महारानी देवरानी 088

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जो जीता वो महाराजा
4.9k words
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Part 88 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 88

जो जीता वो महाराजा

::::कुबेरी::::

आधी रात बीत गई थी सुल्तान की सेना ने आसान से रतन सिंह की सेना को हरा कर कुबेरी में अपना झंडा गाड़ दिया था। वही शाहजेब की सेना का बिना शाहजेब का हौसला पस्त हो गया था इसलिए जब पारसियों ने उन पर आक्रमण किया तो वह भागने लगे, पूरे कुबेरी में भागदड का माहौल है और सब सुल्तान को हमलावर और खूनी दरिंदा कह रहे थे, कुबेरी वासी जानते थे की सुल्तान ने खज़ाने की लोभ में आकर कुबेरी पर हमला किया है जिससे आज हजारो सैनिको को अपनी जान गवानी पड़ी थी ।

पूरे कुबेरी में कुबेरी और दिल्ली के सैनिको के लाशें बिछी हुई थी । सड़को पर, कुबेरी की सीमा से ले कर महल के अंदर तक लाशें-लाशें नजर आ रही थी । एक तरफ महल में राजा रतन सिंह की लाश भी पड़ी हुई थी, जिसे देवराज ने बड़े बेरहमी से मारा था। रतन की फिरंगी पत्नी एलिज़ा भाग गयी थी पर उसकी दो अन्य पत्निया जो की दोनों बहनें थी, रुक्मणी और सुखमनी नहीं भागी थी और अपने कक्ष में बंद थीं।

पारस से वह सेना के साथ आया हकीम सुल्तान का इलाज कर रहा था। और देवराज सुलतान से कहता है ।

देवराज: हिम्मत मत हारिए सुल्तान आप जहाँ पनाह है आपको ये तीर नहीं मार सकते ।

सुल्तान दर्द में धीरे-धीरे कहते हैं।

सुल्तान: नहीं देवराज मुझे लगता है खुदा का बुलावा आ गया है।

देवराज: हकीम जी इनका उपचार कीजिए!

हकीम: जनाब हम सब पूरी कोशिश कर रहे हैं पर इस जहर का तोड़ अभी हमारे पास नहीं है।

देवराज: आपको जो भी चाहिए वह बोलो।

हकीम: कुछ जड़ी बूटीयो की जरूरत है...शायद उनसे काम बन जाए!

देवराज: सैनिको आकाश पाताल एक कर दो पर सुल्तान को कुछ होना नहीं चाहिए!

सैनिक: महाराज ठीक है...पर पूरे कुबेरी में भगदड मच गई है। सब कुबेरी छोड के भाग रहे हैं।

देवराज: वह डर रहे हैं। यहाँ के राज परिवार और यहाँ की प्रजा के लिए ढिंढोरा पीटवा के कह दो, हम उनके साथ कुछ दुव्याहार नहीं करेंगे । हमारी शत्रुता रतन सिंह से थी उनकी प्रजा से नहीं।

देवराज सुल्तान जिस कक्ष में उपचार करा रहा था वहाँ से बाहर आता है तो देखता है एक बंद कक्ष से दरवाजा खोल बाहर निकल, रुक्मणी सुखमनी भागने की कोशिश कर रही थी।

देवराज: सुनिये!

दोनों पलट कर देखती है।

रुक्मणी: मेरे करीब भी मत आना नहीं तो...!

देवराज: आप लोग डरे नहीं हमसे, आप सुरक्षित हैं।

सुखमनी: हमारे राज्य को लूट कर तुमने हमारे लोगों को मारा है हम तुम पर कैसे विश्वास का ले?

देवराज: मेरा धर्म ये नहीं सीखाता है और की किसी की बेटी बहू या पत्नी को गंदी नजर से देखो। मैं आप दोनों की जिम्मेदारी लेता हूँ। जब तक आप इस महल में हैं आप सुरक्षित हैं और वैसी भी आधी रात में आप दोनों कहा जाओगे।

सुखमनी: देखते हैं आप अपनी बात पर कितने खरे उतरते हैं।

देवराज: देवी! ये राजपूत का वचन है। अगर आप दोनों को किसी भी चीज़ की ज़रूरत है तो आप मुझे कहें!

