पूजा की कहानी पूजा की जुबानी Ch. 06

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Pooja ki apni chcha se masti bhari chudayi.
4.3k words
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Part 6 of the 11 part series

Updated 03/13/2024
Created 11/26/2022
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Pooja ki kahani poo ki jubani - 6               (Mei Aur Mere Chacha)

Pooja Mastani

Pooja ki apni chcha se masti bhari chudayi

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दोस्तों; मैं हूँ पूजा..पूजा मातानी, मेरे एक और मदभरि आनुभव के साथ आपके समक्ष। आपको मालूम ही है कि मैं आज कल मेरे ट्यूशन मास्टर से योन सम्बन्ध बनालिए है।(पढ़िए में और मेरे ट्यूशन मास्टर) हमारा यह सिल सिला कोई चार महीने से चलरही है। कभी कभी मैं मेरे पहले चोदू, जिसे मैं अपनी कुंवारापन सौंपी है उनसे भी मिलकर मेरी चुदाई की इच्छा पूरी कर रही हूँ।

उस दिन शाम हमारे सब घरवाले एक फिल्म देखने गए है। दूसरे दिन मेरे एग्जाम थे तो मैं नहीं गयी। घरमे मैं और मेरे बड़े भैय्या ही थे। अभी ट्यूशन मास्टर आने वाले है तो मुझे अकेले न छोड़कर भैया को मेरे साथ छोडकर बाकि सब सदस्य पिक्चर देखने गए है। में किताबें लेकर कल की तैयारी कर रही थी और मैं सर के आने का इन्तेजार कर राही थी। भैय्या हॉल में बैठकर TV देख रहे थे। इतने में भैया का मोबाइल बजी और भैय्या बात करे फिर मेरे पास आकर बोले "पूजा मेरे एक फ्रेंड को accident हुआ है... में उसे देख कर आधे घंटे में आता हूँ... बी केयरफुल..." कहे और चलेगए।

भैयाके जाने के दस मनिट बाद मेरे मास्टर जी आये और मुझे कल कि परीक्षा के विषय में समझाने लगे। एक घंटा गुजर गया प्र भैया नहीं आये ..

"पूजा घर में कोई नहीं है क हाँ गए...?" मास्टर जी पूछे।

"जी सर.. सब सिनेमा देखने गए हैं... भैय्या थे पर वह भी एक घंटे में आता हूँ कहकर अपने एक दोस्त को मिलने गए है..." मैं बोली। कुछ देर पढ़ाई मे ध्यान दिए..लेकिन ध्यान पढ़ाई पर नहीं जा रहा था। शायद एहि हाल मस्टरजी का भी है। पांच छह मिनिट और होने के बाद मास्टरजि ने मेरे शरीर प्र हाथ फेरने लगे।

"मस्टर जी यह क्या कर रहे है आप...? भैया आजायेंगे..." मैं गभराकर बोली लेकिन मेरा भी मन कर रहा था की मौज करूं।

"सिनेमा तो नौ बजे छूटती है.. अभी तो 7.30 ही बजे है... जल्दी एक शो डालते है..." मेरे उरोजों को दबाते बोले...

"नहीं मास्टरजी.... भैया आसकते हैं...." मैं ढर रही थी की कहीं भैय्या न आजाये।

"कुछ नहीं होगा जल्दी निपटाते हैं..." कहते उन्होंने मुझे अपने बाहों मे लेकर किस करने लगे... जैसे ही उनके होंठ मेरे होंठों को टच करे.. मैं अपने आप को भूल गयी और मस्टरजी से लिपटकर उन्हें सहयोग देने लगी।

इन हरकतों से मेरे चूचियों में ठीस होने लगे और चुचुकों में कड़ापन आ गया। मसटरजी ने मेरे निप्पल को ट्विस्ट करे।

"ससससस...हहहहह... मास्टर जी..." मै सिसकते उनसे लिपटने लगी। बार बार नजरे घुमाकर दरवाजे कि ओर और घड़ी की ओर देखने लगी। मुझे ढर भी लग रहा है की कहीं मैं पकड़ा न जावूं।

"मस्टरजी.. आज रहने दो..फिर कभी देखते है... या नहीं तो कल दोपहर कहीं चलते है..." में बोली.. मास्टरजी मेरे जूनियर कॉलेज के ही लेक्चरर हैं।

"ठीक है... लेकिन जल्दी से ब्लो जॉब तो देसकती होना..." बोले। में एक बार फिर घडी देखि और मेरे घुटनों पर आयी। मास्टरजी के पैंट की ज़िप खोली और उनके छह इंच लम्बा और साधारण से मोटापा वाले उनके यार को बाहर खींची। मेरे मास्टरजी का कोई खास लम्बा या मोटा नहीं है... लेकिन वह कहते है न..'कुछ न होने से कुछ होना बेहतर है...'

