घर की लाड़ली - चुदक्कड़ परिवार Ch. 08

Story Info
घर के लाड़ली बेटी ने बड़े योजनाबद्ध तरीके से घर को अपने चुदाई.
4.6k words
3.88
69.8k
1

Part 9 of the 11 part series

Updated 06/09/2023
Created 09/22/2018
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इस कहानी के सारे पात्र १८ वर्ष से ज्यादा आयु के हैं. ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है और अगर इसके किसी पात्र या घटना किसी के वास्तविक जीवन से मिलती है तो उसे मात्रा के संयोग माना जायेगा.

यह कहानी मेरी पिछले कहानी "किस्मत का खेल - चुदक्कड़ परिवार" श्रृंखला के अगली कड़ी है, परन्तु अपने आप में एक पूरी कहानी है. आशा करता हूँ की पाठकों को पसंद आएगी.

*****

अध्याय - 8 - माँ अपने दोनों बेटो से एक साथ चुदी

अगले दिन सुबह में विक्रम जल्दी उठकर अपने कॉचिंग क्लास चला जाता है. मयूरी हॉल में बैठकर टीवी देख रही होती है और रजत अपने कमरे में लेटा होता है. तभी शीतल झाड़ू लगाने के लिए उस कमरे में प्रवेश करती है. रजत की नींद तो खुली होती है पर वो अपनी माँ को देखकर अपनी आँखें बंद कर लेता है और सोने का नाटक करने लगता है. पर सुबह सुबह उसका लंड खड़ा होता है क्यूँ की थोड़ी देर पहले ही वो रात वाली घटना के बारे में सोच रहा होता है. वो जानबूझकर चादर के निचे से अपना शॉर्ट्स खोल देता है जिस से उसका लंड चादर में तम्बू बनाने लगता है.

जादू लगते हुए जब शीतल रजत के बिस्तर के पास पहुँचती है तो देखती है की रजत सो रहा है पर उसका लंड चादर में खड़ा होकर तम्बू बना रहा है. वो इधर-उधर देखती है तो अस-पास कोई और दिखाई नहीं देता. फिर वो जिज्ञासा की वजह से उसका चादर धीरे से उसके लंड पर से हटा देती है जिस से रजत का फनफनाता हुआ खड़ा लंड बहार हो जाता है और शीतल को उसके दर्शन हो जाते हैं.

पहले तो वो थोड़ा घबरा जाती है फिर कामवासना की वजह से अपने आप पर से नियत्रण खो देती है, वो धीरे से अपने हाथों से अपने बेटे का लंड पकड़ती है और उसको बड़े प्यार से सहलाने लगती है. फिर थोड़ी देर तक उसको ऐसे ही सहलाने के बाद उसके टोपे पर की चमड़ी को थोड़ा पीछे करती है है और उसके लंड के ऊपर के भाग पर एक प्यार भरा चुम्बन देती है. और अगले ही पल वो उस बड़े से लंड को अपने मुँह में गपक से डाल लेती है और उसको धीरे-धीरे चूसने लगती है. रजत अपने पर बड़ी देर तक नियत्रण नहीं रख पता और उसके मुँह से आवाज़ निकलने लगता है...

रजत: "आ... ह... आह.. "

और अब रजत का नियत्रण अपने पर से पूरा ही छूट जाता है और वो अपने एक हाथ से शीतल को सर अपने लंड पर जोर से दबा देता है. फिर करीब दस मिनट की लंड चुसाई के बाद जब रजत का लंड वीर्य छोड़ता है तो शीतल उसके वीर्य को पि जाती है और अपना मुँह पोंछकर रजत की तरफ देखकर मुस्कुराती है और कमरे से बहार चली जाती है.

बहार जाकर वो मयूरी को सारी बात बताती है. मयूरी बड़ी खुश हो जाती है और पूछती है:

मयूरी: "तो अपने बेटे के लंड का स्वाद कैसा लगा माँ...?"

शीतल: "मुझे बहुत मजा आया यार... सच में... "

मयूरी: "बहुत बढ़िया... अब मेरी बात ध्यान से सुनो.. "

शीतल: "हाँ बोलो... अब मैं तुम्हारी हर बात सुनूंगी... आखिर तुमने मुझे अपने बेटे का लंड चुसवाया है... "

मयूरी: "सिर्फ लंड चूसने के लिए नहीं होता. उसको अपने चूत में लेना है की नहीं?"

