नेहा का परिवार 15

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चाचू की आँखों की चमक को देख कर मुझे उनके जुबानी जवाब की ज़रुरत की ज़रुरत नहीं थी।

स्नानघर में पेरी बारी पहले थे। मैंने चाचू के खुले मुंह के ऊपर अपनी अच्छे से चुदी चूत को सटा अपने सुनहरी शरबत की धार खोल दी। चाचू ने खूब दिल खोल कर बार बार मुंह भर कर मेरा खारा सुनहरा शरबत पिया। मैंने अपनी मूत्रधार धीमी नहीं की और उनको सुनहरा स्नान भी करवा दिया।

जब मेरी चूत से एक और बून्द भी नहीं निकल पाई तो मैंने चाचू की तरफ देख कर उनको अपने वायदे का तकाज़ा दिया।

मैंने नीचे बैठ कर चाचू के मोटे लंड को अपने मखुले मुंह में भर लिया। चाचू ने बड़ी दक्षता से अपनी धार खोल दी। जब मेरा मुंह अच्छे से भर गया तो चाचू ने अपने धार को रोक लिया। मैं चाचू का सुनहरा खारा तीखा शरबत सटक गयी। और फिर से अपना मुंह भरने का इन्तिज़ार करने लगी। चाचू ने कई बार मेरा मुंह भर दिया। फिर उन्होंने भी मुझे अपने गरम सुनहरे मूत्र से नहला दिया।

मैंने उनके मूत्र की आखिरी बूँदें लेने के लिए उनके लंड के मोटे सुपाड़े को अपने मुंह में भर लिया।

चाचू का लंड मेरे चूसने और उनके मूत्र-पान की उत्तेजना से लोहे के खम्बे की तरह सख्त होने लगा।

चाचू ने मुझे गुड़िया की तरह हवा में उठा लिया। मैंने उनकी इच्छा को समझ कर अपनी गोल गुदाज़ जांघें उनकी चौड़ी कमर के ऊपर फैला दीं। चाचू ने मेरी चूत के फैले कोमल तंग द्वार को अपने दानवीय लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े के ऊपर टिका कर एक गहरी सी सांस ली।

फिर अचानक उन्होंने, मेरे सारा वज़न, जो उनके हाथों पर टिका हुआ था, अपने हाथो को नीचे गिरा कर गुरुत्वाकर्षण के ऊपर छोड़ दिया।

उनका मोटा लम्बा खम्बे जैसा लंड मेरी चूत ने गरम सलाख की तरह धंसता चला गया।

स्नानघर में में मेरी दर्द से भरी चीख गूँज उठी , " चाआआ चूऊऊऊऊ ऊ ऊ ऊ ऊ... उउउन्न्न्न्न्न्न्न्न। "

मैंने चाचू की मोटी गर्दन को अपनी बाँहों का हार पहना दिया और अपने चीखते मुंह को उनके सीने में छुपा दिया।

चाचू ने एक ही धक्के में अपना एक तिहाई लंड मेरी कमसिन चूत में धूंस दिया था। बाकि का लंड उनके दुसरे धक्के से मेरी बिलखती पर भूखी चूत में समा गया।

चाचू ने खड़े खड़े स्नानघर में मेरी चूत की दनादन चुदाई प्रारम्भ कर दी। मेरी शुरू के दर्द की चीखें शीघ्र सिस्कारियों में बदल गयीं। चाचू ने अपने बलशालिबाहों की ताकत से मुझे अपने लंड के ऊपर गुड़िया की तरह ऊपर उठा कर सिरह नीचे गिरने देते और मेरी चूत उनके लंड के ऊपर निहार हो चली।

मैं सिसक सिसक कर चुदने लगी।

" आअह्हह्हह राआअम्म्म्म्म्म्म चचोओओओओओओओओ उउउन्न्न्न्न्न्न चोदिये ये ऐ ऐ ऐ ऐ उउउन्न्न्न्न्न ," मैं कामोन्माद के ज्वर से एक बार फिर से उबाल पडी।

चाचू ने लुझे तीन चार बार झाड़ कर बिस्तर के ऊपर पटक दिया। जब तक मैं संभल पति उन्होंने मुझे निरीह हिरणी की तरह अपने भारी भरकम शरीर के नीचे दबा कर अपना लंड फिर से मेरी चूत में ठूंस दिया। चाचू ने फिर से मेरी चूत की प्यार भरी निर्मम चुदाई शुरू कर दी।

