शादी में धमाल

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शादी में लड़की के साथ धमाल और उसके बाद की कहानी
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कहानी की शुरुआत एक शादी के दौरान दो लोगों के मिलने से शुरु हुए हालात को ले कर हुई थी। रिश्तेदार की लड़की की शादी में जाने का निमंत्रण मिला तो उस शहर में दुबारा जाने का मौका मिला जिसे छोड़ें हुए एक अरसा हो गया था। कुछ मीठी यादें इस शहर से जुड़ी हुई थी। कई सालों तक इस शहर में रहने का मौका मिला था, कई लोगों से काफी घनिष्ठ संबंध बन गये थे। अब कुछ याद है कुछ भुल गया हूँ।

शादी में पहुँचने पर पता चला कि शहर बहुत बदल गया है लेकिन शहर का चरित्र नहीं बदला है। वैसे भी छोटे शहरों का एक अलग ही चरित्र होता है। लोगों के बीच अपनापन अभी भी कायम है। लोगों के पास मेहमानों का आतिथ्य करने का समय और मन है। मुझे ऐसें शहरों से एक नीजि लगाव है। इस शहर में तो मेरे बचपन के कई साल गुजरें थे। इस लिए इस से ज्यादा लगाव है। मेहमानों में कईयों से काफी सालों के बाद मिलना हुआ था, पुरानी योदों को याद करके काफी वक्त गुजर गया।

शादी वाले दिन एक नये मेहमान से मुलाकात हुई, उस से रिश्ता कुछ सीधा नही था, लेकिन खास था। दिन खत्म होते ही मामी का आदेश हुआ कि उन की रिश्ते की बहन की जिम्मेदारी मेरी थी। परिवार में एक शख्स ऐसा था जिस से उन को अन्देशा था। मैंने हाँ मैं सर हिला दिया। यही आदेश मामी ने अपनी बहन को भी दे दिया। शाम को बरात में, मैं चलने लगा तो मामी की बहन ने आ कर मुझ से कहा कि मेरे आस-पास ही रहना। मैंने मजाक में कहा कि मुझे अपनी चुन्नी में बाँध लो। वह बोली मैं तो बाँध लुगी, लेकिन तुम्हारी और परिचितों का क्या हाल होगा?

मैं जान बुझ कर चुप रहा।

उत्तर क्यों नही दे रहे?

मेरे से ज्यादा तो तुम्हें मेरे बारे में पता है।

सारी लड़कियों में सबसे ज्यादा पूछ तो तुम्हारी ही होती है ये क्या किसी से छुपा है?

आज तो मैं तुम्हारी सेवा में हूँ।

अच्छा अब तैयार तो हो लो, शादी के लिए

मेरे को किसी को दिखाना नही है

हाँ देखने वाली तो साथ ही है

क्या?

छोड़ो जाने दो

चले, हाँ चलो

हम दोनों बरात में जाने के लिए बस में सवार हो गए। मैं और वो एक ही सीट पर बैठे थे। बढ़िया कपड़ों और जेवरों से लदी हुई औरतें, लड़कियों और लड़कों की खिलखिलाहट से बस गुंज रही थी। छोटी सीट होने के कारण हम दोनों एक दुसरें से सटे बैठे थे। सुट में वैसे ही आराम कम ही मिलता है। दोनों की सांसे एक दुसरें से टकरा रही थी। उस ने धीरे से अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर ऐसे रख दिया जैसे भुलवश हो गया हो। मैंने भी उसे वही रहने दिया।

तुम ने सेंट तो बड़ा अच्छा लगाया है।

और कुछ नहीं दिखा तुम्हें या देखना नही चाहते?

क्या नही देखना चाहता?

मुझे

यार तुम तो मेरे बगल में हो, सेंट अच्छी लगी तो बताया ना?

और कुछ नही देखा?

मैंने धीरे से कहा कि इस लहंगे में तो तुम कहर ढ़ा रही हो, तुम्हारी रक्षा करना तो आज कठिन होगा

किस से?

सबसे पहले तो अपने आप से

तुम से रक्षा करवाना कौन चाहता है?

भई हमें तो अपनी मामी को जबाव देना है।

किस बात का?

