महारानी देवरानी 057

Story Info
असंभव नहीं सत्य
1.8k words
2.5
14
00

Part 57 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

महारानी देवरानी

अपडेट 57

असंभव नहीं सत्य

बद्री बूत बना खड़ा सामने उनकी परछाईया देख रहा था। अंदर जो खेल खेला जा रहा था उसका तंबू में उनकी परछाई से साफ पता चल रहा था। वह एक माँ बेटे के बीच नहीं खेलना जाना चाहिए था इसलिए बद्री गुस्से से लाल हो जाता है।

बद्री (मन में: अभी पूछता हूँ बलदेव को, ये सब करने के लिए उसे मौसी ही मिली थी और मौसी भी तो सावित्री बनती थी, मुझे अब घृणा हो रही है।)

किसी तरह बद्री गुस्से को काबू किये हुआ खड़ा था। फिर कुछ सोच के वापस तंबू में जाता है और अपना सामान एकत्रित करने लगता है और इस आवाज़ से श्याम जग जाता है।

"क्या हुआ बद्री इतनी रातें गए तुम क्या कर रहे हो?"

"श्याम मैं वापस जा रहा हूँ। मैं और आगे नहीं जा सकता मित्र!"

"बद्री क्या हुआ भाई? ऐसा क्या हुआ जो आधी रात तुम वापिस जाने की बात करने लगे?"

ये सुन कर बद्री श्याम का हाथ पकड़ कर तंबू को बाहर लाता है।

"ये देखो इस अधर्मी बलदेव को क्या कर रहा है! मुझे तो इसे अब मेरा मित्र कहते हुए भी घृणा हो रही है।"

श्याम तंबू की परछाई को देखता है और वह भी चौक जाता है और उसके मुँह से निकलता है।

"असंभव!"

"असंभव नहीं है। श्याम ये जो देख रहे हो तुम! वही सत्य है।"

ये कह कर गुस्से में बद्री वापस तंबू में आ जाता है।

बद्री को गुस्से में देख श्याम उसके पीछे आता है।

श्याम: सुनो भाई. इतनी रात गए तुम अकेले कहा जाओगे?

बद्री: हे भगवान मैंने क्या पाप किया था। जो मुझे आज ये सब देखना पड़ रहा है।

श्याम: होश में आओ बद्री, तुम कहीं नहीं जाओगे!

बद्री: श्याम तुम्हें यकीन हो रहा है। इतनी सती सावित्री और पतिव्रता महिला ऐसा भी कर सकती है। जरूर उनके साथ ये ठरकी बलदेव जबरदस्ती कर रहा होगा

श्याम: पागल हो तुम अगर मौसी के साथ ज़ोर से जबरदस्ती करता बलदेव तो इतना चुप चाप नहीं रहती मौसी?

बद्री: तुम समझ नहीं रहे श्याम हमारे माँ जैसी थी वो!

श्याम: देखो हम जंगल में हैं और हमारे दुश्मनों के करीब भी। अगर तुम अभी कोई भी कदम उठाओगे, तो सोच लो नुक्सान तुम्हारा ही होगा और लाभ कोई नहीं!

बद्री: मुझे डराओ मत! श्याम! मुझे अपनी जान की परवाह नहीं है पर मैं इस पाप को अपने सामने सहन नहीं कर सकता ।

श्याम: तू ज़िद्दी है। ऐसा नहीं मानेगा, तुझे हमारी दोस्ती की कसम है। अगर तू यहाँ से गया तो हमारी दोस्ती खत्म!

बद्री: तू पागल है। क्या श्याम?

