घर की लाड़ली - चुदक्कड़ परिवार Ch. 06

Story Info
घर के लाड़ली बेटी ने बड़े योजनाबद्ध तरीके से घर को अपने चुदाई.
2.9k words
3.13
74k
3
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Part 7 of the 11 part series

Updated 06/09/2023
Created 09/22/2018
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इस कहानी के सारे पात्र १८ वर्ष से ज्यादा आयु के हैं. ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है और अगर इसके किसी पात्र या घटना किसी के वास्तविक जीवन से मिलती है तो उसे मात्रा के संयोग माना जायेगा.

यह कहानी मेरी पिछले कहानी "किस्मत का खेल - चुदक्कड़ परिवार" श्रृंखला के अगली कड़ी है, परन्तु अपने आप में एक पूरी कहानी है. आशा करता हूँ की पाठकों को पसंद आएगी.

*****

अध्याय - 6 - माँ ने बेटों को जलवा दिखाया

खैर, शीतल अब अपने बेटो को रिझाने की तयारी में लग गयी. वो अच्छे से तैयार हुई, उसने लो-कट ब्लाउज बैकलेस पहना जिसमे आगे से उसकी चूचियां आधी से भी ज्यादा नज़र आ रही थी और पीछे से उसका पीठ पूरा ही नजर आ रहा था. उसने अच्छे से मेक-अप किया और एक बढ़िया सी गुलाबी रंग की साड़ी पहनी. शीतल पर गुलाबी रंग बहुत ही ज्यादा फबता था.

इन सब चीज़ों में लगभग दोपहर के डेढ़ बज चुके थे. थोड़ी देर बाद विक्रम घर आ गया अपनी कोचिंग क्लास कर के. उसने दरवाजे की घंटी बजायी और मयूरी ने शीतल को दरवाजा खोलने को कहा और उसने बताया की वो अपने कमरे में जा रही है, तो इस वक्त खुल कर अपने बड़े बेटे पर लाइन मार सकती है.

शीतल ने दरवाजा खोला और बड़े ही कामुक अंदाज में मुस्कुराते हुए उसने विक्रम का स्वागत किया।

शीतल: "आ गया मेरा लाडला...?"

विक्रम: "हाँ माँ... "

और विक्रम हैरानी से अपनी माँ को देखता रह जाता है. शीतल विक्रम को मुँह खोल कर उसको ताड़ते हुए देखती तो है पर जताती नहीं है.

शीतल: "आओ अंदर आओ मेरे लाल... "

विक्रम: "जी माँ... "

विक्रम खाने की टेबल पर बैठ जाता है. शीतल विक्रम के एकदम पास जाती है, अपना सीना उसके इतने करीब ले के जाती है की विक्रम को उसकी मखमली चूचियों का आराम से दर्शन हो सके और वो उसको खाने को पूछती है:

शीतल: "भूख लगी है मेरे बेटे को? कुछ खायेगा...?"

विक्रम तो एकटक बस शीतल की चूचियां देखने में व्यस्त था. अपनी नजरें शीतल की चूचिओं पर से बिना हटाए वो जवाब देता है:

विक्रम: "ह... हाँ माँ... "

शीतल अपने होठों को अपने दांतो से बड़े ही कामुकता भरे अंदाज़ में काटते हुए पूछती है:

शीतल (मुस्कुराते हुए): "क्या खायेगा मेरा बेटा?"

विक्रम कुछ समझ नहीं पता और वो थोड़ा घबरा जाता है. हड़बड़ाते हुए कहता है:

विक्रम: "माँ... जो चाहो वो खिला दो... "

शीतल: "मैं तो तुम्हे अपना सब कुछ खिला दूँ मेरे लाल... "

और ऐसा कहते हुए वो विक्रम की चेहरा अपने सीने से लगा लेती है. विक्रम का चेहरा इस समय अपनी माँ की चूचियों के बिच था. वो शीतल की चूचियों का कोमलता का अहसास तो कर पा रहा था पर कुछ प्रतिक्रिया नहीं कर पा रहा था. वो चाह तो रहा था की इस समय उठे और अपनी माँ की चूचिओं को पकड़ कर अपने मुँह में भर ले... उनको जोर से उमेठ दे और और अपनी माँ की रसीली लाल-लाल होठों का सारा रास पि जाये... पर वो ऐसा कुछ भी करने की हालात में नहीं था. वो अभी भी यही समझ रहा था की ये उसकी माँ का उसके प्रति स्नेह है, हवस नहीं.