कुछ बात है

मुझे बताओ?

यार बिना मतलब की बात में सिर ना खपाओ

मजे करो

तुम्हारे साथ, परिवार के सबसे शरीफ लड़के के साथ, जिस की सब कसमें खाते है।

ये कॅाम्पिलिमेटं है या ताना?

जैसा समझों

इस बातचीत में उस का हाथ मेरे हाथ को जोर से दबाता रहा। उस से अपना सारा बोझ मेरे कन्धें पर डा़ल दिया।

थोड़ी देर में हम बरात स्थल पर पहुँच गये। अंधेरा घिर आया था। बरात लड़की वालों के घर चलने के लिए तैयार होने लगी। मैं भी उस के साथ घर की सब महिलायों की सुरक्षा के कारण सबसे पीछे था। कभी कभी जान पहचान वाले लोग नाचने के लिए पकड़ कर घोड़ी के आगे ले जाते थे। मुझे नाचना नही आता था, इस लिए एक आध मिनट हाथ पैर हिला कर मैं फिर पीछे की तरफ आ जाता था। शादियों में महिलाओं के साथ लुटपाट का डर लगा रहता है। इस कारण से मैं सबसे पीछे चल रहा था तभी अचानक वह पीछे की तरफ मेरे पास आ गई और बोली कि मैं तुम्हें ढुढ़ रही थी। कहाँ थे?

आगे चल रहे लोगों के साथ नाच रहा था।

अभी तो तुमने कहा कि तुम्हें नाचना नही आता।

हाँ

तो फिर नाच कैसे रहे थे?

उन के साथ हाथ पैर हिला रहा था। अगर इसी को नाच कहते है तो नाच रहा था।

मेरे साथ भी नाच लो।

चलो, कह कर मैं उस का हाथ पकड़ कर आगे की ओर चल पड़ा। आगे जा कर सब के साथ हम दोनों भी थिरकने लगे। काफी देर नाचने के बाद मैंने उसे पीछे खीच लिया। उस से पुछा क्या हुआ? मैं उसे लेकर फिर पीछे की तरफ हो गया। उस का हाथ पकड़ कर अपने पास कर लिया। आगे अब नाचने में गड़बड़ होगी इस लिए तुम्हें पीछे ले आया हुँ।

बैड़बाजों की आवाज में उसे कुछ सुनायी नही दिया, उस ने अपना मुँह मेरे कान के पास ला कर कहा, क्या कह रहे हो? मैने कहा कि यार कुछ पल तो मेरे साथ रहो।

उस से मेरे हाथ को जोर से पकड़ा, इतने जोर से की उस के नाखुन मेरी कलाई में गड़ गये।

सारी उम्र के लिए अपने पल्लु से बाँध लुं।

जैसी तुम्हारी मर्जी

मैं तो हुक्म का गुलाम हुँ। मेरी अपनी कोई इच्छा नही है।

इतने सीधे नही हो तुम?

जैसा तुम कहो

बारात अब लड़की वालों के घर के करीब पहुँच रही थी। मेरी पुकार फिर से हुई और मैं उसे साथ लेकर आगे की तरफ चल पड़ा। सब लोग जोर जोर से नाच रहे थे, हम भी उस भीड़ में घुस गये, सब एक दुसरें से टकरा टकरा कर नाच रहे थे। हम भी सब के साथ नाच में शामिल हो गये। थोड़ी देर बाद मैं तो थक कर किनारे होने लगा तो देखा कि जिस बात की आशंका थी वह होने को थी, जिस से बचाना था वह ही उस के आस-पास मड़रा रहा था।

मैं जल्दी से लपका और उस का हाथ पकड़ कर माहिलाओं के गुट में ले गया। वहाँ कई मेरी मामियां और मौसियां थी, उन के साथ बात करने लगा साथ ही उस पर नजर भी रख रहा था। भीड़ पंड़ाल में दाखिल हो गयी थी। हम दोनों पीछे की तरफ बैठ गये। मैंने खडे हो कर अपनी पैंट सही की और शर्ट सही कर के सुट को सैट किया। यह देख कर वह हँस कर बोली, यहाँ तुम्हें कोई नही देख रहा।

तुम तो देख रही हो

मेरा क्या है।

यार मेरा सही लगना भी जरुरी है।

तुम इस भीड़ में सबसे ज्यादा जँच रहे हो सुट में तो कहने की बात ही क्या है, और कितना जँचना चाहते हो? किस किस पर गाज गिराना चाहते हो? सब को पता है कि तुम सबसे बढ़िया कपड़ें पहनते हो। अपनी और कितनी प्रशंसा सुनना चाहते हो?