तभी देवराज के पीछे दीवार के एक कोने में रुक्मणी को एक लाश दिखती है।

रुक्मणी: वो देखो!

सुखमनी: आआआह महाराज!

रुक्मणी सुखमणी एक दूसरे को पकड़ लेती है और रोने लगती है।

देवराज पीछे मुड़ कर देखता है और वह समझ जाता है।

देवराज: सैनिको लाशो को ले जा के उनका क्रिया कर्म करदो।

देवराज: आप दोनों अंदर जाइये, बाहर का दृश्य इस से भी ज्यादा बुरा है।

रुक्मणी सुखमणी दोनों हाथ कटे हुए मरे हुये रतन को देख हिल जाती है। फिर दोनों अंदर जा कर रोते हुए अपना दरवाजा बंद कर लेती है।

कुछ देर में सैनिक जडी बुटिया लाते है और हाकिम सुल्तान का उपचार शुरू करते है।

देवराज: आपको और कुछ चाहिए हकीम जी?

हकीम देवराज जी अब सुल्तान खतरे से बाहर है पर इन्हें कुछ दिनों तक निगरानी में रखा जाएगा।

देवराज: सैनिको कुबेरी की सीमा पर तैनाती बढ़ाओ और महल को चारो ओर से घेर लो। हम एक दो दिन रुक कर जायेंगे । जैसे ही सुल्तान ठीक होते हैं हम तब तक यहीं रुकेंगे ।

::::घटराष्ट्र::::

बलदेव और शमशेरा मिल कर शाहजेब की सेना का डट कर मुकाबला कर रहे थे और देवरानी रथोमें बंधी घटराष्ट्र की महिलाओ की रस्सीया खोल कर उन्हें आजाद कर रही थी।

बलदेव: माँ सब महिलाएँ बच गयीं ना!

तभी सामने से तेज तीर बलदेव की ओर आता है । बलदेव अपने कवच से उस तीर को रोकता है और अपना घोड़ा उस तरफ ले जाता है। फिर अपनी तलवार को कस कर घुमाता है और उस तीरंदाज का सर नीचे गिर जाता है।

देवरानी: बस बेटा एक रथ बाकी है इन्होने तो हजारो महिलाओं को बंदी बना कर ले जाने की तयारी कर ली थी।

तभी देवरानी के सामने दो सैनिक आते हैं।

देवरानी: आजाओ तुम भी मजा चखौ।

देवरानी दोनों से बारी-बारी तलवार से लड़ रही थी, कभी देवरानी उन पर भारी पड़ती तो कभी वह दोनों देवरानी को अपनी तलवार से पीछे कर देते हैं ।

"अरे तुम औरतो के ये काम नहीं आएगा जंग लड़ने का काम हम मर्दो का है ।"

"तुम्हें शर्म नहीं आती, एक स्त्री से दोनों मिल कर लड़ रहे हो और उसे कम बता रहे हो।"

देवरानी इस बार तलवार अपने पीछे से ऊपर ले कर, अपनी तलवार जोर से ऊपर कूदते हुए एक सैनिक की तलवार पर मारती है जिससे उस सैनिक की तलवार को आधा काट देती है।

देवरानी कहती है

"देख लिया तुम्हारी तलवार में वह दम नहीं जो राजपूताना तलवार में है। नामर्द!"

"भाई ये तो इतनी भारी भरकम है, फिर भी उड़ रही है, कूद रही है।"

ये कहते हैं वह सैनिक चिल्लाया।

"आआआआआआह!"

और गिर जाता है। देवरानी झट से दूसरे सैनिक की गर्दन पर तलवार रख कर खाच से घुमा देती है और ऊपर देखती है तो बलदेव ने उस सैनिक को अपने तीर से गिरा दिया था।

देवरानी: धन्यवाद मेरा राजा!

बलदेव आँख मारता है।

बलदेव: रानी जल्दी करो और घोड़े पर आजो । तुम्हारा नीचे रहना खतरे से खाली नहीं है ।

देवरानी झट से आखिरी रथ जो शाहजेब का था उसे देख उसमे जाती है और देखती है उसमे एक महिला बंधी हुई थी जो रोये जा रही थी।

देवरानी जा कर उसके कंधे पर हाथ रखती है।

वो महिला जैसे ही पलटती है देवरानी के होश उड़ जाते हैं।

देवरानी: सृष्टि तुम!

