महारानी देवरानी 022

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मेले में रानी का नृत्य
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Part 22 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 22

मेले में रानी का नृत्य

कुछ देश विदेश के व्यंजनों और पकवानो का आनंद लेने के बाद, नृत्य देखने एक मंडप के पास पहुच कर वे दोनों जा कर चारो ओर से सजे मंडप के बीचो बीच जा कर पहले लाइन की कुर्सी पर बैठ जाते हैं। नृत्य शुरू होने में अभी समय था और अभी नृत्य मंडप में लोगों का आना शुरू ही हुआ था इसलिए बलदेव और देवरानी को आगे वाली जगह मिल गई थी।

सामने एक ऊंची जगह पर मंच-सा बना हुआ था और एक तरफ कुछ संगीतकार ढोल और ताशे के साथ बैठे थे और बीच में कालीन बिछा हुआ था।

नृत्य देखने आए लोगों में सबसे ज्यादा मर्द थे और औरते बहुत कम थी जिस वजह से देवरानी असहज मेहसूस कर रही थी। धीरे-धीरे दर्शक लोगों का ताँता लग जाता है और आखिरी के लोगों को खड़ा भी रहना पड़ता है।

वही एक कोने में बूढ़ा आदमी भांग और ताड़ी मिट्टी के बरतन में बना रहा था और लोग उसके बुलाने का इंतजार कर रहे थे, फिर वहा आए लोग मदिरा का मजा लेने लगे ।

एक आदमी: अरे शुरू करो।

दूसरा आदमी: हाँ-हाँ शुरू करो।

संचालक के कान में ये आवाज़ पड़ते ही वह बेबस हो कर समय से पहले नृत्य कला का प्रदर्शन शुरू करवाता है।

परदा खुल्ता है और संगीतकार अपना ढोल ताशे बजाते हैं और सामने एक युवक आ कर लोगों से कहता हैं "धीरज रखिए! हम शुरू करते हैं आज का कार्यकर्म ।"

"तो अब आपके सामने आएगी, उर्वशी!"

और फिर एक नर्तकी पारंपरिक पोशाक में नृत्य करने आती है और सब उसके नृत्य भारत नाट्यम को देखने लगते हैं, कुछ देर बाद सब मदीरा पीते हुए उसका निर्त्य देख आनंद लेने लगते हैं।

बलदेव और देवरानी को भी खूब अच्छा लग रहा था, अब एक-एक कर के सब आते हैं और अपनी नृत्य कला संगीत पर दिखा कर चले जाते हैं और गीतकार के गीत पर थिरकते है।

तभी एक युवक मंच पर आ कर बीच में खड़ा हो कर घोषणा करता है ।

"देवियो और सज्जनो हमने आपके लिए एक मजेदार स्पर्धा रखी है जिसमे आप में से कोई भी उपहार पा सकता हैं। तो क्या हम वह खेल शुरू करें।"

सब लोग एक साथ "हाँ शुरू करो।" कहते हैं बलदेव भी देवरानी की ओर देख हाँ शुरू करो बोलता है ।

"तो सज्जनो ।आप में से जो भी इस खेल में भाग लेना चाहता है उनसे आग्रह है की वह अपनी देवियो को मंच पर भेजे ।" इस पर कुछ महिलाएँ अपनी मर्जी से और कुछ अपने पति के कहने पर मंच पर चढ़ जाती है।

तभी बलदेव को कुछ सूझता है और वह देवरानी का हाथ अपने हाथ से उठा देता है। जिसे मंच पर खड़े लोग देखते हैं।

संचालक: हाँ आप भी आ जाए।

देवरानी परेशानी से बलदेव की तरफ देखती है। की वह अब क्या करे और बलदेव बदले में बस एक मुस्कान दे कर कहता है।

बलदेव: आप घबराए नहीं जाइये!

संचालक: जल्दी आ जाओ हमारे पास समय नहीं है।

फिर देवरानी हड़बड़ाते हुए मंच पर चढ़ जाती है।

वह मंच पर खड़ी हर महिला से एक प्रश्न पूछता है । कुछ इतिहास का कुछ धर्म से जुडी बातो पर जिसमे देवरानी हर बार सही जवाब दे कर प्रतिस्पर्धा में बनी रहती है।

गलत उत्तर देने के कारण से महिलाये एक कर के खेल से बाहर हो रही थी।

अब अंत में सिर्फ दो महिलाए बचती है जिसमें से एक को विजेता होना था।

देवरानी जो एक रानी थी उसे हराना इतना आसन नहीं था। वह जज्बे से भी मजबूत महिला थी और शिक्षित भी थी और दूसरी तरफ एक साधारण-सी महिला थी । फिर भी देवरानी के मन में जीत की एक लहर दौड़ती है और वह ठानती है कि उसे अपनी विपक्षी को कभी कम नहीं आंकना चाहिए।

संचालक: देवियो और सज्जनो हमारे इस खेल में विजेता का चुनाव अब नृत्य से होगा इन दोनों में से जो अच्छा नृत्य करेगी और जिसे ज्यादा लोग पसंद करेंगे वही विजेता होगी ।

