पूजा की कहानी पूजा की जुबानी Ch. 08

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एक बहु अपने ससुर के साथ खेली मस्ती भरी चुदाई
6k words
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Part 8 of the 11 part series

Updated 03/13/2024
Created 11/26/2022
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पूजा की कहानी पूजा की जुबानी - 8               (मैं और मेरे ससुर जी)

पूजा मस्तानी

एक बहु अपने ससुर के साथ खेली मस्ती भरी चुदाई

दोस्तों, मैं हूँ आपकी पूजा मस्तानी, मेरा एक और अनुभव के साथ.. आपके समक्ष हूँ।

यह तब की बात है जब मैं 35, 36 वर्ष की थी। वैसे मैं इतनी उम्र की हूँ यह बात मुझे देखने वाले विश्वस नहीं करते। दो बच्चों की माँ तो बिलकुल ही नहीं। जैसे मैंने मेरे पहले एपिसोड में कही है की मुझे हर सुख सुविधा मिल रही थी। मेरे पति राकेश MNC में एक मार्केटिंग ऐक्सक्टीवे (Marketing executive) है और अच्छी सैलरी के साथ साथ उनके सेल्स पर अच्छी कमीशन भी मिलती है। एक अच्छा घर, कार, अच्छा बैंक बैलेंस के साथ दो प्यारे बच्चों के साथ मेरे प्यारे पति जो मुझे हमेशा खुश रखने की कोशिश करते है। बेड में भी और बेड के बाहर भी।

मेरे पति सेल्स एक्सकुटिए होने की वजहसे महीने में 18, 20 दिन टूर पर रहते है। उनके अब्सेंस (absence) में मैंने कुछ social clubs ज्वाइन कर लिए। वहां की औरतें मुझे और मेरी फिगर को देखकर कुढ़ते है। कुछ तो मुझसे पूछते है मेरी ऐसी फिगर मेन्टेन करने का राज क्या है। में सिर्फ मुस्कुराकर रह जति हूँ और बहुत प्रौड़ (proud) फील करती हूँ।

जो अनुभव मै बोलने यानि की लिखने जा रही हूँ उन दिनों में मेरे ससुर आये हुए थे। वह किसान है और गांव मे रहते है और अच्छी खासी जमीन है जिनमे वह खेतीबाड़ी (farming) करते है। फसल का सीजन ख़तम हो चूका था और धान का अच्छी कीमत में बिकी है और प्रॉफिट भी अच्छा आयी है। जो आमदनी थी वह अपने बेटों को देने के लिए वह साल में एक दो बार आते है और अपने बेटों के पास एक डेढ़ महीना रहते है ।

उनके तीन बेटे और दो बेटियां है। बेटों में पहले और सबसे बड़ा रमेश, मेरे पति से बड़े है और मेरे जेठजी है। दूसरा मेरे पति राकेश और और सबसे छोटा राजेश; मेरा देवर। राजेश से बड़े दो लड़कियां है, उनके बारे में मैं फिर कभी लिखूंगी। मेरा देवर छोटा है और वह अपने बड़े भैया के साथ रहता है और पढ़ाई कर रह है। मेरे ससुरजी विदुर है। उनकी पत्नी का 8 वर्ष पहले गांव में सांप काटने से मृत्यु हो गयी है।

ससुरजी जब भी आते है तो मेरे जेठ जी के यहाँ रुकते है। वह जब भी हमें देखने आते है तो मैं उनसे कहती "बाबूजी आपको तो अपने बड़े बेटे से ही प्यार है। आप हमेश उनकी यहाँ ही रुकते है। हमें भी आप का सेवा को मौका दीजिये" में कहती।

"नहीं पूजा ऐसी कोई बात नहीं है.. असल में राकेश ज्यादा समय टूर पे रहता है... इसी लिए" ससुरजी मुझे समझा रहे थे।

"तो क्या हुआ बाबूजी.. मैं तो रहती हूँ न... और जब आप यहाँ रहेंगे तो मैं बच्चों को भी बुला लेती हूँ" मैं कहती हूँ; और अबकि बार देखेंगे कह कर टाल देते है। मेरे दोनों बच्चे जो बारह वर्ष के जुडवा है एक लड़का और एक लड़की दोनों ही एक इंटरनेशनल रेजिडेंशियल स्कूल (International Residential School) में पढ़ते है।

