महारानी देवरानी 068

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प्यार से समझाओ
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Part 68 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 68

बलदेव देवरानी प्यार का खेल-खेल कर थके सो रहे थे पर हूर-ए-जहाँ, उर्फ़ मल्लिका-ए-जहाँ हुरिया की आंखों से नींद कोसो दूर थी रह-रह के उसके दिमाग में बलदेव या देवरानी का वह दृश्य घूम रहा था जब वह अपनी माँ को बाहो में भर ले अपनी माँ की गांड को दबा रहा था ।

हुरिया: (मन में-ऐ खुदा! क्या कयामत अब करीब है! लोग ऐसे कैसे हवस में आकर लज्जत पाने के लिए अपनी माँ के साथ ही छी! सोच कर हे घिन आ रही है... दो चार दिन की बात है फिर तो इसे वापस जाना ही है अगर सुल्तान को ये बात मालूम पड़ जाएगी तो दोनों का सर कलम करवा देंगे वह नहीं देखेंगे के ये मेहमान है या कौन है। मुझे कुछ करना होगा।

ये सब सोचते हुए हुरिया सोने की कोशिश कर रही थी

उधर महफ़िल में बैठे शमशेरा और अन्य सभी लोग महफ़िल ख़तम होने के बाद खाना खाने बैठे हैं।

देवराज: युवराज शमशेरा! ये भांजा बलदेव नजर नहीं आ रहा है?

शमशेरा: हाँ वह शायद जा कर महल में सो गया है।

देवराज: ओह!

तभी वहा पर खड़ी दासी को!

देवराज: ये बलदेव या देवरानी कहाँ है?

दासी: महाराज उनका कक्ष तो बंद है दोनों काफी वक्त से सो रहे है ।

सुल्तान: अरे वह लोग थके हुए थे। वह बिना खाना खाये सो गये होंगे, हुरिया भी तो नहीं है।

दासी: गुस्ताखी मुआफ सुल्तान...वो भी सो गई हैं ।

शमशेरा: ए सुनो दासी जा कर देवराज जी के लिए खास शाकाहारी सब्जी लाओ!

दासी: जी शहजादे!

सुल्तान: अरे बद्री और श्याम आप दोनों चुप क्यू है? क्या आपको अच्छा नहीं लगा?

बद्री: नहीं सुलतान! बस हम खाते समय बात नहीं करते!

सुल्तान: बहुत अच्छी परवरिश पाये हो!

श्याम: हम मेवाड़ी खाने की पूजा करते हैं। सुल्तान!

सुल्तान: क्या बात है छोटे युवराज! मुझे लगा शायद हमारे यहाँ का साग सब्जी आपको अच्छा नहीं लगा!

बद्री: आप ने ख़ास टॉयर पर हमारे लिए शाकाहारी खाना बनवाया, इस से हम बहुत प्रसन्न हुए सुल्तान!

देवराज: बद्री! पनीर तो देवरानी को भी बहुत पसंद है। पर वह सो गई है ।

बद्री: हाँ! लगता है मौसी तो सो गई है ।

(मन में: मौसी को पनीर की क्या ज़रूरत है जब वह अपने कक्षः में बंद हो बलदेव का केला खा रही है।)

सब ऐसे वह अपना खाना ख़तम कर के बारी-बारी से उठ के जाते हैं। बद्री और श्याम सब से पहले उठ कर अपनी कक्षा की ओर जाते हैं।

बद्री: देखो अब भी मौसी के कक्ष का दरवाज़ा बंद है।

श्याम: छोडो भी बद्री! बलदेव अपनी माँ के साथ मजे ले रहा है। हमें क्या! माता रानी देवरानी भी तो मजे ले रही होगी।

बद्री: ठीक है चलो हमें इससे क्या? हम सोते हैं!