देवरानी: (मन में) जिसने मेरा जीवन नरक बना दिया मेरा पति मुझसे छीन लिया उसे मैं नहीं बचाऊंगी।

फिर जैसे ही देवरानी रथ से उतर कर जाने लगती है, वैसे ही सृष्टि जोर-जोर से रोने लगती है। उसके आसु थम नहीं रहे थे।

सृष्टि का मुह बंधा हुआ और रस्सी से उसके हाथ पैरो को भी शाहजेब ने बाँधा हुआ था।

देवरानी मुड़ कर देखती है सृष्टि को

देवरानी: (मन में) मैं भी कभी ऐसी ही बेबस थी, एयर तब तूने मेरे जीवन की हर ख़ुशी छीन ली थी और आज तक मेरे से ईर्ष्या करती रही, मेरा अपमान करती रही, जब मैं अपनी बेबसी से बाहर निकलने लगी तो मेरी और मेरे या बेटे की जान के पीछे पड़ी रही ।

सृष्टि देवरानी को सामने कड़ी देख उसे अपनी पलकों से इशारा कर कहती है कि वह उसे खोल दे और रोने लगती है सुरिष्टि की ऐसी हालत देख देवरानी को दया आ जाती है ।

देवरानी: (मन में) खोल देती हूँ । मारने वाले से हमेशा बचाने वाला बड़ा होता है । इसका बदले में भगवान मुझे पुण्य देगा । अगर मैं भी इसके रास्ते पर चली तो इसमें और मुझमें कोई अंतर नहीं होगा। मैं इसे बहन मानती थी और दीदी कहती थी इसलिए खोल देती हूँ इसे।

देवरानी आगे बढ कर शुरष्टि की रस्सी को खोलती है, फिर उसके मुंह पर बंधे कपडे को भी खोलती है शुरष्टि शाहजेब दुवारा जानवरो की तरह मसले जाने और घंटो से बंधे रहने से एक दम ढीली हो गई थी।

शुरष्टि: देवरानी मेरी बहन! धन्यवाद!

देवरानी श्रुष्टि को देखती है और रथ से उतर कर अपना घोड़े पर बैठती है और बलदेव की ओर आती है।

शाहजेब अपनी फौजियों की अलग-अलग टुकड़ियों को भेजताऔर शमशेरा बड़ी ही आक्रमणता और युद्ध कौशल दिखाते हुए उनके हर दाव पर भारी पड़ जाता है ।

शाहजेब: फौजियो अब हमारे फौज बहुत कम लग रही है । हमें यहाँ से बाहर निकालो।

सैनिक: बादशाह सलामत! आपकी छमिया रानी श्रुष्टि के साथ आपका रथ तैयार है ।

शाहजेब: ठीक है उस रानी को साथ ले कर जाना है, कुछ सैनिक हमारे रथ के पास चलो!

शमशेरा देखता है शाहजेब भगने की कोशिश कर रहा है।

शमशेरा: दोस्तो शाहजेब भागने ना पाए.।फतेह हमारी है!

सैनिक शाहजेब की तरफ हल्ला बोल देते हैं और शाहजेब की तरफ से उनके सैनिक आने लगते हैं।

शमशेरा अपने हाथ में तलवार लेकर चलते हुए लाशों का अंबार लगा देता है।

शमशेरा: आआ ये ले! शमशेरा की शमशीर से मुकाबला करना बच्चों का काम नहीं है।

खच कर के शमशेर सैनिको की गरदन उड़ा देता है । खून के छीटो से शमशेरा का बदन भर जाता है।

शाहजेब अपने रथ के पास भाग रहा था, उधर से बलदेव और देवरानी आते दिखते हैं ।

शाहज़ेब: ये सब एक साथ कैसे आ गए?

बलदेव और देवरानी भी शाहजेब के सैनिको को मारते हुए शाहजेब के पास आ रहे थे।

शाहजेब: फौजियो जितने भी रथ हैं उन सब में आग लगा दो अगर हम औरतों को नहीं ले जा रहे तो इनका जीने का हक नहीं है।

शाहज़ेब अपने घोड़ा दूसरी ओर मोड़ते हुए कहता है ।

सैनिक: बादशाह सलामत हम अपने रथ से नहीं जा रहे हैं?