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उस दन सवेरे 8.30 बजे का समय था। मेरे पति राकेश अपने ऑफिस जाने की तय्यरी कर रहे थे। वास्तव में वह दो दिन पहले ही अपने टूर से वापस आये हैं। मैं उनके लिए नाश्ता बना रही थी। इतने मे दरवाजे की घण्टी बजी।

"इतने सवेरे कौन आगया...?" ये सोचते में मैन डोर खोली। सामने मेरे ससुरजी ठहरे है। हाथ में एक ट्रेवल बैग है। उन्हें देख कर में ढंग रह गयी बोली "अरे बाबूजी.. आप.. आईये अंदर आईये.." कहती मैं उन्हें अंदर बुलाई और दरवाजे से हटी। वह अंदर आते मैंने अपने सर पर साड़ी डाली और झुक कर उनके पैर छुए।

वह मेरे सर पर हाथ रखे और पूछे "राकेश नहीं है क्या...?"

"है बाबूजी.. आईये.. वह नहा रहे है" कही। वह अंदर आये और सोफे पर बैठ कर मेरे से घर की हाल चाल पूछ रहे थे। इतने मे मेरे पति बहार आये और अपने पापा को देख खुश होकर "बाबूजी.. आप.. कैसे है? पूछते उनके साइड में बैठ गए। मैं उन दोनों के लिए चाय लायी और मैं भी मेरे पति के साइड में बैठ गयी।

कुछ देर इधर उधर की बातें हुयी और फिर ससुरजी अपने बेटे से पूछे... "राकेश तुम्हारा टूर नहीं है क्या..?"

"बाबूजी.. मैं तीन दिन यहीं रहूंगा और फिर मेरे टूर पर निकल पडूंगा...?"

ससुरजी मेरी ओर देखे और बोले... "पूजा को मेरे से शिकायत है की मैं तुम्हारे यहाँ नहीं रुकता.. इसलिए अब की बार मैं यही रहने की निर्णय लिया है.." वह बोले।

"बहुत अच्छे किये बाबूजी .. आप को किसी बात का प्रॉब्लम नहीं होगी.. क्यों पूजा है न..?

"हाँ बाबूजी; आईये मैं आप को आपका कमरा दिखाती हूँ.. आप फ्रेश हो जाईये.... मैं आप दोनों के लिए नाश्ता परोसती हूँ" कह कर उन्हें उनका कमरा दिखाई और एक फ्रेश टॉवल उनको थमाई और बहार आगयी।

कोई आधा घंटे के बाद हम तीनों नाश्ता किये और एक दूसरे की घरकी हाल चाल पूछ्ने लगे। मेरे पति ने अपना ऑफिस जाने का प्रोग्राम दोपहर के बाद करलिए। बाहर दोनों पिता पुत्र बातों में थे में किचन में आकर दोपहर का खाना बनाने लगी।

************

दोस्तों यहाँ मैं आप को अपने ससुरजी के बारे में कुछ बतानी है।

वह छह फुट से भी ऊँचे कद के है। खेतीबाड़ी के कारण उनका शरीर घाटीला भी है। हमेश चुस्त रहते है। इसके अलावा जब दो वर्ष पहले मै गांव गयी थी तो यह भी मालूम हुआ कि ससुरजी तो रंगीले राजा है।

मेरे गांव पहुँचने के दूसरे दिन मेरे गांव में टाइम पास के लिए ससुरजी ने मुझे एक औरत से परिचय कराई। जिसका नाम है रेखा, वह मुझे दीदी कह कर बुलाती थी। वह मेरे से चार या पांच वर्ष छोटी थी। उसके भी दो बच्चे है। दोनों ही लड़कियां। दिखने में अच्छी है और बहुत भोली भाली है; और साथ में बतूनी भी।

वह रोज ग्यारह बारह बजे आकर दो या तीन बजे तक मेरे से गप्पे लडाती थी। अपनी मइके के बारे में, अपनि गांव के बारे में, अपने ससुराल के बारे में वैसे ही बहुत से बाते बताती थी।