मैं वासना के मीठे दर्द सिसकती और ज़ोर से चोदने की गुहार करती। मर्दाने लंड की चुदाई से कोई भी लड़की का दिमाग पागल हो जाता मेरी चुदाई तो चाचू के भीमकाय लंड से हो रही थी।

चाचू का लंड फचक फचक की आवाज़ें पैदा करता हुआ पिस्टन की तरह मेरी चूत में अंदर बाहिर आ जा रहा था। मेरी रस-निष्पति निरंतर हो रही थी। चाचू ने न जाने कितनी देर तक मेरी चूत का लतमर्दन किया। मैं तो अनगिनत चरम-आनंद के प्रभाव से अनर्गल बकने लगी थी। जब चाचू ने मेरी फड़कती चूत को अपने गरम जननक्षम वीर्य से नहलाया तो मेरी जान ही निकल गयी।

हम दोनों एक दुसरे से लिपटे कुछ देर तक ज़ोर ज़ोर से साँसें भरते रहे।

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१२६

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जब मुझे कुछ काम-आनंद के अतिरेक से कुछ होश आया तो मैं अकबर चाचू के ऊपर लेती थी और उनका थोड़ा सा शिथिल लंड अभी भी मेरी चूत में फंसा हुआ था। । हम दोनों के कद में इतना फर्क था कि मैं उनके सीने तक ही पहुँच पाई। उनकी तोंद के ऊपर लेटने से मेरे चूतड़ उठे हुए थे और चाचू उनकों हौले हौले सहला रहे थे। मैंने अपने हांथों से चाचू के सीने के घुंघराले बालों को अपनी उँगलियों से कंघी सी करते हुए मुस्करा कर पूछा , " चाचू सच बताइयेगा हमारी चूत मारने में उतना ही मज़ा आया जितना सुशी बुआ की चूत में आता है। "

अकबर चाचू ने मेरी नितिम्बों को मसलते हुए मुझे प्यार से डांटा , " नेहा सुशी तो हमारी भाभिजान हैं। उनकी चूत पर तो हमें पूरा हक़ है देवर होने की वजह से। पर तुम तो हमारी सुंदर बेटी हो। तुम्हारे प्यार और चूत पर हमें कोई भी हक़ नहीं है। तुमने तो हमें खुद ही अपनी चूत को दे कर जन्नत का नज़ारा करवा दिया। बहुत ही खुशनसीब बाप और चाचाओं को अपनी बेटी या भतीजी की चूत का प्यार नसीब होता है। "

मैंने चाचू के मर्दाने चुचूक को सहलाते हुए कहा ," चाचू अब से आप मुझे कहीं भी और कभी भी बुला सकते हैं ठीक सुशी बुआ की तरह। सुशी बुआ को आपके अकेलेपन की बहुत फ़िक्र लगी रहती है। "

मैं धीरे धीरे अपने कमसिन दिमाग़ की तरतीब के तार प्यार भरे जाल में पिरोने लगी।

"नेहा बेटी अल्लाह के सामने किस का बस चलता है। उसे जो मंज़ूर हो वो ही इंसान को मंज़ूर हो जाता है। तुम्हारी चाची का प्यार हमारी किस्मत में सिर्फ इतने सालों के ही लिए लिखा था। " चाचू ने प्यार से मेरे गलों को सहला कर अपने हाथों को फिर से मेरे फड़कते चुत्तड़ों पर टिका दिया।

" चाचू भगवान की जो इच्छा हो वो ठीक है। पर हमें तो जैसे अब है उसी में आपका ख्याल रखने का सोच-विषर करना है ना! "

मैंने दादी की तरह चाचू को समझाया।

"तो फिर तुम यहीं स्कूल में दाखिला ले लो फिर हमारी नेहा बेटी हमारे घर की रौनक बन जाएगी रोज़ रोज़। "चाचू ने हँसते हुए कहा।

" चाचू हम मज़ाक नहीं कर रहे। अच्छा बताइये कि नसीम आपा को आपके अकेलेपन की फ़िक्र नहीं है क्या?