खैर, इसी तरह शीतल अगले कुछ देर तक विक्रम को कभी अपनी चूचियां तो कभी अपनी गांड का दर्शन और स्पर्श कराती रही. फिर खाना खाकर विक्रम अपने कमरे में चला गया. थोड़ी देर बाद रजत घर आया तो उसको भी अपने माँ का उतना ही प्यार मिला जितना विक्रम को मिला था. पर इस से ज्यादा आज कुछ माँ-बेटों में हो नहीं पाया.

शाम को शीतल ने मयूरी से अकेले में सब कुछ बताया और पूछा:

शीतल: "मयूरी, सब ठीक से हो तो रहा है न? कुछ गड़बड़ तो नहीं होगी?"

मयूरी: "नहीं मेरी प्यारी माँ... आप एकदम सही जा रहे हो... आज तो दोनों के होश उड़ गए थे... मैंने अपने कमरे से चुप-चुप कर देखा था सब कुछ. आज रात में देखना ये क्या बात करने हैं. मैं कल बताउंगी आपको... फिर आगे उस हिसाब से जारी रखेंगे... "

शीतल: "ठीक कह रही है तू... "

मयूरी: "चिंता ना करो माँ... तुम्हे अपने दोनों बेटों के लंड जरूर मिलेंगे... वो भी बहुत जल्द... "

शीतल (मुस्कुराते हुए): "और तेरा बता... अपने बाप से चुदवाने का क्या प्रोग्राम है...?"

मयूरी: "हाँ... मैं भी वही करुँगी जो आप कर रहे हो... पहले थोड़ा ललचाऊँगी और फिर धीरे-धीरे अपना दीवाना बनाउंगी... मुझे पहले अपने पापा को पटना है... तो थोड़ा वक्त लगेगा... पहले उनके मन में अपने लिए हवस उत्पन्न करना है... फिर मैं उनको चोदुंगी... इसमें थोड़ा टाइम तो लगेगा ही... पर आपको अपने बेटों के लंड जल्दी मिल जायेंगे... "

शीतल: "एक काम करते हैं... आज रात में मैं तेरे कमरे में जाकर थोड़ी देर तक अपने बेटों की रिझाऊंगी और उसी वक्त तुम मेरे कमरे में जाकर अपने पापा को अपने हुश्न का जादू दिखाओ... क्या कहती हो?"

मयूरी: "आईडिया बुरा नहीं है... "

और दोनों एक साथ जोर से खिलखिला कर हंस पड़ती हैं...

शीतल फिर रात का खाना बनाने में जुट जाती है. मयूरी अपने कमरे में जाकर कमरे का तापमान चेक करने में लग जाती है. मयूरी एक बात तो समझ चुकी थी की आज उसको अपने हुश्न का रंग अपने सगे पिता पर चलाना था. इसलिए वो थोड़े भड़कीले कपडे पहनती है. सबसे पहले तो वो अपना पैंटी और ब्रा उतार देती है और एक ढीला सा टॉप और स्कर्ट पहन लेती है जिसमे उसका जिस्म बहुत ही ज्यादा कामुक दिखने लगता है. चलने पर उसकी चूचियां मस्त हिलने लग जाती है और किसी का भी ध्यान आकर्षित करने की क्षमता रखती है. पैंटी ना पहनने की वजह से जब भी स्कर्ट ऊपर होता उसकी चुत दिखने लग जाती.