मैं चुप हो गया। मैंने उस को चुप होने का इशारा किया। वह चुप हो कर बैठ गयी।

जैसा मिल जाता है वैसा पहन लेता हूँ। कोई खास इच्छा नही है।

कुछ पीने को मिल जाता तो अच्छा रहता,

क्या पियोगी?

कोई भी कोल्ड ड्रिक

मैं कोल्ड ड्रिक लेने चला गया। दो गिलासों में ठंड़ा ले कर लौटा तो वह मेरा इन्तजार कर रही थी। हम दोनों चुपचाप ड्रिक सिप करते रहे।

आगे जयमाला की तैयारी हो रही थी, सभी वर वधु को देखने के लिए लालायित थे। हम दोनों एक दूसरें को छिपी नजरों से देखते रहें।

थोड़ी देर बाद हमारा नंबर आया और हम दोनों भी ग्रुप फोटो खिचवा कर मंच से नीचे उतर आये, मेरे पेट में चुहें कुद रहे थे मैंने उस से कहा कि खाना खाना है उस ने सर हिलाया। खाने के लिए अभी भारी भीड़ थी। मैंने उस का हाथ पकड़ कर कहा कि इस भीड़ में मैं आगे नही जाऊँगा, मेरे कपड़ें खराब हो जायेगे। उस को मेरी बात सही लगी। हम दोनों एक बार फिर एक कोने में चले गये। उस ने कहा कि तुम्हें भीड़ से इतना डर क्यों लगता है? मैंने कहा कि अगर अपने कपड़ों को खाना खिलाना हो तो ही ऐसी भीड़ में जाना चाहिए।

पेट तो थोड़ी देर बर्दाश्त कर लेगा। लेकिन कपड़ों के सत्यानाश होना तय है।

हम दोनों बाहर आ कर एक कोने में खडे़ हो कर बातें करनें लगे।

तुम आलु की टिक्की, चाट वगैरहा तो ले लेती?

अब खाना ही खायेगे

थोड़ी देर बाद जब भीड़ कम हुई तो हम दोनों खाना खाने गए और प्लेटों में खाना ले कर एक तरफ चले आये। खाना अच्छा बना था, भुख भी थी इस लिए भरपेट खाना खाया गया। खाना खाने के बाद बाहर आ कर देखा कि अभी वर-वधु के खाने में समय था तथा अधिकतर मेहमान चले गये थे। ठंड का समय था हम ऊपर की मंजिल पर कमरों में चले आये। अधिकांश कमरे खाली थे। एक कमरें में हम दोनों चले गये और कमरे का दरवाजा बन्द कर लिया। मैं तो बेड़ पर लेटने के लिए चला ही था कि उस ने पकड़ कर खीचँ लिया।

बोली कि अभी तो एकान्त मिला है तुम लेटने चल दिये। मैंने कहाँ और क्या करुँ, वो बोली कि यह भी मैं ही बताऊँ। यह सुन कर मेरे ज्ञान चक्षु खुल गये। मैंने उस को बाहों से पकड़ कर अपने पास कर लिया और बोला और कोई हुकुम सरकार?

वो इस पर हँस कर बोली, चुप रहो और उस के होंठों ने मेरे होंठों को कवर कर लिया। उस के शरीर की सारी गरमाहट होंठों से होकर मेरे होंठों से होकर मेरे शरीर में आ गई। उस की जीभ मेरे मुँह के अन्दर घुसने लगी मैंने मुँह खोल कर उसे आने दिया। वह मेरी जीभ के साथ अठखेलियां करने लगी। मेरे हाथ उस की गरदन पर कस गये। वह भी मुझ से लिपट गई। इस अवस्था में कुछ देर रहे फिर उस ने कहा कि मेरा मैकअप खराब हो जायेगा। मैंने उसे अपनी जकड़ से मुक्त कर दिया।

बात तो सही है। यहाँ इसे सही भी नही कर सकते, इस का भी प्रबंध हो जायेगा।

तो और कुछ भी करने का इरादा है?

