अंतरंग हमसफ़र भाग 172

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बेकरार महायाजक​
1.1k words
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Part 172 of the 342 part series

Updated 03/31/2024
Created 09/13/2020
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मेरे अंतरंग हमसफ़र

सातवा अध्याय

लंदन का प्यार का मंदिर

भाग 40

बेकरार महायाजक​

उधर जीवा बाथरूम ने अपने सारे कपड़े उतार चुकी थी और खुद को शीशे में निहार रही थी। वह आज एक रसे के अपनी खुद की खूबसूरती का जायजा ले ही थी वह जानती थी अभी भी जवान है और किसी भी मर्द के होश उडा देने में सक्षम है, ये उसे भी पता था और आज जब मैं उसे देखता ही रह गया और उसकी खूबसूरती में खो गया तो उसे अपनी खूबसूरती का एहसास हुआ और खुद को बिलकुल नंगी आईने में देखते हुए अपनी हल्की गुलाबी चूची को रगड़ा, कुछ ही सेकंडो में उसकी चुचियाँ कड़ी हो गयी और वह अपने स्तनों को अपने हाथ में लेकर प्यार से मसल कर बोली आज तुम्हे मसलने वाला आ गया है और उसके शरीर में कामसुख की एक लहर दौड़ गयी।

जीवा को पता है वह उत्तेजित है और उसे सेक्स चाहिए। प्यार के मंदिर की खूबसूरत युवा मुख्य पुजारिन के लिए सेक्स वर्जित नहीं है वह जब चाहे किसी भी पुरुष के साथ सम्भोग कर काम सुख प्राप्त कर सकती थी। उसके एक इशारे पर पुरुषो को लाइन लग सकती थी । पर वह चार साल से अपने मसीह यानी मेरा इन्तजार कर रही थी। उसके मासिह के रूप में मैंने उसे चार साल पहले मौत के मुख से बचाया था और तब वह मुख्य पुजारिन बनने वाली थी । पर तब मैं व्यस्क नहीं था। जीवा चाहती थी मैं ही उसका कौमार्य भंग करूँ क्योंकि वह अब मुझे ही अपना सर्वस्व मानती थी । उसने प्रेम के मंदिर की मुख्य पुजारिन से प्राथना भी की थी की अब वह मुख्य पुजारिन नहीं बनना चाहती अगर उसका दीक्षा करता और कौमार्य भनग करने वाला मैं नहीं कोई और होगा । परन्तु तब मुख्य पुजारिन पाईथिया ने उससे ये कहा था कि वह प्रेम की देवी से अपनी प्राथना करे देवी जरूर कुछ ऐसी व्यवस्था करेगी जिससे उसकी इच्छा आवश्य पूरी होगी और आज उसकी इच्छा पूर्ण होने का दिन आ गया था

उसके बाद से जीवा किसी भद्र पुरुष की तरफ कभी आकर्षित नहीं हुई, मंदिर में और समाज में जीवा को लोग बेहद उच्च चरित्र की महिला महायाजक और मुख्य पुजारिन मानते है और काफी सम्मान भी देते है। जीवा ने भी इस गरिमा को बनाकर रखा हुआ था और मेरे सिवा आजतक किसी और पुरुष के लिए उसके मन में कभी विचार नहीं आया और उसने पूरे चार साल मेरा इन्तजार किया। जीवा ने अपनी सेक्सुअल डिजायर को एक कोने में दबा दिया था।

जब उसे पता चला की मैं अब व्यस्क हो गया हूँ और तब से उसकी सेक्सुअल उत्तेजना काफी बढ़ गयी थी। वह अब हमेशा मेरे साथ चुदाई की फैतासी के बारे में सोचती रहती थी और अक्सर अपनी योनि को सहलाती थी और स्तनों को दबाती थी। और अब जब नए लंदन के मंदिर के उद्गाटन के लिए समय सारिणी और नियम तय करते हुए मुख्या पुजारिन पाईथिया ने उसे बताया की दीक्षा करता के लिए मेरा चुनाव हुआ है और साथ-साथ दिखा के नियमो में भी बदलाव किया है तो इन बातो ने उसे सेक्सुअली हिलाकर रख दिया।

अब से पहले जब भी कोई दीक्षा का कार्यक्रम होता तो जीवा दीक्षा कार्यक्रम से दूर रहना पसंद करती थी क्योंकि उसमे सेक्स के कृत्य भी शामिल होते थे परन्तु अब वह पाईथिया से बोली थी की वह भी इनमे हिस्सा लेना चाहती है । उसने अपनी इष्ट देवी प्रेम की देवी से पिछले चार साल से भी ज्यादा के आरसे में हर समय यही प्राथना की थी की हे देवी आप मेरा मेरे मसीह के साथ मिलन सुगम करे और अब जब ये होने वाला था तो वह चकित थी की देवी ने उसकी प्राथना स्वीकार कर ली थी और सब कुछ कितनी सुगमता से सफल होने वाला है ।