शीतल: "हाँ.. बिलकुल लेना है... मैं तो अपने दोनों बेटों से चुदवाने के लिए मरी जा रही हूँ.. "

मयूरी: "ठीक है... तो थोड़ी देर में पापा ऑफिस चले जायेंगे. और मैं कॉलेज... भैया कोचिंग से घर आ जायेगा और इस तरग घर में सिर्फ तुम तीनो लोग रहोगे... "

शीतल: "हाँ.. बिलकुल... "

मयूरी: "तो यही मौका है... अपने बेटो का लंड अपने चूत में लेने का... छोड़ना मत... "

शीतल: "पक्का... तू तैयार हो और कॉलेज जा... "

मयूरी (छेड़ते हुए): "बड़ी जल्दी है मुझे कॉलेज भेजने की?"

शीतल: "चल हट... माँ को छेड़ती है...?"

मयूरी: "ये माँ भी तो अपने बेटो का लंड चूसती है... "

मयूरी: "और तू बड़ी सीधी है... कल रात ही अपने बाप से चुदी है...?"

फिर थोड़ी देर हंसी ठिठोली कर के मयूरी तैयार होकर कॉलेज चली जाती है और अशोक अपने ऑफिस. कुछ ही देर में विक्रम घर आ जाता है. घर में मौजूद तीनो जिस्म एक साथ चुदने को मरे जा रहे थे, बात बस एक अच्छी से शुरुआत करने की थी.

खैर, सबको खाना खिलाने और साफ-सफाई करने के बाद शीतल नहाने के लिए बाथरूम में घुस जाती है. दोनों लड़के हॉल में बैठकर टीवी देख रहे होते है. रजत ने विक्रम और मयूरी को आज सुबह की अपनी माँ से लंड चुसाई वाली घटना के बारे में पहले ही बता दिया था. तभी शीतल बाथरूम के अंदर से आवाज़ देती है:

शीतल: "रजत, विक्रम... कोई है क्या इधर?"

विक्रम: "हाँ माँ... "

शीतल: "मैं तौलिया लाना भूल गयी... जरा मुझे दे देना... "

दोनों भाई एक-दूसरे की ओर देखते हैं.

रजत: "भैया, तुम जाओ..."

विक्रम: "ओके... "

और विक्रम शीतल के कमरे से तौलिया लेकर बाथरूम का दरवाजा खटखटाता है:

विक्रम: "माँ... तौलिया ले लो.. "

शीतल: "दरवाजा खुला है... अंदर आ के रख जा... "

विक्रम बाथरूम का दरवाजा धीरे से खोलता है और अंदर प्रवेश करता है. विक्रम देखता है की माँ ने सिर्फ पेटीकोट पहना हुआ है. शीतल का पेटीकोट उसकी चूचियों के ऊपर तक चढ़ा हुआ था और उसका नाड़ा शीतल ने अपने दांतों से पकड़ा हुआ है. इस अवस्था में उसकी जाँघे और दोनों टाँगे बिलकुल साफ दिखाई दे रही थी. शीतल ने अपने एक साथ से साबुन और एक हाथ से लूफा (बदन को रगड़ कर साफ करने वाली चीज़) पकड़ी हुई है. शीतल का पूरा शरीर भीगा हुआ था, उसका पेटीकोट भी भीगा हुआ था और उसके भीगे होने की वजह से वो शीतल के पुरे शरीर में चिपका हुआ था. शीतल इस अवस्था में बहुत ही कामुक लग रही थी. उसकी चूचियां और गांड कपडे से ढके होने के वावजूद भी पूरी दिखाई दे रही थी. विक्रम शीतल का जिस्म देखकर अवाक् रह जाता है. फिर अपने आप को वापिस होश में लेकर विक्रम अपनी माँ से पूछता है:

विक्रम: "माँ... तौलिया कहा रखूं... "

शीतल बाथरूम के खूंटी तरफ इशारा करती है. फिर विक्रम तौलिया रखकर बहार जाने लगता है की शीतल फिर कहती है:

शीतल: "अच्छा सुन बेटा..."