श्याम: हाँ हम अपना-अपना लिंग हाथ में ले गुजरा करते है । बलदेव को तो पकड़ने वाली मिल गई है।

बद्री ये सुन कर मुस्कुरा देता है।

बद्री: चल कमीने! सोते हैं।

दोनों जा कर सो जाते हैं।

इधर सुल्तान मीर वाहिद अपनी कक्ष में जा कर आराम करते हैं और देवराज भी अपनी कक्ष में जा कर आराम करता हैं। शमशेरा अपनी कक्ष में आकार सबसे पहले अपने साथ लायी मदीरा को गटकता है ।

शमशेरा: आह मजा आ गया। ये पी कर अब जा कर एक बार अम्मी की भारी गांड और मोटे दूध देख लेता हूँ।

शमशेरा हुरिया की कक्षा के पास जा कर।

"अम्मी जान क्या मैं अंदर आ जाऊँ!"

दो तीन बार इजाजत लेने के बाद उसे कोई उत्तर नहीं मिलता तो वह दरवाजे पर हाथ लगाता है, तो वह पाटा है कि दरवाजा खुला हुआ था । वह दबे पांव जाता है देखता है और देखता है हुरिया बिस्तर पर लेटी हुई सो रही है।

शमशेरा हुरिया के हुस्न को ऊपर से नीचे तक देखता है।

"खुदा ने सचमुच तुझे फुर्सत में बनाया है मेरी हुरिया बेगम! हूर ए जहाँ!"

शमशेरा सीधा हाथ अपने लंड पर ले जाता है और उसे मसलता है और फिर वापस मुड़ कर चुपके से दरवाजा बंद कर के सोने चला जाता है।

अगली सुबह चिड़िया की चहक के साथ पारस के खूबसूरत पहाड़ों के दरमियाँ से सूर्य उदय होता है।

पारस में सुबह-सुबह सैनिक बल अभ्यास कर रहे थे ।

सुल्तान उठते ही सैर पर निकल जाता है। शमशेरा उठ कर कुश्ती करने के लिए बाहर आता है और सैनिकों संग कुश्ती खेलने लगता है। हुरिया भी उठ जाती है और पाक साफ हो कर सुबह के नाश्ते का इंतज़ाम दासियो से कह कर कारवाने लगती है।

बद्री या श्याम भी उठ कर बाहर आते हैं और मैदान में चल रहे हैं सेना अभ्यास को देखने लगते हैं।

एक अंगड़ाई लेते हुए बलदेव उठता है तो पाता है उसकी माँ उसे उसकी बाहो में बाहे डाले बच्चे जैसी उसके साथ चिपक कर सो रही है। बलदेव अपनी माँ को देख मुस्कुराता है, फिर अपनी माँ को अपनी बाहो में समेट लेता है।

बलदेव: मोटी मेरी बाहो में भी पूरी नहीं आ रही । जबकी में इतना लंबा हूँ!

चंचलता से मुस्कुराते हुए ये कह कर देवरानी को जकड़ लेता है और अपनी आंखें बंद कर लेता है।

बलदेव: (मन में-जब तक देवरानी नहीं उठती तब तक मैं भी सोता हूँ। अगर मैं उठा तो इसकी नींद टूट जाएगी और अपने हाथ से इसके सर को हटा देता है।)

बलदेव देवरानी को अपने कंधों पर बीती रात की बात सोच मुस्कुराता हुआ अपना किस्मत पर गर्व करता है।

बलदेव: (मन में-यथा सुंदर इतना मलाइदार माल, मुझे शायद ही मिल पाटा । देवरानी सच में अप्सरा है, मुझे यकीन नहीं होता आज माता देवरानी मेरी बाहों में है और मुझसे पट गई है, पर ये चोदने कब देगी । मैं कब इनको प्यारी मुनिया में, मेरा लिंग घुसाू पाऊँगा । ये तो बहुत संस्कारी बनती है, मुझे बिना विवाह के कुछ करने नहीं देगी। अब मैं क्या करु?)

(देवरानी नींद में देख रही थी की एक राजकुमार उड़ते घोड़े पर आता है और वह महल की छत पर खड़ी है। वह राजकुमार अपना घोड़ा देवरानी के महल पर ला कर रोकता है और देवरानी के सामने घुटनों के बल बैठ जाता है ।)

"अप्सरा देवरानी चलो, मैं तुम्हें स्वर्ग लोक ले चलू ।" देवरानी उसको देख दंग हो जाती है क्यू के घुड़सवार और कोई नहीं, बलदेव ही था। जैसा वह नीचे देखती है तो एक 15 इंच का लंड उसके सामने था। उसे जिसे देख देवरानी डर जाती है और बलदेव उसे घोड़े पर बैठा लेता है । घोड़ा उड़ता है पर देवरानी जैसा हे घोड़े पर बैठती है उअसके डर के पसीने छूट रहे थे और वह कहती है। "हाय मैं मर जाऊँगी!")