फिर वो अपने दोनों भाइयों को अपने पास बुलाती है और बातचीत शुरू करती है:

मयूरी: "एक बात पूछूं...?"

विक्रम और रजत (एक साथ): "हाँ पूछ... "

मयूरी: "आज माँ कुछ ज्यादा हॉट नहीं लग रही है...?"

विक्रम: "हाँ यार... और मुझे तो कुछ अलग ही लग रही थी. पर मुझे बड़ा मजा आया एक बात से... "

रजत: "किस बात से भाई?"

विक्रम: "माँ ने मुझे अपने सीने से लगा लिया था आज और मैं उनको चूचियों में जैसे खो गया था. मेरा तो मन कर रहा था की पकड़ के मसल दूँ उनकी चूचियों को... "

रजत: "क्या बात है भाई... आज तो माँ मुझे भी ऐसे ही कुछ प्यार दिखा रही थी. "

मयूरी: "तुमलोगो को इस से कुछ समझ आता है क्या?"

विक्रम: "क्या.... "

मयूरी: "मुझे लगता है की माँ को नए लंड की तलाश है... और वो बाहर लंड ढूँढना नहीं चाहती... बदनामी की वजह से जैसे मैंने तुमलोगों को अपनी चूत चोदने का मौका दिया... इसी कारन से... "

विक्रम: "क्या बात कर रही हो... ऐसा थोड़ी ना है.. "

रजत (खुश होते हुए): "हाँ... पर भाई.... अगर ऐसा हुआ तो...?"

मयूरी: "फिर तो मजे आ जायेंगे... तुमदोनो घर में खुलकर कभी अपनी माँ को चोदो और कभी अपनी बहिन को... "

विक्रम: "हाँ... और फिर हम माँ की एक बार चुदाई करने के बाद उनको ये भी बता सकते है की हम तीनो भाई-बहिन एक-दूसरे की खूब चुदाई करते है..."

रजत: "बिलकुल सही... और फिर हम खुल्ले में घर में चुदाई कर सकते है... "

मयूरी: "हाँ... फिर हमे रात को चुपके-चुपके चुदाई करने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी... "

विक्रम (थोड़ा उदास होते हुए): "पर अगर हम गलत सोच रहे हों तो.. मन लो ऐसा नहीं हुआ तो...?"

मयूरी (कुछ सोचते हुए): "वैसे तुम लोगो का मन नहीं करता की तुमदोनो मम्मी की चुत की चुदाई करो...? एक साथ...?"

रजत: "मैं सच्ची बताऊँ, मेरा तो बहुत मन करता है की मैं माँ का दूध जोर से दबा दूँ... और भाई पीछे से मम्मी को पकड़ कर उसकी चूत में ऊँगली डाल कर मजे ले... फिर दोनों भाई एक साथ अपनी मां की चुदाई करें... "

विक्रम: "हाँ.. मेरा भी बहुत मन करता है माँ की चुदाई करने का... पर ये पता नहीं संभव होगा की नहीं.... "

मयूरी: "तुमलोग मायूस मत हो... ईश्वर ने चाहा तो शायद माँ तुमदोनो का लंड एक साथ चूसे... और क्या पता मां भी ऐसा ही चाहती हो... "

विक्रम: "क्या सच में... म... मतलब ऐसा हो सकता है क्या?"

मयूरी: "हाँ.. क्यूँ नहीं... मतलब जैसे मेरे मन में तुमदोनो से चुदने की इक्षा हो सकती है वैसे उनके मन में भी हो सकती है.. "

रजत: "तो ये पता कैसे चलेगा?"

मयूरी: "तुम दोनों को कोशिश करनी होगी... लेकिन मैं उसके पहले तुमदोनो को जैसे जैसे बताउंगी वैसे-वैसे ही करना होगा... "

रजत: "क्या करना होगा?"

