नेहा का परिवार 13

Story Info
यह कहानी नेहा के किशोरावस्था से परिपक्व होने की सुनहरी दास्तान है।
11.6k words
4.55
4.9k
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Part 13 of the 22 part series

Updated 06/08/2023
Created 11/03/2016
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नेहा का परिवार

लेखिका:सीमा

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CHAPTER 13

*******

सुशी बुआ के संस्मरण

*******

*******

८३

*******

अक्कू ने मेरे हिलने से पहले मेरे चूतड़ों को फैला केर मेरी गांड और चूतड़ों को प्यार से चूम चाट कर साफ़ कर दिया।

मैंने मम्मी के देखा देखी जब मुड़ी तो अक्कू कद लंड अपने मुंह में लेकर चूस चाट कर साफ़ करने लगी। अक्कू के लंड पर उसके लंड के रस और मेरी गांड के रस का मिश्रित लेप मेरे मुंह के स्वाद को बहुत भाया।

अब मैं अपने पीठ पर अपने गोल मटोल मोटी टांगें फैला काट अपने छोटे भाई का इंतज़ार करने लगी। अक्कू ने मेरी जांघों को मेरे कन्धों तक पीछे झुका कर मेरे चूतड़ों को पलंग से ऊपर उठा दिया। उसका लंड मानों थकने का नाम ही नहीं ले रहा था। अक्कू ने ने अपना लंड मेरी गांड बिना उसके हाथ की मदद से ढूंड ली। फिर उसने एक बार अपने सुपाड़े को मेरी गांड में फंसा कर दो जान लेवा धक्कों से मेरी गांड में ठूंस दिया।

मैं मीठे दर्द से चीख उठी। अक्कू ने मेरी गांड की चुदाई बेदर्दी से शुरू की और तबी तक मेरी गांड चोदता रहा जब तक मैं अनगिनत बार झड़ कर बेहोश नहीं हो गयी।

उस रात अक्कू ने मेरी गांड पांच बार और मारी। हम दोनों भाई-बहन देर सुबह तक सोते रहे।

मेरा सारा शरीर दर्द कर रहा था। मेरी छाती के उभार सूज कर लाल हो गए थे। अक्कू ने मेरे मुंह को चूम कर कहा ,"दीदी, मैं आपका सारी ज़िंदगी ख्याल रखूंगा। आई लव यू दीदी,"

अक्कू सुबक कर बोला और मैंने उसके खुले मुंह पर अपने मुंह दबा दिया. हम दोनों एक दुसरे सुबह के बासी मुंह के स्वाद से परिचित होने लगे। मुझे अक्कू के मुंह का स्वाद बहुत हे अच्छा लगा और वो भी मेरे मुंह में अपनी जीभ दाल कर मेरे मुंह के हर कोने को चूस चाट रहा था।

हम दोनों स्नानघृह में तैयार होने के लिए चल दिए। अक्कू ने मुझे पेशाब और पाखाना करते हुए ध्यान से देखा। जब अक्कू पेशाब कर रहा था तो मैंने उसका लंड पानी में घूमाने लगी। अक्कू ने शैतानी से अपने लंड को मेरी ओर मोड़ कर मुझे अपने पेशाब से नहला दिया। कि=उच्च मेरे खुले हँसते हुए मुंह में भर गया और मैंने उसे प्यार से सटक लिया।

"अक्कू तेरा पेशाब तो बहुत मीठा है," मैं हँसते हुए बोली।

"दीदी, मुझे भी आपका पेशाब पीना है ," अक्कू ने आग्रह किया।

"पगले, अभी तो मैंने अपना पूरा पेशाब खाली किया है , अब अगली बार मुझे आयेग तो चख लेना " मैंने प्यार से अक्कू को चूमा।

हम दोनों जब तैयार हो कर नीचे नाश्ते के लिए पहुंचे तो तब हमें पता लगा कि हम कितनी देर से नीचे आये थे।

मम्मी डैडी बहुत देर से हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। हम दोनों सर झुका कर सॉरी बोले और नाश्ते पे जुट पड़े। डैडी और मम्मी हमारी भूख देख कर हंस पड़े।