नही तो

घर चलते है,

अभी, लेकिन कैसे?

नीचे चल कर देखते है, वैसे भी यहाँ हम दोनों को देख कर कोई कुछ भी सोच सकता है?

हाँ

चलो नीचे चलते है, मैने धीरे से दरवाजा खोल कर बाहर झाँका, ये देखने के लिए कि कोई हमें देख तो नही रहा है, किसी को ना देख कर मैंने उसे इशारा किया और हम दोनों चुपचाप कमरे से निकल कर नीचे चले आये।

अभी तो फ्लौर पर डांस चल रहा था। हम भी वहाँ जा कर खडे हो गये। लोगों ने डांस फ्लोर पर खीच लिया तो थोड़ा सा मटक कर वहाँ से हट गया। वो भी मेरे पास आ कर खड़ी हो गई। मैंने कहा यहाँ तो अभी देर लगेगी, बोलों क्या करे? तभी मेरी मामी मेरी तरफ आयी और बोली तुम तो गाड़ी चलाना जानते हो, घर जा कर इस के कपड़ें बदलवा लाओ और कुछ देर आराम कर आयों। यहाँ तो अभी देर है और तुम्हारा कोई काम भी नहीं है, मैंने पुछा कार की चाभी किस के पास है? वह बोली मैंने रखी है ये लो घर जा कर कपड़ें बदल आयों।

अन्धा क्या चाहे, दो आँख उस के साथ घर के एकान्त का मजा ही और होगा। मैंने कार की चाभी ली और उस को साथ ले कर बाहर आ गया। बाहर आ कर उस से पुछा कि क्या उसे कपड़ें बदलने है? वह बोली की घर जा कर साड़ी पहन कर आऊँगी। इस में तो चलना भी मुश्किल हो रहा है।

हम दोनों कार में बैठ कर घर के लिए चल दिये। घर आधा घन्टे की दूरी पर था। कार में उस का हाथ मेरे हाथ पर ही था। मैंने भी उसे हटाने की कोशिश नही की। घर पहुँच कर हम ने घर खोल कर कार खड़ी की और अन्दर चले गये। घर पर कोई नही था। सब शादी में गये हुए थे। हम दोनों ही अकेले थे। वह मेरे पीछे से लिपट गई। मैंने कहा कि आगे क्यों नही आती तो वो बोली की डर लगता है।

किस बात का?

मैंने तो कुछ किया ही नही है,

इसी बात का तो डर है

यार साफ साफ बात करो

पहले तो मैं कुछ करुँगा नही, तुम अपनी कहो।

मुझे इसी बात का तो डर है, मुझे अपने पर भरोसा नही है।

तब तो तुम अन्दर कमरे का दरवाजा बंद कर के कपडे़ं बदल कर आयो। मैं यहाँ बैठ कर तुम्हारा इन्तजार करता हूँ।

उस ने सामने आ कर मुझे चुम कर कहा कि मेरे भोले राजा मैं तुम पर वारी।

मैंने उसे आलिंगन में लेकर कहा कि मुझे भड़काओ मत, चुपचाप जा कर कपड़ें बदल लो।

उस ने कहा कि अकेले में डर लगता है

क्या करुँ?

कपड़ें बदलने में मेरी मदद करो।

कुछ तो शर्म करो?