मयूरी: "तुम दोनों ना, थोड़ा माँ के करीब जाओ. उनको यहाँ-वह छू कर अपने मन की बात का एहसास भी कराओ और उनके मन को भी पढ़ने की कोशिश करो. ऐसा करने से तुम्हे ये पता भी चल जायेगा की वो क्या चाहती हैं. और अगर उचित संकेत मिला तो तुम फिर अपना अगला कदम रखोगे..."

विक्रम: "कौन सा अगला कदम?"

मयूरी: "अरे... तुमलोग बहुत भोले हो... माँ एक औरत है... तो वो तुम्हारे सामने अचानक से नंगी होकर तो नहीं आ जाएगी और कहेगी की मुझे अपने लंड से चोद दो...?"

विक्रम: "हाँ... ये बात तो है... फिर?"

मयूरी: "तुम पहले अपनी हरकतों से उसको ये बताओ की तुम भी यही चाहते हो. थोड़ा रिझाओ उनको अपनी मर्दानगी से... "

विक्रम: "मतलब कैसे...?"

मयूरी: "ओफ्फोह... अरे तुम लोग भी न... अच्छा सुनो... तुम ना किसी तरह उनको अपने खड़े लंड के दर्शन कराओ उनको... जिस से उनकी तुमसे चुदाने की तमन्ना और भड़के... "

विक्रम (जैसे समझते हुए): "ओ..... हाँ... मैं समझ गया... "

मयूरी (दोनों को अपने सीने से लगते हुए): "मेरे प्यारे भाई... जल्दी ही तुम अपनी माँ की चूत का भी स्वाद ले रहे होंगे... "

और फिर दोनों भाई थोड़ी देर तक मयूरी की चूचियों और चुत से खेलते है. फिर मयूरी अपने कमरे से बहार निकलती है और किचन में जाकर अपनी माँ को जो खाना पकने में व्यस्त है को पीछे से गले लगाती है और अपनी भारी चूचियां उसकी पीठ में जोर से दबा देती है और उसकी चूचिओं को अपने हाथों से मसल देती है...

शीतल: "आह... क्या हुआ मेरी जान... क्या इरादा है...?"

मयूरी: "माँ... तुम्हारे दोनों बेटे तुम्हे चोदने के लिए मरे जा रहे है... अभी मैं जब बाथरूम में थी तो उनको बात करते हुए सुना... आज दिन में तो आपने दोनों पर खूब कहर ढाया... "

शीतल (मुस्कुराते हुए): "क्या वाकई...?"

मयूरी: "हाँ मेरी प्यारी माँ... हाँ... अब तुम थोड़ी देर में उनके पास जाओ और उनके थोड़ा और नजदीक जाने की कोशिश करो... मैं अपने मिशन पर जा रही हूँ... पापा के पास... अपने हुश्न का जादू चलाने..."

शीतल (मुस्कुराते हुए): "ठीक है... मैं भी थोड़ी देर में उनके पास जाकर थोड़ा अपने अंगो का थोड़ा और प्रदर्शन करती हूँ... "

ऐसा कहते हुए शीतल अपने बेटों के कमरे में प्रवेश करती है. और उसी क्षण मयूरी अपने पिता के कमरे की तरफ बढ़ जाती है.

शीतल जब बच्चों के कमरे में जाती है तो वो पढाई कर रहे होते है. विक्रम और रजत दोनों अपनी माँ को ध्यान से देखते है. आखिर आज जो अनोखा प्यार शीतल ने अपने बेटों पर बरसाया था, उसका असर तो था ही, साथ ही साथ मयूरी ने भी इनको अपनी माँ की चुदाई के लिए उकसाया हुआ था. दोनों हवस भरी निगाहों से अपनी माँ को देखते हैं. शीतल विक्रम के पास जाती है और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए पूछती है:

शीतल: "पढाई कर रहा है मेरा बेटा?"

विक्रम: "हाँ माँ... "

शीतल: "मैं थोड़ी देर तुमदोनो के साथ बैठ सकती हूँ?"

विक्रम: "हाँ माँ... क्यूँ नहीं?"

