महारानी देवरानी 044

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बलदेव - महारानी इश्क़ में आगे बढ़ने लगे
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Part 44 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 44

बलदेव महारानी इश्क़ में आगे बढ़ने लगे

बलदेव दरवाजा लगा कर फिर आता है। तो देखता है। देवरानी अब भी खड़ी मुस्कुरा रही थी। पर उसने इस बीच साडी पुनः जल्दी से पहन ली थी।

देवरानी: ऐसे गुस्सा हो रहे हो जैसे किसी ने तुम से साम्राज्य छीन लिया हो!

बलदेव: तुम से बढ़ कर कोई खजाना कोई राज्य या साम्राज्य नहीं...यह कमला है कि...!

देवरानी: शांत हो जाओ. बलदेव!

बलदेव जा कर देवरानी के पलंग पर बैठ जाता है।

बलदेव: कर दो शान्त!

देवरानी: मुझे नहीं आता है। शांत करना!

बलदेव: सब आता है। तुमको...तुम कोई छोटी बच्ची नहीं हो। "और वैसे! वह ये सब कुछ! इतने बड़े नहीं हो गए हैं!"

देवरानी के दूध पर नज़र गड़ाये हुए कहता है।

देवरानी: चल हट कमीने!

और घूम कर जाने लगती है।

देवरानी की बड़ी गांड देख बलदेव अपने लंड पर हाथ रख कर मसलते हुए कहता है। "अपने दोनों मटको को संभालो कहीं भागने से गिर नहीं जाए"।

देवरानी समझते हुए चिढ़ जाती है।

"बलदेव मैं तुम्हारी जान ले लुंगी!"

और बलदेव की ओर झपटती है। बलदेव इसी के इंतजार में था, देवरानी के पलटते ही वह उसे बाहो में भर लेता है।

बलदेव: माँ बोलो ना!

देवरानी उस के साथ चिपकी हुई थी।

बलदेव: माँ कहो ना!

देवरानी: क्या बलदेव?

बलदेव: "तरबूज़ो को फोड़ दू अपने-अपने हाथो से।"

देवरानी: आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई ये सोचने की।

बलदेव: तुम्हें कैसे पता किसी ने ऐसा सोचा भी होगा के नहीं।

देवरानी: क्यू के ये कोई आम तरबूज़ नहीं है। जो किसी भी हथोड़े से फूट जाए!

और शर्मा कर बलदेव के सीने में अपना मुँह घुसा लेती है।

बलदेव: अगर मेरे हाथो से फूट जायेंगे तो?

देवरानी ये सुन कर अपने नाखुन बलदेव के सीने में गाड़ती है।

देवरानी: कही ये ना हो के हथौड़ा ही टूट जाए?

और हस देती है।

बलदेव: इतना गुमान ना कर मैं इन्हे तोड़ के ऐसा दर्द दूंगा...!

देवरानी झूठा गुस्सा दिखाते हुए!

अपनी प्यारी-प्यारी रानी को दर्द दोगे? हा?

बलदेव: हाँ जो मीठा-मीठा दर्द तुम्हें मिलना चाहिए था, वह जिस से तुम्हारा हक था। जिससे हर वह दर्द जो सालों से अंग-अंग में है, सब निकल जाएगा और तुम्हें एक अलग खुशी मिलेगी।

देवरानी: चल भाग बड़ा आया!

देवरानी भी बलदेव को जानबूझ कर उकसा रही थी-थी जिसके फलस्वरूप बलदेव और बेशर्मी से देवरानी के साथ मजे ले रहा था।

बलदेव अबकी बार देवरानी को उसके कमर से पकड़ लेता है और भागने नहीं देता।

बलदेव: रुको भागती कहाँ हो । रानी!

उसको अपनी बाहो में भरे उसके गहरी नाभी जो दूध-सी चमक रही थी उसे अपने मुंह में करीब खीचता है और अपनी जुबान उसकी नाभि के छेद में लगाता है।

"आआआह बलदेव!" मत कर ऐसे "आआआआह उह्ह्हह्ह्ह्ह!"

देवरानी उत्तेजना से अपना एक आँख बंद कर लेती है। फिर अपना दोनों हाथ पलंग पर रख कर बलदेव से अपना नाभि चटवाने लगती है।

" आआआह! मत ज़ालिम्म्म! उह्ह्ह बलदेव!

ये क्या कर रहा है। "

"वही मेरी रानी जो इस प्यारे से दूधिये का हक है। उसे दे रहा हूँ।"

उम्म्म्म आह क्या प्यारी नाभि है। "माँ!"

"इस्स्स्ह्ह कमीने!"

अब देवरानी से रुकना मुश्किल था उसकी चूतका पानी की धार छूट रही थी ।

देवरानी बेतहाशा बलदेव के ऊपर लेट जाती है और बलदेव भी उसे कस के दबोच कर देवरानी की गर्दन पर अपनी जीभ फेर रहा था।

देवरानी अब और ज़ोरो से बलदेव को पकड़ लेती है। जिसके उत्तर में बलदेव भी उसे खूब रगड़ता है।

"उहह आआह बलदेव!"