श्याम: चल अपना झोला रख और सो जा अभी । और अगर मौसी और बलदेव अवैध सम्बंध बना रहे हैं। तो आपसी सहमति से ही बना रहे है। ऐसा मुझे लग रहा है।

बद्री: हाँ! मैंने भी इनके इशारे और नैन मटक्का महल में भोजन करते समय देखा था।

श्याम बद्री के कंधों पर हाथ रख कर उसको पानी पीने के लिए देता है।

श्याम: देखो बद्री! अगर तुमको इतना दुख है इस बात का, तो कल सुबह बलदेव से इस बारे में पूछ लेंगे। मुझे भी कोई अच्छा नहीं लगा ये सब देख के. फिर आगे का निर्णय लेते हैं ।

बद्री: हाँ तुम सही कह रहे हो मैं तो बलदेव से इसका उत्तर ले कर रहूंगा।

श्याम: हाँ तो अब सो जाते हैं।

फिर दोनों-दोनों सोने की तय्यारी करने लगते है ।

श्याम: तुझे याद है। हम घरेलू और पारिवारिक चुदाई की कहानियो की पुस्तके पढ़ते थे।

बद्री: हाँ! श्याम!

श्याम और हमने बलदेव को वह पढ़ने के लिए पुस्तक दी थी।

बद्री: तुम कहना क्या चाहते हो?

श्याम: कही ये उसका ही तो असर नहीं है।

बद्री: हम तो कहानिया मजे के लिए पढ़ते थे, पर बलदेव ने तो इतिहास रच दिया।

श्याम: हाँ! मुझे भी यही लगता है कि एक बार बलदेव जो हम से भी समझदार है। ये जानना जरूरी है कि उसकी सोच क्या है ये सब के पीछे, बलदेव ने तो उन कहानीयो को जैसे जीवन दे दिया हो। जब कहानी में इतना मजा आता था। तो उसको वास्तव में कितना मज़ा आ रहा होगा।

बद्री: चुप कर और सो जा!

तभी दोनों के कानों में चप-चप चू चू की आवाज आती है। दोनों को लगता है कही आसपास कोई जानवर तो नहीं। फिर दोनों खामोशी से आवाज की दिशा में देखते है तो ये आवाज है बलदेव और देवरानी के तंबू से शुरू हो रही थी जो निश्चित तौर पर एक दूसरे को चूमने की ही थी।

ये दोनों समझ जाते हैं और श्याम बद्री की ओर देख एक मुस्कान देता है और इशारे से कहता हैं। सो जाओ!

बद्री गुस्से से अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लेता है और दोनों सोने की कोशिश करने लगते है।

इधर दूसरे तंबू में बलदेव इस सब से बेख़कर देवरानी को बेतहाशा चूमे जा रहा था।

"गैल्पप्प गैलप्प स्लरप्प"

"आह मेरे राजा!"

"उम्म्मह गल्प!"

"मेरी रानी! "

"गलप्पप्पप्प गलप्पप्प-गलप्पप्प गलप्पप्प गलप्पप्प गैल्प्प गैल्प्प्प्प गैल्प्प्प्प!"

"देवरानी मेरी रानी! तू बनेगी मेरी पत्नी?"

"हाँ! मेरे राजा बनूंगी तेरी पत्नी नहीं धर्म पत्नी!"

बलदेव देवरानी को खूब चूम और चूस रहा था और देवरानी भी उसका खूब साथ दे रही थी।

देवरानी अब उसके ओंठ छोडती है। उसकी सांस फूलने लगी थी ।

"राजा आराम से कहीं वह दोनों सुन ना ले"!

देवरानी की चुन्नी हट जाने से उसके दोनों बड़े वक्ष उसके सांसो के साथ ऊपर होते नीचे होते हुए साफ़ दिख रहे थे।

बलदेव हाथ पकड़ कर "इधर आ मेरी जान!"

उसके दोनों वक्षो को ऊपर नीचे होते हुए देखता है ।

और अपने दोनों हाथ बढ़ा कर उन्हें महसूस करता है।

"माँ क्या पपीते है। तेरे आह मजा आ गया!"

उसके दोनों स्तनों को खूब दबाने लगता है।

"आह राजा!" देवरानी अपने स्तनों को सहलाने से आनंदित होती है और बलदेव को सहलाने लगती है।

"देवरानी इधर आ मेरे पास!"

"हा मेरे राजा!"