बलदेव देखता है देवरानी सो रही है पर उसके माथे पर पसीना आ रहा था और अचानक से देवरानी के मुँह से निकलता है ।

"हाय मैं मर जाऊंगी" और डर कर देवरानी सपने से हकीकत में आती है।

बलदेव: माँ क्या हुआ आप मेरे पास हो मेरी बाहो में डरो मत!

देवरानी अपने आप को बलदेव की बाहों में सिमटी हुई पाती है।

बलदेव: डर मत मेरी रानी किसी की इतनी हिम्मत नहीं मेरी रानी को छू भी ले ।

देवरानी अपना सर शर्म से बलदेव के सीने में छुपा लेती है।

बलदेव: क्या हुआ, आपने कोई बुरा सपना देखा क्या?

देवरानी: (मन में-अब मैं कैसे बताउ इसे।)

देवरानी: बेटा बुरा भी अच्छा भी और अपने होठ अपने दांत से काट लेती है।

बलदेव: देवरानी तुम्हारी बात तुम्हें ही समझ आती है।

देवरानी: अच्छा मेरे राजा!

(मन में-तुम तो सपने में भी मुझे अपने बड़े लिंग से डराते हो!)

और देवरानी मुस्कुराती है।

बलदेव: हाय मैं मर जाउ तेरी इस हंसी पर!

देवरानी: वो मैंने देखा तुम्हारी हरकत रात में और थोड़ा उदास होते हुए कहती हैं।

बलदेव देवरानी के पैर को सहलाते हुए कहता है।

"माता आपके चरण कहाँ है आप मुझे क्षमा कर दो।"

देवरानी: हुह सब मर्द ऐसे ही है।

"मां मुझे क्षमा कर दो कल रात शमशेरा ने जबदस्ती पिला दी और उस नशे में मैंने आपके साथ गलत सुलूक किया । गलतियाँ भी दी । आ [मुझे क्षमा कर दो ना।"

"बलदेव...तुम मेरे पति से बढ़ कर हो। तुम मेरे हृदय हो। मैं नहीं चाहती तुम किसी भी बुरी आदत का शिकार हो जाओ । अपना शरीर खराब करो। जैसे तुम्हारे पिता ने मेरा जीवन खराब किया, तुम भी वैसा ही कुछ करो.!"

बलदेव: सुशश! मेरी मां...आगे एक शब्द नहीं, मैं वचन देता हूँ और अपने वचन को निभाने के लिए सर भी कटा दूंगा।

देवरानी: चुप कर, बड़ी-बड़ी बातें नहीं चाहिए मुझे। बस तू मेरा हो कर रह। मेरा कहा मानो। मेरे राजा! रही बात कल रात गलिया की तो आवेश में आ कर तुमने जो गालीया दी, जो नहीं देनी चाहिए थी, पर मुझे जरा भी बुरा नहीं लगा!

बलदेव: माँ, मेरी माँ! तुम जैसी कोई नहीं। बोलो कहाँ घुमने जाना है?

देवरानी बिस्तर से उठ कर अपनी साडी ठीक करते हुए बोली ।

देवरानी: आज भैया के साथ तुम्हें मैं अपने जन्म स्थान घुमाने ले कर चलूंगी ।

बलदेव: माँ! मुझे तुम अपने जन्म स्थान तो जा रही हो। पर मेरे जन्म स्थान में जाने का शुभ घड़ी कब आएगी?

देवरानी मुस्कुराते हुए बलदेव की बात को समझते हुए साडी ठीक करते हुए कहती है।

"बलदेव कमीने...तुम्हें अपने जन्म स्थान पर जाने की अनुमती रीति रिवाजों के अनुरूप मिलेगी।"

"मां कैसी रीति रिवाज की बात कर रही हो?"

"इतनी आग लगी है तो जाओ मांग लो मेरे देवराज भैया से मेरा हाथ!"