विक्रम: "हाँ माँ... "

शीतल: "अब जो तू अंदर आ ही गया है तो क्या मेरी पीठ में साबुन लगा देगा?"

विक्रम: "जरूर माँ... "

विक्रम को शीतल साबुन देती है. पेटीकोट ऊपर तक होने की वजह से पीठ आधे से ज्यादा ढकी हुई होती है. विक्रम ऊपर के थोड़े हिस्से जो की खुले हुए थे, उनमे साबुन लगाने लगता है. उसको अपनी कामुक माँ की पीठ की त्वचा बहुत ही मुलायम लगती है. उसको अपनी माँ को साबुन लगाने माँ बहुत मजा आने लगता है. फिर वो कहता है:

विक्रम: "माँ... "

शीतल: "हाँ बेटा.. "

विक्रम: "आपकी पीठ तो ढकी हुई है...? निचे साबुन कैसे लगाऊं...?"

शीतल: "अच्छा रुक... मैं पेटीकोट निचे करती हूँ... "

और शीतल अपना पेटीकोट के नाड़े को दांतों से छुड़ाकर हाथ से पकड़ लेती है और उसको कमर तक एडजस्ट करती है जिस से उसका पीठ पूरा नंगा हो जाता है. साथ ही साथ उसक आगे से चूचियां भी नंगी हो जाती है. शीतल का चेहरा बाथरूम के शीशे की तरफ था, और विक्रम शीतल के पीछे खड़ा था तो जब शीतल की चूचियां पूरी नंगी हो गयी तो वो सामने शीशे में शीतल की खुली चूचियों को साफ़ देख सकता था. अब विक्रम का लंड उत्तेजना में खड़ा हो गया था. उसकी माँ उसके सामने लगभग नग्न खड़ी थी वो भी भीगी हुई. वो बहुत ही ज्यादा कामुक लग रही थी. शीतल ने उसको अपनी चूचियों को ताड़ते हुए देखा... फिर वो बोली:

शीतल (मुस्कुराते हुए): "ये तुम्हे बहुत अच्छी लग रही है क्या?"

विक्रम (हड़बड़ाते हुए): "क.. क्या... माँ... "

शीतल: "यही जो तुम देख रहे हो?"

विक्रम: "म... मैं.. वो... "

शीतल (हँसते हुए): "अरे कोई बात नहीं... घबरा क्यूँ रहे हो...? मैं तुम्हारी माँ हु... तुमने ये बहुत बार देखा है... मैं तो बस पूछ रही थी की ये तुम्हे कैसी लगी... "

विक्रम (संभलते हुए): "ऐसी कोई बात नहीं है माँ... ये अच्छी हैं... बहुत सेक्सी... "

शीतल: "अच्छा? चलो साबुन लगाओ.... "

और विक्रम साबुन लेकर उसकी पीठ में लगाने लगता है. फिर अपने दोनों हाथों से शीतल का पीठ रगड़ने लगता है. विक्रम शीतल के पुरे पीठ में साबुन लगाने और रगड़ने लगता है. और वो कुछ देर पीठ में अपना हाथ रगड़ते-रगड़ते अपना हाथ धीरे से थोड़ा सा निचे ले जाता है और शीतल की गांड को भी थोड़ा-थोड़ा मसल देता है. शीतल उसको कुछ नहीं बोलती तो उसका मन बढ़ जाता है और वो फिर बड़े आराम से अपनी माँ की गांड में साबुन लगाने के बहाने उसको जोर-जोर से मसलने लगता है. शीतल भी खूब आराम से अपने बेटे से अपनी गांड मसलवा रही थी.

फिर थोड़ी देर तक उसकी गांड में साबुन लगाते हुए वो अपनी एक ऊँगली उसकी गांड में डाल देता है. शीतल जैसे चिहुँक-सी पड़ती है. और उसके हाथ से पेटीकोट का नाडा छूट जाता है. और पेटीकोट निचे गिर जाता है. ऐसी स्थिति में अब शीतल पूरी तरह से नग्न हो जाती है. विक्रम अपनी माँ को पूरा नंगा देखता है तो बस देखता ही रह जाता है. विक्रम लेकिन अपना ऊँगली उसकी गांड से निकलता नहीं है. बल्कि उसी क्षण अपना एक हाथ पीछे से शीतल की चूची पर रख देता है और उसमे साबुन लगाने के बहाने उसको भी मसलने लगता है. शीतल की आहें तेज़ हो जाती है और उत्तेजना की वजह से उसकी आँखें बंद हो जाती है. विक्रम का इस बात से सहस बढ़ जाता है और वो अपना एक हाथ जो की अपनी माँ की गांड की छेद में व्यस्त था, को उसकी चूत पर फेरने लगता है.

