अंतरंग हमसफ़र भाग 201

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अनुष्ठान का अंत​
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Part 201 of the 342 part series

Updated 03/31/2024
Created 09/13/2020
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मेरे अंतरंग हमसफ़र

सातवा अध्याय

लंदन का प्यार का मंदिर

भाग 69

अनुष्ठान का अंत​

मैने नज़रें उठा कर उसकी तरफ देखा और बोला जानेमन तुम्हारा नाम क्या है?

वो बोली क्सान्द्रा-सैंडी!

मैं बोला सैंडी-क्सान्द्रा आज मैं तुमको इतना और ऐसा मज़ा दूँगा के तुमने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा।

उसने अपनी कमर मटका कर गांड को फड़फड़ाया। मेरा लंड अभी भी पूरी तरह से खड़ा था और उसकी चुत के अंदर था और लंड का सिर उसकी चूत में पूरा अंदर गया हुआ था।

तभी उसकी मोटी-मोटी जांघो पर दो हथेलियाँ महसूस हुई जो कि उसकी जांघों को फैला रही थी, मेरा हाथ उसकी कमर पर था और वह पीछे झुक रही थी इसलिए मुझे अपने ऊपर झुकती हुई महसूस हुई और वह कुछ समझ पाती इससे पहले ही उसे अपनी बुरके अंदर मेरे लंड के कड़ेपन का अहसास हुआ, जैसे ही उसने आँख खोली उसके मुंह से दर्द भरी कराहने की आवाज निकल गई.

आहह! (उसके कराहने की आवाज के साथ ही उसकी बुर में मेरा पूरा लंड जड़ तक घुस गया) ।

आहहहहह, प्लीज रुक जाइए प्लीज मुझे बहुत दर्द हो रहा है, प्लीज मुझे बहुत दर्द हो रहा है।

आहहहहहहह, अहहहहह, औहहहहह, मा्ंआ, उसके दर्द कि और पीड़ा की परवाह किए बिना ही वह उसकी बुर में बेरहमी से लंड पेलता रहा और बोलै पहली बार थोड़ा दर्द होता है इतना कहते हुए वह फिर से जोर-जोर से दो-चार धक्के और लगा दिए।

आहहहहहहह, आहहह, आहहहहहहह, ओहहहहह, डेल्फी।

प्लीज आराम से करो न मैंने कब मना किया है कितना दर्द होता है मालूम है आपको और फिर आपका इतना बड़ा और लम्बा है। बिलकुल ऐसा लग रहा था कि नाभि तक धक्के लग रहे हैं।

मैंने उसकी मटकती हुई कमर और थिरकती हुई गांड को देखा। मेरा लंड अब पूरी तरह से खड़ा हो गया था, उसका सिर उसकी चूत में बहुत ऊपर तक खिंच रहा था।

मैंने लंड जोर-जोर से अंदर-बाहर किया, मेरा बड़ा मजबूत हाथ उसके एक दृढ़ गोल स्तनों को सहलाने और दबाने लगा और उसके स्तनों की मालिश कर उन्हें तौलने लगा और फिर एक दृढ़ दुलार में निप्पल पर हथेली रख कर उनने दबा दिया तो वह कराहने लगी।

आहह, (उसके कराहने की आवाज के साथ ही मैंने अपना लंड पूरा जड़ तक घुस दिया था) ।

मैं बहुत रोमांचित था और अपनी किस्मत पर गर्वान्वित भी की इतनी सुन्दर, कड़क जवान लड़की जो कि कमसिन और प्यारी थी मेरी बाहों में थी और में उसकी कौमार्य भंग कर चूका था। मैने अपने अंगूठों और उंगलियों से दोनों मम्मों पर हल्का-सा दबाव बढ़ाया तो उसके दोनों निपल्स तेज़ी से उभर कर बाहर को आ गये और मैने बड़े प्यार से उनको सहलाना शुरू किया। क्सान्द्रा के मुँह से अयाया, ऊउउउउह की आवाज़ें आनी शुरू हो गयीं। मैने पूछा, क्यों सैंडी मज़ा आ रहा है ना। तो वह लंबी साँस लेकर बोली के बहुत ज़्यादा, इतना के बता नहीं सकती, बहुत ज़्यादा।

मैने अपनी दाईं टांग उठाकर उसकी दाईं जाँघ को प्यार से रगड़ना शुरू कर दिया। उसकी साँस अटकने लगी। बीच-बीच में वह एक लंबी साँस खींच लेती और फिर से उसकी साँस तेज़ हो जाती। मैने अपना हाथ उसके दोनों मम्मों के बीच में रखा तो महसूस किया के उसका दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा है जैसे अभी छाती फाड़ कर बाहर आ जाएगा। मैने उसे घूमाकर सीधा किया और अपने सीने से लगा लिया और उसे लिए हुए ही पलट गया। अब वह बेड पर मेरे नीचे लेटी थी और मैं पूरी तरह से उसके ऊपेर चढ़ा हुआ था। मैंने कुछ देर उसका बदन सहलाया और पीठ पर हाथ फेरे और नितम्बो के महसूस किया।