शीतल: "ओके... "

और ऐसा कहते हुए शीतल विक्रम के बिस्तर पर बैठ जाती है. बैठते हुए वो अपने नाइटी को निचे से उठाकर अपने जाँघों तक ऊपर कर देती है जिस से उसकी दोनों गोरी-गोरी मांसल टाँगे नंगी हो जाती हैं. उसने नाइटी को पीछे से अपनी गांड तक उठा कर कुछ इस तरह पीछे कर दिया की अगर कोई चाहे तो नाइटी का कपडा अगर पीछे से उठा दे तो उसके बैठे होने के वावजूद उसकी गांड को नंगा किया जा सकता था. आगे से तो उसकी जाँघे पूरी तरह दिख ही रही थी. वो जानबूझकर ऐसा करती है ताकि अपने जवान बेटों का ध्यान आकर्षित कर पाए.

विक्रम और रजत भी इन सब चीजों के लिए बिलकुल तैयार थे. उनका अनुमान अब अपनी माँ की चुदाई की इक्छा को लेकर और ज्यादा दृढ हो रहा था. बैठते हुए शीतल ने रजत को अपने पास बुलाया:

शीतल: "रजत, इधर आओ बेटा... अपनी माँ के पास बैठो थोड़ी देर... "

रजत: "हाँ माँ... अभी आया... "

और ऐसा कहकर रजत विक्रम के बिस्तर की ओर आ जाता है. रजत माँ के बगल में बैठ जाता है जबकि विक्रम अपनी अगली चल चलना चाहता है...

विक्रम: "माँ... "

शीतल: "हाँ बेटा... "

विक्रम: "क्या मैं आपकी गोद में अपना सर रखकर थोड़ी देर सो सकता हु...?"

शीतल: "क्यूँ नहीं बेटा... जरूर... "

और विक्रम अब अपनी माँ की नंगी गोद में अपना सर कुछ इस तरह रख देता है की वो उसका चेहरा अपनी माँ की चूत की तरफ हो और शीतल उसको बड़े प्यार से ये सब करने भी देती है. साथ ही शीतल अपना एक हाथ उसके सर पर रखकर उसके बालों को सहलाने लगती है. रजत अपनी माँ के बगल में बैठा होता है इसलिए वो अपना सर अपनी माँ के सीने पर रखकर आराम करता है. विक्रम का चेहरा अपने माँ की चूत से बस दो इंच के फैसले पर था. वो अपने माँ की चुत की गंध को महसूस कर पा रहा था. थोड़ी देर तक ऐसे ही पड़े रहने के बाद उसने अपना चेहरा थोड़ा और अंदर डालने की कोशिश करता है और शीतल इसमें उसका पूरा साथ देते हुए अपनी टाँगे खोलकर उसकी पूरी सहायता करती है. विक्रम के होठ अब अपने माँ की चूत पर थे. वो अपने होठों से बिना अपने चेहरे हो हिलाये डुलाये अपने माँ की चूत को चूमता है.

शीतल के मुँह से आह निकल जाती है पर विक्रम इसपर जरा भी ध्यान नहीं देता। वो अपने काम में लगा रहता है. और अपने होंठ और जबान से अपनी माँ की चूत का रसपान करने में लग जाता है. शीतल उत्तेजना की वजह से अपने हाथ जो की विक्रम के सर पर था, से उसके चेहरे को अपने चूत की तरफ और जोर से दबा देती है.

इधर रजत शीतल के सीने पर पड़े पड़े अपने एक हाथ को शीतल के पीछे ले जाकर उसकी गांड को धीरे-धिरे सहलाने लगता है. जब शीतल इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं देती तो उसका सहस और बढ़ जाता है, वो उसकी गांड को जोर - जोर से दबाने लगता है. फिर थोड़ी ही देर में वो अपने एक हाथ से शीतल के एक हाथ को अपने लंड के ऊपर रख देता है. शीतल रजत के शॉर्ट्स के ऊपर से ही रजत के लंड को धीरे-धीरे सहलाने लगती है.