एक दिन गयारह बजे हम दोनों और हमारे बच्चे गांव के बाहर के एक पहाड़ पर एक मंदिर है वहां गये थे। ग्यारह बजे मंदिर तो बंद होगया था और हम वहां एक पेड़ के निचे बैठ कर बतिया रहे थे। एक पेड़ के छांव में हमरे बच्चे खेल रहे थे। उन्हें देखते हुए हम रोजमर्रे की रोटीन बाते में पड़े। बातों बातों में रेखा की जबान फिसली और मुझे बोली की उसे मेरे ससुरजी से योन सम्बन्ध है।

"क्या....?" मैं लग भाग चिल्लाई। उस समय ससुरजी की उम्र कोई 53 वर्ष की होंगे।।

"यही नहीं दीदी..." वह कह रही थी "उन्हें तो मेरी ननद से भी सम्बन्ध है।"

मैं उसे अश्चर्य देखने लगी... "ऎसे क्या देख रही हो दीदी.. मैं सच कह रही हूँ... उन्हें तो गांव के कुछ बड़े घर के औरतों से भी योन संबंध है.." रेखा बोली।

"लेकिन.. लेकिन.."में हकलते बोली... " इस उम्र में... ऐसे कैसे... कर पाते...?"

"उम्र पे मत जाओ दीदी.. वह तो खूब जमकर करते है... पूरे आधे घंटे तक करते है... मैं ही उसका उदहारण हूँ। उनसे करवाने के बाद दो दिन तक मैं अपनी कमर को सेकती हूँ। और उनका गन्ना तो बहुत मोटा और लम्बा है" कहते रेखा ने अपने हाथों से उनका साइज और मोटापा दिखाई।

"क्या..?" मेरी आंखे फट पड़ी।

"मैं तो कमसे कम तीन बार झड़ती हूँ.. और मैंने सुना है की जो औरतें उनसे करवती है वह चिल्लाने लगते है... कुछ ख़ुशी के मारे तो कुछ दर्द के मारे।" यह सुन कर ही मेरे शरीर में एक झुर झुरी सी हुयी।

वह इतने रसीले और रंगीले है; जब यह बातें मुझे पता चली तो नजाने क्यों मुझ मे भी उनके प्रति उत्सुकता जाग उठी।

दोस्तों; आपको मालूम हि है की मैं कितनी बड़ी चुदास औरत हूँ। जब में जवानी में थी तो तब से मेरे में चुदाई की भूत सवार होगई और मैं ज्यादा तर मेरे रिश्तेदारों से मजा ले चुकी हूँ। मेरे पति की (absence) एब्सेंस भी इसकी एक कारण है।

ससुरजी की दो आदतें हैं; एक तो रात में जब तक कोई उनका पैर न दबाये उन्हें नींद नहीं अति है। दूसरा सवेरे उन्हें खुलेमें स्नान करने का और उस समय कोई उनका पीठ पर साबुन लगाए। जब मैं गांव गयी थी तो यह दोनों काम में ही करती थी।

यहाँ आने के बाद रात को मैंने ही उनके पैर दबाने लगी। उन्हें यहाँ आकर तीन दिन होगये। दूसरे दिन मेरे पति टूर पर जाने वाले थे। उस रात हर रोज की तरह में उनके पैर दबा रही थी। कुछ देर दबाने के बाद वह बोले "बस बहु..." में उठ कर बहार निकलने वाली थी की उन्होंने बुलाये "पूजा इधर आना जरा..."

मैं समीप पहुंची और उन्होंने मुझे मेरि कलायी पकड़ कर खींचे और अपनी गोद पर बिठाये। यह सब इतना अप्रत्याशित हुआ की में कुछ बोल पाने से पहले मेरे नितम्ब उनके गोद में थे।

गभरा कर मैं दरवाजे की ओर देखि। दरवाजा अंदर से बंद थी। हमारे कमरे में मेरा पति मेरा इंतज़ार में है। मेरा दिल धौंकनी की तरह धड़कने लगी।

में हकला गयी और बोली। "ससुरजी.. आप यह क्या क्र रहे हैं...?" में पूछ ही रहीथी कि उनके होंठ मेरे गालों पर थी और चूमते बोले.. "पूजा तुम बहुत सुन्दर और अच्छी बहु हो..." कहते उन्होंने अपने कुर्ते की जेब से एक सोने की चैन निकाली और मेरे गले में खुद ही डाल कर हलके से मेरे चूची को सहलाये और मुझे छोड़ते बोले.." जाओ.. राकेश तुंहारा इंतज़ार में होगा.. कल जो वह जा रहा है.."

