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Click here"नेहा बेटी पारो अपने कपड़े तेल से ख़राब होने से बचाने के लिए सब उतार कर मालिश करती है, "यदि नानू की आवाज़ में नटखटपन था तो मुझे अपने कानो में सांय-सांय जैसी आवाज़ों में नहीं समझा पड़ा।
मैंने बिना एक क्षण सोचे अपनी लम्बी टी शर्त उतर दी। मैंने खूब तेल लगा कर ज़ोर से मालिश की नानू के कमर कन्धों, जांघों की। फिर मैं घोड़े की तरह उनकी जाँघों के ऊपर स्वर हो कर उनके विशाल चूतड़ों की मालिश करने लगी। नानू की साँसे बहुत मधुर मधुर लग रहीं थी मुझे। मैंने उनके चूतड़ों को फैला कर उनकी घने बालों से ढकी गांड के ऊपर मालिश का तेल गिरा कर अपनी ऊँगली से चूतड़ों की दरार की मालिश के बहाने उनकी गांड की छेद को सहलाने लगी। मेरी चूत में रस की बाढ़ आ गयी।
मैंने सूखे गले से निकली आवाज़ में कहा ,"नानू अब पलट जाइये। आपके सामने की मालिश का नंबर है अब। "
नानू बिना कुछ बोले अपनी पीठ पर पलट गए। इन्होने कई सालों के बाद अपनी प्यारी षोडसी धेवती के विकसित होते नग्न शरीर को पुरुष की निगाहों से सराहा और मैं अपने नेत्र नानू के विशाल अजगर से नहीं हटा पायी। बड़े मामू जैसा विशाल मोटा मूसल झूल रहा था नानू की वृहत जाँघों के बीच में।
मैंने हम दोनों का ध्यान हटाने के लिए ऐसे व्यवहार किया जैसे मैं हर रोज़ नग्न हो कर उनकी मालिश करती थी। नानू आँखें मूँद ली शायद आगे आने वाले मालिश के आनंद के लिए।
मैंने उनकी विशाल सीने की तेल लगा लगा कर ज़ोर से मालिश की।
फिर उनके काफी बाहर निकले पेट की मालिश। मेरी आँखें नानू के अजगर जैसे महा लंड से हट ही नहीं पा रहीं थीं। मैंने दिल मज़बूत करके अपना ध्यान नानू की जाँघों पर लगाया। मैंने उनके पैर की हर ऊँगली की मालिश करते हुए फिर से उनकी जाँघों को तेल से मसलते हुए उनकी जांघों के बीच दुबारा पहुँच गयी और मरी चीख निकलते निकलते रह गयी।
नानू का लंड अब खम्बे जैसा तन्ना कर्व थरथरा रह था। मेरा गला सूख गया। मेरी साँसें भारी हो गयीं। अब मेरी आँखें नानू के लंड से हटने में पूर्णरूप से अशक्षम थीं। नानू का लंड ने मानो मुझे सम्मोहित (हिप्नोटाइज़) कर दिया था।
"नानू अब मैं आपके ख्माबे की मालिश करने लगीं हूँ। पारो भी तो करती होगी इसकी मालिश," मेरा हलक सूख चूका था रोमांच से। मेरी आवाज़ मेढकों जैसे टर्र-टर्र की तरह भारी थी।
"बेटा पारो कोई हिस्सा नहीं छोड़ती ,"नानू की आखें बंद थी और उनके होंठों पर मंद मंद मुस्कान खेल रही थी।
मैंने खूब सारा तेल लगा कर कंपते हाथों से नानू के महालँड को पकड़ लिया। परे दोनों हाथों की उँगलियाँ नानू के लंड की परिधि को घेरने में पूरी तरह असफल थीं। नानू का लंड अपने बेटों जैसा लम्बा मोटा था। आखिर सेब पेड़ से ज़्यादा दूर तो नहीं टपकेगा।
मैंने मन लगा कर तेल से चिकेन नानू के लंड को खूब ज़ोर से सहला सहला कर उसकी मालिश की। अब मुहसे रुका नहीं जा रहा था। मैं कुछ बोलना ही चाह रही थी कि नानू ने प्यार से कहा,"नेहा बेटा पारो से मत कहना पर इतनी अच्छी मालिश तो मुझे हमेशा याद रहेगी। अब तू तक गयी होगी यदि तेरा मन करे तो हम "डंडी कहाँ छुपाई" खेल सकते है।"