शाहजेब: जो कहा है करो और मेरे पीछे इन्हें मत आने दो। चलो सैनिको!

शाहजेब कुछ सैनिकों के साथ भागने लगता है । इधर शाहजेब की सेना हर रथ में आग लगा देती है और उन रथो पर आग के गोले की बारिश कर देती है।

शमशेरा: शाहजेब का पीछा करो बलदेव!

बलदेव और शमशेरा दोनों अपना घोड़ा शाहजेब के पीछे मोड़ते हैं। उतने में जलते हुए रथ को शाहजेब की सेना के बीच में ले आती है । बलदेव और शमशेरा को मजबूरन अपना घोड़ा रोकना पड़ता है तभी देवरानी पीछे से आती है।

देवरानी: छोडो उस भगोडे को । जाने दो।

बलदेव: घटराष्ट्र वासियो! हम जीत गए. हमने भगा दिया शाहजेब को।

बलदेव और शमशेरा अपने घोड़ों से उतरते हैं और बचे खुचे शाहजेब की सैनिकों को मारने लगते हैं।

शमशेरा: आ तुझे जन्नत भेज दू।

शमशेरा ये बोलता हुआ खच कर के सैनिको की गरदन काट देता है।

कुछ देर में वहा अब सिर्फ पारसी सेना और घाटराष्ट्र की सेना, जो थोड़े बहुत थे वह मौजुद थी । दिल्ली की अधिकांश सेना मर गई थी और कुछ सिआणीक जान बचा कर भाग गए, कुछ शाहजेब के साथ वापस दिल्ली भाग गये थे ।

देवरानी भी घोड़े से उतरती है।

बलदेव: धन्यवाद शमशेरा आज मेरी नज़र में तुम्हारा सम्मान और बढ़ गया है। मित्र तुम एक अच्छे इंसान के साथ एक अच्छे योद्धा भी हो।

शमशेरा: और तुम भी कम नहीं हो मेरे दोस्त! तुम्हारी उम्र में तो मैं जंग क्या है, ये जानता भी नहीं था तुमने 18 साल की उम्र में इतनी बड़ी जीत हासिल कर ली है।

देवरानी: धन्यवाद बेटा! अगर तुम ना होते तो शायद ही हम दोनों जीवित होते और हम युद्ध भी तुम्हारे कारण से ही जीत सके हैं ।

शमशेरा: अब ये तो मेरा फर्ज था देवरानी खाला। खाला तो माँ के दर्जे की होती है उसके लिए कुछ भी करना जरूरी है और वैसे भी मैं अगर मेरे भाई बलदेव का साथ नहीं दूंगा तो फिर किसका दूंगा।

बलदेव: बड़े भाई अंजाने में तुम्हें बुरा समझ बैठा था, मुझे क्या पता था इतना निर्दय दिखने वाले शख्स शमशेरा का हृदय इतना नरम हो सकता है । उसमे इतना प्रेम हो सकता है।

शमशेरा: अब चुप करो बलदेव ये सब कह कर अहसान जता रहे हो या उतार रहे हो।

देवरानी: शैतान तुम नहीं सुधरोगे।

तभी सामने से घोड़े पर चौधरी के साथ कुछ सैनिक और महारानी जीविका आती है।

महारानी जीविका का हाथ पकड़कर सैनिक घोड़े से उतारते हैं।

देवरानी देख कर।

"बलदेव आजाओ तुम्हारे दादी के पास।"

बलदेव: आप वही रुके हम आते हैं।

तीनो जीविका के पास जाते हैं।

जीविका: बधाई हो बलदेव देवरानी तुमने कर दिखाया, हमारा घटराष्ट्र इन राक्षसों से छुड़ा लिया।

बलदेव और देवरानी दोनों झुक कर महारानी जीविका के पैर छूते हैं।

बलदेव: ये सब आपके कारण से हुआ दादी । अब मैं चाहता हूँ आप भी अपना वचन निभाएँ।

चौधरी2: हमने हर गाँव में पंचायत रख कर लोगों को समझा दिया है।

चौधरी1: हाँ बेटा या घटराष्ट्र का हर व्यक्ति अब तुम दोनों को बुरा नहीं कह सकता

बलदेव: क्या ये सच है चौधरी साहब?