में उसे दो तीनबार मुट्टी मे दबाकर ऊपर निचे करी और मुहं में भर ली।

में मस्ती के आलम में उसे चूस रही थी। मास्टरजी मेरे सिर के पीछे हाथ लगाकर मुझे अपने से दबा रहे थे। "पूजा मेरी गोलियों से खेलो..." उन्होंने कहे। मैं उनके बॉल्स को हथेली में लेकर दबाते चूस रही थी। हम दोनो तन्मयता में डूबे हे।

इतने में मुझे ऐसे अहसास हुआकि दरवाजे पर कोई है.. और सिर घुमाकर देखि तो मेरे प्राण ऊपर के ऊपर और निचे के नीचे रह गयी। दरवाजे पर मेरे चाचाजी ठहर कर हमें ही घूर रहे है.. चाचाजी, मेरे पिता के सगे भाई हैं... कोई 35 वर्ष के है और शादी शुदा है। उनके आंखे लाल दिख रहे थे। मैं गभराकर अपने मुहं पीछे को खींची। मास्टरजी तो चाचा को देखकर कांपने लगे। मैं भी उठकर सर झुका कर खड़ी रही। मास्टरजी तो पैंट ऊपर खींचे और खामोशी से बाहर निकल गए।

मास्टरजी बाहर जाते ही चाचाजी मुझे ऐसे देखे की मैं लज्जा से भरकर मेरे कमरे की ओर भागी।

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मेरा दिल धक् धक् कर रहा था। अब क्या होगा, मैं सोचने लगी। चाचा मुझ पर नाराज होंगे.. मैं उनके बुलाने कि इन्तजार कर रही थी। लेकिन उन्होंने मुझे नहीं बुलाये। में अपने कमरे से एक बार हॉल में झांकी तो पाया, चाचा TV के सामने कुछ सोचते बैठे है। कोई 8.30 भैय्या आये और वह भी चाचा के साथ बैठ गए। मैं अपने आप में नहीं थी। चाचा शायद मम्मी पापा का वेट कर रहे होंगे... मम्मी पापा को मेरी हरकत बोलेंगे... मम्मी पहले से ही मुझपे नाराज रहती है। उनका मानना है की पापा मुझे बिगाड़ रहे है। पापा मुझे सबसे ज्यादा इम्पोर्टेंस (importance) देते हैं। पापा के सामने मम्मी मुझे कुछ बोलने या डांटने कतराती है।

पापा भी मेरी इस हरकत से नाराज हो सकते हैं... यह सब सोचते मैं मम्मी पापा सिनेमा से अनेका वेट कर रहि थी। आखिर में वेह आये। मम्मी ने सब को खाना परोसा। चाचा से नजरे बचने में डाइनिंग पर नहीं गयी लेकिन माँ ने बुलाया तो आंखे झुकाये ख़ामोशी से डाइनिंग पर बैठी। पापा मम्मी मेरे एग्जाम कि तैयारी के बारे में पूछे। मैंने जो कहा उस से वेह संतुष्ट हो गए। उस रात गुजर गयी। कुछ नही हुआ। मैं चाचाजी से बच रही थी। इस घटना के दूसरे दिन या तीसरे दिन भी कुछ हंगामा नहीं हुआ... हर रोज सवेरे ढर के मारे मेरे दिल की धड़कन तेज होती थी। शाम तक कुछ नहीं होता तो शांत पड़ती थी।

एक हप्ता....दस दिन गुजर गए.. लेकिन कुछ नहीं हुआ... मैं चाचा की ओर देखती तो वह नार्मल लगते। मुझसे भी नॉर्मल बात करने लगे। मैं धीरे, धीरे आश्वस्त होगयी। उस घटना के चौथे दिनसे मास्टरजी फिर से आने लगे।

मौका देख कर मैंने उनसे पूछ लिया की चाचा ने कुछ नही कहे क्या.. मास्टरजी बोले की चाचाजी ने उनसे कहे है की 'जो हुआ उसे भूल जाये.. और सिर्फ पढाने मे ध्यान दे.. ऐसी हरकत फिरसे रिपीट नहो... चाचा ने एक बार मुझसे भी पढ़ाई में ध्यान देने को कहे.. बात खतम हो गयी। मास्टरजी से मैं फिर पढ़ने लगी। अब कुछ भी करने से हम दोनों कतराने लगे..