इतने मे मुझे मेरे पति की आवाज़ सुनाई दी "पूजा..." में झट उनके गोद से उतरी और बाहर को भागी।

उस रात मेरे पति ने मुझे खूब किये है में उनकी सहयोग कर रही थी लेकिन मेरे मस्तिष्क में बाबूजी की हरकत घूम रही थी। मैं चाह कर भी उनकी हरकत के बारे में मेरे पति को नहीं बताई।

दूसरे दिन सवेरे वह अपने टूर पर निकल पड़े। जाते समय बाबूजी का ख्याल अच्छी तरह रखने को बोल गए है।

उसके बाद असली खेल शुरू हुआ। मैंने नोटिस किया की ससुरजी की नजरे हमेशा मेरे उभारों पर सामने या पीछे रह रहे है। उनकी आँखों में लालसा दिखने लगी। पूजा पूजा कहते वह मेरे आगे पीछे मँडराने लगे। कभी चाय के नाम पर तो कभी पानी के नाम पर, दोपहर को तो वह मुझसे पत्ते या कैरम खेलते है और जैसे ही मैं पत्ते लेने या कैरम को स्ट्राइक करने झुकती हूँ तो उनकी नजरे मेरे चूचियों के बीच गहरी खायी पर चिपक जाते हैं।

अब उनकी नजरे हमेशा मेरे ऊपर ही रहती थी। और जैसा मैंने कहा है वह मेरे पीछे मेरे अंगों को देख देख कर तृप्ति पा रहे थे। और तीन चार बार मैंने उन्हें अपने जांघों के बीच हाथ से सहलाते देख चुकी हूँ।

उनकी हरकतों को देख कर, जाने अंजने में हि मेरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन उठने लगती। मुझे बार बार गांव मे रेखा की बातें याद आरही थी की वह कमसे कम आधा घंटा करते है और उनका बहुत लम्बा है। 'कितना लम्बा होगा उनका..?' में सोचती। मेरी चुदासी बुर में एक खुजली सी होती थी। मैं अपने आप में हंसती थी। रातों को सोते समय अनजाने में ही मेरी एक हाथ अपने जांघो के बीच चली जाती और वहां मेरे उभार को सहलाने लगती।

************

मुझे गोद में बिठाने की उस रात के बाद पांच दिन गुजर गए, कोई और घटना नहीं घटी थी। मैं सोचती की वह आज मुझे फिर से पकड़ेंगे, लेकिन वैसा कुछ भी नहीं हुआ। मुझे बार बार ससुरजी के हाथें मेरे उभारों पर महसूस होती थी। एक बार वह फिर से सहलाये यही सोचती थी।

जब भी वह घटना याद अति है तो मेरा शरीर पुलकित हो जाती थी। कितना अच्छा होता वह एक बार फिर मुझे अपने गोद में बिठाते। ऐसा कई बार सोची थी।

उस घटना के पांचवे दिन, मेरे पति के जाने के चौथे दिन, उस रात 9 बजे मैं ससुरजी के पैर दबाने के कमरे में गयी। घर में मेरे और ससुरजी के अलावा कोई और नहीं है। ससुरजी अपने पीट के बल लेटे थे। उनकी आंखे खुले थे और छत को देख रहे थे। मैं जा कर उनके कमर के पास बैठ कर उनके पैर दबाने लगी। घुटनों के निचे मैं दबा रही थी। वह मुझे देखते घर के बारे में, मेरे बच्चों के बारे में कई प्रश्न पूछ रहे थे। मैं हूँ...हाँ... में जवाब दे रही थी।

बातें करते करते वह सो गए। सुनियोजित तारीखे से उनके छाती उठ बैठ रही थी। जब मुझे लगा की वह सो गए हैं तो में उठने लगी। तभी मैंने देखाकि ससुरजी के जांघों के बीच धोती के नीचे हलचल हुयी है। उस हलचल के साथ ही उनकी धोती के अंदर कुछ उभार भि लेने लगी।