देवरानी अब फिर से अपने पल्लू को नीचे कर अपना मुँह ढक खड़ी थी।

चूधरी2: हाँ बेटा अब तुमने काम किया अब हमारी वचन निभाने की बारी है।

चौधरी1: तुमने हमारी माँ बहनो की इज्जत बचाकर हम पर बहुत बड़ा उपकार किया है।

बलदेव: चौधरी साहब क्या वह सब मेरी माँ बहन नहीं थी और वैसे भी सब स्त्रियों को बचाने का श्रेय देवरानी जी को जाना चाहिए.

देवरानी ये सुन कर शर्मा जाती है और अपने आप पर गर्व करती है।

चौधरी2: ऐसी बहू हमें कहाँ मिलेगी जो रण भूमि में शत्रु का मुकाबला भी करे और फिर राष्ट्र की संस्कृति पर चल कर सब के सामने सत्कार करे। घूंघट करे।

चौधरी1: राजमाता हमें बलदेव के लिए महारानी देवरानी जैसी बहु कहीं भी नहीं मिलती । क्यू चौधरी जी?

चौधरी 1: हाँ और तो और बलदेव और बहू की जोड़ी जचती भी है।

देवरानी ये सुन कर गद-गद हो जाती है और झुक कर दोनों चौधरीयो के चरण छूती है।

चौधरी2: बेटी क्या कर रही हो । आप महारानी हो!

देवरानी: आप लोग पहले हमारे पिता समान हैं। बाद में मैं यहाँ की रानी या महारानी हूँ।

चौधरी 1: वाह! क्या सुंदर विचार है।

बलदेव: चौधरी साहब कुछ घंटों में ही सुबह हो जाएगी मैं चाहता हूँ। मैं आज सुबह ही सिंघासन पर बैठ जाऊँ।

चौधरी2: जाओ आराम करो सुबह होते हे सभा लग जाएगी । आपको नये महाराजा के रूप में शपथ लेना होगी ।

जीविका: मेरा बेटा राजपाल कहा है?

बलदेव: मैंने सैनिकों को भेज दिया है वह जाकर उनको फांसी घर से ले आएंगे।

तीनो महल में आते हैं और बलदेव अपनी कक्ष में शमशेरा को ले कर जाता है और देवरानी अपने कक्ष में जा कर स्नान कर लेती है और उसे नींद आती है।

शमशेरा और बलदेव भी अपने वस्त्र बदल कर स्नान करते हैं और सो जाते हैं।

सुबह का लगभाग 4 बज रहे थे और चाँद की अच्छी खासी रोशनी ज़मीन पर थी जिस से रात-रात जैसी नहीं दिन जैसा था लग रहा था ।महल के चारो ओर सैनिको ने अपना काम शुरू कर दिया और मारे गए सैनिको का अंतिम संस्कार करने लगे थे ।

जीविका के पास सृष्टि आती है तभी एक सैनिक राजपाल और सेनापति सोमनाथ को छुड़ा कर ले आता है।

सैनिक: महारानी जीविका!

जीविका अपने गले से एक सोने का हार निकाल कर उस सैनिक को इनाम देती है और वह सैनिक जो राजपाल को बचा कर लाया था धन्यवाद कह कर चला जाता है।

जीविका: मेरा बच्चा राजपाल!

राजपाल अपनी माँ के गले लग जाता है या शुृष्टि भी रोने लगती है। थोड़े देर मेल मिलाप चलता है।

सोमनाथ: महारानी जी! लेकिन अचानक से शाहजेब को कौन मार कर हरा सकता है।

जीविका: बलदेव!

ये सुन कर सब आश्चर्यचकित हो गए थे

शुरष्टि: माँ जी ठीक कह रही है। महाराज!