देखते ही देखते एक महीना गुजर चूका। अब तो मैं पूरी तरह से अश्वस्त थी।

एक दिन मेरे चाची की (चाचा की पत्नी) की छोटे भाई की शादी में आने का निमंत्रण मिला। कम से कम एक हप्ता पहले आने का निमंत्रण था। चाची का जाना जरूरी है क्यों कि उनके छोटे भाई की शादी है। हम सब लोग तैयार होने आगे... अभी से पैकिंग भी शुरू कर दिये। ठीक जर्नी के दो दिन पहले चाचा बोले वह अभी नहीं आ सकते, ऑफिस में इंस्पेक्शन है। चाचा हमें जाने को कहे और कहे की वह दो या तीन पहले तक आजायेंगे।

लेकीन परेशानी इस बात की थी की चाचा को बहार का खाना रास नहीं आता और उन्हें खाना बनाना आता नहीं है। घरवाले असमंजस में पड़े। चाची वह खुद रुकने को लिए तैयार हो गयी।

"नहीं.... तुम कैसे रुकोगी.. तुम्हारे भाई की शादी है... नहीं नहीं कुछ और सोचना होगा..." माँ बोली।

उस समय न जाने मुझे क्या सूझी की मैं बोली.... "आप लोग जाईये माँ चाचा का ख्याल मैं रखूंगी" मैं बोली... शायद मैं सोच रही थी की चाचा को मेरे व्यवहार से खुश रखना चाहती थी। (I want to be in good looks of Chacha ji) मेरी प्रस्ताव को सब लोग मान गए। दो दिन बाद जर्नी का दिन आगया। उस शाम मैं और चाचाजी घर वालों को गाड़ी में चढ़ाकर घर वापस लौटे।

जब हम घर वापिस लौटे तो समय 7.45 हो चुका था। फ्रेश होनेके बाद मैं चाचाजी से बोली "चाचा... आठ बजने वाली है; खाना अभी लेंगे या बादमे...?"

"लगा ही दो पूजा, एक काम हो जायेगा..."

मै खाना परोसी, हम दोनों मिलकर खाना खाये और फिर चाचा जी हॉल में TV देखते बैठे। मैं भी कुछ देर वहां बैठीं और फिर चाचा को कहकर मेरी कमरे चली आई, और किताबें लेकर स्टडी करने लगी। पढ़ाई खतम करके मैं टाइम देखि तो 9.30 हो चुके थे। चाचाजी को रात में दूध पिने की आदत है। में किचन मे जाकर दूध गर्म करी और चचाजी के पास लेगयी।

चचाजी पालंग पर पीछेको ठेका लेकर लेटे हुए थे, मुझे देख कर उठ बैठे और पूछे "पढ़ाई हो गयी..."

"हाँ चाचाजी...." कही और ग्लास उन्हें थमादी। ग्लास लेते हुए कहे "बैठो" तो मैं पलंग के किनारे बैठी।

"अरे इतना किनारे क्यों बैठि हो.. ठीक से बैठो..." मैं अपने को सुव्यस्थित कर बैठी। चाचाने एक घूँट दूध पिए और गिलास मेरे मुहं के पास रखे। मैं उन्हें देखि तो आँखों से इशारा करे 'पियो' में असमंजस में थी, लेकिन कुछ बोलि नहिं एक छोटा घूँट ली। फिर वह एक घूंठ वह लेते और एक घूँट मुझे पिलाने लगे। दूध ख़तम होते ही वह मेरे समीप आये और मेरे हाथ को अपने मे लेकर दबाते मेरी आँखों में देखने लगे।

उनके ऐसे देखने से मैं विचलित हुयी और मै खामोश बैठी हूँ। अकस्मात उन्होंने मुझे अपने बाँहों में भरकर मेरे मुहं को जिधर बोले उधर किस करने लगे।

"ऊफ्फ..चाचा.. यह क्या कर रहे हैं आप..छोड़ो मुझे..." मैं उनके पकड से छुड़ाने की कोशिश करते बोली।

"क्यों अच्छा नहीं लगा...?"