मैं अब नानू के तेल से लिसे चकते महा लंड को अपने नहीं हाथों से सहला रही थी मुझे पता नहीं कहाँ से साहस आ गया, "नानू आप बुआ वाले नये खेल की बात कर रहें हैं या बचपन वाले खेल की।"
"नेहा बेटा अब तो तू बड़ी हो गयी है शायद बचपन वाले खेल से जल्दी ऊब जाएगी," नानू ने अचानक आँखें खोल दीं। मैं शर्म गयी पर मेरे हाथ नहीं हिले नानू के लंड के ऊपर से।
"नानू मैं छुपाऊं डंडी को?"मैंने थरथरती आवाज़ में पूछा।
"हाँ बेटा जहाँ मर्ज़ी हो छुपा लो डंडी को फिर मैं कोशिश करूंगा ढूँढ़ने की,"नानू अब मुस्कुरा कर मुझे बेचैन कर रहे थे।
उस खेल में एक खिलाड़ी डंडी को चुप देता था एक खांचे में और फिर दुसरे को अंदाज़ लगाना होता था की किस खांचे में थी डंडी। यदि सही अंदाज़ लग जाता तो दुसरे को उस खांचे के नंबर मिलते अन्यथा छुपाने वाले को नंबर मिल जाते।
मैंने अब सम्मोहित कन्या की तरह एक तक नानू के एक आँख वाले अजगर को स्थिर कर अपनी नन्ही चूत के द्वार को उनके बड़े सेब जैसे सुपाड़ी के ऊपर टिका दिया।
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१७३
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नानू ने मेरी कमर पकड़ ली अपने मज़बूत हांथो से। मैं भूल गयी बुआ के मालिश वाले तेल की करामत। जैसे मैंने अपने हाथों को नानू के लंड से उठाया मेरी चूत बिजली के रफ्तार से उनके तेल से लिसे महालँड के ऊपर फिसल गयी। मैं चीखते हुए नानू की छाती के ऊपर गिर गयी।
नानू ने मेरे कान में फुसफुसाया, "नेहा बेटा , हमें पता है आपने डंडी कहाँ छुपाई है."
मैं अब वासना से पागल हो चुकी थी,"नानू मैंने डंडी नहीं खम्बा छुपा लिया है आपकी धेवती की चूत में। अब आप पानी धेवती की चूत का उद्धार कर दीजिये।" मैं बिलबिलाते हुए बोली।
नानू ने मुझे कमर से पकड़ कर गुड़िया की तरह ऊपर नीचे करने लगे।तेल की माया से उनका महालँड मेरी चूत में जानलेवा ताकत से अंदर बाहर आ जा रहा था।
मेरी चूत रस से तो भरी हुई थी और मैं इतनी देर से गर्म थी कि मैं पांच धक्कों के बा भरभरा कर झड़ गयी ,"नानू आह झाड़ गयी मैं नानू ऊ ऊऊऊ ऊंणंन्न," मेरी चूत में से अब अश्लील फचक फचक की आवाज़ें फूट पड़ीं। आधे घंटे तक नानू ने मुझे अपने ऊपर बैठ आकर चोदने के बाद निहुरा दिया बिस्तर पे और फिर तीन भीषण धक्कों में अपना पूरा लंड थोक दिया मेरी नन्ही चूत में।
अब मेरी चूचियां नानू के खेलने के लिए लटक रहीं थीं। नानू ने मेरी चूत का मर्दन किया प्यार भरी निर्ममता से। मैं झड़ते झड़ते थकने लगी।
नानू ने मुझे पीठ के ऊपर पटक कर पूरे अपने वज़न से दबा कर फिर से मेरी चूत में ठूंस दिया अपने महा विकराल लंड।
मुझे छह बार और झाड़ कर नानू ने मेरे अल्पविकसित गर्भाशय को नहला दिया अपने गरम जननक्षम गड़े वीर्य से। उनके लंड से फूटती बौछार एक दो गुहारें नहीं थी पर मानसून जैसे सैलाब की बारिश थी।