मेरी समझ में आगया है कि वह ससुरजी की औजार है। मैं चकित होकर उसे देख ही रह थि कि वह और उभरकर उनके धोती को तम्बू बना दि। अनजाने में ही मैं उनकी जांघ को सहला रही थी। मैं पहले हमेशा सिर्फ घुटनों तक ही दबाती थी लेकिन आज पहली बार उस उभारको देखते मैं उनके जांघों को भी दबाने लगी।

मुझे ऐसा लगा की मेरे स्तनों में ठीस उठने लगी और मेरे उन्नत स्तन और उभरने लगे। मेरी घुंडियों में तनाव आकर कड़क हो चुके है। उनके धोती को देख कर मरे मुहं में और फिर निचे जांघों के बीच मेरी सहेली के मुहं में भी पानी आगया। तम्बु देख कर लम्बाई का अंदाजा हो रहा है लेकिन मोटापे का नहीं। मेर मुहं में इतना पानी आया की उसे निगलनेके लिए मुझे तीन चार बार गटकना पड़ा। वह ठहर ठहर कर अपने सर हिला रही थी।

मैं धड़कते दिल से धोती के अंदर हिल रहे उस डंडे को देख रही थी। यह क्या इतना बड़ा है ससुरजी का, लगता है रेखा ने सही ही कही। 'एक बार नंगा देख लूँ' में सोची और धीरे से ससुरजी क धोती हटाने लगी। एक ओर धड़कते दिल और दूसरी और कांपते हाथ। धीरे धीरे उनकी धोती हटाने लगी।

बापरे कितना बड़ा है यह.. और देखो तो कितना मोटा भी है... तौबा.. कोई इसे कैसे ले पायेँगे ...?' ससुरजी के नंगेपन को देखते मैं सोच रही थी। वह रह रहकर टुनकी मार रही है। सामने से थोड़ा सा चमड़ी पीछे को फिसल कर उनके सुपाडे का छोटा हिस्सा गुलाबी रंग में चमक रहि है।              

मैं एकबार ससुरजी के मुहं के और देखि। उनकी सांस नियमित गति से चल रही ही। उनकी छाती ऊपर नीचे हो रही है। नींद में कुछ बड़ बड़ा रहे है। मैं अपने दाहिने हाथ को आगे बढ़ाकर उंगलियों से उसे हल्का सा छुई। उसे छूते ही वह एक बार जोर से हिली। छूने पर भी उनके आंखे नहीं खुली तो मेरी हिम्मत बढ़ी और उसे अपनी मुट्ठी में जकड़ी।

आअह्ह्ह्ह... कितना गरम है, ससुरजी का जितना मेरी मुट्ठी में है उस से ज्यादा मेरे मुट्ठी से बाहर है और मोटापा मेरी मुट्ठी में मुश्किल से सामा रही थी। मुट्टीमे जकड़ने पर भी ससुरजी में कोई स्पंदना नहीं थी तो अब की बार जोर से भींची।

"ससस...हहहहआ...ममममम" उनके मुहं से एक सिसकारी निकली। में गभराकर हाथ खींची लेकिन ससुरजी ने अपने आँखे नहीं खोले तो फिर से हिम्मत कर जकड़ी।

"मममम... रेखा और जोर से भींचो... शाबाश...vooon.. और... आअह तुम वैसे भींचो तो कितना सुख है... ससस..." वह बढ़ बड़ा रहे थे। वह रेखा के नाम ले रहे है... रेखा वही औरत है जिन्होंने मुझे ससुरजी के रंगीनियों के बारे में अवगत कराई। मेरी समझ में आगयी की ससुरजी, नींद में रेखा को कर रहे है...' क्या वास्तव में ससुरजी नींद में है या नींद का बहाना बना रहे है..' समझ नहीं आया.. लेकिन मैं इस खेल को आगे बढ़ाना चाहती थी।

मेरे हाथ में भरे उनके मोठे लंड को में अब ऊपर निचे करने लगी। वैसे करते समय उनका fore skin पीछे को फिसल कर उनका मोटा, गुलाबी सुपाड़ा लाइट की रौशनी में चमक रही है।