हम दोनों ने रोज़ के हिसाब से बहुत ज़्यादा खाया। हम दोनों का पेट भर कर फ़ैल गया। अक्कू के मुंह से हल्की सी डकार निकल पड़ी। अक्कू ने शर्मा कर सबसे सॉरी कह कर माफी मांगीं। मम्मी ने हँसते हुए अपने लाडले बेटे को ममता भरे प्यार से चूम लिया।

"भाई तुम दोनों का क्या विचार है। बाहर लंच खाना हो या फिल्म देखनी है या दोनों करने का ख्याल है ," डैडी ने स्नेह से हमारा शनिवार का प्लान के बारे में पूछा।

अक्कू ने मेरे पैर पर अपना पैर मारा। मैंने कुछ सोच आकर कहा ," डैडी, आज हम दोनों घर पर ही रहेंगें। अक्कू को मुझे बायोलॉजी के कुछ पाठ समझने है। "

मुझे जो जल्दीसे समझ आया वो मेरे मुंह से निकल पड़ा। अक्कू मेरे द्विअर्थिय प्रस्ताव से बिना हँसे नहीं रह सका। मैंने जोए से उसकी टांग में थोकड़ मार दी। उसने सिसकारी मार कर हसना बंद कर दिया।

मम्मी ने मुझे एक नई निगाह से घूर कर देखा और मेरी जान सूख गयी। हम दोनों को डैडी से ज़्यादा मम्मी से दर लगता था।

डैडी ने हँसते हुए कहा ," चलो तो फिर मम्मी और हम भी आलसीपने से फिर से बिस्तर में घुस जाते हैं। "

मम्मी की आँखे भी चमक उठीं।

अक्कू और मैं छुपके मम्मी-डैडी के शयन-कक्ष में चोरी से देखते रहे जब तक मम्मी ने नंगे हो कर डैडी के लंड को अपने मुंह में ले कर चूसना नहीं शुरू कर दिया। तब हमें पता था की अब दोनों घंटों के लिए चुदाई में व्यस्त हो जायेंगें।

****

अक्कू और मैं बिना एक क्षण खोये अपने कपडे उतार कर एक दुसरे से लिपट गए। इस बार कोई भी हिचक और संदेह नहीं था। अक्कू ने मेरे शरीर का नियंत्रण ले लिया। उसने मेरी चूत और गांड चूस कर मुझे चार बार झाड़ने ने के बाद मुझे पलट कर मेरी गांड में अपना लंड घुसा दिया। मेरी चीख ने उसके लंड का स्वागत किया। अक्कू ने घंटे से भी ऊपर मेरी गांड की धज्जियां उड़ाने के और मुझे अनगिनत बार झाड़ने के बाद मेरी गांड में अपने लंड के रस के पिचकारी खोल दी।

मैंने अक्कू के अपने गांड के रस से लिपे लंड को चूस कर दो बार झाड़ा। अक्कू ने भी मेरी चूत और गांड को चूस कर मुझे के बार झाड़ कर मेरी गांड में अपना अतृप्य लंड जड़ तक ठूंस कर विध्वंसक चुदाई प्रारम्भ कर दी। फिर अक्कू ने मेरी गांड की तौबा मचा दी। जब तक अक्कू ने मेरी बेदर्दी से चुदी गांड में अपना लंड खोला तब तक मैं अनगिनत बार झड़ चुकी थी। जब अक्कू मेरी गांड में आया तब तक में होश खो बैठी थी।

*****

अक्कू और मैं भाग कर घुस गए। अक्कू ने चिल्ला कर कहा ,"दीद इस बार मुझे भी आपका पेशाब से नहाना है। मैं खिलखिला कर हंस दी। अक्कू मेरी टांगों के बेच में बैठ गया और मैंने अपने गरम सुनहरी मूट की धार अक्कू के सर के ऊपर खोले दी। फिर अक्क्यू ने जो किया उस से मैं चकित रह गयी। अचानक अक्कू ने अपना मुंह खोल कर मेरे मूत्र से भर लिया और उसे मुस्करा कर सटक गया।

मैंने उसे झिड़की से दी ," अक्कू तू कितने गंदी बात करता है। भला पेशाब भी पीने की चीज़ होती है ," पर मैं वास्तव में अक्कू की क्रिया से रोमांचित हो गयी थी।

