दोहरी ज़िंदगी

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बैल का लंड भी फौलाद की तरह सख्त हो कर फड़क रहा था लेकिन वो बैल बड़े आराम से चुपचाप खड़ा हुआ मेरे होंठों और हाथों के सहलाने का मज़ा ले रहा था। उसका करीब दो फुट लंबा तना हुआ लंड तन कर खड़ा होके उसकी अगली टाँगों के करीब पहुँच रहा था। मैंने वो स्टूल बैल के नीचे उसकी अगली टाँगों के करीब खिसकाया और उस स्टूल पे इस तरह बैठ गयी की मेरे कंधे पीछे बाड़े की लकड़ी की रेलिंग पे टिके थे। बैल का लंड अपनी चूत में घुसेड़ने की सलाहियत की खातिर मुझे अपने पीछे रेलिंग के सहारे की जरूरत थी। स्टूल की उँचाई भी बिल्कुल मुनासिब थी। रेलिंग के सहारे कंधे टिका कर कमर मोड़ते हुए जब मैंने अपनी चूत ऊपर उठाई तो बैल का लंड बिल्कुल मेरी रानों के दर्मियान चूत के ठीक ऊपर सट गया। अपनी टाँगें चौड़ी फैलाते हुए अपने दोनों हाथ नीचे लेजाकर बैल का लौड़ा अपनी बेकरार चूत में घुसेड़ने लगी।

हालाँकि मुझे आहिस्ता-आहिस्ता बैल का मोटा लंड अपनी चूत में घुसेड़ना पड़ रहा था लेकिन इसमें भी मुझे बेहद मज़ा आ रहा था। अपने चूतड़ों को एक-एक करके आहिस्ता से आगे ठेलते हुए मैं उसका लंड रफ़्ता-रफ़्ता अपनी चूत के अंडर दाखिल करने लगी। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि अजगर किसी बकरे को निगल रहा हो। बैल का करीब आधा लंड अंदर लेने के बाद मुझे अपनी चूत ठसाठस भरी हुई महसूस होने लगी लेकिन घोड़ों और गधे के साथ हसीन तजुर्बों से मुझे मालूम था कि इससे और ज्यादा लंड अंदर लेने की गुंजाईश बाकी थी अभी। मैं सिसकते और कसमसाते हुए अपने चूतड़ आहिस्ता-आहिस्ता आगे ठेलती रही। गनिमत थी कि वो बैल बगैर हिलेडुले खड़ा रहा। "ओं... ऊँहह... आँह... औंहह..." उसके मोटे लंड पे अपनी चूत की दीवारों के फैलने और चिकने सख्त लंड पे अपने बाज़र के रगड़ने की कैफ़ियत में मेरे मुँह से मस्ती भरी सिसकारियाँ निकल रही थी।

अब मुझे बिल्कुल भी गिला बाकी नहीं था कि जमील मियाँ ने गेट को ताला लगा दिया था। कुत्तों से तो मैं बाकायदा चुदवाती ही रहती थी और आज अगर गेट पे ताला नहीं लगा होता तो मैं इस बैल के लंड से चुदवाने के बेमिसाल और लज़्ज़त-अमेज़ तजुर्बे से महरूम रह जाती। अल्ळाह के फ़ज़ल से इस वक़्त बैल का भारी जसीम लवड़ा मेरी चूत के अंदर धड़क रहा था और मेरी चूत के लब बैल के मोटे लवड़े पे जकड़ कर चिपके हुए थे। उसका लंड मुझे अपने जिस्म के अंदर लोहे के तपते हुए रॉड की तरह महसूस हो रहा था। मेरी चूत की दीवारें उसके लौड़े पर ऐंठ-ऐंठ कर जकड़ते हुए उसे चूसने और निचोड़ने लगी। मैं मस्ती में कराहती हुई अपने चूतड़ आगे ढकेल कर और ज्यादा लंड अपनी चूत में घुसेड़ने लगी। घोड़ों या गधे के लौड़े भी करीब आधे ही मैं अपनी चूत में ले पाती थी और इस वक़्त भी अपने चूतड़ हिला-हिला कर अपनी गाँड आगे ठेलते हुए मैं इसी कोशिश में बैल का लौड़ा एक-एक इंच करके अपनी चूत की गहराइयों में घुसेड़ रही थी। जल्दी ही जितना मुमकिन हो सकता था मैंने उसका ज्यादा से ज्याद लंड अपनी चूत में आखिर तक ठूँस लिया।