मैं यही पर सही हूँ।

अब वह मेरे गले में बाहें डाल कर लटक गयी। उस के कठोर उरोज मेरी छाती में चुभ रहे थे। मैंने उस के माथे पर चुम्बन ले कर उसे अपने से अलग कर के कहा कि मैडम आग मत भड़काओ, बुझाना मुश्किल हो जायेगा। उस ने होंठों से मेरी आँखे चुमना शुरु कर दिया। फिर उस के होंठ मेरे होंठों से चुपक गये, मैं भी उसे चुमने लगा। थोडी देर में ही हमारी सांसे फुल गई। हम दोनों अलग हो गये।

मेरा मन तो उस के उरोजों को मसलने का कर रहा था। लेकिन यह बहुत गलत बात हो जाती। मैंने उसे कमरे की तरफ धकेल कर कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। वह भी समझ गई कि इस से आगे बढ़ना सही नही है।

कुछ देर बाद दरवाजा खुला और वह साड़ी में दिखाई दी। साड़ी में वह बहुत सुन्दर लग रही थी। बाहर आ कर बोली की तुम्हारें मन की ही चलती है।

मैंने कहा कि इस में तो तुम और भी सुन्दर लग रही हो, वो बोली कि बेकार बात मत करो। मैंने कहा कि मेरी नजर से देखो तब पता चलेगा। साड़ी में कोई भी औरत सुन्दर लगती है। साड़ी ड्रेस ही ऐसी है।

मेरे कारण शादी में कोई लड़का तुम पर लाईन नही मार रहा, नही तो अब तक तो जाने कितने मर गए होते।

इसी लिए तो बहन ने तुम्हें मेरी जिम्मेदारी दी है।

यार तुम चीज ही ऐसी हो की किसी की भी नियत खराब हो जाये।

तुम्हारी क्यों नही हो रही?

जो चीज अपनी हो उसे ले कर नियत क्यों खराब करे

अच्छा जी,

मैं कोई चीज हूँ?

कहने का तरीका है

सही नही है। कोई और तरीका सीखो?

चलो सीख लेते है तुम से

मेकअप सही कर लिया

हाँ, तुम मुझे ध्यान से देख नही रहे हो?

क्या बात है?

यार तुम्हें ध्यान से देखा तो डर है कि अपने पर जो कंट्रोल कर रखा है वह हट ना जाए

मेरी बड़ी चिन्ता है

हाँ

अपनों की चिन्ता करनी ही पड़ती है

बातें ना बनाओ

कैसे कहुँ, कैसे दिल में जो है तुम को बताऊँ, मेरे पास शब्द नही है।

तुम तो शब्दों के माहिर कहे जाते हो, आज निशब्द कैसे हो गये?

तुम्हारे लिए कुछ भी हलका शब्द मेरे मुँह से निकल नही सकता।

ये कैसा रुप है तुम्हारा?

मेरी समझ नही आ रहा?

क्या समझ में नही आ रहा?

तुम्हारा अपने पर कंट्रोल

इस उम्र में मैंने तो किसी में देखा नही है। उल्टा हो रहा है मुझे डरना चाहिए लेकिन डर तुम को लग रहा है। डर किस बात का है?

डर इस बात का है कि हम गल्ती से भी अपनी सीमा पार ना कर जाए। मामी का और तुम्हारा जो विश्वास मुझ पर है वो मैं तोड़ ना दूँ? क्षणिक उत्तेजना के वशीभूत हो कर अपने संस्कार ना छोड़ दूँ। थोड़ी बहुत छेड़छाड़ तो चलती है लेकिन सीमा में।

तुम्हारा ये रुप तो मैंने देखा नही है। फिकर करने वाले हो ये तो मुझे पता था लेकिन इतनी दूर की सोचने हो ये आज ही पता चला। मेरे मन में तुम्हारी इज्जत और बढ़ गई है। बहन ने ऐसे ही तुम्हारी तारीफ नही की थी। तुम जैसे दोस्त को पा कर मैं बहुत खुश हूँ।

अरे भई मुझे चने के झाड़ पर मत चढाओ।

चले

हाँ, तुम ने तो कपडे़ं नही बदलने, वैसे सुट में जँच रहे हो।

सुट उतार कर पेंट के उपर जैकेट डाल लेता हूँ। सुट में टाइट लगता है।

लेकिन तुम्हारा सुट तुम पर जमता है, कितनों ने पहन रखा है लेकिन तुम अलग लग रहे हो।

मैंने सुट उतारा और पेंट के उपर जैकेट पहन ली।

वह पन्जों के बल उठी और मेरे माथे पर चुम कर बोली कि किसी की नजर ना लगे

मैंने मजाक में कहा कि मेरे साथ तुम जो हो किसी की नजर नही लगेगी।

उस ने मेरी कमर में हाथ डाला और बोली कि अब मुझे तुम से और शरारत करने का लायसेंस मिल गया है। राज की बात है तुम्हें फिर कभी बताऊँगी?