मैंने अपनी धार अक्कू के मुंह से दूर कर उसके केंद्रित कर दी ," दीदी , आपने अपना पेशाब चखा तो हैं नहीं। आपको क्या पता की यह कितना स्वादिष्ट है। " अक्कू ने मेरी झिड़की को धराशायी कर दिया।

उसने मेरे चूतड़ों को पकड़ कर मेरे मूत्र की धार को एक बार फिर से अपने खुले मुँह की तरफ मोड़ कर अपना मुंह भर लिया और उसे लाळीचेपन से निगल गया।

मेरे सारे शरीर में रोमांच की सिरहन कौंध गयी ,"अक्कू तुम भी मुझे अपना मूत्र पीने दोगे?" मैं फुसफुसा के बोली।

अक्कू ने अपने मेरे पेशाब से भरे मुंह को हिला कर सहमती दे दी।

अकु मेरे सुनहरे गरम पेशाब से पूरा भीग गया था और उसने न जाने कितने बार मुंह भर कर पेरा पेशाब भी पी लिया था। अब मेरी बारी थी। अक्कू के लंड का फायदा मुझे अपनी गांड मरवाने के आलावा उस स्थिति में और भी लाभ हुआ।

मैंने अक्कू का लंड का सुपाड़ा अपने खुले मुंह में रख लिया। अक्कू की गर्म सुनहरी मूत्र के धार ने मेरे मुँह को दो क्षणों में भर दिया। मैंने उसे अपने मुंह में हिला कर गटक लिया। अक्कू सही कह रहा था। मुझे अपने छोटे भैया का सुनहरी मूत्र बहुत स्वादिष्ट लगा।

जब तक में दुबारा मुंह खोलूं अक्कू ने मुझे मूत्र स्नान करवा दिया। पर मैंने उसके लंड को अपने मुंह में भर कर मन भर अक्कू का मूत्रपान किया।

अक्कू से गांड मरवाने के बाद मुझे अपनी गांड बहुत भरी-भरी लगती थी। मैं जल्दी से कमोड पर बैठ गयी।

अक्कू से गांड मरवाने के बाद मेरी गांड में खलबली मच उठी थी। मुझे अपने मलाशय को खोलते हुए उसमें बहुत जलन और दर्द हुआ और मेरी हल्की सी चीख निकल गयी। पर मैं अक्कू के गंभीर चेहरे की ओर एक तक निहार कर मुस्कुरा दी, उसे आश्वासन देने के लिए।

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८४

*****

हम दोनों नहा कर अपने स्कूल का कार्य खत्म कर टीवी देखने पारिवारिक-भवन में चल दिए। कुछ देर में मम्मी डैडी भी वहां आ गए। मम्मी के चेहरे पर अत्यंत प्यारी थकन झलक रही थी। उस थकन से मम्मी का देवियों जैसा सुंदर चेहरा और भई दमक रहा था। मुझे थोड़ा दर लगा की अक्कू की चुदाई से क्या मेरा मुंह भी ऐसे ही दमक जाता है और क्या मम्मी को संदेह हो सकता है?

लेकिन जब तक मैं और फ़िक्र कर पाऊँ डैडी ने मुझे अपनी गोद में खींच कर बिठा लिया और मैं सब कुछ भूल गयी। मम्मी ने प्यार से अक्कू को चूमा और अक्कू हमेशा की तरह मम्मी की गोद में सर रख कर सोफे पर लेट गया। मम्मी ने उसके घने घुंगराले बालों में अपनी कोमल उँगलियाँ से कंघी करने लगीं।

देश-विदेश के समाचार सुन कर डैडी चहक कर बोले ," कौन आज नयी स्टार-वार्स की मूवी देखना चाहता है। "

मैं लपक कर खुशी से चीख उठी ," मैं डैडी मैं और छोटू भैया भी." मुझे अक्कू के बिना तो कुछ भी करना अच्छा नहीं लगता था।

अक्कू ने भी खुश हो कर किलकारी मारी ," डैडी फिर खाना फ़ूड-हट में?" फ़ूड-हट शहर का सबसे प्रथिष्ठिस्ट भोजनालय था।

मम्मी भी पुलक उठीं ," हम सब बहुत दिनों से फ़ूड-हट नहीं गयें हैं। "

डैडी ने मुझे प्यार से चूम कर कहा ,"चलिए मेरी राजकुमारी साहिबा अपने छोटे भाई को तैयार कर जल्दी से खुद तैयार हो जाइए। "

अक्कू छुटपन से ही मेरी ज़िम्मेदारी बन गया था। उस के बिना मैं तड़प उठती थी।

मम्मी ने हमारी भागती हुई पीठ से पूछा ," आप दोनों का स्कूल का काम तो पूरा हो गया ना?"

