नेहा का परिवार 17

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जब मैं या शानू चरम-आनंद के पटाखों की तरह फुट जातीं तो हमारी हलकी सी सिसकी भरी चीख जीजू के लिए हमारे झड़ने का बिगुल बजा देतीं।

जीजू की मांसल जांघें शानू के गोल मुलायम चूतड़ों पे थप्पड़ सा मार रहीं थीं। उनका लण्ड अब बीएस एक को चोद रहा था। ज़ोरदार, धमकदर, सुपाड़े से जड़ तक भयंकर धक्कों से। शानू पूरी हिल जाती पर उसने मेरी चूत को एक क्षण भी अकेला नहीं छोड़ा।

जीजू के दिल भर कर शानू की चूत को अपने विकराल लण्ड से रौंदा। और जब वो झड़ें तो हम दोनों इतनी बार झड़ चुकीं थीं की थक कर चूर हो गईं। पर सम्भोग की थकन में भी मीठा आनंद होता है और शीघ्र ताज़ी उगने वाली कामवासना का पैगाम भी। और वो ही हुआ।

****

१४३

****

थोड़ी देर बाद हम तीनों लेते हुए थे। जीजू हमारे बीच में और उनके हाथ मेरे और शानू के उरोजों को शाला मसला तरहे थे। शानू और मेरे नन्हे हाथ उनके दानवीय आकार के आधे सोये लण्ड को जगाने में मशगूल थे। जीजू को और हमें दो घनघोर चुदाई के बाद कुदरत की फ़ितरत की तरह पेशाब लगने लगा। जीजू ने शानू को कन्धों पर उठा लिया बच्चे की तरह।

बिना किसी के कुछ कहे जीजू ने पहल की और जल्दी ही वि मेरी खुली जांघों के बीच में बैठे मेरे सुनहरी शर्बत का मज़ा लूट रहे थे। शानू ने भी उनकी भड़ास मिटाई। एक बून्द भी बर्बाद नहीं की जीजू ने हमारे बेशकीमती तोहफे की । जीजू ने अपना खारा सुनहरा शर्बत ईमानदारी से आधा आधा शानू और मेरे बीच में बाँटा। फिर हम दोनों उनके लण्ड को चूसने सहलाने लगे। जीजू जैसे सांड को क्या चाहिए साली की चुदाई करने के लिए - एक इशारा। और हम दोनों तो इशारों की पूरी दुकान खोल कर बैठे थे।

जीजू ने मुझे और शानू को कमोड के ऊपर झुका कर बारी बारी से हमने पीछे से चोदने लगे।

जब शानू या मैं एक बार झड़ जाती तो वो चूत बदल देते। हमें तीन बार झाड़ कर जीजू हमें बिस्तर पे ले गए। जीजू ने मुझे पीठ पर लिटाया और शानू को मेरे ऊपर। हमारे चूतड़ बिस्तर के किनारे पे थे। अब जीजू बस थोड़ी सी मेहनत से हमारी चूत बदल सकते थे। उन्होंने इस बार जो कड़कड़ी बनाई उससे शानू और मेरे तो अस्थिपंजर हिल उठे। आखिर कार जब झड़-झड़ के हमारी जान ही निकल गयी जीजू ने हम दोनों को खींच कर अपने वीर्य की बारिश हमारे मुंह के ऊपर कर दी। उनके गरम वीर्य की बौछारें शानू और मेरी आँखों में भी चली गईं। फिर जीजू ने शानू और मेरी नाक उठा कर हमारी नासिकाएँ भी भर दी वीर्य की बौछार से।

उस रात जीजू ने हमें तीन चार बार और चोदा उसमे मेरी गांड-चुदाई भी शामिल थी। फिर हम तीनों आखिर बार की चुदाई के बाद की मीठी थकान से हार कर गहरी नींद में सो गए।

मेरी एक बार आँख खुली तो लगभग ग्यारह बज रहे थे सुबह के पर शानू अभी भी जीजू के सूखते वीर्य से लिसी गहरी नींद में सो रही थी। मैं भी आँख बंद कर निंद्रा देवी की गॉड में ढुलक गयी। जीजू गायब थे बिस्तर से।

मैं जब दोबारा उठी तो लगभग दोपहर हो चुकी थी। शानू अभी भी बच्ची की तरह थकी हारी गहरी नींद में थी। मेरी वस्ति पेशाब से भरी मचल रही थी। मैं लाचारी से उठ स्नानघर ले गयी जब तक मैं अपना मुत्र झरझर करती फ़ुहार से शनुभि आँखें रगड़ती आ गयी स्नानघर से। मैंने उसे गोद में बिठा लिया एयर उसने मेरी फैली जांघों के बीच में अपना मूत्राशय खोल दिया। शानू के गरम मूत्र की फुव्वार मेरे पेंडू को भिगोती कमोड में झरने की तरह गिरने लगी। मैंने उनींदी प्यारी शानू के गुलाबी सूजे होंठों को प्यार से चुमाँ।

"कुम्भकरण की भतीजी क्या चल कर नहीं देखना नसीम आपा की अब्बू के साथ पहली रात कैसी गुजरी? " मैंने शानू की नासिका को नोक काटते हुए पूछा।

मानों उसे जैसे बिजली का करंट लग गया हो ,"हाय रब्बा मैं तो भूल ही गयी। कैसे भूल गयी मैं?"