बलदेव: "आ ना मेरे रानी! मेरी गोद में बैठ ना!"

देवरानी इशारा समझ जाती है और बलदेव की तरफ अपना बड़ी गांड करती है।

"हाँ लाना ये तरबूज़ जैसी गांड में गन्ना डाल दू और अपना रस छौड दू इसमें!"

"गंदा बलदेव!"

"अभी बताता हूँ कितना गंदा हूँ मेरी रानी!"

बलदेव देवरानी की गांड पर अपना लंड लगा देता है और देवरानी अपनी गांड पीछे कर मजा कर रही थी बलदेव खूब मन से अपना लौड़ा उसके नितम्बो की दरार में मसल रहा था।

देवरानी को अब हल्का झुका कर बलदेव अपने दोनों हाथ आगे ले वक्षो के बीच ले जाता है।

"आह रानी! तुम्हारे ये दोनों तरबूज़ो का रस पीना है।...पिलाओगी ना"

बलदेव खूब अच्छे से दोनों भारी स्तनों का मर्दन कर रहा था।

"अई हा! मैं मर गई! उफ़ हे भगवान!"

"आह माँ!"

"हाय दय्या मेरे दूध उफ़ आह!"

"बोलो ना दोगी ना! इस का दूध पीने अपने पति को! अपने बेटे बलदेव को?"

"हाय मेरे पति ही नहीं तुम मेरे पति परमेश्वर हो । सब कुछ ले लो। जो चाहो वह कर लो!"

"समय आने दो!"

"हाँ मुझसे विवाह कर लो ना, बलदेव मुझे अपनी बना लो!"

"बना लूंगा! तुझे अपनी पत्नी जरूर बना लूँगा! मेरी जान भरोसा रखो!"

"बलदेव! तुम्हारे ही तो भरोसा है अब! मुझे और नहीं रहा जाता है। मेरे राजा आह!"

बलदेव अब भी खूब अच्छे से दूध दबाये जा रहा था और साथ में देवरानी की झुकी हुई गांड की दरार में अपना खड़ा कड़ा लंड रगड़ रहा था।

"आहह राजा ऐसे ही, करो! करते रहो!"

"मुझे पत्नी बना लो रोज़ भूल दूंगी इससे भी ज़्यादा"

"मुझे पता है। मेरी माँ के तुम डालने नहीं दोगी बिना विवाह किये!"

बलदेव अब ज़ोर-ज़ोर से अपना लंड रगड़ रहा था। फिर देवरानी की गांड को बलदेव एक हाथ पकड़, अपना लंड दुसरे हाथ से पकड़ कर देवरानी की गांड से सीधा अपना लंड उसकी चूत पर सटा देता है।

"आह राजा ये लोहे-सा गरम है।"

"तुम्हारा चूल्हा भी भट्टी बना पड़ा है।"

"आह राजा!"

बलदेव की ऐसी चुत पर लंड रगड़ने से देवरानी का पानी चुत से बाहर आ जाता है।

"आआआआआह बलदेव" देवरानी इस बार अपने आप को रोक नहीं पाती और चिल्ला देती है।

बलदेव देवरानी को चिल्लाता देख सीधा अपना लौड़ा उसकी चूत के छेद पर रख वस्त्र के ऊपर से ही घुसाने की कोशिश करता है।

"आह मैं तुम्हें पत्नी बना कर ऐसे ही भोगूंगा! और तुम ऐसे ही चिल्लाओगी!"

अब बलदेव का लौड़ा भी खूब पानी छोड़ने वाला था।

"भोग लेना बेटा!"

बलदेव देवरानी के दोनों बड़े पपीतो को दबाते हुए फिर उसके चेहरे पर, फिर उसकी गर्दन पर चुम्मो की बरसात कर देता है। "

"आह्ह्ह्ह देवरानी, मेरी पत्नी, मेरी रानी, मेरी जान!"