हम दोनों ने चिल्ला कर कहा , "हाँ मम्मी। " और हम दोनों अपने कमरे की ओर दौड़ पड़े।

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हमें डैडी और मम्मी के साथ और बाहर खाना खाना बहुत था। ड्राइवर के साथ नई फिल्म देखने में आता था। हम घर देर से शाम पहुंचे। मम्मी डैडी के लिए स्कॉच उठीं तो उन्हें रोक कर कर खुद डैडी कापसंदीदा स्कॉच का गिलास ले आयी, उसमे सिर्फ दो बर्फ के क्यूब्स थे जैसा डैडी को पसंद है ।

डैडी ने मुझे प्यार से अपनी गोद में बिठा कर मेरी प्रशंसा की मानो मुझे नोबेल प्राइज़ हो। मम्मी ने मेरे गर्व के गुब्बारे को पिचका दिया ,"अजी अपनी प्यारे बेटी से पूछिए की मम्मी की ड्रिंक कहाँ है?"

मेरे मुंह से "ओह ओ!", निकल गयी और मैंने हँसते हुए प्यार भरी माफी माँगी , " सॉरी मम्मी। "

पर तब तक अक्कू दौड़ कर मम्मी का ड्रिंक बना लाया। बेलीज़ एक बर्फ के क्यूब के साथ, मम्मी के एक हल्का का घूँट भर कर अक्कू की प्रशंसा के पुल बांध दिए।

हम परिवार के शाम के अलसाये सानिध्य में थोड़ा कटाक्ष,थोड़ा मज़ाक, पर बहुत प्यार संग्रहित होता है।

मम्मी ने रात के खाने के लिए तैयार होने को हमें कमरे में भेज दिया।

अक्कू ने मुझे लपक कर दबोच लिया और हमारे खुले मुंह एक दुसरे के मुंह से चिपक गए। अक्कू के हाथ मेरे गोल मटोल मुलायम चूतड़ों को मसल रहे थे।

मेरे कमसिन अविकसित चूत भीग गयी। मेरी गांड का छेद भी फड़कने लगा ," अक्कू हमें देर हो जाएगी। थोड़ा सब्र करो। " हालांकि मेरा मन भी अक्कू ले लंड को पहले चूस कर अपनी गांड में घुसाने का हो रहा था पर मैं उस से बड़ी थी और उसके उत्साह को करने की ज़िम्मेदारी मेरे थी।

अक्कू ने मुझे और भी ज़ोर से जकड़ लिया ,"अकु देखो डैडी और मम्मी कितने संयम से बैठे थे। क्या उनका मन नहीं करता की एक दुसरे के कपडे फाड़ कर डैडी मम्मी की गांड मारने लगे। " मेरा ब्रह्म-बाण काम कर गया।

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खाने के बाद सारे परिवार ने मम्मी के चहेते धारावाहिक कार्यक्रम देखे और फिर सोने का समय हो गया। हम दोनों ने डैडी और मम्मी को शुभ-रात्रि चूम कर कमरे की

मम्मी का " अरे आराम से जाओ, गिर कर चोट लगा लोगे " चिल्लाना हमेशा की तरह हमारे बेहरे कानों के ऊपर विफल हो गया।

मैं अक्कू को बिलकुल रोकना नहीं चाह रही थी। अक्कू ने मेरी छाती के उभारों को निर्ममता से मसल कर दर्दीला और लाल कर दीया। मैंने उसका लंड चूस कर एक बार उसका मीठा रस पी गयी। अक्कू ने मेरी चूत और गांड चाट, चूस कर मुझे अनेकों बार झाड़ दिया और फिर अक्कू ने मेरी गांड फाड़ने वाली चुदाई शुरू की तो देर रात तक मुझे चोदता रहा जब तक में निढाल हो कर पलंग पर लुढक न गयी।