बलदेव: माँ!

देवरानी: हम्म!

बलदेव देवरानी के कान में बोलता है।

"2 मिनट मिले नहीं कि तुम फिर से साडी पहन के दुल्हन बन गई । पता है ना मैंने कितनी मुश्किल से खोली थी।"

देवरानी उसके लंड पर चूत को रगड़ते हुए!

"तुम्हारा क्या है। खोल कर चले गए! पहनने में टाइम लगता है।"

बलदेव: तुम मुझे सीखा दो मैं तुम्हें रोज पहना दूंगा और निकाल भी दिया करूंगा।

और कस के दबोच के "हम्म क्या तगड़ी माल हो! बाहो में पूरी भर गई हो!"

"क्या कहा कमीने में कोई माल नहीं रानी हूँ!"

बलदेव अब उसको अपनी बाहो में कस कर पलट देता है।

देवरानी बलदेव के सर पर हाथ फेर रही थी और बलदेव अपने बड़े 9 इंच के लंड को देवरानी के पेट पर घिस रहा था।

देवरानी इतने बड़े लंड के स्पर्श को पहली बार अहसास कर थोड़ी भयभीत थोड़ी उत्तेजित भी थी।

देवरानी: तुम कितनी प्यारी लग रही हो। बदन का अंग-अंग मुड़ गया!

बलदेव: अब आदत डाल लो रानी बदन का अंग-अंग ही नहीं एक-एक नस ढीली कर दूंगा और वैसे भी तुम कौन-सी नाज़ुक हो इतनी भारी हो!

देवरानी: क्या कहा तुमने मुझे मोटी कहा।

देवरानी अपनी ताकत लगा कर अपने ऊपर लेटे बलदेव को ले कर पलटी है और वह अब ऊपर आ जाती है।

देवरानी: चल मोटू तो तू है।

बलदेव फ़िर से देवरानी की चूत पर लंड रगड़ते हुए।

"ताकत दिख रही है। मोटी, अभी बताते हैं" और फिर देवरानी को ले कर के पलट जाता है।

देवरानी फिर से एक बार बलदेव को ले कर पलट जाती है।

बलदेव: बस मेरी रानी!

बलदेव अब देवरानी का सर अपने हाथ पर रख कर उसके साथ चिपक कर लेट जाता है।

और अपने पैर अपनी माँ के पैरो के ऊपर रख लेता है।

एक हाथ कमर पर रख कर बोलता है ।

बलदेव: तुम सही में घोड़ी हो गई हो!

देवरानी: और तुम घोड़े हो गए हो!

बलदेव: मैं शेर हू!

देवरानी: बड़ा आया शेर!

बलदेव: वह तो पता चलेगा!

देवरानी: हाँ वह तो वक्त बताएगा कि कौन कितने पानी में है। हुंह!

बलदेव को जैसे ये बात ललकार देती है और वह देवरानी के ऊपर आ जाता है। एक हाथ से कमर पकड़ कर दूसरे हाथ से अपनी माँ के कंधों को बड़ी जोर से दबाता है।

"उहह आआआह बलदेव!"

बलदेव धीरे-धीरे अपने हाथ को उसके स्तनों के बीच में ले जाता है और एक उंगली अपनी माँ के पहाड़ों के बीच रख कर नीचे करता है, जिस से देवरानी का ब्लाउज थोड़ा खुल जाता है और उसका वक्ष का कटाव देख बलदेव अपना जबान अपने होठो पर फेरता है।

देवरानी "उहह आआआह नहीं बलदेव!"

बलदेव का हाथ पर वह हाथ रख कर ईशारे से मना करती है।

देवरानी अब एक हाथ से बलदेव का हाथ पकड़े हुए थी और दूसरे हाथ को बलदेव के कंधे पर रखे हुए थी।

बलदेव अपना दूसरा हाथ देवरानी के कंधे पर रख अपने मुंह को देवरानी के पेट के पास लाता है और अपने जबान से चाटने लगता है।

देवरानी: "उह्ह्ह्ह! आआआआआह! बलदेव!" इश्ह्ह! "

देवरानी आख बंद कर के मजे लेने लगती है और बलदेव अब देवरानी पर पूरा छा जाता है।

और देवरानी के गाल पर चूम कर!

"मां क्या रसगुल्ले जैसे गाल हैं। तुम्हारे!"

अब बलदेव अपनी माँ की गर्दन पर चूमते हुए नीचे अपनी माँ के चूत पर अपना लंड बैठाता रहता है। अभी दोनों माँ बेटे का लंड और चूत पानी-पानी हो गया था।

बलदेव अब सीधा अपनी माँ के बड़े स्तनों पर धावा बोलता है और अपना मुँह उनके बीच में डाल देता है।

"उहह! आआआआहह! बलदेव।"

"इश्श मुझे कुछ हो रहा है। बलदेव!"

