नेहा का परिवार 09

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मैं चाचू की जानलेवा चुदाई से इतनी बार झड़ गयी थी कि मेरा शरीर शिथिल हो गया।

सुरेश चाचा भी भरी भारी सांस लेते हुए मेरे ऊपर पसर गए। उन्होंने भी मेरे मुंह और होंठो को कस कर चूसा।

सुरेश चाचा और मैं एक दुसरे से लिपटे मेरी भयंकर चुदाई की थकन को दूर होने का इंतज़ार करने लगे।

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सुरेश चाचा मुझे कस कर पकड़ कर अपनी पीठ पर लेट गये। मैं अब उनके ऊपर लेती हुई थी और उनका भारी मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड मेरी चूत में अभी भी फंसा हुआ था। सुरेश चाचा के हाथ एक क्षण के लिए भी निष्चल नही हुए। चाचू ने मेरे चूतड़ों और कमर को सहला कर मेरे शरीर को फिर से गरम कर दिया। उनका लंड अभी भी मेरी चूत में फंसा हुआ था। उनका लंड मुझे घंटे भर चोद कर भी बड़ी मुश्किल से थोड़ा सा शिथिल हुआ था।

मैंने अपनी चूत को होले से उनके विशाल लंड के ऊपर से अलग किया। मेरी चूत में से भरभर कर चाचू का गाढ़ा बच्चे पैदा करने वाला वीर्य ने उनके लंड और झांटों को भिगो दिया।

मैं धीरे धीरे चाचू के होंठो फिर ठोड़ी को चूम कर नीचे सरकने लगी। मैंने सुरेश चाचा की मर्दाने घने बालों भरी सीने को प्यार से चूम कर उनके काले निप्पलों को ज़ोर से चूसा। उनके हल्की सी सिसकारी मेरा पुरूस्कार थी।

मेरे होंठ उनके सीने से मेरी लार से गीला रास्ता बनाते हुए उनकी तोंद पर पहुँच गए। मैं अपनी जीभ उनकी गहरी नाभि में दाल कर हिलाने लगी। चाचू के मुंह से निकली गुर्राहट ने मेरी उत्तेजना को भी प्रज्ज्वलित कर दिया।

मैंने चाचू की बालों से भरी तोंद को सब तरफ चूमा और चाटा। आखिरकार मेरी मंज़िल मेरे भूखे मुंह के सामने थी। चाचू का लंड धीरे धीरे फिर से पहले जैसे लोहे के खम्बे जैसी सख्ती की तरफ बड़ रहा था।

मैंने अपने नन्हे हाथों से चाचू की जांघों को मोड़ा। सुरेश चाचा मेरी इच्छा समझ कर खुद ही अपनी जांघों को मोड़ और फैला कर लेट गए। मैंने पहले उनकी विशाल अंडकोष को चूमना शुरू किया। उनके घनी झांटे मेरे नाक में घुस कर गुलगुली कर रहीं थी। पर मुझे अपने चाचा के मोटे लंड और विशाल विर्यकोशों पर बहुत प्यार आ रहा था। आखिरकार इसी मोटे लंड ने मेरी चूत की चुदाई कर इन्हीं अन्डकोशों से उपजे वीर्य से मेरे गर्भाशय को सींचा था।

मैंने काफी कोशिश के बाद उनका एक फ़ोता अपने मुंह में लेने में सफल हो गयी। जैसे ही मैंने उसे चूसना शुरू किया चाचू सिस्कार उठे।

मैंने चाचू के दुसरे अंडकोष को भी अपने गरम मुंह में लेकर चूसा। मेरी नाक में सुरेश चाचा के भारी बालों से भरी चूतड़ों की दरार में से उपजी एक विचित्र मर्दानी गंध भर गयी। मैंने उनकी गांड को खोलने की कोशिश की पर उनके चूतड़ मेरे लिए बहुत भारी थे।

सुरेश चाचा ने मेरी मदद करने के लिए एक मोटा तकिया अपने चूतड़ों के नीचे रख कर खुद ही अपने चूतड़ फैला दिए।