" हमें पूरा आगाह है अपनी बड़ी बेटी के प्यार का और उसकी फ़िक्र का नेहा बिटिया। पर वो भी क्या कर सकती है अल्लाह की मर्ज़ी के सामने। बस अब शानू बड़ी हो जाये और उसे भी आदिल जैसा अच्छा शौहर मिल जाये तो हमें लगेगा कि रज्जो की रूह को सुकून मिल जायेगा। " चाचू का प्यार अथाह था।

"चाचू हम एक बात बोलें आप बुरा तो नहीं मानेंगें?," चाचू ने मुस्कुरा कर मेरे नासमझ डर का मज़ाक सा उड़ाया।

" चाचू जब हम चले जाएंगें तो नसीम आपा तो हैं ना। अब तो उनकी शादी भी हो गयी है। आपको शायद नहीं पता कि जो सुशी बुआ ने हमें काम सौंपा था वो ख्याल नसीम आपा के दिमाग़ में कई सालों से दौड़ रहा है। " मैंने सांस रोक ली। चाचू के अगले लफ्ज़ मेरी योजना को सफल या विफल कर देंगे।

चाचू कुछ देर तक चुप रहे पर उनके हाथों की पकड़ मेरे चूतड़ों पर सख्त हो गयी , " नेहा क्या नसीम बेटी ने आपसे कुछ बोला है क्या?"

" चाचू अभी नसीम आपा तो सीधे सीधे बात नहीं हुई है पर उन्होंने शानू से कई बार इस का ज़िक्र किया है। शानू ने मुझे बताया कि उन्हें आपसे इसका ज़िक्र करने में शर्म और डर लगता है। " मुझे अब लगने लगा कि अकबर चाचू के दिल में भी यह ख्याल शायद खुद ही आ चूका था।

आता कैसे नहीं नसीम आपा का शबाब सुंदरता तो भगवान का वरदान सामान है। उनका गदराया भरा भरा शरीर को कोई भी बिना सराहे नहीं रह सकता।

" नेहा अब जब हम दोनों खुल कर सच बोल रहें है तो मैं भी बता दूँ कि नसीम जब दस ग्यारह साल की भी नहीं थी तभी से उसके बदन का बढ़ाव तेरह चौदह साल की लड़की की तरह का था। जब हम और रज्जो अपनी बेटी की खूबसूरती की बात करते थकते नहीं थे। कई बार रज्जो ने हमें चिढ़ाया की ऐसी बातों के बाद की चुदाई में हम बहुत वहशीपन दिखाते थे। "

चाचू ने एक गहरी सांस ले कर बात आगे बढ़ायी , "एक दो साल बाद नसीम का बदन पूरा भर गया। हमें भी उसकी जन्नती खूबसूरती का पूरा अहसास होने लगा। माँ की आखें बहुत तेज़ होतीं हैं। रज्जो ने एक रात हमें बिलकुल पकड़ लिया।

उसने कहा , 'अक्कू आप सच बतायें आपको हमारी बेटी की गुदाज़ खूबसूरती से मरदाना असर होने लगा हैं ना? '

हमने रज्जो और किसी से भी कभी झूठ नहीं बोला है। हमने मान लिया , 'रज्जो हम क्या करें हमें अपनी बेटी के हुस्न से बाप का फख्र और मर्द के ख्याल दोनों दिमाग़ पर तारी हो जातें हैं। '

रज्जो ने हमें प्यार से चूम कर कहा, ' इस में शर्म की क्या बात है। अरे हमारे बाग़ का फल है उसके मिठास का पता हमें नहीं होगा तो किसको होगा?'

'रज्जो तुम्हें बुरा नहीं लगा कि एक बाप अपनी बेटी की खूबसूरती ने असर से मर्दों के हजैसे सोचने लगता है?'

