महारानी देवरानी 031

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सीमा की सुरक्षा
975 words
2.67
20
00

Part 31 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 31

सीमा की सुरक्षा

पारस में

शमशेरा: आप अपना ख्याल रखे अम्मी!

हुरियाः रखती तो हुं!

शमशेरा: क्या ख़ाक रखती हो! दिन रात इबादत गाह में रहती हो और ये झुब्बा पहनी रहती हो!

हुरिया: हाँ! किसी गैर मर्द की नजर से बचने के लिए ही पहनती हूँ!

शमशेरा: मैं क्या गैर मर्द हूँ? (अपने माँ के आखो में देखते हुए.)

हुरिया: पर तुम भी तो अब जवान हो गए हो।

शमशेरा: आपको ऐसा लगता है, पर मुझे मेरे बचपन वाली अम्मी चाहिए।

हुरिया अपने बच्चे की ऐसी जिद पर हुरिया पिघल जाती है और झट से अपना हिजाब निकल कर दूसरी तरफ रख देती है।

हुरिया अंदर से चुस्त समीज़ और सलवार पहने हुई थी जिसमे उसके दूध केसे हुए थे और उसकी मोटी गांड तो सलवार का दम तोड़ रही थी।

हुरिया: मुस्कुरा कर "अब ठीक है?"

शमशेरा लगतार अपनी माँ को देख रहा था।

शमशेरा: अम्मी आप ऐसे ही रहा करें, बेहद खूबसूरत हो आप!

हुरिया: हाँ ऐसे रहूंगी पर घर में। बाहर नहीं, अब कहा? पहले में ज्यादा खूबसूरत थी।

शमशेरा: आप अब भी बेहद खूबसूरत हो।

हुरिया हसकर "चलो अब मैं पारसी फ़र्श कालीन लगवाती हूँ।" फिर हुरिया जाने लगती है।

शमशेरा बस हुरिया की गांड को निहारते रह जाता है।

घाटराष्ट्र में

शनिवार के दिन अपने सैनिको के साथ बलदेव ने पूरे राज्य की सीमा की छान बीन शुरू कर देता है।

युवराज बलदेवः सैनिको हमारे राष्ट्र को बचाने के लिए हम आज सीमा पर एकत्रित हुए है और हमें दिन रात जाग कर सीमा की सुरक्षा करनी है।

सैनिक: जी महाराज

दूसरा सैनिक: महाराज पर यहाँ हमें दिन रात रहना है। तो हमारे खाने रहने का क्या होगा?

युवराज बलदेव: मुर्ख! उसकी चिंता ना करो मैं भी तुम लोगों के साथ हूँ और खाने पीने और विश्राम के लिए हम पास की गुफा का इस्तेमाल करेंगे।

दूसरा सैनिक: युवराज वह सब तो ठीक है। पर हम इस कारण तो अपनी पत्नी और बच्चे से तो मिल ही नहीं पाएंगे।

युवराज बलदेव: उसके बारे में हम सोचेंगे वैसे इन सब से राष्ट्र ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।

सैनिक: महाराज बुरा न माने पर आप की तो पत्नी नहीं है। इसलिए आप हमारा ये दुख नहीं समझ सकते।

युवराज बलदेव: (मन में) तुम सब को मालूम नहीं है मेरी माँ देवरानी से में भी अत्यधिक प्रेम करता हूँ । वह मेरे लिए पत्नी से बढ़ कर है और मेरे लिए भी अब उनसे मिले बिना और उन से दूर रहना बहुत कठिन है ।

युवराज बलदेव: मैं कुछ सोचूंगा इस बारे में और जा तब हम इस पर कोई निर्णय नहीं लेते तब तक जिसे जो भी काम दिया-दिया गया है। आप सब वह करें और मैं बीच-बीच में आता रहूंगा। किसी को कुछ और कहना है?