और एक धार गाढ़े पानी की देवरानी की चूत से छूटती है और साडी के अंदर पेटीकोट को भीगा देती है।

"आआआआ! हुउउहुहू ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह बलदेव अह्ह्ह हे!" और तीन चार गाढ़े पानी की धार देवरानी की चूत से छूट गई।

वो अपने आखे मूंदे हुए बलदेव का पीठ सहला रही थी और उत्तज़ना में डूबी हुई थी।

बलदेव: मेरी रानी! ये तुम्हारे होठ गुलाब जैसे हैं। खिले हुए लाल गुलाब, तुम्हारी झील-सी आँखों में देख डूब जाने का मन करता है।

देवरानी: आओ डूब जाओ मेरे प्रेमी!

देवरानी के दोनों दूध का आकार बढ़ कर दुगना हो चूका था ।

बलदेव अब अपने होठ उसके गर्दन से लेते हुए उसके होठो तक ले रहा था...!

तभी दोनों चौंकते हैं।

"देवरानी ओ देवरानी!" "कहा हो इतने घंटो से?"

देवरानी आख खोल कर देखती है। उसे ऐसा लगता है जैसे वह कोई सपना देख रही थी और नींद से जगी है। पर उसके ऊपर लेटा बलदेव गुस्से में देख रहा था।

बलदेव: अब कौन है?

देवरानी: ये सृष्टि है। उठो जल्दी!

बलदेव लंड तो ठीक करते हुए उठता है।

"अब क्या करु बलदेव क्या कहूंगी तुम्हारी बड़ी माँ को?"

"बलदेव ऐसा करो तुम ये कम्बल ओढ़ के सो जाओ आख बंद किये रहना!"

देवरानी झट से जा कर अपनी साडी सही करती है। वह देखती है कि उसकी चूत से बहा पानी उसके साडी के ऊपर से भी दिख रहा है और उसकी गर्दन चाटे जाने के कारण से पूरी लाल है।

वो अपनी गर्दन थोड़ा साफ़ करती है और अपनी साडी के उस भाग को छुपाती है जो उसकी चूत का पानी से भीग गयी थी और जा कर दरवाजा खोलती है।

देवरानी: अरे आप आइए ना!

सृष्टि: इतने देर से क्यू नहीं खोल रही थी!

देवरानी: वो दीदी मैं श्लोक पढ़ रही थी और आप तो जानती हैं, बिना पूरा पढ़े बीच में खड़े से कितना पाप होता है। इसीलिए पूरा अध्याय पढ़ कर उठी हू।

शुरष्टि की नज़र देवरानी की अस्त व्यस्त कपडो पर जाती है।

शुरुआत: (मन मैं) इसके हाल से लग तो नहीं रहा के ये कोई पूजा अर्चना कर रही थी।

तभी उसकी नज़र देवरानी के पेट पर जाती है। जो बलदेव के चाटने की वजह से भीगा हुआ था।

सृष्टि: देख के तो ऐसा लगता है, जैसे तुम सो कर उठी हो थकी-सी लग रही हो।

देवरानी: वो दीदी अब पूजा अर्चना में इतनी देर हो जाती है कि दुनिया का पता नहीं रहता।

शुरष्टि: अच्छा ठीक है। वह तो मैंने सोचा कि तुमसे प्रसाद ले आउ, क्योंकि आज सुबह तुमने प्रसाद नहीं दिया था और मैंने बोला था कि मैं प्रसाद लेने आउंगी ।

देवरानी: अरे हाँ! दीदी मेरे तो ख्याल से ही निकल गया।

(मन मैं) कामिनी तेरी वजह से मेरे प्रेमी का और मेरा प्रेम खेल रुक गया।

"दीदी मैंने आपके लिए रखा है, ये लीजिये प्रसाद!"

तभी सृष्टि की नज़र लेते हुए बलदेव पर पड़ती है।

सृष्टि: ये बलदेव यहाँ क्यूँ सो रहा है?

देवरानी: (मन में) अब तुम्हें क्या बताऊँ की तुमने मुझसे मेरा पति भी छीन लिया था, अब बेटा भी चाहिए। चुड़ैल! चैन से सोने नहीं देगी!

"दीदी वह बलदेव के पेट में दर्द था तो मैंने उसे काढ़ा पिलाया तो उसे यहीं नींद आ गई तो सो गया"

श्रुष्टि: हममम!

देवरानी: अब छोटा तो नहीं है। ये जो उठा के उसे उसकी कक्ष में लेटा दो!

श्रुष्टि: हं बस-बस बस!

सृष्टि जाने लगती है।

"अगर मैं सही हूँ तो क्या सही में इन दोनों में कुछ... छी! में भी क्या सोच रही हूँ!" ये सोचते हुए सृष्टि जाने लगती है। फिर कुछ सोच कर दरवाज़े पर रुक कर देवरानी ज़रा मेरे कमरे में चलो ना।

देवरानी: क्यू दीदी?

सृष्टि: तुमसे थोड़ा पकवान बनाने का गुण सीखना था।

देवरानी: (मन में) अब मैं इसके साथ नहीं गयी तो ये पक्का शक करेगी!

"हा चलो दीदी!"

और फिर दोनों चल देते है...

जारी रहेगी

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