरा गुदा मैथुन (ass fucking) करने लगा अपितु मुझे अब उतनी पीड़ा नही हो रही थी जितनी पूर्व मे थी किंतु मैं सहज भी नहीं था| अब वो मेरे चुचको को चूस्ता मंद मंद मेरा गुदा मैथुन करने लगा| मैने अपने शरीर को व मान को मुक्त कर दिया था व सहयोग के भाव से कोई विरोध नहीं कर रहा था, पूर्ण नियंत्रण बलविंदर के हाथों मे थे जो मुझे कमर से पकड़ कर उपर नीचे कर रहे थे ताकि उसका गुदा मैथुन का कालांतर (rhythm) बना रहे।

बलविंदर कभी उत्साहित होकर तीव्रता से लिंग को अंदर-बाहर करता और कभी शांत होकर लिंग को मेरी गुदा मे विश्राम करने देता, गुदा की पीड़ा कुछ कम हो गई थी किंतु लिंग की घिसावट नाभि तक उसके मेरे भीतर खलबली मचाने का आभास करा रही थी| पेट की आंते खींच गई थी व साँसे तेज हो गई थी, शरीर टूट रहा था व पसीना आने लगा था, लगभग यही अवस्था उस की भी थी| बलविंदर का लिंग मेरे अंदर मानो कोई शरारत कर रहा हो, कभी फड़फड़ाता, कभी घर्षण करता, कभी मंद मंद रिस्ता (oozing) व कभी जैसे और उँचाइयों को छूना हो ऐसे आगे बढ़ता| बलविंदर ने मुझे कस कर पकड़ा और मानो मुझे अपने लिंग मे समाहित कर लेंगा चाहता हो, वो बुरी तरह से काँपने तथा हाँफने लगा वो एक पल के लिए खड़ा हुआ और फिर बैठ गया और मुझे अपने आलिंगन (hug) मे कस कर दबा दिया, उसका लिंग मेरे भीतर झटके ले ले कर मेरी आँतो को ठोक रहा था| बलविंदर काँपते हुए निढाल हो रहा था और निश्चित ही मेरे भीतर वीर्य (sperms) उडेल रहा था, मेरा अनुमान सही था कुछ पल पश्चात गुदछिद्र (sphincter) से उसका गाढ़ा-गाढ़ा वीर्य रिसने (oozing) लगा| हम दोनो शांत थे किंतु उसका लिंग अपने कंपन से अपने होने का संदेश दे रहा था| हम दोनो ही थक चुके थे|

हम दोनो हाँफ व काँप रहे थे बलविंदर के लिंग के भाँति, उसके रिस्ते वीर्य ने मुझे पीड़ा से राहत दी तथा बलविंदर को आराम| उसकी जांघे वीर्य से गीली व चिपचिपी हो गई| मैने यह देखने के लिए कहीं मेरी गुदा से रक्त तो नही बह रहा अपनी हथेलियों से जाँच करने के लिए छुआ तो वो उसके वीर्य से पूरी तरह से गीली व चिपचिपी हो गई, मैने हथेली को दो देखा तो उसका वीर्य मेरी हथेली से शहद की तरह टपक रहा था, थोड़ी राहत हुई की चलो रक्त तो नही बहा, इसका अर्थ मुझे कोई अंदुरूनी चोट नही पहुँची है| इस पूरे घटनाकर्म मे भी उसका लिंग मेरे भीतर ही आराम करता रहा| बलविंदर ने मुझे होठों पर चुंबन दिया व कहा, "जितना भी माल गिरा है उसके अपने हथेली मे भर ले, और मेरी बुन्ड मे अपनी उंगली से डाल दे, जैसा मैने तेरे साथ किया, उसका बदला ले ले"| मैं कुछ कहने की स्थिति मे नही था और ना ही कामुक था किंतु सहयोग के भाव से मेने उसके निवेदन को माना (क्योंकि अब ऐसा कुछ नही बचा था जिसे मैं अपने मान के साथ जोड़ सकूँ)| मैने बिना किसी संकोच के फिर अपने पीछे हाथ घुमाया व उसकी जांघों व आसान मे गिरे हुए उसी वीर्य को हथेली मे भर लिया, जैसे ही मेरे हाथ सामने आए मुझे गोद मे उठाए-उठाए बलविंदर खड़ा हुआ और मेरी हथेलियों को अपने नितंबो पर रगड़ने लगा| मेरी हथेली उसके केशों से भरे जंगल में गुदाछिद्र को खोजने लगी, मेरे विपरीत उसके चूतड़ मानो बालो का कोई जंगल हो उसमे उसकी गुदा कहीं खो गई हो, अंतत: टटलोते हुए मेरी उंगली उसकी गुदाछिद्र तक पहुँच गयी जो पहले से ही उसके रिस्ते हुए वीर्य से गीली हो रखी थी, मेरे थोड़े से प्रयास से वो उसकी गुदा मे प्रविष्ट हो गई| मैं उसमे अपनी अंगुली धंसा कर उसकी गोद मे बैठा रहा तो उसने मुझे संकेत से समझाया की मैं भी उसी की तरह से अपनी अंगुली अंदर बाहर करूँ|