मैंने अपनी जीभ से उनकी बालों से ढंकी गांड के दरार को चाटा। मेरे मुंह और नाक चाचू की गांड की गंध और स्वाद से भर गए। उनके चूतड़ों के बीच में इकट्ठे हुए मर्दाने स्वाद और सुगंध ने मुझे वासना से अभिभूत कर दिया। मैं लालचीपन से उनकी कसी सिकुंड़ी हुई गांड के छल्ले को चाटने लगी। चाचू की सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहन दिया। मैंने अपनी जीभ की नोक से सुरेश चाचा की गांड के छिद्र को सताना शुरू कर उनके दोनों अन्डकोशों को अपने नन्हे हाथ से सहलाने लगी।

सुरेश चाचा ने ज़ोर लगा कर अपनी गांड का छल्ला ढीला कर दिया और मेरी जीभ उसके अंदर समा गयी। मैंने सुरेश चाचा की गांड अपनी जीभ से मारने लगी। उनकी तरह मेरे पास उनके जैसा विशाल लंड तो था नहीं जिससे मैं उनकी गांड मार पाती। मेरे पास सिर्फ मेरी जीभ और उंगलियाँ थी।

मैंने चाचू की गांड को अपने थूक से भिगो दिया। मैं थोडा ऊपर हो कर उनके लंड को चूसने लगी। मैंने अपनी तरजनी को उनकी गांड पर लगा कर दबाया। मेरी उंगली उनकी गांड के भीतर प्रविष्ट हो गयी। उनकी गांड बहुत ही गरम और मुलायम थी। चाचू की कसी गांड की दीवारों ने मेरी उंगली को जकड़ लिया। अब मुझे समझ आया की बड़े मामा और चाचू के मोटे लंडों को मेरी तंग चूत और गांड क्यों इतनी भाती थी।

मैं चाचू के सुपाड़े को अपने मुंह में लेकर उसके बड़े पेशाब के छिद्र को अपनी जीभ की नोक से कुरेदने लगी। सुरेश चाचा ने अपने गांड ऊपर उठा कर मेरे मुंह में अपना लंड धकेलने की कोशिश की।

मैं अब अपनी उंगली से उनकी गांड तेजी से मार कर उनका लंड चूस रही थी।

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सुरेश चाचा की सिस्कारियां मुझे बहुत ही लुभावनी लगीं। मैंने और भी मन लगा कर उनके लंड को अपने लार भरे मुंह के भीतर ले कर जोर से चूसने लगी। मैंने अपने दूसरे हाथ से सुरेश चाचा के अब तनतनाये हुए लंड के विशाल खम्बे को सहलाने लगी। मेरा हाथ बड़ी मुश्किल से चाचू के लंड की आधी मोटाई को पकड़ पा रहा था। सुरेश चाचा की सिसकारी ने मेरे प्रयासों की प्रशंसा सी करती प्रतीत होतीं थीं।

लगभग आधे घंटे के बाद सुरेश चाचा के सिस्कारियां और भी तेज और ऊंची हो गयीं। मेरी उंगली उनकी गांड को तेजी से चोद रही थी। मेरी जीभ और मेरा मुंह उनके लंड के सुपाड़े को निखरती हुई कुशलता से सताने लगे। मेरा हाथ उनके मोटे लंड का हस्तमैथुन सा कर रहा था।

अचानक बिना किसी चेतावनी दिए सुरेश चाचा के लंड ने मेरा मुंह गरम मर्दाने बच्चे-उत्पादक वीर्य से भर दिया। मैंने जितनी भी जल्दी हो सकता था उतनी जल्दी से उसे पीने लगी। चाचू के लंड ने पहली की तरह अनेको बार अपने वीर्य की तेज मोटी धार से मेरा मुंह भर दिया। मैंने कम से कम दस बार अपने मुंह में भरे वीर्य को प्यार से सटक लिया होगा। फिर भी कुछ मीठा-नमकीन वीर्य मेरे मूंह से निकल सुरेश चाचा के लंड और मेरे हाथ के ऊपर लिसड़ गया।

मैंने बिना कुछ व्यर्थ किये बाहर फैले वीर्य को चाट कर सटक लिया। मैंने चाचू की गांड में से अपनी उंगली निकाल ली। मेरी उंगली उनकी गांड के भीतर की गंध से महक रही थी। मुझे अचानक ध्यान आया कि बड़े मामा को मेरी गांड का स्वाद बहुत अच्छा लगा था। मैंने भी चाचा की गांड के रस से भीगी उंगली को अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी। मुझे चाचू की गांड का कसैला तीखा स्वाद बिलकुल भी बुरा नहीं लगा।

सुरेश चाचा मुझे एकटक प्यार से घूर रहे थे।

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