'अक्कू बुरा तो तब लगता जब आप और नसीम में इतना प्यार नहीं होता। नसीम अब तेरह साल की हो चली है और मुझसे मर्दों और औरतों के मेलजोल की बातें पूछने लगी है। जानतें हैं उसने कल क्या कहा? उसने कहा की - 'अम्मी आप कितने खुसनसीब है की आपका निकाह अब्बु जैसे मर्द के साथ हुआ है। मैं तो खुदा से माँगूगीं की मुझे अब्बु तो नहीं मिल सकते पर अब्बु जैसा शौहर मिले। अम्मी क्या बताऊँ अब्बु को ले कर कई बार मेरे दिल और दिमाग में कितने ख़राब ख्याल आतें हैं।'

अक्कू मैंने अपनी बेटी को पूरा भरोसा दे दिया कि बेटी और अब्बु के बीच जब बहुत प्यार होता है तो कोई भी ख्याल गन्दा नहीं होता । देखिये अक्कू एक दो साल और बड़ा होने दीजिये हमें पूरा भरोसा है आपकी बिटिया खुद आपसे मर्दाने मेलजोल की ख्वाहिश करेगी। बस आप पीछे नहीं हटना नहीं तो उसका दिल टूट जायेगा। '"

अकबर चाचू ने विस्तार से अपने और रज्जी चाची के बीच में हुए निजी बातचीत का खुला ब्यौरा दिया।

"हाय चाचू आग तो दोंनो तरफ लगी है तो फिर देर किस बात की? " मेरी चूत में चाचू का लंड अब डरावनी रफ़्तार से सख्त होने लगा था।

" नेहा बेटी रज्जो होती तो नसीम और मैं पांच साल से नज़दीक आ गए होते। पर उस रात के कुछ महीनो के बाद ही रज्जो को अल्लाह की मर्ज़ी ने जानत की और रवाना कर दिया। अब हमारे और नसीम के बीच में बहुत झिझक, शर्म की दीवार बुलंद हो गयी है। और उसके ऊपर से हमारी बेटी हमारे बेटे जैसे भतीजे आदिल की दुल्हन बन चुकी है। हम अब इस ख्याल को दबा देतें हैं इस डर से कि हमारी मर्दाने प्यार भरी नज़रों की सोच आदिल न समझ जाये। " अकबर चाचू के दिल में दबे मर्दाने प्यार को ऊपर लेन का सही वक़्त आ गया था।

" चाचू, जीजू ने तो सुबह सुबह ही कहा था की आप तो उनके अब्बु जैसे हैं। और यदि नसीम आपा राज़ी हों तो वो खुद उनकों आपका ख्याल रखने के लिए उकसायेंगे। आदिल भैया तो ठीक आपकी तरह ही सोच रहें हैं। " मैंने प्यार से चाचू की बालों भरे सीने को चूम कर कहा।

"नेहा हमारा दिमाग़ तो काम नहीं कर रहा। तुम जो कहो वो हम करेंगें। " यह सुन कर तो किला फतह होने के बिगुल बजने शुरू हो गए मेरे मन में।

"अच्छा तो सुनिये चाचू मैं नसीम आपा पहले बढ़ावा दूँगी इस बिनाह पे कि आप उनकी तमन्ना कई सालों से पहले से ही करते रहें हैं। अब वो भी आपके करीब चाहतीं हैं। बस शर्म और डर का सवाल है। मैं उनको मन लूँगी की जब वो आपके कमरे में आयेंगीं तो आप उन्हें मेरे नाम से पुकारेँगेँ। इस से उनके अंदर जो भी शर्म है या डर है उसके ऊपर मेरे नाम का पर्दा ढक जायेगा। एक बार आप दोनों के बीच में चुदाई हो जाएगी तो उसके बाद कैसी शर्म और किसका डर?"

मैंने कौटुम्भिक सम्भोग में विशेषज्ञ की तरह सर हिलाते हुए कहा। अकबर चाचू का महा मूसल लंड अब तनतना कर मेरी चूत चौड़ा रहा था।

" नेहा बिटिया अब तो हमने अपने आपको तुम्हारे हाथों में सौप दिया है। आप जो कहोगे वो हम करने के लिए तैयार हैं ," अकबर चाचू ने मेरे दोनों चुत्तड़ों को मसलते हुए प्यार से कहा।

" चाचू अभी बता देतीं हूँ शानू का दिल अपने अब्बु ऊपर बहुत ज़ोर से आ गया है। अब तो उसकी सील जीजू के तोड़ कर उसे आपके लिए तैयार भी कर दिया है। " मैंने चाचू के मर्दाने चुचूकों को होले होले चुभलाते हुए चूसने लगी।