मैने अपनी उंगली को लगभग १०-१२ बार अंदर-भहर किया होगा की मुझे बलविंदर के लिंग मे फिर से कसाव का आभास होने लगा| उसके हाथ पुन: मेरे नितंबों को सहलाने लगे, पुन: उसके चुंबन प्रारंभ हो गये व उसका लिंग पुन: उत्साहित होने लगा| पुन: वो अपने लिंग को मेरी गुदा के अंदर बाहर करने लगा| मुझे उसकी कमर मे अपने पैर केँची की भाँति गिरने के भय से फँसाने पड़े व दोनो हाथ उसकी गर्दन को मानो किसी फूलों के हार की तरह लपटे हुए थी| मैं मानो किसी झूले पर झूल रहा था, इस बार तनिक भी पीड़ा नही थी ना ही कोई अश्रु बह रहे थे अपितु मैं आंदित होकर स्वयं ही उपर नीचे होकर झूल रहा था जिससे उसका कार्य आसान हो गया और वो भी मदमस्त सांड़ की तरह मेरी सवारी करने लगा|

नीचे से वो मुझे धक्कों के साथ उपर धकेलता उपर से मैं पुन: उसके लिंग के उपर बैठ कर उसे नीचे धकेल देता| इस आनंदमय वातावरण मे हमारा तालमेल (rhythm) एकदम सटीकता से कार्य कर रहा था मानो कोई चिंटी किसी वृक्ष पर चढ़ रही हो और फिसल कर गिर जाती हो व पुन: चढ़ने का प्रयास कर रही हो| मेरी गुदा बलविंदर के पूर्व वीर्यपात (ejaculation) से पूर्ण रूप से घर्षणरहित (friction-less) हो जाना इस मिलन को आनंदमयी व किसी सारंगी (violin) की तार पर माखन (butter) की तरह वादक के तीर (violin-bow) फिसल कर संगीतमय सा प्रतीत हो रही थी। हमारे मुख से कामुक स्वर निकल रहे थे जिनका कोई अर्थ नहीं था किन्तु स्वतः ही निकल रहे थे व हमारे इस मिलन को रोमांचित करते रहे।

हम दोनो के इस मिलन से फच-फच की ध्वनि उत्पन्न हो रही थी व पहली बार इस पूरी रात्रि मे मेरे मुख से स्वत: ही आह-आह-ओह (aah-aah-oh) का अर्थहीन स्वर निकल रहा था तथा स्वयं ही मैं प्रत्येक बार उसके धक्के से उपर उसके मुख तक पहुँचता तो उसे एक चुंबन देता| निश्चित ही ये मेरी कामुकता के चरम का प्रमाण था, बलविंदर भी रह रह कर "i Love you" कहता और तीव्रता से अंदर बाहर कर के अपने लिंग को मेरी गुदा के साथ क्रीड़ा करने देता| हम दोनो हाँफ भी रहे थे और पसीने से नहा भी गये थे, वो थक गया था उसने अपने दाएँ पैर को उठा कर आसान का सहारा दिया व मेरे नितंबो को पकड़ कर मुझे अपने नियंत्रण से उपर-नीचे करने लगा| हम दोनो की छातियों से पसीने निकल रहे थे, हमको इतना पसीना आ रहा था की वो पलकों से भी टपकने लगा| उसका लिंग था मानों थकने का नाम ही नही ले रहा था अपितु और विकराल रूप लेता जा रहा था| विश्वास कीजिए नही ज्ञात हुआ कितना समय यह काम-क्रीड़ा चलती रही, मेरे मे झूलने का भी साहस नही शेष थी और पहली बार मैने पाया की मैं भी स्खलित हो रहा हूँ, मेरा वीर्य उसके पेट पर गिर रहा था किंतु वो मुझे अभी भी मदमस्त हो किसी राक्षस की भाँति रौंद रहा था| मेरा आह-आह-ओह का स्वर मंद हो रहा था और उसका स्वर fuck you, fuck you के शब्दों से उँचा हो रहा था|