देवरानी चुटकी लेते हुए मुस्कुराती है।

बलदेव चिढ़ कर उठ ता है और देवरानी की साडी को पकड़ कर खींचने लगता है।

"मां तुम्हारे भैया को ये भी बताऊंगा कि उसकी बहन रात भर मेरे से चिपक कर मजे में सिसक रही थी और मेरे लिंग से खेल रही थी अपने हाथो में लिए।"

अब शरमाने की बारी देवरानी की थी।

"चुप कर बदमाश!"

"मां मुझे चुनौती पसंद है, मैं सच में जा कर अपने साले साहब से तुम्हारा हाथ मांग लूंगा ।"

"नहीं नहीं मेरे राजा धैर्य रखो!"

देवरानी फिर अपनी साडी बलदेव के हाथों से ले कर पहनती है।

"मां कितना धैर्य रखूं । जब विवाह कर के ही तुम मेरी बनोगी, तो कर लेते हैं ना यहीं कहीं।"

"बेटा भगवान पर विश्वास रखो और हाँ मुझे स्नान कर पूजा करनी है । तुम भी मुझे तंग मत करो, जाओ । अब योग करो! मैं भी योग कर लू फिर नहा धो के पूजा कर लू।"

बलदेव अपने आखे बंद किये हल्का गुस्सा हो के सर को झटकाता है और बाहर जाने लगता है।

"हाँ बेटा! बद्री और श्याम को प्यार से समझाना!"

"हाँ माँ ठीक है।"

देवरानी स्नान करती है, योग करती है और अपने साथ लाए भगवान की मूर्ति को रख मंत्र उचारण करने लगती है।

फिर कुछ प्रसाद, जो अपने साथ में ले कर आई थी वह चढ़ा कर भगवान से कुछ देर अपने मन में बात करती है।

इधर हुरिया अपनी कक्षा में बैठी किताब पढ़ रही थी।

हुरिया: ये कौन सुबह-सुबह ऐसा कौन-सा मंत्र पढ़ रहा है...?

हुरिया ताली मारती है।

दासी: जी मल्लिका ए जहाँ!

हुरिया: ये सुबह-सुबह कौन शुरू हो गया?

दासी: गुस्ताखी मुआफ मल्लिका, महारानी देवरानी के कमरे से आवाज आ रही है, शायद वह पूजा कर रही हो!

हुरिया: ठीक है जाओ!

हुरिया: (मन में-बेग़ैरत रात में बेटे के साथ मजे लेती है या सुबह में खुदा को खुश करती है। जहन्नुमी!)

देवरानी पूजा संपन्न कर प्रसाद ले कर सब से पहले हुरिया की कक्षा में आती है।

देवरानी: शुभ प्रभात दीदी! ये लीजिए!

हुरिया: सुबह-सुबह तुम थी क्या?

देवरानी थोड़ी असमंजस की स्थिति में पूछती है ।

देवरानी: दीदी कहीं मेरी पूजा करने से आपको कोई आपत्ति तो नहीं?

हुरिया: नहीं आप हमारी मेहमान हैं और आप अपने खुदा की पूजा करें इससे हम कोई एतराज़ नहीं हैं।

देवरानी: धन्यवाद दीदी, मुझे लगा, कहीं आपको बुरा न लगे!

हुरिया: मुझे क्या पारस में किसी को बुरा नहीं लगेगा हम यहाँ सब मिल जल कर रहते हैं। हमारे लिए इंसानियत से बढ़कर कुछ नहीं, पर...!

देवरानी: पर क्या दीदी!

हुरिया: इंसान को समझ होनी चाहिए कि धर्म में क्या मना है क्या नहीं? अपने मजे के लिए कुछ भी कर ले तो हमारे में जहन्नम में और...!

देवरानी हुरिया को रोकते हुए देवरानी: और हमारे में बिना रुके सीधे नरक में जाते हैं और देवरानी मुस्कुराती है।

हुरिया को अंदर से बहुत गुस्सा आ रहा था।

हुरिया: वैसे बहुत देर से उठी आप देवरानी?

देवरानी: दीदी कल रात सफर के बाद हम बहुत वह थके हुए थे तो हम दोनों जल्दी सोए और आज सुबह उठ कर हमने योगा कीया।

हुरिया: हम्म तो तुम कसरत करती हो इसलिए तंदुरुस्त हो!