जैसे जैसे मैं उन्हें मूठ मार रही थी मुझे बहुत आनंद आ रहा था। मेरे चूचियां में और उभार आगये हैं और घुंडियां और कड़क होकर सूखे कजूर जैसे हो गए है। उनमे एक अजीब से ठीस उठ रहीथी। मेरे जाँघों के बीच मेरी बुर और फूल गयी है और उसमे से मदन रस बह रही है। एक हाथ से ससुरजी के लंड को मूठ मारते दूसरे हाथ को मैं अपनी जांघो के बीच लगाई और अपनी बुर को दबाने लगी।

"क्यों रेखा.. तुम्हे भी खुजली हो रही है क्या...क्या... अरे बाबा चोदुँगा ना इतनी भी क्या जल्दी... पहले कुछ देर इस गन्ने को तो चूसो.. गन्ने का रस पीलो .. तब असली काम शुरू करूंगा.. तबका मजा अलग ही है.. चलो लेलो उस गन्ने को मुहं में..." कहते वह अपने कमर उछाल ने लगे।

मैं एक हाथ से ससुरजी को हिलाते ही अपनी बुर को दूसरी हाथ से दबा रही थी। कभी कभी मेरी कड़क हो चुके मस्तियों को मसल रहीथी। चूत से पानी एक नहर में बहते पानी की तरह बह रही है। मेरे अंदर की खुशी और बढ़ गयी।

जैसे ही ससुरजि ने अपने स्वप्ने में रेखा को चूसने के लिए कहते ही मैं ऐसा अवसर गंवाना नहीं चाहती थी, मैं उनके मोठे सुपाड़ी को मरे मुहं में ली और चूसने लगी। फिर मेरे जीभ को उनके सुपडे की गिर्द चलायी। मुझ में एक अजीब सा नशा छा गयी। मैं अपने पति की भी चूसती थी लेकिन वह न तो इतना मोटा है और न इतना लम्बा... फिर में उसे पूरा का पूरा मरे मुहं में ली लेकिन वह तीन चौथाई से ज्यादा मेरे मुहं में समां नहिं पायी। और अंदर लेने की कोशिश की तो उनका तगड़ा सुपाड़ा मेरे हलक में अटक ने लगा।                            

'अब्ब्बा.. इतने लम्बे और मोटे औज़ार जब अंदर चीरते घुसेगी तो कैसा रहेगी? इस से चुदवावुंगी तो कितना मजा आएगा.. क्या मैं इतना लम्बा मेरे में ले पावुंगी...?'

'मेरा पति का भी इतना लम्बा और मोटा होता तो कितन अच्छा होता..' में सोचने लगी! मैं सोचते ससुरजी की चूस रही थी। लॉलीपॉप की तरह चुसक रहीथी। कभी कभी उनके सुपडे के चारो तरफ जीभ फेर रही थी। उनकी नन्ही सी सुराख़ में जीभ चुभो रहीथी।

"आआह... रेखा.. मेरी रानी... वैसे ही ऊपर निचे करते रहो...आआह्ह अब जोरसे अपनी भोसड़ी से मुझे चोद। देखो तुम्हरे चोदने से कैसे थप थप की आवाजें आ रही है... उफ़.. उस आवाज सुनकर मेरी मस्ती और बढ़ रही है... दो दो बच्चों की होने के बाद भी तुम्हार इतना तंग है जैसे कुंवारी की होती है... .अब्बा..वैसे ही... वून...वूं... मेरी खल्लास होने वाला हूँ ... तुम्हारा भी खल्लास हो रही ही क्या...तू भी झाड़ेगी...मेरे साथ ही झड़ तू भी...अम्मम्म..." कहते कहते ससुरजी अपन गर्म मॉल से मेरा मुहं भर दिए... उनका घाड़ा, नमकीन वीर्य से मेरा मुहं भर गया।

ज्यादा भाग ससुरजी के वीर्य को निगलने के बाद भी कुछ वीर्य के बूंदे मेरे मुहं से निकल कर मरे शरीर पर भी गिरे। 'बापरे इस उम्र में इतना वीर्य...' में सोचती ससुरजी के औजार तब तक चूसती रही तब तक वह नरम न पड़े और छोटा न होजाये। जैसे ही उनका लंड नरम पड़ी ससुरजी का बड़ बडाना भी रुक गयी। में उन्हें देखि। अब वह फिर अपने नियामत रूप से साँस लेने लगे। में कुछ देर और रुकी फिर उठकर लाइट बंद करी और मेरी कमरे की ओर चली। 'यह कैसे मर्द है' में अपने पति के बारे में सोची। पत्नी घरपर पति के लिए तड़पे और वह न जाने क्या कर रहे होंगे' सोचते मैंने मेरी तब तक गीली होचुकि बुर में ऊँगली करते ससुरजी के बारे में सोचती सो गयी।