शीतल: "आ... ह.... आह... राम.. "

विक्रम रुकता नहीं है और वो अपनी उस हाथ की एक ऊँगली को अपनी माँ की चूत में पेल देता है और उसको अंदर-बहार करके अपनी माँ को अपने हाथ से चोदने लगता है. शीतल को बहुत ही आनंद का अनुभव हो रहा होता है. वो मस्त मजे लेने लगती है. विक्रम अपने एक हाथ से अपनी माँ की चूत चोद रहा था और दूसरे हाथ से उसकी चूचियाँ मसल रहा था. ये उसके लिए बड़ा ही आनंददायी समय था. कुछ देर में शीतल की चूत से पानी छूट जाता है. उसकी सांसे बहुत तेज़ हो चुकी होती है.

शीतल अब रुकने के मूड में नहीं थी. वो विक्रम की तरफ पलटी और उसने अपने होंठ उसके होंठों से जोड़ दिए. उसने एक हाथ से विक्रम के लंड को मसलना शुरू कर दिए. थोड़ी देर तक उसके लंड को उसके शॉर्ट्स की अंदर से मसलने के बाद वो अपने होंठ अपने बेटे के होंठों से अलग करती है और निचे बैठ जाती है. फिर उसके शॉर्ट्स को निचे सरका देती है जिस से उसका लंड फनफनाता हुआ बहार निकल कर खड़ा हो जाता है. शीतल गपक से उसके लंड को अपने मुँह में भर लेती है और विक्रम को आनंद के बागों की सैर कराने लग जाती है. विक्रम ने पहली बार अपनी माँ के मुँह में अपना लंड दिया था... हालाँकि कल रात को ही उसने उसकी चूत का स्वाद लिया था पर फिर भी अपना लंड पहली बार उसके मुँह में देना उसके लिए बहुत ही ज्यादा रोमांचक था.

शीतल एक अनुभवी खिलाडी की तरह अपने बेटे का लंड चूसने लगी. विक्रम भी अपना लंड उसके मुँह में डालकर आगे-पीछे करने लगा और अपनी नंगी माँ के मुँह की चुदाई करने लगा. थोड़ी देर में जब उसके लंड से वीर्य का भंडार छूटा तो माँ ने उसके सारे वीर्य को पी लिया. आज शीतल ने अपने दोनों बेटों का लंड चूस लिया था। पर इस उसके लिए सब कुछ नहीं था. आज तो वो दोनों का लंड अपनी चूत में लिए बिना मानने वाली नहीं थी. विक्रम अपनी माँ को पहली बार बाथरूम में नहीं चोदना चाहता था. वो बोला:

विक्रम: "माँ... "

शीतल: "हाँ... "

विक्रम: "आप नहा लो... बाकि का काम यहाँ नहीं... "

शीतल: "तो कहाँ...?"

विक्रम: "कमरे में चलते हैं... वह आराम से करेंगे... मैं चाहता हूँ की जब मैं आपकी चूत की चुदाई करूँ तो मेरे पास पूरी जगह हो... "

शीतल: "तो फिर अभी चलते हैं... मुझे अभी नहीं नहाना... बाद में नाहा लुंगी... "

विक्रम: "पर आपके बदन पर साबुन लगा हुआ है... "

शीतल: "तो क्या हुआ... आज ऐसे ही चुदाई होगी मेरी... मैं अपने बेटे से पहली बार चुदने जा रही हूँ... कुछ तो अलग होना ही चाहिए... "

विक्रम: "जैसी आपकी मर्जी माँ... "

और विक्रम अपनी माँ को अपने दोनों हाथों से अपनी गोद में उठा लेता है जो इस समय नग्न है, भीगी हुई है और उसके पुरे शरीर पर साबुन लगा है और वो बाथरूम से बहार निकलता है. विक्रम भी निचे से बिलकुल नंगा होता है क्युकी थोड़ी देर पहले ही उसकी अपनी माँ ने उसके लंड को चूसने के लिए उसकी शॉर्ट्स को खोल दिया था.