मैंने फिर उसे घुमाया और उसे अपने ऊपर ले लिया, जल्दी लेकिन धीरे से उसे सीट पर वापस लिटा दिया, उसकी रसीली बुर उसने एकदम जतन से संभाल कर रखी हुई थी तभी तो उसकी बुर की गुलाबी पंखुड़ियाँ मेरी चुदाई के बाद भी बाहर को नहीं निकली थी, बुर क्या मात्र एक हल्की-सी लकीर ही नजर आती थी और उसके इर्द-गिर्द बाल के रेशे का नाम भी नहीं था बस कुछ सुनहरे रोये थे। यह देखते हुए मेरा भी लंड तन गया। मैंने उसकी टांगो को देखा क्या सुंदर और चिकनी टाँगें थी उसकी!

जिससे बचने के लिए क्सान्द्रा के पास कोई रास्ता भी नहीं था। मैंने उसके करीब कदम रखा, मेरे लंड की मांसल उपस्थिति उसकी जांघों में से एक के अंदर से रगड़ रही थी, मेरी मर्दाना शक्ति एक निर्विवाद शक्ति थी जो उसके योनी होठों के बीच से एक बहती नदी को ले आई थी। मैंने क्सान्द्रा को दबोच लिया, मैने आगे बढ़ कर क्सान्द्रा को गले से लगाया और उसका मुँह ऊपेर करके उसे चूमने लगा उसके कुछ देर बाद मैं उसे। ताबड़ तोड़ चूमने लगा और झट से अपना तना हुआ लंड उसकी चूत में डाल दिया और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगा। क्सान्द्रा की चूत पहले से ही पूरी गीली हो रही थी तो 'फच फिच' की आवाज़ आने लगी और थोड़े ही समय में ही उसके मुंह से 'आह आह ओह ओह...' की आवाज़ें निकल रही थी और उसने मुझको कस कर भींच लिया और अपनी गोल बाहों में जकड़ लिया और फिर ज़ोर से उस के चूतड़ ऊपर को उठे और मेरे लंड को पूरा अंदर लेकर अपनी जांघों में बाँध लिया।

जैसे ही मैं झुका, समय रुक गया, मेरी सांसें तेज हो गईं, मेरी खूबसूरत मांसपेशियाँ चुंबन की प्रत्याशा में तनी और तनी हुई थीं। उसके होठों ने मेरे होंठों को छुआ, मेरी जीभ मेरे मुंह से उसकी चाल को देखने के लिए झुकी हुई थी, इसे देखने का मात्र एक ऐसा उपहार जैसा मुझे कभी मिला था, मेरा लंड लगातार आगे पीछे होता रहा और योनि के अंदर धड़कता रहा।

उसका हाथ नीचे की ओर झुक गया जैसे वह एक गिरती हुई वस्तु को छीन रही हो और उसका हाथ मेरे लंड के बीच से पकड़ लिया। उसकी उँगलियाँ वास्तव में मुश्किल से मेरे लंड के आस-पास मिल पाती थीं,। उसने मेरे लंड को धीरे से सहलाया, उसकी उंगली और हथेली की मांसपेशियों को लंड की लम्बाई पर इस तरह से लहराया जिससे मुझे अतिरिक्त आनंद मिला और ऐसा उसने पहले कभी महसूस नहीं किया था कि मोईन उसके ऊपर झुक गया और हमारे ओंठ एक तीव्र चुंबन में चिपक गए।

उसकी जीभ झाडू की तरह इतनी निश्चित और भावुक थी कि पहली बार वह पूरी तरह से मेरे मुँह में डूब गई कि लगा उसकी बातें सच थीं वह वास्तव में स्पेशल थी। यह विचार उतना ही विनम्र था जितना कि यह उत्तेजित करने वाला था।

उसने चुंबन जारी रखा और फिर मैंने क्सान्द्रा के गाल को चूम लिया। क्सान्द्रा ने फिर से मुझे अपनी भोली मुस्कान दिखाई। उसके ऐसा करते ही मैंने उसके जिस्म को अपनी बाँहों में भरा और उसके सुन्दर कोमल होंठों को चूम लिया। मैं उसको विशुद्ध प्रेम और अभिलाषा के साथ चूम रहा था। क्सान्द्रा मेरे लिए पूरी तरह से "परफेक्ट" थी। हाँलाकि वह अभी नव-तरुणी ही थी और अभी उसके शरीर के विकास की बहुत संभावनाएँ थी। क्सान्द्रा चुम्बन से पहले तो एकदम से पिघल गयी-उसका शरीर ढीला पड़ गया। उसकी इस निष्क्रियता ने असाधारण रूप से मेरे अन्दर की लालसा को जगा दिया।