देवरानी: जी दीदी मैं तो कहूंगी आप भी व्यायाम किया करो।

हुरिया: हाँ मैं मोटी हो गयी हूँ।

देवरानी: नहीं दीदी आप के बदन पर थोड़ी चर्बी बढ़ गयी है बस इसलिए बाहे

टाँगे पेट और आपकी छाती ज्यादा भारी हो गयी है पर आपकी लम्बाई पर ये ज्यादा खुबसूरत लगती है।

हुरिया: हम्म शुक्रिया मेरी बहन!

(हूरिया (मन में-इसके अंदर हर बात अच्छी है, फिर ये कैसे अपने बेटे से फंस गई. बात करनी पड़ेगी, अब ये समझे कौन-सी मेरी रिश्तेदार है जो इसे कोई हिदायत दू, बस इसे समझा सकती हूँ कि सुल्तान या कोई और इसकी रंगरलिया ना देख ले। इसे सावधान रहने के लिए कहना होगा।)

देवरानी: क्या सोच में पड़ गई ये लीजिए प्रसाद!

हुरिया: हाँ लाओ.। और सुनो मैं तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ।

देवरानी: बोलिये ना दीदी!

हुरिया: अभी जाओ हम इत्मिनान से बैठ कर गुफ़्तगू करेंगे।

देवरानी: ठीक है मैं प्रसाद सबको दे कर आती हूँ।

हुरिया: चलो मैं भी देखु बाहर। बावर्ची सही खाना बना रहे हैं के नहीं?

दोनों साथ में बाहर आते है तो सामने बलदेव आ गया।

बलदेव हुरिया को देख उसके चरण छू लेता है।

बलदेव: शुभ प्रभात मल्लिका मौसी!

हुरिया: अहा हा बेटा! खुश रहो!

बाहर कुश्ती का अभ्यास कर के दूसरी तरफ से शमशेरा देवराज और उनके साथ ही कुश्ती देखकर बद्री और श्याम भी महल के अन्दर आते हैं।

देवरानी: अच्छा हुआ तुम सब एक साथ आ गए!

देवरानी: शुभ प्रभात भैया!

देवरानी देवराज के चरण छू लेती है।

देवरानी: ये लीजिए प्रसाद!

देवराज: जीते रहो मेरी बहन!

देवरानी इशारे से बलदेव को भी देवराज के चरण छूने के लिए कहती है।

बलदेव देवराज के चरण छूटे हुए प्रणाम करता है।

"शुभ प्रभात मामा जी!"

देवराज: जीते रहो बेटा!

हुरिया: बस केवल मामा के चरण छू रहे हो! माँ के चरण नहीं छूओगे?

बलदेव: वह मल्लिका मौसीमैंने सुबह में ही उनको छू कर आशीर्वाद ले लिया था।

देवरानी मुस्कुरा देती है।

बद्री: (मन में-चरण छुए थे या मौसी का कुछ और छुआ था। हरामी बलदेव!)

देवरानी: अरे तुम दोनों उधर क्यू खड़े हो इधर आओ श्याम और बद्री। प्रसाद लो

श्याम देवरानी के चरण छू लेता है।

श्याम: माता रानी प्रणाम!

और फ़िर अपने हाथो में आखे बंद कर प्रसाद ले कर खाने लगता है।

बद्री: खाने में तो तू कभी पीछे नहीं रहता?

देवरानी: बद्री तुम भी लो!

बद्री भी देवरानी के चरण छू लेता है।

देवरानी: ये लो बेटा तुम भी खा लो! भगवान के प्रसाद को बाद के लिए नहीं रखते।

बद्री: जी मौसी!

शमशेरा: खाला मुझे प्रसाद नहीं दोगी? मैं भी तो आपका बेटा हूँ!

शमशेर की इस बात पर सब हसते है।

हुरिया: दे दो इस शैतान को भी प्रसाद!

देवरानी: ये लो बेटा शमशेरा!

शमशेरा: शुक्रिया खाला जान!

देवराज: के चरण छू लेता है आज जब मैंने तुम्हारी आवाज़ में प्राथना सुनी तो मुझे माँ याद आ गई. वह भी इसी तरह से सुबह सभी से पहले उठ कर भजन गाती थी और तुम्हारी आवाज़ भी उनसे मिलती है।

देवरानी: आखिर मैं मेरी अपनी माँ की ही अंश हूँ, है ना भैया!