नानू ने मुझे प्यार से चूम कर मदहोश कर दिया। मैंने शर्मा कर अपना लाल मुँह नानू के सीने में छुपा लिया, "नानू आप जीत गए इस बार। आपका खम्बा आपकी नातिन की चूत में ही छुपा था।"
"नेहा बेटा , हम दोनों ही जीत गए है और अगली कई बार ,"नानू ने मेरे थिरकते होंठो को चूसते हुए कहा।
"नानू अब कहाँ और छुपायेंगे अपने खम्बे को?" मैंने अपनी सहमत खुद बुलवाने का इंतिज़ाम कर लिया था।
"नेहा बेटा अभी एक और मीठी, घरी रेशमी सुरंग है हमरो नातिन के पास। इस बार खम्बा वहीँ छुपेगा ," नानू ने मुस्कुरा कर मुख्य फिर निहुरा दिया और घोड़ी बना दिया।
नानू ने तेल से मेरी गांड भर दी और फिर खूब तेल लगाया अपने महा लंड के ऊपर, "नेहा बेटा फ़िक्र मत करना। धीरे धीरे डालेंगे तेरी गांड में।"
मैं बिलख उठी,"नानू धीरे धीरे क्यों? अपनी नातिन की गांड पहली बार मार रहें है आप। चीखेंना निकलें तो आपकी नातिन को कैसे याद रहेगी पहली बार।"
फिर नानू ने जो किया उस से मेरी जान निकल गयी। नानू ने तेल मुझपे दया दिखने के लिए नहीं लगाया था पर उन्होंने मेरी गांड में अपना लंड भयंकर आसानी से ठूंसने के लिए लगाया था। मेरी चीख एक बार निकली तो मानो सौ बार निकली। नानू का सुपाड़ा मुश्किल से अंदर घुस था कि नानू ने अपने बलशाली शरीर की ताकत से अपना चिकना तेल लिसा विक्राल लंड तीन भीषण धक्को से जड़ तक मेरी गांड में ठूंस दिया।
मेरी आँखे भर गयीं दर्दीले आंसुओं से, नानू ने बिना मुझे सांस भरने का मौका दिए मेरी गांड भीषण तेज़ी और तख्त से मारनी शुरू की तोना धीमे हुए औरना रुके एक क्षण को भी। मेरी चीखें सिसकियों में बदल गयीं। मेरी गांड की महक से कमरा भर गया। नानू का लंड रेलगाड़ी के इंजन ले पिस्टन की तरह मेरी गांड का मर्दन कर रहा था।
डेढ़ घंटे तक नानू ने बिना थके मारी मेरी गांड। मैं तो झड़ते झड़ते निहाल हो गयी। नानू ने अपनी नातिन की गांड उद्धार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मैं थक के चूर चूर हो गयी नांउं ने मुझे धक्के से पट्ट , मुँह के बल , बस्तर पे लिटा कर मेरी गांड को अपने गरम वीर्य से भरने लगे। मेरी गहरी गहरी साँसे मेरे कानों में गूँज रहीं थीं।
नानू ने मुझे बाहों में समेत कर होश में आने दिया। मैंने आज्ञाकारी नातिन की तरह नानू के अपनी गांड के रस से लिसे लंड को चाट चाट आकर बिलकुल थूक से चमका दिया। नानू ने भी मेरी गांड पे भयंकर चुदाई के मंथन से फैले गांड के रस को चूम चाट कर साफ़ किया।
फिर नानू मुझे नहलाने ले गए स्नानग्रह में।
मुझे ज़ोर से पेशाब आ रहा था पर नानू ने मुझे रोक दिया और मैंने शरमाते हुए नानू का खुला मुँह भर दिया अपने छलछलाते सुनहरी शर्बत से। नानू ने प्रेम से उसे मकरंद की तरह सटक लिया ,पर पहले खूब मुँह में घुमा घुमा कर मुझे ज़ोर से पेशाब आ रहा था पर नानू ने मुझे रोक दिया और मैंने शरमाते हुए नानू का खुला मुँह भर दिया अपने छलछलाते सुनहरी शर्बत से। नानू ने प्रेम से उसे मकरंद की तरह सटक लिया ,पर पहले खूब मुँह में घुमा घुमा कर मेरे शर्बत को चखने के बाद ही सटका उसे।