मैं अपनी गाँड हिलाते डुलाते हुए किसी पेंच पर नट की तरह अपनी चूत उस बैल के लंड पे जोर-जोर से घुमाने लगी और आहिस्ता-आहिस्ता मेरी चूत उसके जसीम लंड की मोटाई के बिल्कुल मुवाफिक़ हो गयी। मैंने अपनी चूत उसके लौड़े पे आगे-पीछे चोदने की कोशिश की तो चूत अभी भी काफ़ी कसी हुई थी। मैं कसमसाते हुए बैल के लौड़े से ठंसाठस भरी हुई अपनी चूत थोड़ी और देर गोल-गोल घुमा-घुमा कर फैलाते हुए अपने पानी से चिकना करने लगी। इसके बाद मैंने फिर चोदने की कोशिश की तो मेरी चूत बैल के लंड पे आगे-पीछे फिसलने लगी। जब मैं उसके लंड पे अपनी चूत पीछे खींचती तो चूत के लब घिसटते हुए बाहर के जानिब पलट जाते और जब मैं अपनी चूत उसके लंड पे आगे पेलती तो चूत के लब वापस अंदर मुड़ जाते। मैं मस्ती में सिसकती कराहती हुई अपनी चूत बैल के लंड पे आगे-पीछे चोद रही थी और बैल भी खड़ा-खड़ा अपना लौड़ा आहिस्ता से आगे-पीछे झुला रहा था। मेरी चूत बैल के लौड़े पे ऐसे पिघली जा रही थी जैसे कि जलती शमा के धागे के इर्द-गिर्द मोम पिघलता है और मेरे बाज़र (क्लिट) में भी मुसलसल धमाके हो रहे थे। मेरे होंठों से मस्ती में जोर-जोर से कराहें और चींखें निकलने लगी और बैल भी घुरघुराते हुए अपने एक पैर से ज़मीन पे खुरचने लगा और उसकी गर्दन आगे-पीछे झूलने लगी।

अपने पीछे बाड़े की रेलिंग के सहारे टिके हुए मैंने कच्चे फर्श में अपनी सैंडलों की ऊँची ऐड़ियाँ गड़ा कर जुनूनी ताल में अपनी गाँड हिला-हिला कर चोदने की रफ़्तार तेज़ कर दी और बैल के लंड की जुम्बिश भी मुझे तेज़ होती हुई महसूस हुई। चुदाई की रफ़्तार अब पूरे परवान पे थी और मैं लुत्फ़-अंदोज़ी और मस्ती के आलम में बदमस्त होकर जोर-जोर से सिसकने और अनाप-शनाप गालियाँ और फ़ाहिश अल्फ़ाज़ बड़बड़ाने लगी। अचानक मेरा जिस्म अकड़ कर थरथराने लगा और मेरी चूत पानी छोड़ने लगी। अभी मेरी चूत का झड़ना खतम हुआ ही था कि कुछ ही पलों में एक दफ़ा फिर मेरी चूत में धमाका हुआ और मैं चींखते हुए दोबारा झड़ने लगी। अपनी चूत की गहराइयों में बिल्कुल आखिर तक बैल के धड़कते-फड़कते लंड से चुदते हुए फिर तो मेरी चूत में मस्ती भरे धमाकों की बौछाड़ों का ऐसा सिलसिला शुरू हो गया कि मैं मशीनगन की गोलियों की तरह मुसलसल बार-बार झड़ने लगी। मैं झड़ते हुए मस्ती में मुसलसल बेहद जोर-जोर से सिसक रही थी... कराह रही थी... चींख रही थी और बैल के लंड को बार-बार अपनी चूत के पानी से नहलाये जा रही थी। अपने ही पानी से भीग-भीग कर मेरी चूत खुद भी और ज्यादा चिकनी हुई जा रही थी जिससे उस बैल का लौड़ा ज्यादा आसानी से मेरी चूत में तेज रफ़्तार से अंदर बाहर होने लगा।

तभी मुझे उस बैल के जोर से डकारने की आवाज़ आयी और उसकी गरम-गरम मनी की तेज़ धार अपनी चूत में छूटती हुई महसूस हुई। बैल की मलाई दार मनी अपनी चूत में लबालब भरने के मस्ती भरे एहसस से मेरी खुद की चूत के सिलसिलावार ऑर्गैज़्म और ज्यादा ज़बरदस्त होकर नयी बुलंदियों को छूने लगे। वो बैल तो जैसे बाल्टी भर-भर के अपनी गाढ़ी मनी मेरी चूत में बहा रहा था और मेरी चूत का गरम पानी भी तेज़ी से इखराज़ हो-हो कर बैल की मनी में घुल रहा था। अपनी तमाम मनी मेरी चूत में भरने के बाद बैल के टट्टे आखिरकार थोड़ी देर में खाली हुए तो उसका जसीम लौड़ा ऊपर-नीचे हिचकोले खाने लगा और अपनी चूत में उसके ताकतवर लंड के फ़ंसे होने से मेरी गाँड भी स्टूल से ऊपर उठ जाती और मेरा जिस्म उसके साथ-साथ ऊपर-नीचे हिचकोले खाने लगा। बेहद लंबे और ज़बरदस्त क़यामत खेज़ ऑर्गैज़्म की आखिरी चिंगारियों की लज़्ज़त और मस्ती की कैफ़ियत में मैं उसके लौड़े पे अपनी चूत कसमसाने लगी।