विक्रम जब बाथरूम से बहार निकलता है तो हॉल में बैठे रजत की नजर उन दोनों पर पड़ती है.

रजत: "क्या बात है भाई... बड़ी जल्दी पटा लिया माँ को...?"

विक्रम (गर्व से): "और नहीं तो क्या... अब कमरे में चल... आज तेरी माँ चोद दूंगा... और तू भी बनेगा मादरचोद... "

रजत (हस्ते हुए): "हाँ बिलकुल मरदारचोद... "

दोनों भाई एक दूसरे को अपनी माँ के सामने ही मादरचोद नाम की गलियां दे रहे थे पर उनकी माँ को जरा भी बुरा नहीं लग रहा था, उल्टा उसको बड़ा मजा आ रहा था. तीनो लोग शीतल के कमरे में पहुंचते हैं जहा कल रात को मयूरी ने अपने बाप से खूब चुदवाया था. और यही बिस्तर आज इस घर में माँ-बेटों की चुदाई का भी प्रत्यक्ष बनने वाला था.

विक्रम ने अपनी माँ को बिस्तर पर प्यार से रख दिया. रजत ने अपनी माँ से बिना पूछे ही उसकी भीगी चूचियों की मसलने लगा जो की साबुन से भीगी हुई थी और इसी कारण वहां बहुत ज्यादा फिसलन भी थी. रजत को बड़ा मजा आ रहा था. विक्रम अपनी माँ की चूत चाटने लग जाता है...

शीतल: "आ... हह... आह... मेरे बेटों.... "

रजत: "माँ... आज तो हम दोनों भाई तुझे खूब चोदेगे... "

शीतल: "मैं भी यही चाहती हूँ मेरे बेटों... तुमदोनो मुझे खूब चोदो... तुम्हारा हक़ मेरे पर..."

थोड़ी देर बाद विक्रम और रजत ने अपने कपडे उतर फेंके और घर में अब तीनो लोग बिलकुल नंगे हो गए. फिर रजत ने अपनी माँ से पूछा:

रजत: "माँ... क्या हम दोनों तुम्हारी चुदाई करना शुरू करें...?"

शीतल: "हाँ मेरे लाडलों... चोद दो अपनी माँ को... एक साथ... "

रजत: "माँ... पहले मैं तुम्हारी गांड मरूंगा... तुम्हे कई बार देखा है पापा से गांड मरवाते... आज मेरा तुम्हारी गांड मारने का सपना पूरा होगा... "

शीतल: "हाँ बेटे... देर ना कर... मैं भी तुम्हरा ये मोटा लंड अपने गांड में लेने के लिए मरी जा रही हूँ... तुम्हारा लंड तुम्हारे पापा से थोड़ा ज्यादा मोटा है... आज बहुत मजा आएगा... "

रजत उठता है और अपना लंड शीतल की गांड पर सेट करता है. विक्रम अपनी माँ की चूत को चाटना छोड़ कर उसपर अपना लंड सेट करता है और दोनों भाई एक साथ अपनी माँ की गांड और चूत में एक-एक जोरदार झटका देते हैं... शीतल को अपनी गांड और चूत दोनों में एक साथ दर्द होता है. वो चीख पड़ती है...

शीतल: "आह.... मर गई... तुम्हारा लंड तो बहुत मोटा है कुत्तों... मुझे बहुत दर्द हो रहा है... "

विक्रम: "साली कुतिया... नाटक करती है... इतने साल से पापा से चुद रही है और मेरा लंड लेने में नाटक कर रही है?"

और वो अपने लंड का एक और जोरदार झटका उसकी चूत में देता है. विक्रम का लंड जैसे-तैसे शीतल की चूत में पूरा चला जाता है.