" नेहा बेटी पहले नसीम के प्यार का इज़हार हो जाने दो। हमें अब आपकी और शुशी भाभी की बातें समझ आ गयीं हैं। अब से हम इस हजार ने फिर से प्यार की खिलखिलाहट भरने की पूरी कोशिश करेंगें " चाचू ने हलके से अपनी तर्जनी को मेरी सूखी गाड़ के छेड़ पर पहले रगड़ा फिर धीरे से ऊके अंदर ठूंसने लगे।

मैं चिहक उठी , " हाय चाचू तो मेरी सूखी गांड को क्यों फाड़ने की कोशिश कर रहें हैं? "

" नेहा पहले तो आपकी चूत की बारी है। उसके बाद आपकी गांड का नंबर लगायेंगें। " चाचू ने मुझे खिलोने की तरह उठा कर मेरी चूत को अपने घोड़े जैसे महालण्ड के ऊपर टिका दिया। उनका लंड बिना किसी मदद के मानों प्राकर्तिक सूझ-बूझ दिखाते हुए मेरी चूत के दरवाज़े से भिड़ गया। एक बार चूत के कोमल पट्टे लंड के सुपाड़े को अंदर ले लें तो लंड को और क्या चाहिए। अब चूत की शामत है। और इस शामत में मिली है सम्भोग की मस्ती।

चाचू ने पहले मेरी चूत मुझे अपने ऊपर लिटा कर मारी। जब मैं तीन चार झड़ गयी तो मुझे जादुई चाट पर लिटा कर घंटे भर रौंदा। देर रात तक चाचू ने मेरी चूत और गांड को रगड़ रगड़ कर चोदा और मेरी सिस्कारियां एक बार शुरू हुईं तो रुकने का नाम ही नहीं लिया। जब तरस खा कर चाचू ने मेरे शिथिल निस्तेज शरीर को सोने के लिए छोड़ा तो मैं लगभग बेहोशी के आलम में जा चुकी थी।

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१२७

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सुबह जब मैं उठी तो कगभग बारह बज रहे थे। चाचू का कोई भी चिन्ह नहीं था शयनघर में। चाचू तैयार हो कर ऑफिस चले गए थे।

जब मैं उठी तो पूरा शरीर टूट रहा था। चाचू ने कस कर रगड़ कर चोदा था अपने घोड़े जैसे महालण्ड से मुझे लगभग सारी रात। शरीर नहीं टूटेगा तो और क्या होगा।

शरीर में ऐसा लगा कि कईं नयी मांस-पेशियां जिनका मुझे पहले हल्का सा आभास भी नहीं था। मैं टांगें चौड़ा कर चल रही थी। गांड में ज़्यादा जलन हो रही थी। मैंने रसोई में जा कर चॉकलेट मिल्क-शेक बना शुरू किया ही था की शानू के पैरों की रगड़ की आवाज़ सुन कर मैं पीछे मुड़ी। शानू बड़ी मुश्किल से टाँगे फैला कर चल पा रही थी।

मुझे न चाहते हुए भी हंसी आ गयी , " लगता है जीजू ने खूब रगड़ रगड़ कर कोडा है तुझे सारी रात। "

" हाँ कुछ भी ना कह नेहा। जीजू ने सारी रात नहीं सोने दिया। सुबह सुबह ही मैं सो पाई। जीजू ने जाने कितने आसनों में चोदा है मुझे। कभी लिटा कर, कभी घोड़ी बना कर , कभी खड़ा करके दीवार से लगा कर। फिर पट्ट लिटा कर पीछे से चोदा तो मेरी तो जान ही निकल गयी। मुझे उनका गधे जैसा लंड और भी बड़ा और मोटा लग रहा था। " बेचारी शानू अभी किशोरावस्था का एक साल ही पूरा किया था और दुसरे साल में थी । मुझ से पूरे दो साल से भी छोटी थी।

" नेहा तू बता। अब्बु ने कैसी चुदाई की तेरी?" शानू की आँखों में एक नयी चमक थी अपने अब्बु के साथ मेरी चुदाई के ख्याल से।