"यह क्या कर रहे है आप...?" मैं फिरसे पूछी।

"वही जो तुम्हारा मास्टर करता है...."

"लेकिन...?"

"क्या मैं तुम्हारे एस्टर से गया गुजरा हूँ कया...?"

"चाचा आप यह कया कर रहे है... मैं आपकी बतीझि हूँ..."

"तो....?"

"यह गलत है..."

"क्यों गलत है...?"

"आप मेरे चाचा है... और मैं आपकी बतीझी..."

"तो क्या हुआ...?"

"यह गलत है.. हम ऐसा नहीं कर सकते..."

जब तुम मास्टरजी से करती हो.. वह क्याहै.. व्ह गलत नहीं है क्या...?"

मुझे क्या बोलना सूझा नहीं। चाचा फिर बोले "देखो पूजा.. गलत, और सही अपने सोचपर निर्भर करता है.. अगर हम गलत समझे तो गलत है..सही समझे तो सहि है..."

"लेकिन चाचा...."

इस से पहले की मैं कुछ बोलूं उन्होंने मुझे फिरसे अपने आलिंगन मे लिए और मेरे होंठों पर अपने तपते होंठ जमा दिये और फिर लगे चूसने.. वह इतना जोरसे मेरे होंठों को चूसे कि मेरी जीभ उनके मुहं में चली गयी और चाचा उसे चुभलाने लगे।

जैसे ही चाचा ने मझे चूमने और चूसने शुरू करे... मेरी प्रतिघटना अपने आप में समाप्त हुयी और मैं उनके बाँहों में पिघलने लगी। मैं अपने आपको उनके बाहोंमे निढाल छोड़ दी। चाचा मेरी होंठों को चूमते, चूसते अपना एक हाथसे मेरे बूब को भी दबाने लगे। मेरे बूब को मींजते ही मेरी रही सही विरोध भी ख़त्म हुयी। मेरे में आग सुलगने लगी। लगभग दो मिनिट तक चाचा मुझे चूमते रहे और फिर अपने होंठ हठाये।

में जल्दी जल्दि साँस लेने लगी। चाचा फिर से मेरे मुहं को ताकने लगे। अब मैं विचलित तो नहीं थी लेकिन समझमे नहीं आरहा था की ऐसे क्या देख रहे है मुझ मे।

"पूजा तुम कितनि सुन्दर हो... " मेरी आँखों को चूमते बोले।

"मैं लजा गयी.. और बोली .. "जाओ चाचा..आप झूट बोल रहे है.. मैं उतनी सुन्दर नहीं हूँ..."

चाचा मेरे गाल पिंच करते हुए "पगलि कहिं की... इधर आवो मैं बताता हूँ तुम कितनि सुन्दर हो..." कहते मुझे आदमकद आईने के सामने लेगए, उसके सामने मुझे ठहराकर खुद पीछे ठहरकर मेरे कंधों पर अपने हाथ लगाये और बोले "देखो अपनी सुंदरता को..."

में अपनी छवि को आईने में देख रही थी।

"काली घटा जैसी तुम्हारे खुले बाल, यह तुम्हारा विशाल ललाट" चाचा मेरी सुंदरता का वर्णन करने लगे ... "दानुष जैसे भवे, (eye brows) विशाल नयन, चमकती पुतलियां, इतनी सीधी नाक", चाचा के हाथ जिसे वह वर्णन कर रहे है उस अंग पर फेर रहे है, "मक्कन से भी मुलायम गाल, छोटा मुहं, पतले गुलाबी होंठ, मोति जैसे दान्त, लम्बी गरदन और निचे यह रस भरे संतरे..." और चाचा ने मेरे दोनों बूब्स के ऊपर अपने हाथ रख कर हलका सा दबाव दिए।

"स्स्सस्स्स्स...ह्ह्ह्हआआ" मेरे मुहं से सिसकार निकली। मेरे सारे शरीरमें एक अजीब लहर दौड़ने लगी। मेरा शरीर पुलकित हो रही है... एक दो मिनिट उन्हें दबाने बाद.. अपना एक हाथ निचेकि ओर लेजाते कहे... "सफाट पेट.. और यह गहरी नाभि..." कहते मेरी नाभि में कमीज के ऊपर से ही कुरेदने लगे।