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तब से अक्कू अरे मेरे कुछ नियम से बन गए। हम स्कूल से ऐनी के जल्दी से नाश्ता खा कर कमरे में जा खाए पहले एक दुसरे को झाड़ कर स्कूल का काम ख़त्म करते थे। फिर अक्कू मेरी गांड मारता था उसके बाद हम एक दुसरे के मूत्र से खेलते थे और हमें एक दुसरे का मूत्र और भी स्वादिष्ट लगने लगा। अक्कू को स्कूल में भी मेरी आवशयक्ता पड़ने लगी। मैं मौका देख कर उसका लंड चूस कर उसे शांत कर देती थी।

मेरे किशोरावस्था में कदम रखने के कुछ महीनों में ही जैसे जादू से मेरे स्तनों का विकास रातोंरात हो गया। अब मेरी छाती पर उलटे बड़े कटोरों के समान , अक्कू को बहुत प्यारे लगने वाले, दो उरोज़ों का आगमन ने हमारी अगम्यागमन समागम को और भी रोमांचित बना दिया। अब अक्कू कई बार मेरे उरोज़ों को मसल, चूस और सहला कर मुझे झाड़ने में सक्षम हो गया था।

अक्कू भी ताड़ के पेड़ की तरहलम्बा हो रहा था मुझे उसका लंड बड़ी तेज़ी से और भी लम्बा और मोटा होने का आभास निरंतर होने लगा था।

एक शुक्रवार के दिन अक्कू को सारा दिन स्कूल में मेरी ज़रुरत थी पर हमें एकांत स्थल ही नहीं मिला। उस दिन हमनें अपना स्कूल का काम उसी दिन ख़त्म करने की कोई आवशयकता नहीं थे। मुझे अपने छोटे भैया के भूखे सख्त वृहत लंड के ऊपर बहुत तरस आ रहा था।

अक्कू और मैं जब अपनी रोज़ की रति-क्रिया में सलंग्न हो गए तो उस दिन हम दोनों ने पागलों के तरह संतुष्ट न होने का मानो संकल्प कर लिया था। हमें समय का ध्यान ही नहीं रहा। अक्कू मेरी तीसरी बार गांड मार रहा था। उसके बड़े हाथ मेरे उरोज़ों को बेदर्दी से मसल रहे थे। उसका मोटा लम्बा लंड निर्मम प्रहारों मेरी गांड का लतमर्दन कर रहा था। मेरी हल्की चीखें, ऊंची सिस्कारियां कमरे में गूँज रहीं थीं।

हमें मम्मी की खाने के लिए आने की पुकारें सुनाई नहीं दीं।

मैं ज़ोरों से अक्कू से विनती कर रही थी , "अक्कू और ज़ोर से मेरी गांड मारो। अक्कू मेरी गांड फाड़ दो जैसे डैडी मम्मी की गांड फाड़ते हैं। "

अक्कू ने भी ज़ोर से घुरघुरा कर बोला, "दीदी मेरा लंड तो हमेशा आपकी गांड में घुसा रहना चाहता है। " अक्कू ने मेरे दोनों कंचों जैसे चूचुकों को उमेठ कर मेरी चीख को और भी परवान चढ़ा दिया।

उस समय यदि भूतल भी आ जाता तो अक्कू और मुझे पता नहीं चलता। पर एक शांत स्थिर आवाज़ हम दोनों के वासना से ग्रस्त मस्तिष्कों की मोटी तह को छेद कर प्रविष्ट हो गयी , "अक्कू और सुशी, जब तुम दोनों फारिग हो जाओ तो डैडी और मुझे तुम दोनों से आवश्यक बात करनी है। "

मम्मी के शांत स्वरों को सुन कर अक्कू मुझे से इतनी जल्दी डोर हुआ मनो की उसे किसी ने बिजली का झटका लगा दिया हो। उसका मोटा सुपाड़े ने मेरी गांड के तंग छेद को रबड़ बैंड के तरह तरेड़ दिया और मेरे रोकते हुए भी मेरी चीख निकल गयी।