कोई कुछ नहीं बोला तो युवराज बलदेव वहा से चला गया ।

रात के 9 बज गए थे देवरानी हर दो घड़ी में महल के दरवाजे पर देखती इस आस में की बलदेव आ गया होगा ।

आखिर कार थक कर वह अपने कक्ष में चली जाती है और बलदेव के बारे में सोचती रहती है।

उसकी सोच तब टूटती है जब उसे घोडे का आवाज आती है और उसकी आवाज़ से समझ जाती है कि बलदेव लौट आया है।

देवरानी अपने कक्ष से महल के बाहर जाने लगती है और देखती है की हल्की बारिश शुरू हो गई है। देवरानी न चाहते हुए भी बारिश में भीग गई और बलदेव के घोड़े की तरफ चली गई।

बलदेव घोड़े को बाँध कर जैसे हे पलटता है। वह देखता है देवरानी बारिश में भीग रही है। वह उसे देखता रह जाता है।

देवरानी के सुंदर वक्ष के साथ पानी में भीगी हुई साडी उसके बदन पर चिपक गयी थे और गीली साडी में उसके बड़े-बड़े वक्ष साफ दिख रहे थे और देवरानी रात के अँधेरे में भी यहाँ कडक रही बिजली की रोशनी में चमक रही थी।

बलदेव: माँ आप इतनी वर्षा में बाहर क्यों आगयी?

देवरानी: मैं तो अपने बलदेव से मिलने आई हूँ और तुम तो...!

देवरानी का मज़ा किरकिरा होते देख!

बलदेव: बस तो फिर आ जाओ, मिल लो! और देवरानो को अपनी ओर खीच लेता है।

देवरानी बलदेव के चौड़े ठोस सीने को देख रही थी (मन में) "कितना बलिष्ट और कठोर है।"

तबी बलदेव देवरानी को हल्का गोदी में उठा अपने आगे ले लेता है और पीछे से देवरानी जैसी भरपुर माल को कसकर जकड लेता है।

देवरानी: हे भगवान!, आह! " बलदेव यहा नहीं!

बदेव अपने लंड का दबाव और बढ़ा के!

बलदेव: क्यू? यहाँ क्यों नहीं?, क्या आपको अच्छा नहीं लग रहा?

अब बलदेव अपना 9 इंच का खड़ा लंड देवरानी की 44 की गांड पर गोल-गोल घुमाता है।

बलदेव: "आह!" अच्छा लग रहा है।

बलदेव: तो फिर!

देवरानी: डर लग रहा है।

बलदेव: देवरानी की गर्दन पर अपना मुह रख के!

बलदेव: मेरे से डर रही हो?

देवरानी: "आह!" हम इस समय महल के बाहर है। कोई देख लेगा तो क्या समझेगा!

बलदेव: यही की हम बेटा प्यार कर रहे हैं।

देवरानी: तुम्हें जरा भी डर नहीं?

बलदेव: तुम्हारे लिए मैं दुनिया से लड़ सकता हूँ । घाटराष्ट्र के लोगों को जवाब मैं दूंगा।

अब तो देवरानी भी डर नहीं रही थी।

बलदेव अब देवरानी को दबोच कर उसके गाल पर एक जोरदार चुम्मा ले लेता है।

देवरानी ख़ुशी से आखें बंद कर लेती है।

फिर देवरानी को बलदेव अपनी बाहो में बाहे डाल कर अंदर चला आता है और देवरानी के कक्ष में ले जा कर कहता है!

बलदेव: आप जा कर कपडे बदल लो मां, नहीं तो तबीयत खराब हो जाएगी।

देवरानी: ठीक है...!

बलदेव एक बार देवरानी के साथ कस के गले लग कर जाने लगता है।

देवरानी: रुको!

बलदेव: बोलो मां, अब क्या में ही आपके कपड़े बदलूं!

देवरानी अपने मुह पर हाथ रख के!

"बदमाश" "कोई ज़रूरत नहीं है। भागो!"

बलदेव जल्दबाजी में अपने कक्ष में सोने चला जाता है और देवरानी भी सोने चली जाती है।

कहानी जारी रहेगी

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