मदहोश होती मैं पीछे हटी और मेरा सिर को चाचा के छाती पर रखदी। जैसी हि मै पीछे चाचा से सटी, मेरे गद्देदार नितम्बों पर कुछ चुभने लगा। मुझे मालूम है मुझे क्या चुभ रही है, चाचा के मर्दानगी चुभने लगी। मेरे आँखों के सामने सात वर्ष पहले मेरे से देखि गयी चाचा का लंड घूम गई।

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सात वर्ष पहले; उस समय मैं ** वर्ष की थी। उस रात मैं चाची की कमरेमे ही सोयी थी। जबसे चाची आयी है वह मुझे चाहने लगी और मैं भी। इसीलिये में कभी कभी उनके कमरे में सोति थी। चाची ने भी मुझे कभी मना नहीं किया। उस रात भी वैसे ही उनके पलंग पर सोगई। उनका पलंग किंग साइज का है। मैं एक ओर सोई थी। कोई दस बजे रात को चाचा कमरे में आये और चाची से प्रेम करने लगे।

"अरे यह क्या कर रहे हो..." जब चाचा ने ऊनकी साड़ी ऊपर उठा रहे तो बोली "पूजा यही सो रही है..."

"ओह डार्लिंग.. वह तो बच्ची है... और वह सो रही है..." चाचा अपना काम करते बोले।

"बच्ची है.. अरे उसकी छाती देख रहे हो.. अमरुद जैसे हो गये है.. एक दो महिने मे उसकी माहवारी भी शुरू हो जायेगी..."

"तो क्या हुआ डियर..."

"नहीं.. कहीं वह उठ गयी तो..."

"तो उठने दोना.. देखती है तो देखने दो..वह भी अपने पति को कैसा खुश करना सीख जाएगी यह देखो मेंरी हालत.." कहे और अपना लुंगी खींच डाले। मैं मेरी आँखों को थोडासा खोलकर देखि। तब मैंने पहली बर चाचा का देखि थी। चाचा का पूरा अकड़कर सर हिल रहीथी।

"वूं...हूँ...तुम मानोगे नहीं... जो करना है जल्दी करो आवाज न निकले...." चाचि कही और अपना साड़ी कमर तक खींच कर लेट गयी और अपने टाँगें खोल दी। चाची का मेरे मुनिया से कुछ ही बड़ी थी। चाचा उनके जांघों में आये और अपना चाची के उस में घुसेड़ने लगे।

'हाय राम इतना बड़ा और लम्बा उस में कैसे जाएगी...' मैं सोच ही रही थी की चाचा अपना पूरा घुसेड़कर ऊपर निचे होने लगे।

चाची "आआह.. ओहह..अम्मा.. और अंदर..." चिल्लाते करवा रही थी।

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उस दिन देखि थी मैं चाचा का..

और आज अब वह मेरि नितम्बोँमें चुभ रही है। चाचा का हाथ और निचे को फिसलते मेरे जंघोंके बीच गयी और बोले.. "पूजा ये रही तुमरी स्वर्ग द्वार..." कहे और मेरी बुर को सलवार के ऊपर से ही जकड़े।

"आआह.. चाचा" मैं कही ओर लज्जा से लाल होती.. झट पीछे पलटकर उनके सीने में मेरी मुहं छुपली। चाचा के हाथ मेरे कमीज के नीचे गए और सलवार के ऊपर से ही मेरी नितम्बों को सहलाने लगे। मुझमे मदहोशी छाने लगी। मेरे नितम्बोँ पर उनके हाथों का आननद लेते मैं बुलाई।

"चाचा..."

"क्या है पूजा...?"

"यह गलत नहीं है क्या...?"

"पूजा.. तुम अब बड़ी हो गयी हो.. और मै तुम्हे समझाया है की सही, गलत अपने अपने सोच पर निर्भर करति है... तुम अगर अभी भी सोचती हो की यह गलत है तो तुम आजद हो.. तुम अपने कमरे में चले जाओ और यह बात भूल जाओ..." कहते मेरे शरीर पर से अपना हाथ खींच लिए।

जैसी ही उनहोने मुझे छोड़दिये मैं उनके छाती से लिपटगई.. और कहि... "वूं ... हूँ.. मैं नहीं जवूंगी... मुझे चाहीये। कहती उनकी आँखों में देख रही थी।

"क्या चहिये...?"