शीतल (दर्द से कराहते हुए): "आ... ह... आह... अरे मादरचोदों, तुम्हारे बाप का लंड इतना मोटा नहीं है... आह... आ....ए.... इसलिए मुझे तुम्हारा ये गधों जैसा लंड अपनी चूत में लेने में दर्द हो रहा है... आ... ह... पर तुम अपना काम जारी रखो... थोड़ी देर में ये चूत और गांड तुम्हारे लंड के मोटाई के हिसाब से खुल जायेगा और फिर दर्द नहीं होगा... सिर्फ मजा आएगा... आह... "

विक्रम अब चुदाई करना शुरू कर देता है. शीतल की चूत ने बहुत सारा पानी छोड़ दिया होता है जिस से चिकनाहट हो जाती है और अब थोड़ी ही देर में उसकी चूत अपने बड़े बेटे का लंड आराम से अंदर लेने लग जाती है... पर उसका छोटा बीटा रजत, उसको अपनी माँ की गांड मरने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी. फिर वो उठा और किचन से जाकर तेल ले आया और अपने लंड और अपनी माँ की गांड पर बहुत सारा तेल लगा दिया और एक जोरदार झटका मारा... इस से उसका लंड आधा अपनी माँ की गांड के अंदर चला गया... शीतल फिर चीखने लगी:

शीतल: "हाए माँ... मर गई... मेरी गांड फाड् दोगे क्या मादरचोद...?"

रजत अपनी माँ के मुँह से गलियां सुन के और उत्तेजित हो जाता है और वो भी गलियां देने लग जाता है...

रजत: "हाँ साली... तेरी गांड में आज अपना ये लंड पेल के इसको फाड् दूंगा.... रंडी कही की... आज से तू मेरी माँ नहीं रंडी है रंडी... और अब आज के बाद तू रोज़ मुझसे अपनी गांड मरवायेगी... समझी?"

इतना कहते हुए रजत एक और जोरदार झटका दिया जिस से उसका लंड शीतल के गांड में लगभग पूरा ही चला गया. लंड और उसकी माँ की गांड में बहुत तेल होने के कारन यहाँ भी बहुत चिकनाई हो गयी थी. तो अब रजत ने भी जोरदार झटके देने शुरू कर दिए. अब शीतल के दोनों बेटे एक साथ अपनी माँ की गांड और चूत की बहुत ही जोरदार चुदाई कर रहे थे.

शीतल के लिए ये एकदम नया अनुभव था. उसने अभी तक अपनी गांड और चुत तो बहुत बार चुदवाई थी पर एक साथ दोनों और वो भी दोनों नए लंड से का अनुभव उसे बहुत ही नया और निराला लग रहा था. शीतल का दर्द अब लगभग ख़तम हो गया था क्यूँ की अब उसकी चूत और गांड दोनों चौड़ी हो गयी थी अपने बेटों के लंड के अनुसार.

कमरे में ठप-ठप और फच-फच की आवाज़ें आ रही थी. शीतल के आहें और दोनों जवान बेटों की घमासान चुदाई के कारन पलंग की हिलने की भी आवाज़ें आ रही थी. पुरे कमरे में कई तरह के आवाज़ों का मिला-जुला शोर हो रहा था जो माहौल को और भी ज्यादा चुडाईनुमा बना रहा था.

घर में दोनों बेटे अपनी माँ को खूब चोद रहे थे और तीनो सदस्य एक दूसरे को खूब सारी गन्दी-गन्दी गलियां भी दे रहे थे पर इन सब चीज़ों से उनको बहुत ही ज्यादा आनंद और उत्तेजना हो रही थी. करीब पंद्रह मिनट की घमासान चुदाई के बाद तीनो लोग एक साथ झाड़ गए. शीतल के दोनों बेटे एक साथ उसकी गांड और चुत में झड़ गए.

फिर थोड़ा सा आराम करने के बाद दोनों लड़को का लंड फिर से खड़ा हो गया और दोनों बेटों ने एक साथ अपना लंड अपनी माँ के मुँह के पास लेजाकर उस से चुसवाने लगे. शीतल कभी अपने बड़े बेटे का लंड चुस्ती तो कभी अपने छोटे बेटे का क्यूँ की दोनों का लंड बहुत मोटा था और एक साथ उसके मुँह जा नहीं सकता था. जब वो एक लंड चूसती तो दूसरे का लंड अपने दूसरे हाथ से आगे-पीछे करके हिलाती. शीतल सच में अपने दोनों बेटों के सामने रंडियों जैसे व्यव्हार कर रही थी और उनसे वैसे ही चुदवा भी रही थी. फिर रजत ने थोड़ी देर बाद अपना लंड शीतल की चुत पर सेट किया और विक्रम उसकी गांड का रुख करता है. दोनों फिर से अपनी माँ को एक साथ चोदते हैं और फिर नंगे ही बिस्तर पर गिर जाते हैं और आराम करने लग जाते हैं.