बलदेव: मामा जी! माँ एक दिन भी पूजा करना नहीं भूलती, यात्रा में भी कभी नहीं भूलती और कभी-कभी तो अति कर देती है।

देवरानी: तुम्हे क्या पता पूजा का महत्त्व! गधे, बलदेव!

देवराज: अरे झगड़ा बंद करो दोनो। आज हम हमारे गाँव जायेंगे!

बलदेव: सही है माँ को तो इस दिन का प्रतीक्षा बरसों से है।

देवराज: देवरानी बता देना कब निकलना है?

तभी उधर सुल्तान मीर वाहिद आते हैं।

सुल्तान: अरे वाह भाई! पूरा मजमा यहाँ इकट्ठा है। क्या माजरा है?

देवराज: आइए सुल्तान जी! सलाम वालेकुम!

सुलतान: वालेकुम अस्सलाम! देवराज जी!

देवराज: आज सोच रहा हूँ बहन और बच्चों को अपना राज्य और गाँव दिखा दूं।

सुल्तान: जरूर दिखाओ मेरी बहन देवरानी एक अर्शे के बाद अपनी माँ के वतन आई है।

सब वहा से जाने लगते हैं और देवराज और सुल्तान आपस में बातें करने लगते हैं।

बलदेव देखता है बद्री और श्याम पतली गली से उसे अनदेखा किये अपने कक्ष की ओर जा रहे थे।

बलदेव उन दोनों के पीछे जाता है।

बद्री और श्याम अपने कक्ष में आते हैं। बलदेव उनके कक्ष के अंदर आकर दरवाजा बंद करता है।

बद्री और श्याम घूम कर देखते हैं तो पाते हैं उसके कक्ष में बलदेव आया था।

बद्री: क्यू रे हमें मारने आया है क्या? बहुत गुस्सा आया है ना तुझे को कर हमला।

श्याम बद्री को देख रहा था। बलदेव मुस्कुराते हुए बद्री के पास जाता है।

"मेरे मित्र बद्री शांत हो जाओ!"

बद्री: कल तो कह रहे थे ना के अगर "हम मित्र ना होते तो हमे फाड़ देते"। तो दिखाओ अपनी मर्दानगी हम भी कोई चूड़िया नहीं पहनें हुए है।

बलदेव अपने गुस्से को शांत करते हुए फिर मुस्कुराता है।

बलदेव: मेरे मित्र तुम! हो लो जितना गुस्सा होना है। तुम्हारा हक है।

बद्री: तुम्हारी मर्दानगी सिर्फ तुम्हारी माँ पर चलती है क्या? और बद्री मुस्कुराता है।

बलदेव ये सुन कर आग बबुला हो जाता है पर अपना सर नीचे करता है।

श्याम: चुप कर बद्री तुम कहीं के महाराज नहीं हो, जो बलदेव की कल कहीं हुई बात, तुम्हें इतनी बुरी लग गई. तुम अब हद से ज्यादा बोल रहे हो।

बद्री को लगता है जैसा श्याम सही कह रहा है।

बद्री: तो मैं क्या करूँ? जो ये कर रहा है, इसके बाद भी इसकी पूजा करूँ क्या?

बलदेव सोचता है यही सही मौका है बात को संभालने का।

बलदेव: बद्री अगर तुमने मुझे कभी भी अपना सच्चा मित्र समझा होगा, तो मेरी बात सुनोगे।

श्याम: बैठ जाओ तुम दोनों!

श्याम और बलदेव एक कुर्सी पर बैठ जाते हैं।

बद्री पलंग पर अपने दोनों पैर लटकाये हुए बैठ जाता है।

बद्री: अब बको!

बलदेव पूरी कहानी बद्री और श्याम को सुनाता है कि कैसे देवरानी और बलदेव एक दूसरे से प्यार कर बैठे और पूरी कहानी शुरू से अंत तक सुना कर कहता है।

बलदेव: अब बोलो बद्री अगर मेरी माँ किसी पराए मर्द के पास जाए क्योंकि उसके पति ने, उसके ससुराल वाले ने उसे एक बहू का सम्मान नहीं दिया तो क्या ये ठीक होगा?