शीतल इस समय अपने दोनों बेटों को प्यार करने के बहाने अपनी हवस मिटाने में लगी हुई थी. विक्रम अब जोर-जोर से अपनी माँ की चूत को चाट रहा था. करीब इस अवस्था में बहुत देर तक तीनो माँ-बेटों ने खूब मजा लिया. शीतल की चुत ने इतने देर में 4-5 बार पानी छोड़ दिया था. विक्रम में जितना हो सके उसकी चूत से निकला हुआ पानी चाट लिया था और बाकी वही उसकी बिस्तर पर गिर गया था. रजत ने इस बिच में अपने एक साथ से उसकी चूचियों को भी काफी देर तक दबाया.

फिर एक लम्बी ख़ामोशी के बाद शीतल को लगा की अब अगर वो थोड़ी देर और रुकी तो या तो उसके बेटे उसको अभी पटक कर चोद देंगे या वो खुद ही उनको पकड़कर उनको चोद देगी. फिर उसने अपनी भावनाओ पर पता नहीं क्यूँ नियंत्रण किया और अपने बेटों को कहा:

शीतल: "विक्रम, रजत... "

रजत: "हाँ माँ... "

विक्रम अभी भी अपनी माँ की चूत चाटने में व्यस्त था और उसकी जबान शीतल के चूत के अंदर था इसलिए वो जवाब भी नहीं दे पाया. वही रजत एक हाथ से शीतल की गांड को और दूसरे हाथ से उसकी एक चूची को दबाने में व्यस्त था. शीतल अपने एक साथ से विक्रम का सर सहला रही थी और दूसरे हाथ से रजत का लंड.

शीतल: "तुमलोगों को भूख नहीं लगी क्या? खाना बनकर तैयार है... "

रजत: "हाँ माँ... थोड़ी देर और बैठो न.. फिर खाना खाने चलते हैं... आप बड़े दिनों बाद हमारे साथ बैठी हो... बहुत अच्छा लग रहा है... "

शीतल: "अरे.. मैं कही भागी थोड़ी ना जा रही हूँ... अब रोज़ ऐसे तुमदोनो के साथ बैठूंगी... चलो अब खाना खा लो... "

विक्रम अपना मुँह शीतल के चुत से अलग करता है और फिर अपना मुँह पोंछते हुए कहता है:

विक्रम: "ठीक है माँ... चलो... "

फिर तीनो उठते हैं और शीतल अपने कपडे ठीक करती हुए कमरे से मुस्कुराते हुए बहार निकल जाती है. तीनो को इस बात की पुष्टि हो चुकी होती है की अब जल्दी ही माँ-बेटों की चुदाई होनेवाली है और आपस में पूरी सहमति है. शीतल को भी यह बात स्पस्ट हो जाता है की उसकी दोनों बेटे उसको एक साथ ही चोदने वाले है. फिर वो अपने कमरे की तरफ बढ़ जाती है ये जानने के लिए की उसकी बेटी अपने बाप को फंसाने में कहा तक कामयाब हुई है.

-- आगे पढ़िए कैसे मयूरी ने अपने पिता से चुदवाया

लेखक से:

ये मेरी जिंदगी की पहली रचना "चुड़क्कड़ परिवार" श्रृंखला की अगली कड़ी है. मैं सेक्स और चुदाई के कहानियो का बचपन से शौक़ीन रहा हूँ. विशेष रूप से रिश्तो में चुदाई की कहानियों का बड़ा प्रशंसनीय रहा हूँ. मुझे अपनी इस श्रृंखला की ये कड़ी को लिखने में बहुत वक्त लग गया, पर ये बहुत ही रोमांच से भरी हुई कहानी तैयार हुई है. मेरी पाठकों से आग्रह है की आपको ये कहानी कैसी लगी, आप अपनी राय मुझे मेरे ईमेल आईडी पर जरूर दें ताकि मैं इसकी दूसरी कड़ी भी लिख पाऊँ.

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