सब भौचक रह जाते हैं।

जीविका: जाओ तुम सब आराम करो इस पर हम सुबह सभा में बात करेंगे।

सोमनाथ सोचते हुए सेना गृह की ओर जाता है और जीविका के साथ राजपाल और सृष्टि महल के अंदर आकर अपने-अपने कक्षों में घुस जाते हैं और फिर गहरी नींद में डूब जाते हैं।

घटराष्ट्र में एक नई सुबह होती है।

घटराष्ट्र में चारो ओर ढिंढोरा पीटा जाता है कि शाहजेब वापस दिल्ली भाग गया और घटराष्ट्र अब सुरक्षित है । फिर सबको आज सभा में अमंत्रित किया जाता है।

सुबह 9 बजे के करीब देवरानी उठती है और जैसे ही वह आने वाले पल का सोचती है उसका दिल प्रसन्न हो जाता है।

देवरानी: (मन में) हे भगवान मैं और बलदेव अब विवाह करेंगे, हम घटराष्ट्र के महाराजा और महारानी बनेंगे।

देवरानी: (मन में) क्या कहेंगे सब?...हेहे! कहने दो, पर फिर मैं बलदेव की पत्नी बन जाऊंगी फिर वह बच्चे की भी मांग करेगा।

ये सोच कर देवरानी उल्टा लेट जाती है और अपना सर तकिये मैं छुपा कर मुस्कुरा रही थी आगे क्या होगा ये सोच पर देवरानी का अंग-अंग लज्जित हो गया था ।

देवरानी (मन में) : कमला कहती थी मुझे अच्छे से रगड़ के कोई पेल कर नस-नस ढीली कर सकता है तो वह बलदेव है । क्या सच में वह ऐसा करेगा?

उधर शमशेरा उठता है तो देखता है बलदेव अब भी सो रहा था ।

शमशेरा: बलदेव भाई उठो...अरे महाराजा साहब उठो आज तो तुम शादी का भी फैसला सुनाने वाले हो। उठ जाओ भाई ।

बलदेव की नींद टूटती है।

बलदेव: मेरा बदन दुख रहा है मुझे और सोना है।

शमशेरा: भाई बाहर सभा लग गई होगी! अब चलो!

दोनों जल्दी से तैयार हो कर सभा में पहुचते हैं जहाँ पर जीविका के साथ सोमनाथ और शुृष्टि सब बैठे हुए थे।

शमशेरा और बलदेव जा कर बैठते है । हजारों की संख्या में प्रजा भी मौजुद थी तभी देवरानी भी पहुँचती है।

एक सैनिक खड़ा हो कर बलदेव और देवरानी का जय जयकार करता है और सब फुलो से स्वागत करते हैं।

जीविका: बैठो देवरानी!

जीविका: घटराष्ट्र वासियों जैसा कि आपको पता है हमारे राष्ट्र में कुछ ठीक नहीं चल रहा था फिर दिल्ली के बादशाह शाहजेब ने आक्रमण किया और बलदेव ने हमारा राज्य जो उसने हमसे छीन लिया था उसे हरा कर वह वापस ले लिया।

इस पूरे युद्ध में सुलतान और उनके शहजादे शमशेरा कर उनकी सेना ने भी हमार पूरा साथ दिया है । उनके बिना हम ये युद्ध नहीं जीत पाते । हम उनका भी धन्यवाद करते हैं और उन्हें कुछ तोहफे भेंट करता है।.

पूरी प्रजा बलदेव की जय-जय कार करने लगती है।

मंत्री: बधाई हो पहला युद्ध जीता आपने!

राजपाल अपना सर झुकाए बैठा हुआ था । बलदेव और देवरानी राजपाल को देख कर मुस्कुरा देते हैं

जीविका: घटराष्ट्र वासिओ जैसा कि आप सबको पता है और चौधरी जी ने आपको बता दिया होगा की आप सब की जान और आप सब की बहू बेटी के सम्मान के खातिर मैंने वचन दिया था बलदेव को।

चौधरी2: महारानी अब हमने हर गांव-गांव पंचायत कर के सबको बता दिया है ।

जीविका: वैसे हमारे परम्पराओ के अनुसर महाराजा के मृत्यु के पहले कोई दूसरा महाराज नहीं बन सकता पर मैं अपने वचन को निभाते हुए आज से अभी से बलदेव को घटराष्ट्र का महाराजा चुनती हूँ।

पुरा सभा ताली की गडग़ड़ाहट से गूंज उठती है ।

जीविका: महाराजा बलदेव का ताज लाया जाए!