बद्री: पर मुझे यकीन नहीं होता कि मौसी तुमसे प्रेम करने लगी है। तुम कहीं कोई जबरदस्ती तो...!

श्याम: क्यू नहीं यार? प्रेम अंधा होता है किसी से भी हो सकता है।

बलदेव: अगर तुम लोगों को लगता है कि मैं माँ से जबरदस्ती कर रहा हूँ तो तुम माँ से बात कर सकते हो।

बद्री: ठीक है।

बलदेव: अगर माँ ने कहा कि उसने मुझे चुना है तो? मित्र! फिर क्या तुम ये गुस्सा ख़तम कर पहले जैसे...?

बद्री: पहली बात तो कर लू मौसी से!

श्याम: वह सब तो ठीक है बलदेव पर मेरा दिल इस बात से दुखा है कि तुम इतने दिनों से मौसी से सम्बंध बना रहे थे और हमें सच्चा मित्र बताते हो पर इस बारे में हमे कभी नहीं बताया।

बलदेव: मित्र मैं कैसे तुम सब को इस बारे में बताता?। ये तो अच्छा हुआ तुम्हे खुद ही पता लगा गया।

श्याम: और इस बात का दुख बद्री को भी है, हम दोनों ने तुम्हारे विवाह के लिए क्या क्या सपने देखे थे।

बद्री अपना सर नीचे किये हुए सब सुन रहा था।

बलदेव: मित्रो इस बात को समझो कि मैंने और माँ ने कितना बड़ा कदम उठाया है और इन हालात में, मैं तुम दोनों से क्या कहता कि देखो मुझे अपनी माँ से प्रेम हो गया है और क्या तुम दोनों ख़ुशी-ख़ुशी मान जाते और रही बात विवाह की वह मैं नहीं करने वाला।

श्याम: क्यू भाई तुम एकलौते चिराग हो घटराष्ट्र के राजपरिवार के, विवाह नहीं करोगे तो आगे के वंश का क्या होगा और आगे कौन होगा जो घटराष्ट्र का राजवंश चलाएगा।

बलदेव अपनी आंखो में नमी लाते हुए!

बलदेव: मित्रो मैंने प्रेम किया है तो निभाऊंगा। माँ को छोड़ किसी अन्य को देख भी नहीं सकता हूँ।

ये सुन कर बद्री की हसी छूट जाती है।

जिसे देख बलदेव और श्याम भी हसने लगते है।

श्याम: साले बलदेव! हमने क्या सोचा था कि हमारी भाभी आएगी बलदेव के विवाह में हम ये करेंगे वह करेंगे।

बलदेव: अब लो तुम दोनों ही चाहते थे भाभी ले आओ, जो तुम दोनों को पकवान बना के खिलाये तो मैने ढूँढ ली अपनी ऐसी अर्धांगनी।

इस बात पर बद्री मुस्कुराता है ।

बद्री: और खोजी भी ऐसी भाभी जिसे हमने भाभी भी नहीं कह सकते ।

बलदेव: दोनो इधर आओ!

श्याम और बद्री दोनों खड़े हो बलदेव के दोनों बगल में खड़े हो जाते हैं।

बलदेव: तुम दोनों मेरे बचपन के मित्र हो । तुम समझो मेरी मजबूरी थी जो मैंने ये बात छुपाई । मुझे क्षमा कर दो!

बलदेव की आखे आसू से नम हो जाती है।

बलदेव अपने बाहे बद्री और श्याम के गले में डाल देता है।

बद्री और श्याम दोनों बलदेव को टूट गया देख अपने गले से लगा लेते हैं।

बद्री: रो मत बलदेव, मेरे तुम हमारी जान हो!

बलदेव: कभी दोबारा मत कहना के तुम दोनों मुझे छोड़ कर चले जाओगे हमारी मित्रता इतनी कमजोर नहीं है ।

श्याम: हम हैं ना हम लड़ेंगे तुम्हारे लिए । कोई बात नहीं अगर तुमने ये रिश्ता मौसी की जीवन सवारने के लिए किया । अगर उनकी भी खुशी भी इसी में है तो हमें इसमें भला क्या आपत्ती होगी?