"अरे शानू रानी, तेरे अब्बु ने मेरी भी हालत ख़राब कर दी। रात भर रगड़ा है मुझे उन्होंने। न जाने कितनी बार मेरे गांड और चूत की कुटाई की चाचू ने। मैं दो तीन बार तो थक कर बेहोश सी हो। फिर भी चाचू रुकने वाले थोड़े ही थे। चोदते रहे मुझे लगातार बिना थके। " मैंने शानू को अपनी रति-क्रिया की छोटी सा विवरण दिया।

" नेहा अब्बु का लंड जीजू के लंड के मुकाबले कैसा है? बड़ा है या नहीं?" शानू को अपने अब्बु के लंड के बारे में जानने की बड़ी जिज्ञासा थी।

"शानू, चाचू का लंड जीजू के लंड थोड़ा ही सही पर बीस ही होगा उन्नीस नहीं। लेकिन जब मर्दों के लंड घोड़े गधे जितने बड़े हों तो एक आध इंच का फर्क तो दीखता ही नहीं है। " मैंने शानू को बाँहों में भर कर उसके नींबुओं को मसल दिया।

"हाय रब्बा , क्यों मसल रही है नेहा। जीजू ने इन्हें रात भर वहशियों की मसला नोंचा है। दर्द के मरे मेरी छाती फट पड़ी थी। " शानू ने सिसक कर कहा।

हम दोनों ने दो बड़े गिलास चॉकलेट मिल्क-शेक पी कर थोड़ी से ऊर्जा बड़ाई।

" शानू, चाचू नसीम आपा के लिए बेताब हैं। नसीम आपा कब वापस आ रहीं हैं।" मैंने वापस शानू की चूचियों को मसला शुरू कर दिया।

" दो एक घंटे में आतीं ही होंगी आपा ," शानू अपनी आँखें फैला के फुसफुसाई , " नेहा , आपा को नहीं बता पर रात में जीजू ने मुझसे एक बहुत गन्दी बात करने को कहा। "

" ऐसा क्या गन्दा काम करने को बोला जीजू ने तुझे? " मैंने शानू की शमीज़ उतार कर फर्श पर फैंक दी। जैसे मुझे लगा था शानू ने कोई कच्छी नहीं पहनी थी।

"तू भी तो उतार अपनी शमीज़ ," शानू ने भी मेरा इकलौता वस्त्र उतार फेंका।

"अब बोल न कुतिया मेरी जान निकली जा रही जानने के लिये ," मैंने शानू के सूजे चुचूकों को बेदर्दी से मड़ोड़ दिया।

शानू की चीख निकल गयी , "साली, जान तो तू मेरी निकल रही है। " फिर फुसफुसा कर बच्चों के तरह बोली , " जीजू ने जब मुझे तीन चार बार चोद लिया था तो मुझे बहुत ज़ोर से मूत लगने लगा था। जीजू बड़े प्यार से मुझे उठा कर बाथरूम में तो ले गए फिर उन्होंने हाय रब्बा कैसे कहूँ?" लाल हो गयी। " यदि नसीम आपा को पता चल गया तो वो मुझे जान से मार डालेंगीं।

" अरे कुतिया बता तो पहले। जो नसीम आपा करेंगी वो बाद में सोचना, " मैंने शानू के चूचियों को मुट्ठी में भींच कर मसल दिया।

"नेहा, जीजू मेरा मूत पीने चाहते थे। मैं शर्म से मर गयी। पर जीजू नहीं माने। मैं बहुत गिड़गिड़ायी जीजू से ऐसा नहीं करने को। "

" अरे तो बता तो सही की तूने आखिर में अपना खारा सुनहरी शर्बत जीजू को पिलाया या नहीं? " मुझे शानू के बचपने पर हंसी भी आ रही थी और प्यार भी।

" आखिर मैं कितना मना करती? शानू शर्म से लाल हो कर धीरे से बोली।

"अरे पागल , जब जीजू अपनी साली को बहुत प्यार करतें हैं तभी ही तो उससे उसके सुनहरे शर्बत पीने की गुहार लगतें हैं। तू तो बहुत प्यारी भोली बच्ची है। अब बता तूने कितना पिलाया जीजू को। "मैंने शानू की च्चियों को कास कर मसल रही थी।

" अरे नेहा मैं कौन होती थी नाप-जोख करने वाली। जीजू ने एक बूँद भी नहीं ज़ाया होने दी। सारा का सारा सटक गए," शानू की आवाज़ में अचानक अपने जीजू के ऊपर थोड़ा सा फख्र का अहसास होने लगा।