और बलदेव अपना आख बंद कर देवरानी गले लग जाता है और उसका लंड बड़ी जोर की पिचकारी उसकी धोती पर मारता है।

बलदेव निढाल हो कर देवरानी के बगल में लेट जाता है।

देवरानी: क्यू थक गये मेरे राजा?

बलदेव अपना हाथ आगे बढ़ा कर देवरानी की एक चुची पकड़ कर मसलने लगता है।

"मां तुम्हें प्यार कर के मैं कभी थक नहीं सकता!"

"चल जाओ बहुत देखे है, तुम्हारे जैसे।"

"मां सुबह हमे जल्दी निकलना है और अँधेरा छटते ही पारस की ओर निकल जाना है।"

देवरानी भी अब सीधा लेटा रहता है ।

"मेरे राजा! आज चाँद के नीचे खुले में तुमसे प्यार कर के बहुत मज़ा आया।"

ऐसा है तो बस हमारी शादी विवाह हो जाने दो फिर तुमको बताओ चाँद के नीचे प्यार करना किसे कहते है। मेरी रानी! "

"क्यों ऐसा क्या करेगा तू?"

"तेरे पिछवाड़े में अपना डंडा डाल के तुझे ठोकूंगा । मेरी पत्नी तो बनो, फिर देखना!"

देवरानी शर्म और लाज से अपना सर झुका कर नज़रे बचाने लगती है।

"चल हट गंदे कमीने!"

और फिर दोनों सो जाते है।

इधर घटराष्ट्र में दोपहर से सोच में डूबा हुआ था सेनापति सोमनाथ।

सेनापति सोमनाथ: "क्या करूं मैं ये गुत्थी सुलझाने के लिए कहा जाऊँ? आखिर ये सब करने की वजह क्या हो सकती है।"

महल के सामने सेना के लिए उद्यान और वही पास में सेना गृह था। जहाँ पर सेनापति के लिए खास कक्ष था।

सोच में डूबा हुआ सोमनाथ बाहर निकल कर अपना अश्व पर बैठ घाटराष्ट्र के मुख्य बाज़ार की ओर चल देता है।

सोमनाथ ने कहा, "आखिर ये कौन था। जो महारानी श्रुष्टि से मिलने आया था। उसका रानी देवरानी को मारने की साजिश में उसका ही हाथ है...? ।"

"पर महारानी श्रुष्टि रानी देवरानी को क्यू मारना चाहती है।"

सोमनाथ मुख्य बाज़ार में ले जा कर अपना घोड़ा एक ओर बाँध देता है।

बाज़ार में शौर था। हर तरफ दुकान थी दौड़-दौड़ कर लोग अपनी खरीददारी करने आये थे।

सोमनाथ: अब उस दिन जो आदमी रानी सृष्टि से मिलने आया था वही असली बात बता सकता है पर उसको ढूँढू कैसे?

सोमनाथ बीच बाज़ार में खड़ा सोच रहा था। उसे बाज़ार में हर फल वाले और सब्जी वाले खरीददारी करने के लिए अपनी तरफ बुला रहे थे ।

तभी सोमनाथ के कान में डमरू की आवाज आती है और वह उस ओर देखता है जहाँ पर तमाशे वाला अपना तमाशा दिखा रहा था।

सोमनाथ: (मन में-सांप का राज तो ये सपेरा ही खोलेगा)

जारी रहेगी

Please rate this story
The author would appreciate your feedback.
  • COMMENTS
Anonymous
Our Comments Policy is available in the Lit FAQ
Post as:
Anonymous
Share this Story

Similar Stories

खानदानी निकाह 01 मेरे खानदानी निकाह मेरी कजिन के साथ 01in Loving Wives
Lockdown with Mum Ch. 01 In Lockdown Mum and Son Come Together.in Incest/Taboo
New Family Dynamic Lust Changes Relationships.in Incest/Taboo
Who We Really Are Ch. 01 A young husband and his stepson discover a mutual interest.in Incest/Taboo
College Road Trip with Mom Ch. 01 Rob and his mom set out for a long weekend on the road.in Incest/Taboo
More Stories