बद्री: रोना मत मित्र, नहीं तो मैं भी रो दूंगा और मुझे भी क्षमा कर दो मैंने गलत शब्दो का प्रयोग किया।

बलदेव: नहीं मेरे मित्र, मैं समझ सकता हूँ तुम दोनों पर क्या बीती होगी!

बद्री: पर मैं मौसी से एक बार तो पूछूंगा।

श्याम: अब माता रानी को मौसी बोलोगे हाँ...?

बलदेव बात को समझते हुए मुस्कुराता है।

बलदेव: हाहा वह तुम दोनों की भाभी लगेगी। मेरी तरफ से पूरी छूट है। बाकी तुम दोनों की मर्जी और तो और श्याम तुम्हें तो उनके हाथ का पकवान भी बहुत पसंद है।

श्याम: हाहा! अब तो मैं हक से उनसे पकवान बनवा कर खाऊंगा।

बद्री: चुप कर पेटू!

श्याम: पर हम उन्हें क्या कह कर पुकारेंगे?

बलदेव: अब तुम दोनों पहले उन्हें मौसी या माँ या माता रानी कहते थे तो ऐसा करो, अब तुम दोनों भाभी माँ बोलो।

इस बात पर बद्री ज़ोर से हँसा।

बद्री: है-है है! बलदेव तू इतना दिमाग कैसे लगाता है? ऐसी सोच लाता कहा से है?

बलदेव: देखो वह भाभी की भाभी रहेगी और वह तुम दोनों के लिए माँ की माँ भी रहेगी ।

श्याम: बड़ा सोच कर शब्द चुना है भाभी माँ!

बलदेव हसता है।

बलदेव: वैसे आज माँ के साथ तुम दोनों भी चलो हमारे साथ नानी के घर!

बद्री: ठीक है हम भी चलेंगे!

श्याम: हाँ मजा आएगा घुमने में!

बलदेव: चलो मित्रो तैयार हो जाओ!

बलदेव चला जाता है।

श्याम: अब तो खुश हो ना बद्री?

बद्री: अब छोडो बलदेव मेरा मित्र पहले है, जब उसका दिल आया है उसको प्रेम हो गया है तो मैं क्या कहूँ?

श्याम: चलो भगवान की कृपा है तुम गुस्से से बाहर तो निकले!

श्याम: भाई मैं थोड़ा सो लेता हूँ फिर उठ कर खाऊंगा।

बद्री: तुम्हारा तो यही है सोना फिर खाना फिर सोना!

बद्री बाहर निकलता है तो देखता है देवरानी दासियो से खाना बनवा रही थी।

देवरानी: अरे बद्री तुम भूख लग गई क्या थोड़ा समय और दो।

तभी वाह बलदेव आजा ता है देखता है बद्री देवरानी के सामने खड़ा हो कर कुछ बोलने की हिम्मत जुटा रहा था।

बलदेव: माँ मैं अपना चूरन जड़ी बूटी खाना भूल गया वह खा कर आता हूँ।

देवरानी: हाँ मैंने वह अपने कक्ष में रखी है ले लोगे ना!

बलदेव: हाँ मैं ले लूंगा!

और मुस्कुरा के बद्री को दिखा के देवरानी को इशारा करता है।

बलदेव: बद्री माँ तुम दोनों बात करो! मैं आता हूँ।

देवरानी: (मन में-लगता है बद्री को बलदेव ने समझा दिया है और वह उसका विषय है पर वह मुझे कुछ कहना चाहता है।)

बद्री: मौसी वो...!

देवरानी मुस्कुराते हुए कहती है ।

देवरानी: कहो बेटा शर्माओ मत!

बद्री: वो कुछ... बलदेव से कहानी सुनी ।

देवरानी थोडा मायुस होते हुए कहती है ।

देवरानी: बस मैं समझ गई बेटा तुम कहना क्या चाहते हो? तो सुनो तुम्हे और श्याम को मैंने बचपन से अपने बलदेव जैसा ही प्यार दिया और अपना बेटा समझा। तो मैं समझती हूँ तुम भी मेरी बात समझोगे।

बद्री: हाँ मौसी.।हिचकिचाते हुए कहता है।

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