मम्मी डैडी शांति से हमें देख रहे थे। अक्कू और मेरे तो प्राण निकल गए।

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८५

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डैडी ने शांत स्वाभाव से कहा ,"पहले तो मम्मी और मैं तुम दोनों से हैं की तुम दोनों के बंद कमरे में में हम बिना तुम्हारे आज्ञा के प्रवेश हो गए। पर मम्मी बहुत देर से तुम दोनों को पुकार रहीं थीं। जब हम दोनों दरवाज़ा खटखटा ही रहे थी की सुशी की उम ... कैसे कहूँ ... सुशी के चीख सुन कर हमसे रुका नहीं गया ... और ... " डैडी का सुंदर मुंह शर्म से लाल हो चूका था और मुझे डैडी और भी सुंदर लगे। मैं किसी और समय लपक कर उनसे लिपट काट चूम लेती पर उस दिन तो मेरा हलक रेत की तरह सूखा हो गया था।

"हैं यह तो पता है की तुम क्या कर रहे थे। पर शायद तुम दोनों हमें कुछ संहः सकों की यह सब कब से ... कैसे ," मम्मी भी डैडी की तरह अवाक अवस्था में शर्म से लाल और शब्द विहीन हो गयीं।

अक्कू ने उस दिन मुझे अपनी समझदारी से कायल कर दिया ,"मम्मी यह सब मेरे दीदी के प्यार के वजह से मेरे शरीर में हुए प्रभावों से शुरू हुआ। मैं गलती से दीदी को दूर करना शुरू कर दिया। दीदी के एरी तरफ प्यार इतना प्रबल था की उन्होंने मेरे लिए मेरे लं ... सॉरी पीनिस को सहलाना..., " अक्कू भी घबरा और शर्मा रहा था।

"मम्मी मैं बड़ी हूँ और सारी ज़िम्मेदारीमेरी है। मैं अक्कू को अपना प्यार पूरी तरह से देना चाहती हूँ। और मुझसे उसके शरीर में मेरी वजह से होते बदलाव की वजह से अपने से दूर नहीं जाने दे सकती। और फिर मैंने सोचा की आपको और डैडी को देख कर मैं शायद अक्कू की देखभाल और भी अच्छे से कर सकूँ और फिर जो हम दोनों ने आपको देख कर सीखा उस से अक्कू और मैं बहुत खुश हैं। क्या हमें यह नहीं करना चाहिए था?" मेरा सूखा गला मुश्किल से इतना कुछ बोल पाया।

मम्मी और डैडी ने एक दुसरे को देर तक एक तक देखा। मम्मी ने हमेशा की तरह शीघ्र ही गलतियों के ऊपर फैसला अपने दिमाग में बैठा लिया था। मैं अब परेशान थी की मम्मी हमें क्यासज़ा देंगी?

"तो तुम दोनों चोरी से हमारी एकान्तता का उल्लंघन भी कर रहे हो ," मम्मी के शांत चिल्लाने और गुस्से से भी ज़्यादा डराते थे।

अक्कू ने जल्दी से कहा ,"मम्मी सिर्फ एक बार। उस रात के बाद हमने कभी भी वैसा नहीं ...बस उस दिन," अक्कू भी डर से बहुत विचलित था।

मम्मी ने धीरे से पूछा ,"सुशी क्या अक्कू तुम्हारी सिर्फ गांड मरता है?"

मम्मी से मुंह से निकले उन शब्दों में से मानों मम्मी की शिष्टता से उनकी अश्लीलता गायब हो गयी।

"मम्मी उसके अलावा मैं उसके लं लं लंड को चूसती हूँ और अक्कू भी मेरी चू चू चु चूत चूसता है ," मैंने हकला कर जवाब दिया।

"इसका मतलब है की अक्कू ने तुम्हारी अब तक चूत नहीं मारी?" मम्मी ने बिना स्वर ऊंचा किये मुझसे पूछा।

अक्कू और मेरे चेहरे पर अनभिग्यता का भौंचक्कापन साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा होगा।

मैंने धीरे से हकलाते हुआ कहा ," मुझे पता ही था की अक्कू से अपनी चू चूत भी मरवा सकती थी। डैडी ने उस दिन सिर्फ आपकी गांड ही मारी थी। "

मम्मी ने अपना मुंह नीचे कर उसे अपने सुडौल हांथों में छुपा लिया। डैडी के शर्म से लाल चेहरे पर एक अजीब सी तिरछी मुस्कान का आभास सा होने लगा।

मम्मी का शरीर काम्पने लगा मानों वो रोने लगीं हों। मैं और अक्कू दौड़ कर मम्मी से लिपट गए ," सॉरी मम्मी। सॉरी। "

ममी ने अपने सुंदर हँसते मुंह से हूँ दोद्नो के सिरों को चूमा ,"अरे पागलो तुम दोनों ने डैडी और मुझसे क्यों नहीं बात की?"