अब तक मुझे अनुभव हो गया था की तब तक उसके लिंग मे फड़फाहट नही होगी उसका वीर्यपतन नहीं होगा| वो मुझे कुछ और समय तक इसी प्रकार रौन्द्ता रहा, हर धक्के के साथ उसकी गुदा मैथुन व चुंबन की तीव्रता अधिक होती गई| हमारी साँसों से बैल के नाथूनों से निकली किसी गर्म व तीव्र श्वांस पुष्टि कर रही थी की हम यौनक्रीड़ा की उन्मुक्ता के चर्म पर पहुँच गये थे| पूरा कक्ष प्रचुर मात्रा मे हमारी काम-क्रीड़ा की गंध से भर गया था इसका आभास कोस दूर खड़े व्यक्ति को भी हो जाता| पसीनों से तर-बतर काया से उनके टपकने, गुदामैथुन से उत्पन्न फच-फच, श्वासों के टकराने व हाँफने के अतिरिक्त कुछ और सुनाई नही दे रहा था|

हम किसी झूले के उपर-नीचे होने की तरह लयबद्ध तरह से कामुकता मे लिपटे हुए थे, व बिना किसी पीड़ा के उसका लिंग मेरी गुदा मे गहराई तक जाकर इधर-उधर स्वयं को पटकता पुन: बाहर आता पुन: अंदर जाता ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई मत्स्य जल से बाहर आकर श्वास लेती है व पुन: जल मे डूब जाती है| बलविंदर ने मुझे कठोरता से जकड़ लिया व शांत होकर पुरजोर से आखरी ४-५ धक्के देता हुआ आसान पर बैठ गया, मुझे अपने भीतर उसके लिंग से निकलते वीर्य की पिचकारियाँ छूटने का आभास हो रहा था| कुछ देर वह यूँही शांत रहता फिर दो तीन धक्के देता व मेरे कानों को चूस्ता ओर बड़बड़ाता "ठंड पे गई, यार"|

मैं पूर्ण रूप से निढाल उसकी गोद मे बैठा रहा ओर वो अपने वीर्य से मुझे भरता रहा मानो मुझे वो गर्भवती करना चाह रहा हो| जैसे-जैसे हमारी श्वांस सामान्य होती गई वैसे-वैसे उसका लिंग मंद-मंद सरकता हुआ मेरी गुदा से पुन: किसी माँस के लोथडे की तरह बाहर गिरा, जैसे ही उसका लिंग बाहर गिरा मेरी गुदा तीव्रता से सिकुड़ाती व फैलती जा रही थी और पीड़ा भी हो रही थी, एक अजब सी गंध भी आ रही थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था की जैसे की बलविंदर का लिंग अभी भी मेरी गुदा के भीतर ही हो| मैं संकोचवश उससे आँखे नही मिला पा रहा था| गुदा से उसका वीर्य टपक रहा था वो मेरी कमर को सहला रहा था| कुछ क्षण पश्चात जब उसके मुझे उठने को कहा और वो खड़ा हो तो पाया, पैर काँप रहे थे व गुदा से रिस्ता वीर्य मानो किसी सर्प की भाँति गुदा से निकलकर मेरे पैरों से फिसलते हुए धरातल की और भाग रहा हो, उसका लिंग मेरे मल से सना हुआ था, मुझे अपने आप पर लाज आ रही थी|

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