बलदेव ये सुन कर देवरानी को देखता है और मुस्कान देता है देवरानी तुनक कर गुस्सा दिखाती है बलदेव को।

अब कुछ लोग गीत संगीत शुरू करते हैं जिसपर दूसरी महिला सबसे पहले जा कर 10 मिनट तक नाचती है और उसका नृत्य खत्म होते हैं वहा मौजूद सब दर्शक तालीया बजाते है।

अब आती है देवरानी की बारी। देवरानी एक झिझक के साथ मंच के बीच जा कर खड़ी हुई और उसके कान में संगीत बजता है । वह बलदेव की ओर देखती है। बलदेव उसे आंखो से इशारा करता है शुरू करो।

देवरानी अब जोश में आ कर जीतने की उम्मी द से और बलदेव की हामी से एक अंदाज़ में खड़ी होती है और धीरे से अपनी ओढ़नी को उतार फेंकती है।

इसे देख बलदेव का मुह खुला रह जाता है और सब लोग तालियों और सीटियो से स्वागत करते हैं, उसके तने हुए आम देख वहा के दर्शक एकटक उसे धूर रहे थे । दर्शको के सामने देवरानी पलट कर अपने दोनों नितम्बो को बारी बाड़ी से हिलाती है और सब देखते रह जाते हैं ।

एक आदमी हह हाय! क्या गांड है!

दूसरा आदमी अरे इसके गेंद तो एक हाथ में आएंगे ही नहीं चूची मसलने लायक है।

लोगो की तरह-तरह की बातचीत बात सुन कर बलदेव को एक पल के लिए गुस्सा आता है पर फिर वह माहौल खराब नहीं करने का निर्णय ले नृत्य का आनंद लेने का निर्णय लेता है।

फिर देवरानी अपना कमर पर हाथ रख कर झटका देती है और पूरा हुजूम चिल्लाने लगता है और मंडप तालिया से गुंज उठता है।

गीत: तोरा कमर बलखती कमर, ए जाने मारे हो ललचाती लचक।

इस लाइन पर देवरानी अपने कमर मटका के अपने चुतड हिला देती है पीछे की ओर, जिसपे सीटिया बजती है।

एक आदमी: अरे ये तो बवाल है!

दूसरा: पीछे से ठोकने वाला माल है।

कमर पकड़ और दोनों नितम्बो को बारी-बारी से थिरकती देवरानी को देख बलदेव का भी बुरा हाल था। उसका लिंग में अकड़न आनी शुरू हो गई थी।

तभी गीत बजता है।

गीत: तोरा इ दो रस गगरी तरसावे मुझे बेसबरी।

और देवरानी तुरंत झुक कर अपने आम को हिलाती है।

गीत: तोरा ई गगरी जान मारे बेदर्दी।

ये लाइन पर देवरानी दूसरी तरफ घूम कर फिर से अपने दूध को निचे कर हिलाती है।

इस बार वासना से भरे भारी शरीर और चेहरे पर वासना का अंदाज देख वहा पर कोई ऐसा नहीं था जिसके लंड ने पानी नहीं छोड़ा हो।

तभी गीत समाप्त होता है और देवरानी अपना ओढ़नी उठा कर के एक कातिल अंदाज में निचे बैठे बलदेव की आखो में देखती है और बलदेव का लंड तन जाता है और वह अपने बदन को अपनी बड़ी चादर में ढक कर, छुपा लेता है। देवरानी भी अपना चुन्नी ओढ़ कर अपने वक्ष सब से छुपा लेती है।

संचालक: बिना किसी मुर्खता के आज की हमारी विजेता है ये!

संरक्षकः अरे भाई इनका नाम?

पूरी भीड़ "अरे इस गोरी का नाम क्या है?"

देवरानी सकपका जाती है क्या कहे? तभी बलदेव खड़ा होता है।

बलदेव: इनका नाम रानी है।

तब जा कर देवरानी के सांस में सांस आती है।

संचलक: अरे आप भी यहा आईये और बलदेव को भी मंच पर बुलाते हैं।

संचालक: तो हम आज पुरस्कार देते हैं रानी को।

संचालक बलदेव को खुश देखते हुए "वैसे महाशय आप इनके कौन हैं?"

बलदेव को कुछ सूझ नहीं रहा था क्या कहे।

संचालक: बोलिए भी महाराज।

बलदेव: (कुछ सोच कर) ये मेरी पत्नी है रानी और मेरा नाम बल्ली है।

देवरानी ने ये सुन कर अपना नीचला होठ दांत से कट लीया।

संचालक: अच्छी जोड़ी है। बल्ली नवविवाहित हो। हेहे।

बलदेव: हम्म!