"चचा.. आपका लिंग...."

"अच्छा.. उसका दूसरा नाम बोलो..."

"आपका लंड ... आपका लंड चाहये मुझे..." मैं निर्लज्जता से बोली।

"कहाँ चाहिए..."

"In my vagina ..... मेरी बुरमे..." कही और जोरसे उनसे लिपट गयी।

"कहीं तुम्हेँ अपराध भावना तो नहीं होगी...?"

"नहीं.. सॉरी..." मैं बोली।

...मेरे ऐसे बोलते ही चाचा मेरे होंठों को चूमते अपना जीभ मेरे मुहं में देने लगे। मैं चाहत से चाचा के जीभ को मेरे मुहंमें लि और सक करने लगी। उनके हाथ फिरसे मेरे कमीज के नीचे गए और मेरे कूल्हों से खिलवाड़ करने लगे। कुछ देर बाद उनका एक हाथ समने आयी और मेरे सलवार के नाड़े को खींच डाली। मैं अंदर पैंटी नहीं डाली थी। अब चाचा के हाथ मेरे नंगे कूल्हों पर फेरते कभी कभी वहां के दरार में भी ऊँगली करने लगे।

मैं उनसे और जोरसे चिपक कर मेरी चूचियां उनके छाति पर दबा रही थी। अपने हरकत कंटिन्यू करते उन्होंने मुझे पलंग तक ले आये और मुझे मेरे पीट के बल लिटाये। मैं उन्ही को देख रही थी। मेरे सलवार तो निकल चुकी है.. अब वह मेरे कमीज को मेरे सर के ऊपर से खींचने लगे। में अपनी बाहें ऊपर उठाकर उन्हें कंमीज निकलने में सहयोग दी। एक ही मिनिट मे मैं चाचा के सामने पूर्ण नग्नावस्था में हूँ।

"waaaaaaaaa ... vvvvvvv पूजा तुम्हरा कितना कोमल है..." मेरी बुर को देखते कहे मेरे उभार पर अपना हाथ फेरने लगे।

"ममममममम... चाचा...प्लीज ऐसे मत देखो..." शर्मसे मैं अपने हाथों से अपनी बर को छुपाली है...

"पूजा इसे मत छुपाओ... यही तो स्वर्ग है..."कहे और मेरे जंघों मे झुककर उसे चूमने लगे। एक दो बार मेरी बुर के फांकों को चाटकर फिर उसे चौड़ा कर अपना जीभ उसमे डालकर खुरेदने लगे।

मेरी आनंद की कोई सीमा नहीं थी। मैं एक हाथ उनके सिर के पीछे रख कर मेरी ओर दबा रही थी। मेरी बुर से पुव्वारे छूटने लगी।

"चाचा.. आप बड़े वह हैं.. इतनी न इंसाफ़ी..." मैंने शिकायत भरे स्वर में बोली।

"मैं क्या किया...?"

"और क्या करना.. आप तो मुझे नग्न कर दिये और देखो आप अभी तक अपने कपड़ों मे है... यह न इंसाफ़ी नहीं है तो क्या है..?"

"ओह सॉरी पूजा.. कहे और एक ही झटके मे अपनी लुंगी और बनियन उतार दिए। अब चाचा भी मेरी तरह नग्न थे। उनका मोटा लम्बा लंड अपना सर हिला रही थी। वह बहुत ही प्यारा लग रहि है।

"हाय..... चाचा.. आपका कीतना प्यारा है.... चूमने को दिल कर रही है..." मैं उस लिंग को ललचाये नजरों से देखति.. बोली।

आरी डार्लिंग अगर चूमना ही चाहो तो चूमलो। मना कौन कर रहा है ..." कहे और मेरे दोनों तरफ पैर रख कर मेरे वक्ष पर अपने नितम्ब टिकाते अपना मुस्सल मेरे मुहं में दिए। में बड़ी चाहत से उसे मेरे मुहंमे ली और लोलीपाप की तरह चूसने लगी। इस बीच चाचा ने मेरी मस्तियों से खेलने लगे।

वह मेरे मस्तियों को दबाते पिंच करते रहे तो में उनके सुपडे की गिर्द अपना जीभ चलाती और उनके नन्हे से छेद जीभ से खुरेदने लगी।

"आअह्ह पूजा.. पूजा.... ओफ्फो इतना गर्म है तुम्हारा मुहं..चूसो.. चूसो.. ऐसे ही... शाबाश.. मेरि रानी.." कहने लगे। अब मैं उनकी रानी और डार्लिंग भी बन गयीं। में जोश में आकर उनके लवड़ा चूस रही थी तो चाचा मेरे बदन पर हाथ फेर रहे थे। कोई पांच मिनिट चूसने के बाद चाचा बोले..."पूजा.. मैं खलास हो रहा हूँ.."