मैंने उसके होंठो को चूमना जारी रखा-मेरे मन में उम्मीद थी की वह भी मेरे चुम्बन पर कोई प्रतिक्रिया दिखाएगी। मुझे बहुत इंतज़ार नहीं करना पड़ा। उसने बहुत नरमी से मेरे होंठो को चूमना शुरू कर दिया और मुझे अपनी बांहों में बाँध लिया। मैंने उसको अपनी बांहों में वैसे ही पकड़े रखा हुआ था, बस उसको अपनी तरफ और समेट लिया। हम दोनों के अन्दर से अपने इस चुम्बन के आनंद की कराहें निकलने लगीं। ।

वो मेरे साथ कामतिरेक में बहे जा रही थी और उसने मेरी जीभ को अपने मुंह का स्वाद लेने का मौका भी दिया क्योंकि मैंने उसकी योनि में स्ट्रोक करना जारी रखा उसके स्तन मेरी छाती भारी वजन के साथ थोड़ा गुरुत्वाकर्षण के कारण घस रहे थे ओर वह आराम से मेरे ऊपर थी। वह अचंभित थी और वास्तव में प्रभावित थी कि मैं इतनी देर से उसे बिना थके प्यार कर रहा था।

मैंने अपना लंड क्सान्द्रा की योनि से बाहर निकाला लेकिन पूरा नहीं निकाला... इसके बाद पुनः थोडा-सा और अन्दर डाला और हर बार पहले से थोड़ा नादर डाला और ऐसे तीन बार करने के बाद पूरा जड़ तक अंदर दाल दिया और फिर पुनः निकाल लिया। क्सान्द्रा कराह रही थी ओह्ह। हाय आह आहहह-आहहह आह हहहहह!

ऐसे ही मैंने कम से कम चार पांच बार किया। ओह्ह। हाय आह आहहह-आहहह आह हहहहह! क्सान्द्रा मेरी हर हरकत पर मजे लेते हुए कराह रही थी। ओह्ह। हाय आह आहहह-आहहह आह हहहहह!

क्सान्द्रा का मुंह पूरा खुला हुआ था और सांस लेने, करहै भरने और सिसकियाँ निकालने का इकलौता रास्ता। मेरे हर धक्के से उसके स्तन हिल जाते और नीचे का हिस्सा, जहाँ पेट और योनि मिलते हैं, मेरे पुष्ट मांसल लंड के प्रहारों से लाल होता जा रहा था।

मैंने चुदाई की गति तेज़ कर दी। क्सान्द्रा अपनी उत्तेजना के चरम पर थी, उसने मेरे कन्धों को जोर से जकड रखा था। हमारे सम्भोग की गति और तेज़ हो गई-क्सान्द्रा की रस से भीगी चुत में मेरेलंड के अन्दर बाहर जाने से 'पच-पच' की आवाज़ आने लग गई थी। उसी के साथ हमारी कामुकता भरी आहें भी निकल रही थीं। उसने आवाज न करने की कोशिश की लेकिन मेरे-मेरे लंड के धक्को की वजह से जो खुशी की सुनामी आयी उसे वह रोक नहीं सकी। उसकी तेज मीठी कराह सुनकर मेरा बाँध भी टूट गया। मेरे लिंग से एक विस्फोटक स्खलन हुआ और उसके बाद तीन चार और बार वीर्य निकला। हर स्खलन में मैंने अपना लंड क्सान्द्रा की योनि के और अन्दर पेल रहा था। मेरे चरमोत्कर्ष पाने के साथ ही क्सान्द्रा एक और चरम आनंद प्राप्त कर चुकी थी। मैं उसके होंठो को चूमने लगा और वह भी मेरा साथ देने लगी फिर मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और वह मेरी जीभ को चूसने लगी। मेरी जीभ जब उसकी जीभ से मिली तो उसका शरीर सिहरने लगा और वह झड़ने लगी। इस उन्माद में उसकी पीठ एक चाप में मुड़ गयी, जिससे उसके स्तन और ऊपर उठ गए। मैंने उसका एक स्तनाग्र सहर्ष अपने मुह में ले लिया।

मेरा गर्म सह उसके कौमार्य के रक्त और उसके सह के साथ मिश्रित हो कर उसके गुलाबी फूल से बहने लगा। मैंने उसे वह सब दे दिया था जो मेरे पास था। मैंने धीरे से खुशी से झूमते हुए उसके गर्म शरीर पर अपने आप को गिरा दिया। मैंने उसके होठों पर एक लंबा स्नेही चुंबन किया। उसने गहरी संतुष्टि के साथ मेरी आँखों में देखा और जवाब में मुस्कुराई और मुझे चूमने लगी।

पुजारीन पाईथिया ने क्सान्द्रा की युवा स्पंदित योनि की नोक पर सुनहरा कलश रख कर रस को बाहर निकाला और एकत्रित कर लिया और अनुष्ठान के अंत को चिह्नित किया।

कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार

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