बैल का लवड़ा ढीला पड़ने लगा तो मैं कसमसाते हुए उसे अपनी चूत में से आहिस्ता-आहिस्ता थोड़ा-थोड़ा करके बाहर निकालने लगी। इसी दौरान चूत के किनारों से बैल की मनी के साथ मेरी चूत का पानी फूट-फूट कर बाहर बहने लगा और मेरी टाँगों को भिगोता हुआ बिखरे हुए दूध की तरह नीचे ज़मीन पे फैलने लगा। मेरी रानों और टाँगों के साथ-साथ मेरे सैंडल और पैर भी पूरी तरह मनी से सन गये थे। उसका लंड मेरी चूत में से बाहर निकल कर भी ऊपर-नीचे हिचकोले खा रहा था। मनी और चूत के पानी से सने हुए उसके लंड की नोक से बूँदें टपक रही थीं और कुछ गाढ़ी बूँदें मेरे पेट पर भी बिखर गयीं। मैं स्टूल से फिसल कर बैल के नीचे ज़मीन पे फैली मनी में ही बैठ गयी। उसका लौड़ा मेरे चेहरे के सामने हिचकोले खाता हुआ बेहद लज़ीज़ नज़र आ रहा था। मुझसे रहा नहीं गया और मैं लपक कर आगे झुकते हुए लंड को अपनी ज़ुबान से चाटने लगी जो कि मनी और चूत के पानी से सना हुआ था। उसके लंड की नोक से ले कर पीछे तक तमाम लौड़े पे अपनी ज़ुबान फ़िरा-फ़िरा कर चाटते हुए मैं बैल की मनी और अपनी चूत के पानी के मिलेजुले लज़ीज़ ज़ायके का तब तक मज़ा लेती रही जब तक उसका लंड छोटा होके ढीला पड़ कर नीचे नहीं लटकने लगा। उसकी मनी का मीठा सा मलाई जैसा ज़ायका इस कदर लज़्ज़तदार था कि पहले तो मैं अपनी चूत और रानों को अपनी हाथ से पोंछ कर चाटा और फिर कच्चे फर्श पे फैली मनी भी अपने चुल्लू में इक्कट्ठा करके खूब मज़े से चाट गयी।

बैल के साथ लज़्ज़त- अमेज़ मुनफ़रीद चुदाई से मेरी चुदैल चूत झड़-झड़ कर निहाल हो गयी थी। मैं मुतमईन होकर उठी और बाड़े की रेलिंग पे पड़ा हुआ अपना रोब उठा कर नंगी ही छप्पर से बाहर निकल आयी। चलते हुए मेरी चूत में से बैल की मनी मुझे अपनी रानों पे रिसती हुई महसूस हो रही थी। मेरी रानों और टाँगों से लेकर मेरे सैंडल वाले पैरों तक मेरा जिस्म वैसे भी बैल की मनी से सना हुआ चिपचिपा रहा था। छप्पर से बाहर निकल कर मैंने रोब की जेब में से सिगरेट निकाल कर सुलगायी और ऊँची पेंसिल हील की सैंडल में बिल्कुल मादरजात नंगी मैं झुमती हुई अपने कमरे की तरफ़ चल पड़ी। अगले दिन मैं सुबह नौ बजे तक सोती रही। ग्यारह बजे से तीन बजे तक सी-बी-एस-ई के ऑफिस फिर मेरी मीटिंग थी और उसके बाद रात तक मुझे वापस अपने घर पहुँचना था। लेकिन मैंने एक और रात यहाँ रुककर अगले दिन सुबह अपने घर वापस जाने का फैसला किया। ज़ाहिर है उस रात भी मैंने बैल के साथ चुदाई के खूब मज़े लिये। बैल से अपनी चुदाई के हसीन मज़ेदार तजुर्बे को मैंने उन चारों लड़कों को भी ज़ाहिर नहीं किया और उस वाक़िये के बाद मुझे दोबारा कभी किसी बैल से चुदवाने का मौका भी नहीं मिला।