" और तूने अपने जीजू का शर्बत पिया या नहीं? "मैंने एक हाथ को खाली कर शानू की सूजी चूत के ऊपर रख कर उसकी चूत को सहलाना शुरू कर दिया।

" यदि जीजू चाहते तो मैं मना थोड़े ही करने। पर तब तक जीजू का लंड तनतना कर खूंटे की तरह खड़ा हो गया। जीजू ने ना आव देखा न ताव और मुझे वहीँ गोद में उठा कर मेरी चूत की कुटाई करने लगे। " शानू अपनी चुदाई के ख्याल से दमक उठी।

" शानू , मैंने भी कल रात चाचू का खारा सुनहरा शर्बत दिल और पेट भर कर पिया। चाचू ने भी मेरा शर्बत आखिरी बूँद तक पी कर मुझे छोड़ा। " मैंने अपनी तर्जनी को धीरे से शानू की चूत में सरका दिया। शानू सिसक उठी।

" हाय रब्बा। अब्बू और तूने और क्या-क्या किया?" शानू अपने अब्बू के साथ मेरी चुदाई के किस्से सुनना चाहती थी।

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१२८

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" अच्छा छोड़ पहले चल नहा धो कर तैयार हो जातें हैं, नसीम आपा के आने से पहले।" मैं शानू को हाथ से पकड़ कर अपने कमरे के स्नानगृह में ले चली।

मैंने और उसने एल दुसरे को खूब सहला सहला कर नहलाया। फौवारे की बौछार के नीचे हम दोनों कमसिन लड़कियां एक दुसरे के शरीर से खेलते खेलते वासना ग्रस्त हो गयीं।

" शानू, तूने तो मुझे पूरा गरम कर दिया। अब चल मेरी आग बुझा। " मैंने शानू के साबुन के झागों से ढकी चिकनी चूचियों को मसलते हुए सिसकी मारी।

"नेहा मेरी चूत भी पानी मार रही है। कुछ कर ना ," शानू भी पीछे नहीं रही और मेरे गदराये उरोज़ों को कास कर मसल रही थी।

मैं समझ गयी कि मुझे ही पहल करनी पड़ेगी।

मैंने पानी की बौछार में दोनों के बदन के साबुन को साफ़ करके शानू को धीरे से फर्श पर लिटा दिया। फिर मैंने विपरीत दिशा में मुड़ कर अपनी धधकती चूत को उसके खुले मुंह के ऊपर टिका दिया। जब तक शानू कुछ कहती मेरा मुंह उसकी चिकनी चूत के ऊपर चिपक गया।

मेरी जीभ शानू के गुलाबी नन्हे पपोटों के बीच छुपे उसकी कमसिन चूत की गुफा में में दाखिल हो गयी।

शानू सिसक उठी और उसकी ज़ुबान और होंठ भी मेरी चूत के सेवा में लग गए। मैंने शानू की चूत में एक उंगली डाल उसे चोदते हुए उसके भग-शिश्न [क्लाइटोरिस] को चूसने, चुब्लाने लगी। उसके चूत से बहते काम-रस की मीठी सुगंध मेरे नथुनो में भर गयी। मेरी चूत में से भी पानी बहने लगा।

मैं शानू की चूत को उसके भगांकुर को चूस रही थी। शानू भी काम नहीं थी। उसने मेरे भाग-शिश्न को दांतों से हलके से दबा कर मेरी गांड में एक उंगली डाल दी थी। दूसरी उंगली मेरी चूत को खोद रही थी।

स्नानगृह की दीवारें हम दोनों की सिस्कारियों से गूँज उठीं।

अचानक शानू का बदन ज़ोर से अकड़ उठा और वो कस कर सिसकते हुए बोली , " काट मेरे भग्नासे को नेहा। चोद मेरे चूत। मुझे झाड़ दे जल्दी से। "

मैं भी कगार पर थी। मैंने शानू की चूत का तर्जनी मंथन तज़कर दिया और उसके भाग-शिश्न को दांतों से चुभलाते हुए जीभ से झटके देने लगी।