शीतल दोनों बेटों के बिच में लेटी हुई थी और अपने दोनों हाथों से उनका लंड धीरे-धीरे सेहला रही थी. उसके दोनों बेटे भी उसकी चूचियों से धीरे-धीरे खेल रहे थे और उसकी जांघो को सेहला रहे थे. फिर तीनो में बातचीत शुरू होती है:

रजत: "माँ...?"

शीतल: "हाँ बेटे... "

रजत: "क्या अब तुम रोज़ हमसे ऐसे ही चुदवाओगी?"

शीतल: "हाँ मेरे लाल... "

रजत (ख़ुशी से): "कितना मजा आएगा... अब हम रोज़ तुम्हे अलग अलग जगह पर चोदेगे... इस घर का हर कोना हम माँ-बेटों की चुदाई का गवाह बनेगा... "

शीतल: "हाँ मेरे लाल... अब हम खूब चुदाई करेंगे... "

विक्रम: "सही कहा छोटे... माँ, तुमको हमसे चुदना अच्छा लगा?"

शीतल: "हाँ मेरे बेटे... आज मुझे चुदाई को जो अनुभव हुआ है वो पहले कभी नहीं हुआ... तुम्हारे पापा भी मुझे खूब चोदते हैं... लगभग रोज़ और वो भी अलग-अलग तरीके से... पर तुम दोनों से एक साथ चुदने में जो मजा आया... वो एकदम अलग है... "

विक्रम: "हमे भी बहुत अच्छा लगा माँ... हम तो बचपन से तुम्हे चोदना चाहते थे... पर कभी बता नहीं पाए..."

रजत: "वैसे माँ... एक बात पूँछू?"

शीतल: "हाँ मेरे बेटे... पूछो?"

रजत: "क्या तुमने पापा के सिवा किसी और मर्द से कभी नहीं चुदवाया?"

शीतल: "नहीं मेरे बेटे? अभी तक मैं एकदम पतिव्रता औरत थी पर अब पुत्रवृत भी हो गयी... अब मैं तुमदोनो की भी पत्नी हूँ आज से... तुमदोनो जब चाहो मुझे आके चोद सकते हो... "

रजत: "जब भी हमारा मन करें?"

शीतल: "हाँ मेरे बेटे... जब भी तुम्हारा मन करे?"

रजत: "और पापा को पता चल गया तो?"

शीतल (मुस्कुराते हुए): "तुम उसकी चिंता मत करो... उसका इंतेज़ाम भी कर लिया है मैंने... "

रजत (हैरानी से): "मतलब?"

शीतल: "वो तुम्हे बाद में बताउंगी... "

रजत (जिद करते हुए): "अभी बताओं ना माँ... प्लीज... "

विक्रम: "हाँ माँ... बताओं ना... मुझे भी जिज्ञासा हो रही है... आपने पहले ही पापा को अपने बता दिया है या पापा ने खुद ही आपको हमसे चुदवाने के लिए कहा है? "

रजत: "वाओ... अगर ऐसा है तो क्या हम पापा के सामने भी आपकी चुदाई कर सकते है और पापा भी हमारे साथ आपकी चुदाई करेंगे...?"

शीतल (हँसते हुए): "अरे नहीं... ना पापा को मैंने अभी तक बताया है और ना ही उन्होंने ने मुझे तुमसे चुदने के लिए भेजा है... कैसी बात करते हो? कोई पति अपनी बीवी को अपने बेटों से चुदने के लिए कहेगा क्या?"

विक्रम: "फिर अपने क्या इंतजाम किया है?"

शीतल: "बाद में बताउंगी... "

विक्रम: "बताओं ना माँ... मुझे बहुत एक्साइटमेंट हो रही है?"