"सॉरी, हमें पता नहीं यह क्यों नहीं ध्यान आया ," वास्तव में डैडी और मम्मी हमारे किसी भी सवाल को नज़रअंदाज़ नहीं करते थे।

"अंकु, इन दोनों को तो अभी बहुत कुछ सीखना है ," मम्मी ने डैडी से हमें अपने से लिपटाते हुए कहा ,"क्या तुम दोनों डैडी और मुझसे सब कुछ सीखना चाहते हो। हम तू दोनों को रोक तो नहीं सकते पर एक दुसरे के शरीर को और अच्छी तरह से उपभोग करने में सहायता ज़रूर दे सकतें हैं। "

अक्कू और मैं बच्चों की तरह खुशी से चीखने उछलने लगे।

डैडी ने नाटकीय अंदाज़ से अप्पने दोनों कानों को अपने हाथों से धक लिया।

"अच्छा अब शांत हो जाओ। चलो पहले खाना खाने आ जाओ फिर हम सब इकट्ठे निर्णय लेंगें," डैडी ने हम दोनों के बालों को सहलाया।

अक्कू ने जल्दी से अपनी निक्कर ढूडनी शुरू कर दी। मम्मे ने उसे रोक कर कहा ,"अक्कू क्या तुम अपनी बड़ी बहन के अधूरा ही छोड़ दोगे? डैडी और मैं कुछ देर और प्रतीक्षा कर सकते हैं। तूम पहले अपनी दीदी को अच्छे से संतुष्ट करो," मम्मी के चेहरे पर एक रहस्मयी मुस्कान थी। मम्मी का दैव्य रूप किसी को भी चकाचौंध कर सकने में सक्षम था।

अक्कू और मैं जब अकेले हुए तो कई क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिर खड़े रहे फिर अचानक एक दुसरे से लिपट कर पागलों की तरह एक दुसरे को चूमने लगे।

मैंने अक्कू के तेज़ी से खड़े होते लंड को सहलाना शुरू कर दिया। अक्कू मुझे पलंग पर पेट के बल लिटा कर बेदर्दी से मेरे गांड में अपना लंड ठूंसने लगा। मेरी चीखें उसे और भी उकसाने लगीं। अक्कू ने उस शाम मेरी गांड की हालत ख़राब कर दी। डैडी और मम्मी को एक घंटे से भी ज़्यादा इंतज़ार करना पड़ा।

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८७

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अक्कू और मैं थोड़ा घबराते हुए और धड़कते दिल से नीचे भोजन-कक्ष की दिशा में चल दिए। लेकिन कुछ ही क्षणों में हमारा घबराना बिलकुल गायब हो गया। मम्मी और डैडी ने अत्यंत साधारण और व्यवहारिक रूप में रोज़ की तरह हमारे आगमन स्वीकार किया। डैडी ने जिस कहानी से मम्मी हंस रहीं थी उसको हमें शुरू से सुनाना कर दिया। मम्मी ने खुद ही खाना पपरोसा। दोनों नौकर आदर से कुछ दूर खड़े रहे।

हम दोनों और मम्मी एक बार फिर से, पापा की मज़ेदार कहानी पर फिर से हंस दिए। अक्कू और मैंने खूब जम कर खाना खाया।

"अरे अक्कू बेटा थोड़ा और लो ना। मुझे क्या पता था की तुम इतनी महनत करते हो?" मम्मी ने अक्कू को चिढ़ाया और स्वयं सबसे पहले हंस दीं।

"अरे निर्मू देवी, हम भी तो उतनी ही मेहनत करते हैं। आपने हमें तो कभी भी ऐसे दुलार नहीं दिया?" डैडी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा।

"आप को तो कई सालों का अभ्यास है मेरे बेटा तो अभी शुरूआत कर रहा है न।" मम्मी ने प्यार से अक्कू के बालों को सहलाया। अक्कू का सुंदर मुखड़ा शर्म से लाल हो गया था।