हम दोनों घर बंद करके कार में सवार हो कर शादी में लौट आये।

पुरी शादी में उस के बाद उस ने मेरे साथ बात नही की।

शादी खत्म होने के बाद मैं उस से मिलना चाहता था लेकिन वह नही मिली।

मैं अगले दिन अपने घर लौट आया।

एक दिन मां ने मुझ से पुछा कि तेरे लिए एक रिश्ता आया है, क्या कहता है, मैंने कहा मैं क्या कहूँ जैसे तुम्हारा मन हो करो।

वह बोली कि इस लिए पुछ रही हूँ कि तुम्हारे मन में कुछ और तो नही है?

मैंने ना में सर हिलाया।

मां ने एक फोटो निकाल कर मेरे सामने कर दी। मैंने फोटो हाथ में ली तो एकबार तो मुझे झटका लगा, फोटो में मामी की शादी वाली बहन थी। मैंने मां से पुछा कि यह कौन है तो मां हँस कर बोली कि अब इतना शरीफ मत बन। इस के साथ तो तु शादी में मिल कर आया है। मैंने माँ से पुछा कि मामा की साली से रिश्ता कैसे हो सकता है?

मां बोली कि यह भाभी की कजिन है। मुझे पहले से ही पसन्द थी। लेकिन तेरी इतनी सारी सहेलियां है इस लिए मन में चिन्ता थी कि तु क्या करेगा? लड़की के मन की बात भी जाननी थी? इस लिए मैंने और तेरी मामी ने यह सब रचा था। ताकि तुम दोनों एक दूसरें को जान सको। तेरी मामी को तुझ पर बहुत विश्वास है उन्होनें ही इस को सब के लिए मनाया था, तब हमें पता चला कि वो भी तुम्हें चाहती है इस लिए वह भी इस नाटक में शामिल थी। उसे भी तेरे पर बड़ा विश्वास है। तेरे साथ अकेले जाने में कोई डर नही लगा। ये लड़की बहादूर है, बहू के रुप में सही रहेगी।

मैं बोला कि जब इतना सब हो चुका है तो मैं अब क्या कहूँ। आप ने जो सोचा है सही सोचा होगा।

मेरा कोई प्रेम संबध नही है, सब मेरी दोस्त है, इस से ज्यादा कुछ नही। बहुत पहले ही यह तय किया हुआ था कि जिस गली जाना नही, उस का पता पुछना नही।

मां फोटों मेरे हाथ में दे कर चली गई।

मैं सोचने लगा कि इस लिए मैडम कह रही थी कि कोई राज की बात है। अब जरा इन को भी कुछ परेशान करते है।

रात को मामी का फोन आया, मम्मी से उन की बात हुई। मैंने मामी से बोला कि आप भी इस षडयन्त्र में शामिल थी, मामी हँस कर बोली की लल्ला जी आप के लिए बहू ऐसे थोड़ी ना मिल जाएगी। हमें भी तो अपनी होने वाली बहू को चेक करना था। उस के परिवार को भी अपने दामाद को परखना था। सबसे बड़ी बात तो यह है कि बहू भी इस बात के लिए राजी थी। तुम ही सोचों कोई अपनी बेटी को ऐसे भेजता है। लेकिन सब को तुम पर विश्वास था। तुम ने हमारे विश्वास को कायम रखा है। हम को तो इसी बात का गर्व है कि हमारा विश्वास सही निकला है। अब तुम पर निर्भर करता है कि तुम हां कहते हो या नही। मैने कहा कि जब सब बड़े राजी है तो मैं भी राजी हूँ। लेकिन एक बार उस से बात करना चाहता हूँ, आप बताओ कि क्या यह सम्भव है। मामी बोली कि मैं पुछ कर बताती हूँ कि ऐसा कब हो सकता है।

