महारानी देवरानी 015

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कैसी पत्नी चाहिए
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Part 15 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 15

कैसी पत्नी चाहिए

घाटराष्ट्र में सैनिक अभ्यास में जुट जाते हैं और तैयारी कर रहे थे राजा रतन सिंह के राज्य जाने की क्योंकि आज ही महाराजा को संदेश मिला था कि राजा रतन को अपने राज्य की सुरक्षा के लिए सैनिक बल की आवश्यकता होगी।

सैनिको को इकठ्ठा कर सेनापति उन्हें जरूरी बाते बता रहा था और दूसरी तरफ राजा राजपाल राज दरबार में अपने मंत्रियों और अपनी पत्नी सृष्टि के साथ बैठ अपने रणनीति पर बात कर रहे थे।

कुछ देर पूरी तयारी हो जाती है और राजा राजपाल के जाने का समय हो गया था तो वहा पर राजा राजपाल एक ऐलान करता है।

राजपाल: राज दरबार के मंत्री गण आज में दूर देश की यात्रा पर जा रहा हूँ। जहाँ भीषण युद्ध होने की संभावना है, इस लिए मेरी अनुपस्थिति में मेरा हर कार्य महारानी सृष्टि करेगी।

राजा के ये कहते ही तालियो की गूंज राज सभा में होती है। इस बीच दरबार में देवरानी और बलदेव भी आ जाते हैं और इस बात को सुन दोनों के दिल को ठेस पंहुचती है।

सेनापति राजपाल को कहते हैं "महाराज चलें" और राजपाल को शुभ कामना दे कर जाने लगते हैं। राजा राजपाल अपनी पहली पत्नी शुष्टि के पास जा कर उसको कार्य समझते हुए विदा ले कर आगे बढ़ता है पर उसे पास बैठी देवरानी नहीं दिखती, देवरानी खड़ी हो कर जैसे ही राजा राजपाल के पास आने लगती है तो।

सृष्टि: महाराज समय ज्यादा हो गया है अब आप जाए और सेनापति की आवाजाही का इशारा करती है वह राजपाल को लेकर जल्दी से सैनिक बल के पास ले जाता है।

नियम अनुसर बलदेव भी घोडे पर सवार हो कर अपने पिता और सेना को घाटराष्ट्र की सीमा तक छोड़ने जाता है और सीमा तक पाहुच कर अपने घोडे से नीचे से उतर कर अपने पिता के चरण छू कर आज्ञा लेता है।

राजपाल: बलदेव तुम्हें महारानी सृष्टि जो काम देगी वह तुम्हें करना है और तुम हमेशा राज्य सेवा के लिए खड़े रहना है।

राजपाल: जी महाराज।

राजपाल: जाओ अब।

ये कह कर राजपाल आगे की ओर बढ़ता जाता है पर वही खड़ा बलदेव सोचता है।

"जाते जाते पिता जी ने मुझे पुत्र का स्नेह नहीं दिया न गले से लगाया उनकी नजर में सिर्फ परिवार का एक सदस्य हूँ। मेरे से बात भी कि पर माँ को तो जैसे नजरअंदाज कर बिना कुछ बोले विदा हो गए और सब कुछ बड़ी माँ सृष्टि को सौंप दिया, जैसे मेरा और मेरी माँ का कोई हक नहीं है।"

और बलदेव एक जोर से चीख निकल कर चिल्लाता है और कहता है "इन सब अपमानो का बदला लिया जाएगा!" और फिर अपने घोडे को घाटराष्ट्र की ओर मोड़ देता है।

महल पहुच कर सीधा अपने माँ देवरानी के कक्ष में जाता है जहाँ देवरानी बैठ कर कुछ सोच रही थी।

"क्या में इतनी बुरी हूँ जो महाराज मुझसे बोले बिना ही चले गए और हर बार मुझे राज दरबार में सबके सामने बेइज्जत कर देते हैं?" देवरानी की आंखों के आंसू अब सूख चुके थे। देवरानी जैसे ही ध्यान से आईने में देखती है तो पाती है उसे बलदेव निहार रहा था।

बलदेव: क्या हुआ मां?

देवरानी मुस्कुराते हुए "कुछ नहीं पुत्र।"

बलदेव समझ जाता है कि वह क्यों अंदर से उदास है।

बलदेव देवरानी के पास आ कर उसके कंधो पर हाथ रख कर "मां तुम कितनी सुंदर हो कितनी अच्छी हो!"