"मम्मी ," अक्कू ने शर्म से वज़न दे कर फुसफुसाया।

'मम्मी मैं भी तो मेहनत करती हूँ अक्कू के साथ, आपने मुझ पर तो कोई ध्यान नहीं दिया?" मैंने हिम्मत दिखा कर मज़ाक में शामिल होने का प्रयास किया।

मम्मी ने मुझे कस कर चूमा ,"मेरी नन्ही बिटिया, तुम पर तो मेरी जान न्यौछावर पर तुम्हारा ख्याल रखने की तो तुम्हारे पापा की ज़िम्मेदारी है। "

मैं बिना सब समझे बच्चों की तरह खिल उठी।

अक्कू और मैं डैडी को कभी डैडी और कभी पापा कह कर सम्बोधित करते थे। पर मम्मी हमेशा उन्हें 'तुम्हारे पापा' कह कर सम्बोधित करती थीं। कुछ देर बाद में हमें पता चला कि मम्मी को 'पापा' का सम्बोधन अधिक पसंद था।

मम्मी ने हम सबको भोजन-उपरांत के मिष्ठान परोसते हुए मुस्करा कर दोनों नौकरों को छुट्टी दे दी। दोनों ने नमस्ते कर जल्दी छुट्टी मिलने की खुश में अपने निवास-स्थान की ओर चले गये। घर में काम करने वालों के निवास स्थान हमारे फ़ैली हुई जागीर पे हमारे मुख्य आवास से कुछ ही दूर थे।

मम्मी ने अक्कू की कटोरी कई बार भरी, "अक्कू बेटा थोड़ा और खालो सिरफ मेहनय कराती है पर तुम्हारे खाने का ख्याल तो सिर्फ मम्मी ही रखती है। "

मम्मी ने मेरी ओर मुस्करा कर मुझे किया कि वो सिर्फ अक्कू को चिड़ा रहीं है।

मुझे भी न जाने कहाँ से स्वतः साहस और आत्मविश्वास आ गया और मैं भी मम्मी की तरह बोलने लगी , " मम्मी अगर अक्कू ने मेहनत भी की तो उसे मज़ा भी तो आया। नहीं अक्कू?' बेचारा अक्कू को समझ नहीं आये कि वो कहाँ देखे , "ठीख है मम्मी आप अपने लाडले का ध्यान रखिये और मैं अपने पापा का ध्यान रखूँगी। मुझे पता है की आप उनसे कितना परिश्रम करवातीं हैं "

मम्मी का शर्म से लाल सुंदर मुखड़ा देख एके लीरा आत्मविश्वास और भी बढ़ गया।

मैंने मिष्ठान की कटोरी ले कर डैडी की गोद में बैठ गयी और उन्हें चमच्च से खिलने लगी।

डैडी ने मुझे अपनी बाँहों में भींच आकर हँसते हुए कहा , "सस्सहि. बिलकुल ठीक कह रही है निर्मू। कब आपने ने मुझे मेरी गॉड में बैठ कर आखिरी बार खिलाया था?'

पापा ने मेरे लाल गालों को चुम कर उन्हें और भी लाल कर दिया।

मम्मी ने अक्कू की ओर देख कर गर्व से कहा, "अक्कू बेटा चलो, हम दोनों जोड़ी बना लेते हैं। वो दोनों पापा-बेटी को जो वो चाहें करें!"

अक्कू का सीना फूल कर चौड़ा हो गया, जैसे ही मम्मी उसकी गोद में बैठ गयीं। उसने पुअर से अपनी मम्मी के कमर के चारों ओर दाल दीं।

मैं और मम्मी पापा और अक्कू मिष्ठान खिलाने लगे।

"अक्की बेटा देखो तो मुझे मैं कितनी बुद्धू मम्मी हूँ? मेरे प्यारे बेटे को खाने की सारी मेहनत करनी पड़ रही है ," मम्मे ने नाटकीय अंदाज़ में माथे पर हाथ मार कर कहा।

मम्मी ने भरी चम्मच को अपने मुंह में डाल कर मिष्ठान को प्यार से चबाया और फिर अपना मुंह अक्कू के मुंह के ऊपर लगा दिया। अक्कू की बाहें मम्मी की गुदाज़ गोल भरी-भरी गदराई कमर पर और भी कस गयीं। अक्कू का मुंह स्वतः ही खुल गया और मम्मी के मुंह से चबाया हुआ मिष्ठान अक्कू के मुंह में फिसल गया।