अब मेरी बारी थी नानू के अमृत को चखने की। नानू ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। मेरी तरह उनकी वस्ति भी भरी हुई थी और मुझे मन भर कर उनका अमृत स्वरुप सुनहरी शर्बत मिला पीने को।
मेरी गांड में ना केवल पिछले दिन का हलवा भरा हुआ था, उसके ऊपर कल रात की भयंकर चुदाई में दोनों मामाओं ने गांड भी दिल खोल कर मारिन थी। उसके ऊपर नानू ने गिलास भर वीर्य से लबालब भर दिया था। नानू मेरी हालत देख कर मुस्कुराये और मुझे सिंहासन पर बिठा कर मेरी टांगें अपने कन्धों पर डाल दीं। अब उन्हें मेरे विसर्जन का पूरा नज़ारा उनकी आँखों के सामने था। मैं पहले तो बहुत शर्मायी पर नानू के कहने से और मेरी खुद को रोकने की असफलता से मैंने अपनी गुदा को ढीला खोल दिया जैसे प्रकृति ने निश्चित किया था उसका प्रयोग। नानू ने उस मोहक दृश्य को सराहा जब तक मेरा विसर्जन पूरा खत्म नहीं हो गया। नानू की बारी थी अब पर उन्होंने मुझे खुद साफ़ नहीं करने दिया पर मुझे घुमा कर मेरे चूतड़ों की दरार को चाट चाट कर साफ़ ही नहीं किया बल्कि गुदाद्वार में जीभ घुसाकर अंदर तक साफ़ किया।
अब मैंने नानू के विसर्जन का मनमोहक दृश्य अपने मस्तिष्क में भर लिया। मैं भी तो नानू की नातिन थी। मैंने भी उनके विशाल चूतड़ों को फैला कर बिलकुल साफ़ कर दिया उनकी दरार को और गुदाद्वार को।
फिर नानू और मैंने उनके दांतों के ब्रशसुबह की सफाई की। नहाते समय नानू ने साबुन लगते लगते मुझे फिर से गरम कर दिया। इस बार नानू ने मुझे शॉवर की दीवार से लगा कर निहुराया और फिर बिना तरस खाये मेरी चूत में ठूंस दिया अपना विक्राल लंड तीन धक्कों में। पहले तो मैं चीखी हमेशा की तरह फिर सिसकारियां मरते हुए झड़ गयी। नानू ने आधा घंटा चोदा मुझे मैं ततड़प उठी अनेकों बार झाड़ कर। आखिरकार नानू ने एक बार फिर से मेरे किशोर गर्भाशय को अपने वीर्य से नहला दिया।
हम दोनों को खूब भूख लगी थी। मैंने नानू की गोल्फ टी शर्ट पहन ली। मैं नानू की गोद में बैठी थी। खाने पर मैंने नानू से पूछा,"नानू आज क्या ख़ास दिन है मम्मी, आपके और मामाओं के लिए?"
नानू ने मुझे चूमा ,"आज रजत सालगिरह (सिल्वर एनिवर्सरी) है हमारे और सुन्नी के संसर्ग की।"
मैं हतप्रभ रह गयी। मम्मी मुझसे भी चार साल छोटी थीं जब उन्होंने पहली बार नानू को अपना कौमार्य सौंपा था। उनके बड़े भाई कहाँ पीछे रहने वाले थे।
"नेहा बेटा , हमारे सुईठे के साथ एक गलियारा है जिस से शयन कक्ष और स्नानगृह साफ़ साफ़ दिखता है। अगर तेरा दिलम चाहे तो वहां से अपनी मम्मी के कौमार्यभाग की पच्चीसवीं ( २५वीं ) वर्षगांठ का अनुष्ठान देख सकती है। "नानू ने मेरे स्तनों को टी शर्त के ऊपर से मसलते हुए मुझे आमंत्रित किया। मैं अपनी मम्मी इस ख़ास वर्षगांठ का समारोह किसी भी वजह से देखने से नहीं चूक सकती थी।
नानू को मैंने अकेला छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने शयन ग्रह को अपन बेटी के अनुष्ठान के लोए तैयार करना था।
मैं नानू के खोले नए राज का प्रयोग करने का उत्साह मुश्किल से दबा पा रही थी।
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