कहे और ढेर सारा अपने मलाई मेरा महँ भर दिए।

चाचा का मलाईका स्वाद अच्छा था। में उसे चटकारे लेते चाट गयी।

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"आअह्ह ...मममआ ...चाचा..धीरे.. आअह मेरी फट रही है..." मैं दर्द से कराहती बोली। आधा घंटा पहले चाचा का मलाई निंगलने के बाद हम दोनों बिस्तर पर अगल बगल सुस्त पड़े रहे। दोनों नंगे ही थे। फिर हम दोनों एक दूसरे से मस्ती करने लगे। चाचा मेरे होंठों को चूमते.. मेरे निप्पल्स को पिंच करते.. कभी कभी मेरि बूर में ऊँगली करते या फिर मेरी नाभी में..

मैं भी खामोश नहिं थी,... उनके हरकतो का मैं सहयोग करते.. उनके लंड को ऐंठ रही थी... उनके वृषणों से खेल रही थी तो कभी कभी उनके सुपाडे को नाखून से खुरच रही थी। कोई आधा घंटा ऐसे बीती होगी। चाचा का मेरी मुट्ठी में तैयार हो गया। मेरे अंदर भी खुजली होने लगी।

"पूजा... शुरू करें...?" चाचा पोछे।

मैंने हौलेसे सिर हिलायी। फिर चाचा मुझे पीट के बल लिटाये.. मेरी एक टांग को अपने कंधे पर रखे और डिक हेड मेरी फैंको पर रगड़ने लगे। उनके इस हरकत से मेरी चुदास और बढ़ गयी। चाचा मेरी जांघ को पकडकर अपना कमर का दबाव दिए। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी फट रही है.. मैं दांतों तले अपने होंठों को काटते कमर उछाली। चाचा ने भी अपनी कमर नीचे की ओर दबाये। फच के आवाज के साथ उनका सुपाड़ा मेरी कोमल फांकों को चीरते अंदर समां गयी।

"आअह्ह ...मममआ ...चाचा..धीरे.. आअह मेरी फट रही है..." मैं दर्द से कराहती बोली।

"शशशशश.... चुप ऐसे क्यों चिल्लाही है जैसे पहली बार चुद रही हो..." चाचा बोले; अपनी कामर कुछ पीछे खींच कर फिर से एक शॉट दिए ...

mmmmmaaaaa.... मैं मरी रे.. हाय कितने जालिम हो चचा आप..." मैं कराहते बोली। चाचा का आधे से ज्यादा मेरे अंदर चली गयी।

मैं कराह रही थी की उनका एक और शॉट मेरे अंदर पड़ी और अबकी बार उनका पूरा मेरे अंदर घुस गयी.. "ammmaaa मैं दर्द से फिर से चिल्लाई।

"पूजा ऐसे क्यों चिल्लाराही हो..." कहे और मेरे निप्पल को मुहं में लिए।

"सच चाचा... आपका बहुत मोटा है... मेरे मस्टर का तो इतना मोटा नहीं है... मैं कही। चाचा अब मेरे ऊपर पड़े रहे और मेरी आंखों को चूमते वहां से निकले आँसूवों को चाट गए। एक होंठ से मेरी चूची दाबा रहे थे। कोई पांच मिनिट बाद मेरी दर्द कुछ कम हुई। बुर के अंदर कुछ सर सराहाट सा होने लगी। में समझ गयी की मेरी बुर रिस रही है...

मैं अपनी कमर उछाली...