ननद भाभी काफी देर तक बाते करते रहे। 15 दिन बात में किसी रिस्तेदार के यहाँ कार्यक्रम में गया हुआ था। तभी किसी बड़े ने मेरा परिचय किसी से कराया। मैंने उन्हें नमस्कार किया और एक तरफ बैठ गया। तभी मेरे रिश्ते के चाचा जी ने कहा कि तुम नीचे बोर हो रहे होगे। ऊपर के कमरे में जा कर बैठ जाओ। टीवी देख लो। चाची जी ने मुझे ऊपर के कमरे का रास्ता दिखा दिया। मैं सीढियां चढ़ कर कमरे में गया तो देखा कि कमरे में कोई लड़की खिड़की के बाहर देख रही है। मैं कमरे में घुसने से हिचका तो आवाज आई कि अन्दर आ जाईये कोई खा नही जाएगा। इस आवाज को तो मैं पहचानने में गल्ती नही कर सकता था। मैं धीरे-धीरे चल कर कमरे में दाखिल हुआ। मैडम ने घुम कर मेरे को देखा और बोला कि अब और कितना इन्तजार करना पड़ेगा, आप की हाँ का? मैंने कहा कि मुझे तुम्हारी हाँ तुम्हारे मुँह से सुननी थी।

क्या बोलु मैं?

मैं बोला अब इतनी दूर क्यों खड़ी हो?

वो बोली यहाँ मेरी मर्यादा है।

मैं तो शादी वाली लड़की ढुढ़ रहा था। तुम तो कोई और हो?

तुम करो तो अच्छी बात और मैं करुँ तो तोबा

मैंने उस का हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा कर कहा कि हम दोनों का एक बार मिलना तो बनता है, हो सकता है कि मैं उस दिन ज्यादा ही शरीफ हो रहा था या तुम ही ज्यादा शरारत कर रही थी। आज तो हम दोनों अपने असली रुप में हो सकते है।

वो हँसने लगी। बोली, तुम शरारत करने की कोशिश मत करना, तुम्हारे बस की बात नही है इसे मेरे लिए ही छोड़ दो। मैं भी हँस पड़ा, बोला यह मेरा फिल्ड नही है। तुम को ही मुबारक हो। मैंने यह कह कर उस के हाथ अपने हाथ में लेकर कहा कि मेरी आँखो में देख कर कहो कि मुझ से प्यार है। उस ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा कि हाँ है। अब तुम्हारी बारी है। मैंने कहा कि तुम्हारा मेरे साथ होना मेरे लिए गर्व की बात है। वह बोली यह तो सम्मान देने वाली बात है मैं तो समान स्थान चाहती हूँ। मैंने उस के चेहरे को अपने हाथों में लेकर कहा कि मैडम मुझे शरारत करने को मजबुर मत करो? मुझे भी तुम पसन्द हो। बोलो और कैसे सुनना चाहती हो?

वो बोली मुझे कोई शक नही था। मैंने तो हाँ कर दी थी। तुम ही हाँ नही कर रहे थे। मैं हँस पड़ा, बोला कि तुम ही शरारत कर सकती हो मैं नही।

जोड़ी तो बराबर की होनी चाहिए।

उस ने मेरे हाथ कस कर पकड़ लिए और शरमा कर कमरे से भाग गई।

मैं कमरे में चुपचाप बैठा रहा।

थोड़ी देर बाद चाची जी कमरे में आई और हँसते हुए बोली कि लल्ला जी लल्ली पसन्द आयी?

चाची से मेरा पुराना परिचय था मैं बोला कि आप भी इस में शामिल है?