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दूसरे दिन सवेरे हमेशा की तरह वह आंगन में बोर पंप के पास नहाने गए। मैं भी उनके पीट पर साबुन लगाने गयी। मैं उनके पीट पर सबुन लगाकर मल रही थी।

"पूजा...." सामने की तरफ साबुन लगते बुलाये।

"वूं...क्या है बाबूजी..." मेरा काम जरी रखते बोली।

"रात में कुछ हुआ था क्या...? मैंने कुछ अनुचित तो नहीं किया...?" वह पूछे।

कल रात ससुरजी के वीर्य का नमकीन स्वाद को याद करते में बोली... "नहीं बाबूजी.. ऐसा क्यों पूछ रहे है...?" मैं भोली सूरत बनाकर पूछी। बोलते हुए मैं उनके सामने की तरफ गयी ताकि मैं उनकी लंड को एक बार देख सकूं। बीघी गमछे के निचे उनका मुरझाया दिखाई दी तो मेरे मदनपुष्प में फिर से मकरंद रिसने लगी।

"कुछ नहीं बहु... कल रात तुम्हरी सासुमा मेरे सपन में आयी.. और मैं..." व्ह रुके और मेरी आँखों में झांकते बोले... "तुम शदी शुदा हो.. तुम्हे मालूम ही होगा..पति पत्नी के बीच क्या होता है..." एक हलकी सी मुस्कान देते बोले।

"छी...छी बाबूजी आप भी ना ..." में शर्म से लाल हो गयी और अंदर को भागी।

इसी बात से में समझ गयी की रात में बाबूजी सो नहीं रहे थे बल्कि सोने का बहाना कर रहे थे और उन्हें यह भी मालूम है की मैंने उनके साथ क्या किया है। अंदर को भगते समय मेरी लचकते कमर और उसके निचे मटकती नितम्बों को देख कर अपना सहला रहे होंगे' यह मुझे पक्का है।

***************************

इस घटना के बाद चार दिन और निकल गए, इन चार दिनों में नया कुछ नहीं हुआ लेकिन जब भी मैं उनके सामने होते तो वह ऐसे मुस्कुराते की उन्होंने मेरि राज पकड़ली... मैं भी शरमाते सर झुकाकर मुस्कुरा कर वहां से से भाग निकलती। लेकीन मुझे हमेशा यही अंदेशा रहती थी की ससुरजी मुझे अब पकडे की बस अब..

इन चार दिनों में मैं उन्हें अनेको बार अपनी लवडे की सहलाते देख सोचती...'बाबूजी हाथ से क्या सहलाते हो.. आओ मेरी खुजलाती बुर में जम कर पेलो और अपनी गर्मी के साथ साथ मेरी गर्मी भी शांत करो' इन दिनों कुछ नही हुआ तो मैं निराश होचली थी। और अपने आपको उँगलियों से शान्त करती थी। जब मौका मिले तब में अपने मस्तियाँ बाबूजी को दिखा दिखा कर या मटकते गांड को और मटकाकर उन्हें और उतावली कर रही थी। वह भी मुझे देख कर हँसते, और अपने जंघोंके बीच सहलाते रहते थे।

फिर पंचवे दिन वो घटना घटी जिसके लिए मेरी बेसब्री से इन्तेजार थी। उस दिन सुबह सुबह बाबूजी बाहर गए थे और वापस जब आये तो लगभग बारह बजे थे। वह आते ही बाहर बोर पंप के पास पाँव धोये और वहीँ वरांडे में बिछे पलंग पर बैठ गए और मुझे बुलाये "पूजा बेटी पानी तो पिलाना..."