चाचा मेरी इस इशारे को समझ गये और अपना डंडा आधा बहार खींच कर फिर से अंदर घुसेड़े.. "ससससस...हहहह मैं फिर से कराही।

लेकिन चाचा अबकि बार रुके नहीं... वह मेरे अंदर शॉट पर शॉट देते गए। अब तक मेरी चूत में ढेर सारा पानी बहने लगी और चूत चिकना होता गया। अब चाचा का आराम से अंदर बहार होने लगी। जैसे जैसे व अपने डंडा बहार खींचे मैं अपनी कमर ऊपर उछाल कर उसे अंदर लेने की कोशिश करने लगी।

पूजा अब दर्द तो नहीं हो रहा है...?" उन्होंने मेरी चूची को मींजते पूछे।

"नहीं चाचा.... अब उतना दर्द नहीं है....?" मैं अपनी कमर उछालते बोली।

"तो... फिर चचा के लिए..अपनी गांड उठा..." बोले।

"छी.... चाचा..आप गंदे है..सब गन्दी बातें कर रहे है..."

"आरी पगली जब गन्दी खेल खेलते हैं तो गन्दी बातें ही करना; तभी तो इस खेल का मजा है ...बोलो अब मै क्या कर रहा हूँ..."

"मुझे क्या मालूम? आप क्या कर रहें हैं.. आप क्या कर रहे हैं; आपको मालूम नहि है क्या...?"

"मुझे तो मालूम है... लेकिन मैं तुम्हारी मुहं से सुनना चाहता हूँ..बोलो..गन्दी बातें करोगी...?"

मइँ लजाती बोली "नहीं चाचा.. मुझे शर्म अति है..."

"आरी छोडो शर्म.. वर्म... खेल का मजा लो... बोलो मैं क्या कर रहा हूँ..."

"आ... आप.. मु.. मुझ...मुझे ले रहे है..." में लाजति, अटकती, अटकती बोली।

"पूजा ऐसी नहीं... खुलकर गन्दी बातें बोलो.. चलो..अब बोलो..."

"आ... आप... मुझे.. चो .. चोद रहे हैं..." कही और मेरे मुहं को दूसरी ओर घुमादी।

"यह हुई न बात... चलो में किस से तुम्हे ले रहा हूँ.. अब तो सीधा गंदे शब्द यूज़ करो..." वह मेरे गाल को पिंच करते बोए।

"आ... आप के लंड से चोद रहे है..." मैं बोली.. अब मुझे भी मजा ने लगा.. ऐसे बातों में।

"किसे चोद रहा हूँ..?"

"मेरी बुर को..."

"मेरी बोले तो.. किसकी...?" फिर एक सवाल।

"मेरी; यानि की पूजा की.. जो आपकी भतीजी है....उसे अपने लवडे से चोद रहे है..." मैं भी जोशमे आकर बोली।

फिर चाचा मुझे गपा गप चोदने लगे। उनके अण्ड 'थप...थप....' के मधुर संगीत के साथ मेरी कुल्हों को ठोकर देने लगे। में अपने दोनों पैर चाचाके कमरके गिर्द लपेटी और एड़ियोंसे उन्हें नीचेको दबाती 'आअह्ह्ह..ऊऊह्ह्ह्ह...मममम...चाचा... चोदो मुझे...." करती सिसकने लगी। चाचा का एक हाथ मेरी वक्ष को दबा रहे है तो दूसरा हाथ में गांड की दरार में फेर रहे थे।

उनके इस चुदाई से मुझे अनोखी आनंद मिल रही थी। वैसे आपको मालूम ही है की में एक चुड़क्कड़ लड़की बन चुकी हूँ... दिन रात मेरि दिमाग में लंड ही घूमते रहते थे।

"मममम... पूजा..क्या मस्त चूत है तुम्हारी .. तुम्हरी तो तुम्हारी चाची से भी मस्त है..." कहते मेरे होंठों को चूस ते रहे। उनका कमर एक लयबद्द तरीके से ऊपर नीचे हो रही है.. और उनका लिंग मेरी बुर के अंदर बाहर हो रही है.. अब मेरी बुर खूब पानी छोड़ रहीथी और पूरा चूत चिकना हो चुकु है। चाचा का अब मुझमे बहुत आसानी से आ जा रहीहै...

"आआह्ह्ह्ह... चाचा चसाहसा... फ़क मि.. फ़क मि .ओह.... और अंदर तक पेलो चाचा... फाड़ दो मेरी चूत को... आअह्ह्ह्हह..." कहती कमर उछाल उछाल कर चुद रही थी।

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