देवरानी: चुप कर कुछ भी कहता है और लज्जा जाती है।

बलदेव: सच माँ मेरा बस चले तो मैं तुम्हें घाटराष्ट्र क्या पूरी दुनिया की महारानी बना दूं।

देवरानी: महारानी में समझबूझ होनी चाहिए।

बलदेव: तुम हर एक कार्य अपनी सूझ से कर सकती हो। यहाँ तक तुम पिता जी से भी ज्यादा सूझबूझ रखती हो।

ये सूर्य कर देवरानी मुस्कुरा देती है।

तभी एक सोने का हार निकल कर बलदेव आपने माँ जो कुर्सी पर बैठी थी उसके गले में बाँध देता है, अचानक से ऐसे हार पहचानने से वह समझ नहीं पाती वह क्या प्रतिक्रिया दे और वह सोने की हार की बनावट और कला में खो-सी जाती है।

बलदेव: अब तुम सच में पूरी दुनिया की सबसे प्यारी महारानी लग रही हो।

इतने सालो बाद अपने जिस्म पर ये हार की छुअन भर से देवरानी की रूह सीहर-सी जाती है। देवरानी होश में आते हुए।

देवरानी: ये कह से लाए तुम।

बलदेव: कहा से लाया ये मत पूछो तुम्हें पसंद आया या नहीं ये बताओ।

देवरानी: धन्यवाद बेटा तुम बिना कहे मेरे दिल की बात समझ गए।

बलदेव: हम्म! (प्यार से देखता है) ।

देवरानी: में कैसी लग रही हूँ इस हार में।

बलदेव: एक दम देवी जैसी. साक्षात् देवी जी आ गयी हो ऐसा लगता है।

ये सुन कर देवरानी खुश होते हुए।...

देवरानी: ठीक है कमला और राधा का भोजन बनाने में हाथ बटाने मैं रसोई में जा रही हूँ और बलदेव पीछे खड़े रह कर खुशी से इठलाती उसकी बड़े 44 की गांड को हिलते हुए देख रहा था।

देवरानी अपनी प्रशंसा से खुश होते हुए रसोई घर की ओर चलने लगती है।

देवरानी कोई बच्ची नहीं थी अपने बेटे को चुप चाप अपने पीछे खड़े देख निहारते देख वह समझ जाती है वह क्या देख रहा है और अंदर ही अंदर शर्मा से गड जाती है और उसके मन में कुछ भाव आता है और वह पलटती है।

देवरानी: मस्कुरते हुए बेटा वहा खड़े-खड़े क्या कर रहे हो?

बलदेव: हड़बड़ा जाता है "कुछ नहीं माँ।"

देवरानी: तुम्हें कुछ काम है?

बलदेव: नहीं।

देवरानी: तो तुम चाहो तो मेरे साथ रसोई में आ सकते हो ।

बलदेव: आप चलिए माँ मैं आता हूँ।

फिर देवरानी सोचते हुए "लगता है मुझे इसके लिए कन्या तलाशनी पड़ेगी। ये तो मेरे चूतड़ ऐसे घूरता है जैसे खा ही जाएगा।" और उसके चेहरे पर एक मुस्कान फेल जाती है "राम राम मैं ये क्या सोच रही हूं" बेटा है वह मेरा। इसने अभी-अभी जवानी की दहलीज पर कदम रखा है फिसल जाता है आदमी जवानी में। "

तभी उसके कान की आहट आती है पर वह अपने काम में लगी होती है, ये आहट किसी और की नहीं बलदेव की थी जो रसोई घर में आ जाता और जैसे वह रसोई घर में आता है, वैसे ही उसकी नजर बड़े चूतड़ों वाली रानी देवरानी पर पड़ती है।

बलदेव: (मन में-उह! क्या तगड़ी गांड है।) और फिर मुस्कराते हुए अपने माँ के पीछे लग जाता है और उसके आंखों पर अपने हाथ लगा कर बंद कर देता है।

देवरानी को मरदाना हाथ लगते हैं वह समझते देर नहीं लगती के ये बलदेव है।

देवरानी: खिल खिला के "बलदेव! ये तुम हो।"

बलदेव: माँ आप कैसे इतनी जल्दी समझ गई और अपना हाथ निचे कर लेता है, पर बलदेव एक दम देवरानी के पीछे होने की वजह से उसके हाथ देवरानी के दोनों चुतडो को छू लेता है और देवरानी फिर से अपने दोनों आँख मीच लेती है।

बलदेव अब साइड में खड़े हो कर माँ से बाते करने लगता है।

देवरानी: कैसे ना समझु भला तू मेरे जिगर का टुकड़ा है। कितनी ही रातो में तेरे बीमार होने पर जग कर बितायी है और कभी तू रोने लगता तो में नींद से भी उठ जाती थी।

बलदेव: पर अब तो तुम्हें मेरा ध्यान ही नहीं रखती।

देवरानी: क्यों बोला मेरे बेटे ने ऐसा?