"अभी लायी बाबूजी" कहकर पानी के बदले में उन्हें ठंडा चांच लेगाई।

चांच पीकर गिलास को निचे रख, घर की हाल चाल पूछने लगे। में जवाब दे रही थी। 'बैठो " वह बोले और मैं साइड में बैठने वाली थी की उन्होंने मेरी कलाई पकड़ कर मुझे अपने गोद में खींच लिये। उनके ऐसा करते ही मेरे सारा शरीर झन झना उठा।

"पूजा तुम बहुत अच्छी हो... तुमहरा पति दिनों दिन बाहर रहने पर भी घर को अपने आप संभल रही हो... बच्चो की देखभाल करलेती हो.. सचमे तुमसे मैं बहुत खुश हूँ। वास्तव में राकेश बहुत लकी है... और जबसे मैं आया हूँ तुम मेरी भी अच्छी खातिर कर रही हो..." कहे। ससुरजी यह बात क्यों कहे समझ कर मैं लज्जा से सर झुकाली। उनकी यह बात का मतलब उस रात उनको चूसने की बात है यह में समझ गयी।

"मैं बहुत खुश हूँ... यह लो.." कहते उन्होंने होने अपने बैग में से एक 500 रुपयों का बंडल मुझे दिए और कहे... पूजा यह इस वर्ष फसल की रूपये है..पूरे पचास हजार। में हर बर राकेश को देता था लेकिन अब से तुम्ही इसकी हक़दार हो रखो" कहे और फिर ... जेब से एक सोने की लॉकेट निकाल कर बोले "उस दिन मैंने सोने की चैन दी थी उसमे लॉकेट नहीं है.. यह लो लॉकेट... समीप आवो मैं ही इसे तुम्हारे चैन में चढ़ा देता हूँ.. कहते मेरी गले की चैन को पकड़ कर उसमे लॉकेट चढ़ाने लगे। लॉकेट चढ़ाते समय उनकी उँगलियाँ मरे मस्तियों को सहला रहे है। उनकी उँगलियाँ की सहलाहट से शरीर में गुद गुदी होने लगी। उनकी यह हरकत देखते ही मै समझ गयी की आज मेरी चुदाई होगी बाबूजी से...

अब वह लॉकेट मेर्री चूचियों पर है। उसे देखने की बहाने ससुरजी ने मेरी मस्तियाँ को सहलाये। सहलाते बोले "यह मेरे लिए बहुत प्रिय है... क्यों मालूम...? कहते मेरे मुहं को देखे। पहले गोद में बिठाए और अब मेरी मस्तियाँ सहलाये तो में समझ गायि की कुछ होने वाला है।

मैं धड़कते दिल से ससुरजी को देख रही थी। इतने में मैंने देख की उनकी धोति मे हल चल हो रही है। आँखों के कनकियों से मैं देखि तो ससुरजी के उसमे हवा भरने लगी।

"यह लॉकेट मैं तुम्हारी सासुमा को दीया था। यह सिर्फ लॉकेट ही नहीं, मेरा दिल है; वह इसे बहुत संभाल के रखी थी। क्या तुम भी इसे संभाल के रखोगी ..?" पूछे।

"जी बाबूजी.. में भी इसे संभाल के रखूंगी.." में हलके स्वर में बोली।

"सासुमा इसे कहा संभाल के रखती थी मालूम..?" फिर से पूछे।

मुझे इस आंख मुचौली के खेल में बहुत मजा आरहा था। मेरा सारा शरीर गद गद हो रहा था। मैं अपनी नादानी दर्शित करते पूछी "कहाँ रखती थी बबुजी..?" इधर निचे उनका मेरे जांघों में चुभ रही है।

"अपने दिल में.." कहे और एक बार मेरे दिल को टटोले।

"........." मैं खामोश रही।

"अब बोलो तुम इसे कहाँ छुपावोगी ..?"

में शर्म से सर झुका कर मन्द्र स्वर में कही "मैं भी वहीँ..."

चलो एक बार मेरे हाथ को वहां रख कर बताओ कहाँ छुपावोगी.."

मेरा शरीर पुलकित हो रही थी, मैं बाबूजी के दायां हाथ को लेकर मेरी बायीं गेंद पर रखी और उसे वहां दबायी। इस से ससुरजी का chehra (सूरत) दिवाली की फूलझड़ी की तरह चमकी। ख़ुशी से उनोहने उस गेंद को जोर से दबाये।

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