राजपाल ये सुन कर अपना आखे बंद कर देता है उसे हर एक बात सुई की तरह चुभ रही थी और वह मजबूरन अपनी गद्दी से उठ कर खड़ा हो जाता है।

तभी एक दासी ताज़ ले कर आती है।

जीविका: आओ बलदेव!

बलदेव जा कर जीविका के पास घुटनो के बल बैठ जाता है।

जीविका अपने हाथों से मुकुट को बलदेव के सर पर रख देती है।

सोमनाथ: महाराजा बलदेव की जय!

चौधरी2: महाराजा बलदेव सिंह की जय!

पूरी प्रजा जय-जय करने लगती है। बलदेव जा कर महाराजा की राजगद्दी पर बैठ जाता है। ये सब अपनी आंखों में नमी लिए प्रसन्नचित हो देवरानी देख रही थी।

देवरानी: (मन में) कितना सुंदर लग रहा है इस ताज में मेरा बलदेव!

दूर खड़ी राधा और कमला भी सब देख रही थी । कमला की आँखों में भी आसु आते हैं।

मंत्री: महाराज बलदेव अब आप शपथ ले लीजिये।

बलदेव: जरूर मंत्री जी!

बलदेव: में बलदेव सिंह यानी के घटराष्ट्र का महाराज ये शपथ लेता हूँ मैं अपने पूरे जीवन घाटराष्ट्र की सेवा में बिताऊंगा । अपने धर्म अपने राष्ट्र के लिए जब कभी प्राण भी त्यागने पड़ेंगे तो पीछे नहीं हटूंगा। मैं बलदेव सिंह संकल्प लेता हूँ घटराष्ट्र के हर नागरिक के दुख में या सुख में उनके साथ खड़े रहूंगा और अपने नागरिको के सम्मान और उनके अच्छे भविष्य के लिए हर प्रयास करूंगा। मैं महाराजा बलदेव मेरी हर बात पत्थर की लकीर!

शपथ लेते वह सब चारो तरफ से फुल बरसाने लगते हैं और पूरा घाटराष्ट्र की प्रजा खुशी मनाने लगती है।

महाराजा बलदेव: घटराष्ट्र वासी इस सभा जो मेरी पहली सभा है उसमें मुझे एक महत्त्व पूर्ण निर्णय लेना है।

ये कह कर बलदेव जीविका की ओर देखता है जीविका उसे हाँ का इशारा करती है।

बलदेव: आप सबको पता है मेरी दो मांगे थी एक तो पूरी हो गई है । दूसरी मांग थी मेरी देवरानी जिससे मैं विवाह करना चाहता था। संभव है ये आप सब को अजीब लग रहा होगा पर कुछ दिन ही लगेगा फिर आप सब अपनी कामो में लग जाओगे और सब भूल जाओगे।

चौधरी2: हाँ हमें याद है कि आप को विवाह करना है।

बलदेव: इससे पहले मैं ये कहूँ कि हम और देवरानी कब विवाह करेंगे, उससे पहले मैं किसी को उसके कर्मो के लिए सजा देना चाहता हूँ।

सब सोच में पड़ जाते हैं।

बलदेव: देवरानी कहो तुम्हारे साथ क्या हुआ था?

देवरानी अपना पल्लू थोड़ा उठाती है और कहना शुरू करती है।

देवरानी: महाराज बलदेव मेरे साथ राजा रतन सिंह ने जबरदस्ती करने की कोशिश की थी जिसका श्रेय राजपाल को जाता है।

पुरा घटराष्ट्र में हाहाकार मच जाता है।

बलदेव राजपाल की ओर देख कर कहता है ।

बलदेव: क्या ये सही है?

राजपाल: हाँ सही है।

अपना सर झुका कर अपना जुर्म मान लेता है।

जीविका: ये क्या बलदेव तुम विवाह करो करना है तो ये क्या है ।

बलदेव: दादी महाराजा बनने के बाद ये मेरा ऐतिहासिक फैसला होगा।

बलदेव: तो घटराष्ट्र वासीयो स्त्री के साथ ऐसा करने वाले को क्या सजा होती है?

"मौत मौत फाँसी फाँसी!"