वह बोली कि लल्ला जी आप के गम्भीर रुप की वजह से हम उस की बातों पर विश्वास नही कर पा रहे थे। आज पता चला कि हमारे लल्ला जी नार्मल है। उन्होने मेरी तरफ आँख मारी। मैं ने शरम से आँखे नीची कर ली। चाची जी हँसती हुई चली गई।

थोड़ी देर बाद वह सज्जन जिन से चाचा जी ने परिचय कराया था चाचा जी के साथ कमरे में आए। मैं अब तक सब कुछ समझ गया था, मैंने झुक कर उस के पांव छु लिए। वह बैठ कर चाचा जी से हँस कर बोले की दामाद जी की तो हाँ है। चाचा जी हँस कर बोले कि इस बात पर तो चाय हो जाए। तब तक चाची जी मैडम के साथ चाय लेकर आ गई। हम सब चुपचाप चाय पीते रहे। मैडम के पिता जी बोले की दामाद जी की हाँ के बाद यह रिश्ता पक्का हो गया है। मैं दामाद जी को कुछ दे कर जाऊँगा आप को कोई ऐतराज तो नही है। चाचा जी बोले नही जी हमें तो नही है। हम भी अपनी बहू को कुछ दे कर ही विदा करेगें।

मैं ने चाची ने धीरे से कहा कि अब फोन नम्बर तो दिलवा दो। वो हँस कर चली गई। शाम हो रही थी हम को वापस घर भी जाना था। सब को नमस्ते कर के मैं चलने के लिए हुआ तो चाची जी ने आवाज दे कर बुलाया और कहा कि खुद ही नम्बर क्यों नही मांग लेते। मैं कमरे में गया तो उस ने एक कागज मेरे हाथ में दे दिया। मैं उसे नमस्कार कर के बाहर आ गया।

बाहर आ कर कार स्टार्ट कर के निकल गया। आँखो के कोने से देखा कि वह ऊपर के कमरे में खिड़की पर खड़ी हाथ हिला रही थी।

घर जा कर एकान्त में बैठ कर कागज निकाल कर पढना शुरु किया। उस ने लिखा था कि मैं तुम्हे किसी नाम से सम्बोधित नही कर रही हूँ, लेकिन तुम्हें पाने के लिए शिव जी की पूजा करी है। उस दिन शादी में जो हुआ था वह जानबुझ कर की गई शरारत थी, सिर्फ ये देखने के लिए की मेरा विश्वास कहाँ तक पक्का है? उस दिन के मेरे व्यवहार को ले कर तुम परेशान ना होना, वह मेरे चरित्र का द्योतक नही है। आशा करती हूँ कि तुम्हें मेरे पर पुरा विश्वास होगा। अब तुम से शादी पर ही मुलाकात होगी। फोन पर ही बात हो सकती है। मैंने जो उस दिन किया है उस का तुम से दूर रहना ही मेरी सजा है। तुम्हारी अपनी..........

मैंने पत्र पढ़ कर सभांल कर रख दिया। एक दिन जब घर में अकेला था तो उस का फोन न. डायॅल किया। लैड़ लाईन थी। उस ने ही फोन उठाया। मेरी आवाज सुन कर कुछ देर तक चुप रही फिर बोली कि मेरे पत्र को पढ़ने के बाद तुम्हारा क्या उत्तर है?, मैंने कहा कि तुम ने कुछ गलत नही किया था जब हम किसी पर विश्वास करते है तो पुरा करते है, हिस्सों में नही करते। सो उस दिन की बात खत्म हो गयी है। अब उस पर बात नही करेगे। उस ने हाँ कहा। मैंने कहा कि मेरे बारे में कुछ पुछना है तो पुछ लेना। शर्म नही करना? उस ने कहा कि तुम्हें लगता है कि मैं शर्म कर सकती हूँ।

मैंने उससे कहा कि मेरी बहुत सी लड़कियां मित्र है, इस से उसे कोई परेशानी तो नही है। उस का उत्तर था कि उसे विश्वास है कि उस की जगह और कोई नही ले सकती। वह बोली कि मैं भी कुछ भी पुछ सकता हूँ। मैने कहा कि विश्वास में शंका नही करते। कुछ होगा तो पुछ लेगे। फिर हम वो बातें करने लगे जो लड़कें लड़कियां आपस में करतें है। मैंने उसे कहा कि वह कब अकेली होती है, मैं उसे उसी समय फोन करुगा। सब के सामने फोन पर बात करने में शर्म आती है। वो हँसने लगी। बोली कि मेरे साहब हर बात में आगे है लेकिन व्यवहार में सबसे पीछे। मैंने कहा जहां आगे होने की जरुरत होती है आगे हूँ जहां पीछे होना चाहिए वहां पीछे रहता हूँ।