उसने आज एक बार फिर देवी को प्राथना की और धन्यवाद् दिया और ये सब सोचते हुए दोनों हाथो से अपने स्तनों को हलके-हलके मसलने लगी। जीवा के निप्पल कड़े होने लगे। जीवा ने आंखे बंद कर ली और अपने स्तनों को तेजी से मसलना शुरू कर दिया और उसका एक हाथ नाभि सहलाता हुआ, दोनों जांघो के बीच पेट के निचले हिस्से तक पहुच गया। पेट के निचले हिस्से से होते हुए फड़कती चिकनी चूत तक पहुच गया और उंगलिया चूत के दाने के पास तक पहुच गयी।

जीवा ने जो भी स्नान्नगार में देखा था और उसकी सब पुजारिणो ने बताया था कि मैं कैसी जबरदस्त चुदाई करता हूँ और मेरा लिंग कितना शानदार, बड़ा और विशाल हैं और वह इमेजिन करने लगी, की मैं कैसे स्नानागार में परिचारिकाओं अबिन, जूना, इगेई, सबी ।वीटा और पारा और फिर पाईथिया के स्तन चूस रहा थ और कैसे मेरे द्वारा उनके स्तनों की चुसाई दबाई हो रही थी। असल में ये देख जीवा की कामोतेजना भड़क गयी थी और वह चाहती थी की मैं उसके स्तनों कोचूसो और दबायुं और काटु। इन्हीं ख्यालो ने डूबी जीवा ने बिना सोचे अपनी चूत के दाने को रगड़ना शुरू कर दिया और उसके मुहँ से बेसाख्ता सिसकारियाँ निकने लगी।

उसकी टांगो के बीच की में लगातार उसका हाथ चल रहा था, उत्तेजना के मारे चूत भी गीली होने लगी, धड़कने और तेज हो गयी, जैसे-जैसे चूत का दाना जीवा रगडती, उसके चुतड उछाल लेने लगे, जीवा ने दूसरा हाथ नहीं चूत पर रख दिया, एक हाथ से वह चूत का दाना रगड़ रही थी दूसरे से चूत को तेजी से सहला रही थी, उसके मुहँ से सिसकारियो की आवाजे तेजी से निकलने लगी, वासना से भरी चूत से पानी रिसने लगा। उसका पेट और नाभि भी इस उत्तेजना के चरम में फद्फड़ाने लगे, पेट और चुतड सोफे से उछलने ने लगे, स्तन कड़े हो गए, निप्पल सूज गए। जीवा के हाथो ने चूत को और तेजी से रगड़ना शुरू कर दिया। अब जीवा की आंखे बंद थी, ओठ भींचे हुए थे, काम वासना और कामोतेजना का सेंसेशन अपने चरम पर था। वह कामुक हो कभी निचले ओठ से ऊपर वाले को काटती, कभी उपरी ओठ से निचले वाले को। सांसे धौकनी की तरह चल रही थी। चूत की दरार से निकलता गीलापन अब उंगलिया भिगो रहा था, कुछ बह कर जांघो की तरफ बढ़ चला था।

जीवा मुख्य पुजारिन पैठिया और फिर अस्त्रा की मेरे द्वारा चोदे जाने की कल्पना कर-कर के खुद की चूत दोनों हाथो से रगड़े जा रही थी। अगर कोई पुरुष इस हालत में उसे पकड़ लेता तो पक्का उसे वहीँ चोदे बिना नहीं छोड़ता क्योंकि वह बहुत सुंदर थी और साथ-साथ इस समय नग्न और कामुक थी। जवो अपने शरीर की वासना के आगे बेबस थी। उसकी चूत से लगातार पानी बह रहा था। सिसकारियो के बीच उसका मन हुआ की वह अपनी उंगलिया अपनी योनि ने डाल दे पर उसने खुद को रोका वह चाहती थी और जानती थी की उसकी छूट का मालिक उसके बिलकुल पास ही है और अब वह ये भी चाहती थी जहाँ उसने इतने साल इन्तजार किया है की उसकी योनि में जाने वाल पहला अंग मेरा लंड ही हो और अब वह समय आ ही गया है जब मेरा बड़ा और विशाल लंड अपनी सल्तनत पर अपना कब्ज़ा करेगा ।

कहानी जारी रहेगी

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