सब प्रजा एक साथ बोलती है।

बलदेव: मैंने प्रेम किया तो मुझे इतना सज़ा मिली । जो एक स्त्री को किसी अन्य के साथ मिल कर उस स्त्री के साथ जबर्दस्ती करने की कोशिश करे तो उसे क्या सज़ा मिलनी चाहिए?

"हाँ मिलनी चाहिए कड़ी सजा मिलनी चाहिए!"

पूरी प्रजा एक साथ बोलती है।

जितने मंत्री थे और चौधरी थे सब हैरान थे।

बलदेव: घबराए नहीं, मैं फांसी नहीं दूंगा, मैं तो तड़पा-तड़पा के मारूंगा । सोमनाथ इस अपराधी को बंदी बना लो । हम इसे आजेवन कारावास की सजा सुनाते हैं।

ये सुनते हैं सोमनाथ इशारा करता है और सैनिक राजपाल को हिरासत में ले लेता है।

बलदेव: रुको सोमनाथ! इस तुछ व्यक्ति को कारागार में डालने से पहले मैं एक और बात घाटराष्ट्र की प्रजा को बता दूं और ये भी कान खोल कर सुन ले।

बलदेव: घटराष्ट्र वासी हम आज सूर्याष्ट से पहले ही माँ रानी देवरानी से विवाह करेंगे और आप सबको घटराष्ट्र वापस मिलने का, हमारे विवाह का उपहार, एक साथ मिलेगा...आप लोग जाइये आराम कीजिए संध्या में विवाह होगा ।

देवरानी गदगद हो कर मुस्कुराती है । उसकी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे ।

देवरानी (मन में) : भगवान् आपका कोटो कोटि धन्यवाद । आपने मेरे मन की मुराद सुन ली।

ये सुनते ही राजपाल का खून खौलता है।

राजपाल: माँ ये क्या है? मेरे गद्दी लेने तक ठीक है । मुझे सजा दी जाए वह भी मंजूर है। पर माँ बेटे का विवाह?

जीविका खड़ी होती है और राजपाल के पास आकर कहती है ।

जीविका: मैं नहीं चाहती थी बेटा पर घटराष्ट्र की हजारो बहू बेटियों की इज्जत बचाना मेरी प्रथमिकता थी।

राजपाल: माँ हमारे मान मर्यादा का तो ख्याल किया होता है।

जीविका: जब जान ही नहीं होती हम सब की, तो मेरे लाल तुम्हारी मान सम्मान प्रतिष्ठा का क्या करते?

सोमनाथ राजपाल के हाथ में बेड़िया बाँध कर ले जाता है।

शुृष्टि उठ कर देवरानी के पास आती है।

शुरुआत: मुझे क्षमा कर दो बहन अगर तुम्हें मुझे कोई भी सजा देनी है तो मुझे मंजूर है।

ये कह कर शुृष्टि देवरानी की पैर पड़ने लगती है।

देवरानी उठ कर शुृष्टि को पकड़ लेती है।

देवरानी: ये आप क्या कर रही हैं?

शुरष्टि: आप को मैंने बहुत कष्ट दिया और रोने लगती है।

देवरानी: बस हमने आपको क्षमा कर दिया है ।शुृष्टि देवरानी का हाथ पकड़ कर बलदेव के बगल में रखी महारानी की कुर्सी पर देवरानी को बिठाती हैं।

देवरानी देखती है पूरा घटराष्ट्र उल्लास मना रहा है।

बलदेव: बैठ जाओ महारानी!

शुृष्टि: तुम्हारे जैसे बड़े दिल वाली ही इस गद्दी पर बैठने का हकदार है, वैसे आज शाम में विवाह के बाद तुम महारानी बन भी जाओगी।

शुरष्टि: महारानी देवरानी की जय!

ज़ोर से बोलती है।

बलदेव अपने सर से मुकुट उतार कर देवरानी के सर पर रखता है।

बलदेव: विवाह होने के बाद महारानी का मुकुट आपके सर पर होगा।

देवरानी ये सुन कर गदगद हो जाती है। ख़ुशी की मारे वह रो देती है और उसका चेहरा लाल पड़ जाता है, जिसे बलदेव गौर से देखता है।

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