हम दोनो जल्दी से तैयार हो कर अकबर चाचू के कमरे की ओर दौड़ पड़े। दोनों के नई कोई कपड़ा पहनने का प्रयास नहीं किया।

नसीम आपा चित्त बिस्तर में गाफिल बेहोश सी सो रहीं थीं। उनके उरोजों पर नीले लाल बेदर्दी से मरोड़ने मसलने के निशान थे। वैसे ही निशान उनकी जाँघों और कमर पर थे।

उनके शरीर और चहरे पर भूरे, सफ़ेद सूखे शरीर के रसों के थक्के लगे हुए थे। उनकी सुंदर फड़कती नासिका के दोनों नथुने सूखे वीर्य से भरे हुए थे। ठीक उसी तरह उनकी आँखें भी। नसीम आपा उस वक्त मोनालिसा, क्लियोपैट्रा , वीनस दी माईलो किसी भी काल्पनिक दैविक सौंदर्य की माप के स्तर से सुंदर लग रहीं थीं। नसीम आपा अपने पुरुष के सानिध्य और सम्भोग से तृप्त और थकी सुंदरता की मूरत बानी मुझे और शानू को उस समय भ्रमणद की सबसे सुंदर स्त्री लग रहीं थीं। मेरे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण विचार थे क्योंकि उस भ्रमांड में मेरे जन्मदात्री मम्मी भी थीं और मेरे लिए उनसे सुंदर कोई भी नहीं था।

हम दोनों नसीम आपा से दोनों ओर कूद कर बिस्तर पर लेट गए। मैंने उनका गहरी साँसे और हलके हलके मादक खर्राटे लेते चेहरे को हांथो में भर कर चूमने लगी। नसीम आपा चौंक कर जग उठीं। उन्होंने ने मुझे अपनी बाहों में भर कर अपना मुंह चूमने चूसने दिया। मैंने उनके चेहरे पर चिपके अकबर चाचू के सूखे वीर्य, नसीम आपा की गांड के रस के थक्के जीभ से चाट चाट कर साफ़ कर दिए। फिर मैंने अपनी जीभ की नोक उनके नथुनों में घुसा कर चाचू का सूखा वीर्य चूसने लगी। मैंने अपनी लार नसीम आपा के नथुनो में बहने दी। नसीम आपा ने अपनी सुंदर नासिका को सिकोड़ कर ज़ोर से झींक मारी। मैंने उनकी नासिका को तैयारी से अपने मुंह में भर लिया था। जब मैं संतुष्ट हो गयी की नसीम आपा की नासिका उनके अब्बू के वीर्य से साफ़ हो गयी है तभी मैंने उसे अपने गीले मुंह से आज़ाद किया।

"आपा कैसी रही कल की रात?," शानू जिसने उनका शरीर वैसे ही चूस चाट कर साफ़ किया था बेचैनी से बोली।

"हाय शानू हाय सीमा क्या बताऊँ। कल की रात तो ज़न्नत की सैर थी। काश खुदा इस रात को हमेशा मेरे दिमाग़ में चलती तस्वीर की तरह गोद दे ," नसीम आपा के चेहरे पर छाये संतोष ,फख्र और प्यार को समझने के लिए , कोई शब्द भी नहीं थे , उसके विवरण करने के लिए।

नसीम आपा ने बारी बारी से शानू और मुझे चूमा और फिर कहा ,"नेहा तुझे तो मैं पहले ही अपनी ज़िंदगी से भी ज़्यादा प्यार देने का वायदा कर चुकीं हूँ। पर अब तो तू मेरी खून से भी करीब हो गयी है। तू और शानू अब मेरी नहीं बहनें हैं जिसके ऊपर मैं अपनी ज़िंदगी बिखेर दूंगीं," नसीम आपा की आवाज़ में भावुकपन था।

"आपकी ज़िंदगी तो हमें अपने से भी प्यारी है नसीम आपा। आपकी उम्र को हज़ारों साल और जुड़ जाएँ।," मैंने भी रुआंसी होते हुए कहा।

"आपा आप ऐसी बात करके क्यों रुला रहीं हैं हमें," शानू तो बिलकुल रोने जैसी हो गयी।

"माफ़ करो अपनी पागल बड़ी बहन को। मैं तो कल रात की सौगात का शुक्रिया अदा कर रही थी," नसीम आपा ने हम दोनों को प्यार से चूम कर कहा।

"नसीम आपा क्या चाचू ने चटाई इस्तेमाल की?" मैंने नसीम आपा के सूजे नीले धब्बों से सजे उरोज़ों को सहलाते हुए पूछा।

"हां नेहा। हाय रब्बा कैसे जादुई चटाई है वो। पता है अब्बू ने अम्मी के कहने से खरीदी थी। इस चटाई पर अब ने अम्मी को हज़ारों बार चोदा है," नसीम आपा किलक कर बताने लगीं।

"क्या आपने चाचू का सुनहरी शरबत पिया?," मैं उत्सुकता से मरी जा रही थी।

"हां नेहा खूब जी भर कर पिया और पिलाया भी। तो बात और भी आगे बढ़ा दी मैं तो शर्म से मर गयी उनकी चाहत सुन कर ...," नसीम आपा को बीच में टोक दिया शानू ने।

"आपा सब कुछ शुरू से बताओ ना। बिना कुछ भी छोड़े। नेहा तू बीच बीच पूछ," मास्टरनी शानू ने हम दोनों को डाँटा।

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