शानू ने मेरे मलाशय का उंगली-चोदन की रफ़्तार बड़ा दी और मेरी चूत में धंसी उंगली से मेरी चूत की अगली दीवार को कुरेदते हुए मेरे भग्नासे को कस कर चूसने लगी।

हम दोनों एक हल्की सी चीख मार कर एक साथ झड़ने लगीं। हम दोनों बड़ी देर तक वैसे हीचिपके लेती रहीं।

आखिर में मैं शानू के ऊपर से उठी और उसके पास फर्श पर बैठ गयी। मैंने अपनी उँगलियाँ चाट कर उसके रति-रस का स्वाद चटखारे लेते हुए कहा, " कैसा लगा मेरी चूत का स्वाद। तेरी चूत का रस तो बहुत मीठा है शानू। "

" तेरी चूत भी बहुत मीठी है। अब तेरी गांड का स्वाद भी चख लूंगीं ," शानू ने मुस्करा कए मेरी गांड में से ताज़ी-ताज़ी निकली उंगली को कस कर चूस कर साफ़ कर दिया, " ऊम्म्म्म नेहा तेरी गांड का स्वाद भी बहुत अच्छा है। "

शानू की इस हरकत से मैं गनगना उठी।

मैंने फुसफुसा कर कहा , "शानू मुझे भी अपना सुनहरी शर्बत पिला ना री। "

इस बार शानू शरमाई नहीं , " ज़रूर नेहा। तू भी मुझे अपना शर्बत पिलाएगी ना?"

नेकी और बूझ-बूझ? मैंने पहल की। शानू अब जीजू को पिलाने के तजुर्बे से सीख गयी थी। उसने अपनी धार को काबू में रख कर मेरा मुंह कई बार अपने सुनहरी मीठे-खारे शर्बत से भर दिया। मैंने भी चटखारे लेते हुए कितना हो सकता था पी गयी। फिर भी मैं शानू की मूत्रधार के स्नान से गीली हो गयी।

शानू ने बिना झिझक मेरी झरने की सुनहरी धार को खुले मुंह में ले लिया। कई बार मुंह भरा और शानू ने बेहिचक गटक लिया। मैंने भी उसे अपने सुनहरे फव्वारे से नहला दिया।

हम दोनों खिलखिला कर हंस दी और फिर एक दुसरे को बाँहों में भींच कर खुले हँसते मुंह से बहुत गीला ,लार से लिसा चुम्बन देना शुरू किया तो रुके ही नहीं।

आखिर में फिर से नहा कर मैंने थकी-थकी सी शानू को पौंछ कर सुखाया और उसे बाँहों में भर कर बिस्तर पर पलट लिया। हम दोनों समलैंगिक सम्भोग के अतिरेक से मीठी थकान से उनींदे हो गए। फिर पता नहीं कब वाकई सो गए।

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१२९

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" अरे ये दोनों छिनालें कहाँ छुप गयीं हैं? मैं पांच मिंटो से घर में हूँ और दोनों का कोई पता नहीं है?" हम दोनों नसीम आपा की सुरीली आवाज़ से जग गए। हम दोनों जब तक संभल या समझ पातीं की दोनों पूरे नगें है तब तक नसीम आपा का नैसर्गिक सौंदर्य हमारी आँखों को उज्जवल कर रहा था।

" आपा आप कब आयीं? "शानू से शर्मा कर सपने ऊपर चादर खींचने की कोशिश की।

"अरे ढकने की क्या ज़रुरत है अब। दोनों ने पूरा तमाशा तो पहले ही दिखा दिया है। अब ढकने को रह ही क्या गया है? "नसीम आपा ने लपक कर बिस्तर पे चढ़ गयी और हम दोनों की बीच लेट गयीं।

"मेरी प्यारी छोटी बहन तुझे कितने दिनों बाद देखा है ," नसीम आपा ने मुझे बाँहों में भर कर मेरे खुले मुस्कराते मुंह को ज़ोर से चूम कर कहा।

मैं भी नसीम आपा की बाँहों में इत्मीनान से शिथिल हो गयी, " देख तो तेरी चूचियाँ कितनी मोटी और बड़ी हो गयीं है री। किस से मसलवाते हुए चुदवा रही है तू?" नसीम आपा ने मेरी दोनों चूचियों को अपने हांथों में भरते हुए पूछा।