शीतल: "देखो... मैंने कुछ ऐसा इंतजाम किया है की अगर तुम्हारे पापा को हमारे चुदाई के बारे में पता चल भी गया या हमलोगो को आपस में सेक्स करते हुए देख भी लिया तो वो कुछ बोल नहीं पाएंगे... "

विक्रम: "क्यूँ माँ...?"

शीतल: "वो बाद में बताउंगी... "

रजत: "अच्छा चलो ठीक है... कोई बात नहीं... पर हम खुश हैं की हमे पापा से पकडे जाने को कोई डर नहीं है... "

शीतल: "अब अगर मुझे इजाजत हो तो मैं अपना स्नान पूरा कर लूँ?"

रजत: "हाँ बिलकुल... पर उसके पहले तुम्हे मेरा लंड चूसना पड़ेगा... "

शीतल: "ठीक है... पर तुम्हे मुझे नहाना पड़ेगा... "

विक्रम: "फिर चलो... सीधा बाथरूम में चलते हैं... "

शीतल: "ठीक है... "

और फिर तीनो बाथरूम में जाते है और नहाने के बहाने फिर से कई बार अलग-अलग मुद्रा में चुदाई करते हैं. फिर सब कपडे पहनकर सामान्य माँ-बेटों की तरह तैयार हो जाते हैं क्यूँ की मयूरी के घर आने का वक्त हो चला था. थोड़ी देर में मयूरी घर आती है और अपने कमरे में चली जाती है. कमरे में वो और उसको दोनों भाई अकेले होते है और थकान के कारन शीतल अपने कमरे में आराम कर रही होती है. मयूरी अकेले में अपने भाइयों से पूछती है:

मयूरी: "फिर... आज हुआ कुछ?"

रजत: "हाँ दीदी.. आज तो हम बहनचोद से मादरचोद भी बन गए... "

मयूरी: "अच्छा? चलो... फिर इधर आओ और मेरी गांड चाटो... मुझे तुमसे अपनी गांड चटवाने में बड़ा आनद आता है... "

विक्रम: "हाँ... और अब तो घर में हमारे अलावा सिर्फ माँ है... और उनसे डरने की कोई जरुरत नहीं है... "

मयूरी: "फिर भी... जब तक उनको अपने आप पता नहीं चलता... हमलोग नहीं बताएँगे... "

रजत: "पर क्यूँ दीदी... बड़ा मजा आएगा अगर हम चारों आपस में एक साथ चुदाई करेंगे... "

मयूरी: "करेंगे मेरे भाई... पर तू थोड़ा सब्र रख... मेरा जन्मदिन आ रहा है... ये तुझे ये तोहफा मैं उसी दिन दूंगी... "

विक्रम: "अरे हाँ... कल तो तुम्हारा जनदिन भी है न... वाओ... "

फिर तीनो भाई-बहिन आपस में खूब चुदाई करते हैं.

शाम को शीतल के जागने के बाद मयूरी उससे मिलती है और फिर शीतल पुरे विस्तार से उसे अपने दोनों बेटों से चुदने की गाथा बताती है. दोनों बहुत खुश हो जाते हैं क्यूँ की दोनों ने अपनी जंग जीत ली थी. शीतल को अब डर नहीं था की अगर उसके पति उसको अपने बेटों से चुदवाती हुई अवस्था में देख भी लेता है तो वो उसको अपनी बेटी से चुदाई की दुहाई देकर चुप करा सकती है.

पर मयूरी के दिमाग में तो अलग ही खेल चल रहा था. वो चाहती थी की पूरा परिवार एक साथ चुदाई करे, कोई किसी को भी चोदे वो भी बिना रोक-टोक के. ये सब उसने अकेले प्लान किया था और उसने सारी बात अपने परिवार में किसी को भी बताई नहीं थी. वो सब को सरप्राइज कर देना चाहती थी और इसीलिए उसने सबको एक दूसरों से चुदवा भी दिया था पर फिर भी किसी को अपने सिवा किसी और की चुदाई के बारे में कुछ जानकारी नहीं थी, जैसी की विक्रम और रजत को मयूरी और शीतल की बिच हुई चुदाई और मयूरी और अशोक के बिच हुई चुदाई के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. वैसे ही शीतल को मयूरी और विक्रम-रजत के साथ हुए चुदाई की कोई जानकारी नहीं थी.

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