फिर वह लोग देवरानी को पुरस्कार देते हैं और वह लोग मंच से उतर कर दूर जाते हैं देवरानी फिर से वह चादर ओढ़ लेती । है अब मेला धीरे-धीरे बंद हो रहा था। सुबह के 3 बजे थे।

बाहर जाने के कतार में भीड़ ज्यादा होने की वजह से। बलदेव देवरानी को अपने आगे चलने को कहता है और दोनों धीरे-धीरे भीड़ से बाहर निकलते हैं और बलदेव ने अपने दोनों हाथों से गोल आकार बना लिया था जिस से की देवरानी को कोई छू नहीं सके. परन्तु जब भी भीड में धक्का लगता बलदेव का खड़ा लंड देवरानी की गनंद की दरार में चिपक जाता था ।

किसी भी तरह दोनों मेले के आवागमन से बाहर निकल नदी की ओर चलने लगते हैं।

चांद की रोशनी में बलदेव देखता है के देवरानी का मुह फुला हुआ था । वह किसी बच्चे की तरह गुस्से से लाल थी।

बलदेव: माँ!

देवरानी कोई जवाब नहीं देती है ।

बलदेव: माँ!

देवरानी: मत कहो मुझे मां!

बलदेव: बताऔ तो क्या हुआ?

देवरानी: क्या हुआ? जैसे तुम नहीं जानते!

बलदेवः मुझे नहीं समझ नहीं आ रहा!

देवरानी: वह मांझी तो अज्ञात था जानता नहीं था इसलिए हम दोनों को अलग समझा तो उसे वह कहा जो मन में आया। पर तुमने तो हद ही कर दी।

बलदेव: तो ये बात है जी तो सुनो! मैं और क्या कहता? मैं तुम्हें इस राज्य की रानी देवरानी तो नहीं कह सकता था, या नाही तुमको अपनी बहन कह सकता था, वह कहते अपनी बहन के साथ नाच देखने आया है, ना तुम्हे अपनी प्रेमिका कह सकता था कि मुझ पर नज़र रखते और नाही मैं ये कह सकता था कि तुम्हें मैं जनता नहीं हम आज ही यही पर मिले हैं फिर सब गलत समझते ।

बलदेव ये कह कर थोड़ा गुस्सा हो जाता है और। आगे की राह देख कर चलने लगता है। देवरानी को बलदेव का बुरा होना अच्छा नहीं लगता है और वह सोचती है।

देवरानी: (मन में) जाने दो वैसे भी हमें कोई नहीं जान या पहचान नहीं पाया की हम राज परिवार से है। नहीं तो मेरे नृत्य से क्या से क्या हो जाता था और इस सबका श्रेय तो बलदेव को ही जाता है।

देवरानीः सुनो बलदेव!

बलदेव कुछ नहीं बोलता ।

देवरानी: अरे लल्ला सुनो!

बलदेव: कहो!

देवरानी: तुमने हमारी जान बचाने के लिए हमारी पहचान को छुपाया उसके लिए धन्यवाद और तुम्हें कैसे पता चला में नृत्य कर लेती हूँ? और शरमा जाती है।

बलदेव: माँ मैंने बचपन में तुम्हें अकेले नृत्य करते देखा था तभी से मेरे मन में ये था कि आप अपनी कला के शौक को छूपाती फिरती हो।

देवरानी: चुप चाप सुन रही थी।

बलदेव: मैंने सोचा का आज मौका है तो क्यू ना आपको अपना कला प्रस्तुत करने का मौका मिले।

देवरानी अपने आंखो में आसू ले कर बलदेव से लिपट जाती है।

देवरानी मेरा प्यारा बेटा, मेरे लिए कितना सोचता है तू।

बलदेव: माँ आप रोये नहीं। अब आपके रोने के दिन खत्म, पता है तुमने इतना अच्छा किया कि सब तारीफ करते थक नहीं रहे थे और सच कहू मैंने भी इतना अच्छा नृत्य कभी नहीं देखा।

देवरानी: धन्यवाद बेटा।

और देवरानी एक चुम्मा अपने बेटे के माथे पर ले लेती है जिस से बलदेव चौँक जाता है।

बलदेव: ये भी कोई चूमने की जगह है?

उसका मतलब समझ देवरानी तुनक कर बलदेव से दूर होती है।

देवरानी: चल हट बदमाश...।

बलदेव: आपको आनंद आया! माँ?

देवरानी: हाँ बेटा! बहुत आनंद आया और ये सब तुम्हारे कारण हुआ । धन्यवाद!

बलदेब: अब आप ऐसे ही खुश रहा करो! बड़ी अच्छी लगती हो जब आप खुश होती हो!

ऐसे ही बाते करते, हसते, मुस्कुराते खिलखिलाते हुए बलदेव और देवरानी नदी पार कर पीछे से महल में घुस कर अपने-अपने कक्ष में घुसते हैं और वह दोनों थके हारे गहरी नींद में खो जाते हैं।

जारी रहेगी

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1 Comments
AnonymousAnonymous10 months ago

are chodu story ko itna slow bhi mat nanaiye ki intrest chala jaye aap bahut accha likhte hai par story bhaut slow ja rahi hai dhyan do varna main padna hi chod dunga

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