बलदेव: दिखता है।

देवरानी: बहुत जल्द मेरे बलदेव की पत्नी आ जाएगी जो मेरे बेटों का ध्यान रखेगी।

बलदेवः नहीं मुझे शादी नहीं करनी मां।

देवरानी: क्यों बेटा अब तो तुम बड़े भी हो गए हो।

बलदेव: पर माँ मुझे नहीं करनी।

देवरानी: नखरे ना करो बताओ तुम्हे कैसी पत्नी चाहिए में ढूँढूंगी।

बलदेव: मुझे नहीं चाहिए।

देवरानी: फिर भी।

बलदेव: आप जैसी।

देवरानी की आखे फटी की फटी रह जाती है।

देवरानी: बात संभलते हुए ठीक है में मेरी जैसी ही ढूँढूंगी और वैसे तुम्हे मेरी जैसी ही क्यों चाहिए?

बलदेव: क्योंकि माँ आपके अंदर हर एक वह गुण न है जो एक स्त्री में होने चाहिए।

देवरानी: जैसे की?

बलदेव: तुम्हारे अंदर संयम है, तुम मेहनती हो, सच्ची हो, दिल की अच्छी हो और तुम से सुंदर कोई और नहीं है।

देवरानी: थोड़ा शर्मा जाती है, बस बेटा। में तेरे लिए ऐसी ही लड़की ढूँढूंगी।

बलदेव: पर मझे शादी नहीं करनी, मैं तो चाहता हूँ आपको देवी की तरह पूजू और आपकी बाकी जिंदगी से हर एक दर्द से दूर रखू।

देवरानी: तू मेरी रक्षा विवाह के बाद भी कर सकता है।

बलदेव: नहीं माँ आज देखा ही न तुम्हें कैसे पिता जी अपनी माता से बिना मिले जल्दबाजी में निकल गए।

देवरानी को याद आता है वह हमसे भी नहीं मिले।

बलदेव: बस यही होता है माँ को लोग भूल जाते हैं।

तभी वहा पर कमला आ जाती है।

कमला: महारानी मैं ले आई सब्जी।

कमला रसोइगर में दोनों को देख समझ जाति है कि यहाँ पर क्या चालू है और वह बलदेव को देख के आँख मरती है जिस पर बलदेव समझ कर मुस्कुरा देता है।

बलदेव: तो ठीक है माँ आप भोजन त्यार करो मैं आता हूँ।

कह कर बलदेव अपने कक्ष की और निकल जाता है।

रात के भोजन के बाद कमला देवरानी का पत्र ले कर बलदेव के कक्ष में जाती है।

कमला: ये लो आपकी देवरानी का उत्तर शेर सिंह।

बलदेव: हंसते हुए हाथ आगे बढ़ा कर पत्र देता है और अपने पास रख लेता है।

बलदेव: में बाद में पढ़ लूंगा।

कमला: क्या बात है तुम तो मेरे सामने पत्र पढ़ने में भी शर्मा रहे हो।

बलदेव: नहीं ऐसा नहीं है।

कमला: शर्माओगे तो देवरानी जैसी शेरनी की सवारी नहीं कर पाओगे।

बलदेव: चुप चाप देखता है कमला को।

कमला: सही कहती हूँ तुम्हें करिश्मा दिखाना होगा नहीं तो मालुम पड़ा तुम ही कुछ दिन बाद अपनी माँ के लिए वर ढूँढ रहे हो। और हसती है।

बलदेव: ऐसी बात मत करो।

कमला: अच्छा एक बात कहो तुम्हें सच में प्यार है ना देवरानी से।

बलदेव: कमला पहले मैं उनके दर्द दुख से जुड़ा और उनके करीब गया। फिर उनकी सुंदरता का कायल हो कर मेरा दिल उन पर फिदा हो गया, फिर उनके शरीरिक सुख की कमी देख उत्तेजना हुई पर मुझे अब ये सब मुझे बकवास लगता है।

कमला: फिर?

बलदेव: अब मझे उनके सोच, उनके संयम, उनके सत्य और उनके भक्ति, उनके हृदय से प्रेम हो गया है और मुझे लगता है कैसे में उनसे बस दिन रात बाते करता रहूँ।

कमला: तो ऐसा है पर बात करो । साथ में तुम्हें उनके दर्द को दूर करना होगा, उनके शरीर से भी प्रेम करना होगा और उसे तुम्हें बताना होगा कि उसका शरीर कोई सामान्य नहीं और आखिरी उसके शरीर का इच्छा जो इतनी वर्षो से अधूरी ई है उसकी कमी भी दूर करनी होगी।

बलदेव इतना सब अपने और माँ के बारे में सुन शर्मा जाता है।

कमला: ठीक है आराम से पत्र पढ़ लो और जैसे तुम्हें महारानी को मनाना है मनाओ. कल मिलते हैं।

और वह चली जाती है।

कहानी जारी रहेगी

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