करीब दो सालों से इस तरह मैं दोहरी ज़िंदगी में बखूबी तालमेल बनाये हुए खूब मज़े से जी रही हूँ। दुनिया की नज़रों में मैं बेहद शाइस्ता और मोहज़्ज़ब... परहेज़गार और पाकीज़ा औरत हूँ। लोग मुझे एक बेहद स्ट्रिक्ट और पुर-ख़ुलूस इज़्ज़तदार टीचर की हैसियत से पहचानते हैं। अक्सर लोग इस बात की सरहाना करते हैं कि मैं पढ़ाई में कमज़ोर स्टूडेंट्स को रोज़ाना शाम को भी वक़्त निकाल कर अपने घर पे मुफ़्त में पढ़ाती हूँ। स्कूल में पढ़ाने के अलावा दूसरी इंतेज़ामी जिम्मेदारियाँ भी बखूबी निभाती हूँ। हालांकि मेरी एय्याशियों की वजह से मेरी एम-ए की पढ़ाई तो बिल्कुल नज़र-अंदाज़ हो चुकी है लेकिन फिर भी जल्दी ही सरकारी तौर पे भी वाइस प्रिंसीपल मुकर्रर होने की उम्मीद है। अपना रुत्बा इसी तरह क़ायम रखने के लिहाज़ से ऊपरी तौर पे मेरे लिबास वगैरह में भी पहले के मुकाबले ज़रा भी तब्दीली नहीं आयी है। आज भी पहले की तरह ही फैशनेबल लेकिन मुनासिब और शाइस्ता कपड़े ही पहनती हूँ। कपड़ों के मामले में अगर एक तब्दीली हुई है तो वो ये कि सहुलियत के लिहाज़ से पैंटी पहनना ज़रूर छोड़ दिया है।

नेकी और शराफ़त के इस सतही नक़ाब के पीछे मेरी दूसरी असल ज़िंदगी बिल्कुल मुख्तलीफ़ है। सिर्फ़ गिने-चुने लोग खासतौर पे मेरे कुछ स्टूडेंट्स ही मेरी चुदई-परस्त, निंफोमानियक पर्वर्टिड शख्सियत से रुबरू हैं। मुझे ज़रा भी पछतावा या शर्मिंदगी नहीं है कि मैं एक शराब-सिगरेट पीने वाली निहायत सैक्साहोलिक और लंडखोर औरत हूँ जिस पर हर वक़्त शहूत सवार रहती है। दीन-दुनिया की बन्दिशों से आज़ाद मैं खुल कर अपने चुदास जिस्म की तमाम पर्वर्टेड हसरतें बे-ज़ब्त पूरी करती हूँ। मैं इमानदारी से कुबूल करती हूँ कि चुदाई मेरे लिये एक बुनियादी ज़रूरत है जिसकी तकमील के लिये मैं दिन भर कईं-कईं दफ़ा मुख्तलीफ़ नौजवान लड़कों और जानवरों से चुदवाने और कभी-कभार लेस्बियन चुदाई का लुत्फ़ उठाने में ज़रा भी गुरेज़ नहीं करती। अब तो मैंने अल्सेशियन कुत्ते का एक बच्चा भी पाल लिया है जो अभी सिर्फ़ तीन महीने का है लेकिन डेढ़-दो साल में मुझे चोदने के काबिल हो जायेगा। वर्जिन लड़कों को अपनी हवस का शिकार बनाने का भी कोई मुनासिब मौका नहीं छोड़ती हूँ और इसके बंदोबस्त के लिये स्कूल सबसे अच्छी और मुनासिब जगह है।

मैं तो अपनी जिस्मनी ख्वाहिशों को बिल्कुल दबा कर बेज़ार सी ज़िंदगी जी रही थी लेकिन मेरे जिस्म में दबी शहूत की चिंगारी को भड़का कर मुझे चुदक्कड़ निंफोमानियक औरत बनाने का सेहरा यकीनन मेरे उन चारों स्टूडेंट्स को जाता है जिसके लिये मैं हमेशा उनकी एहसानमंद रहुँगी।

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8 Comments
ZareenKazmiZareenKazmi9 months ago

Hello Tabassum,

السلام علیکم

I just had to let you know how your tantalizing words managed to transport me straight into the story. I mean, reading it felt like I was living every steamy moment as if it were me in your shoes, or should I say your high heels. Reading your story was a deeply moving and intimate journey that left me in awe of your authenticity and honesty. Hats off to you! Your raw honesty and willingness lay it all bare for the readers. It felt like we were taking a journey through your sexual experiences together, and let me tell you, it was one wild hot steamy ride! You bared your sole and unapologetically embraced every aspect of your physical desires. Reading it was like having a heart-to-heart with a close friend, no hold barred. As a Muslim woman like me, your bravery in sharing your real-life experiences of sexual exploration and experimentation is truly commendable and awe -inspiring.

Your words not only stirred my senses but also touched my heart as I witnessed your growth, vulnerability and self-discovery. Your story is a testament to the strength, beauty of embracing one's true-self and resilience of Muslim women everywhere. You are breaking the chains of inhibitions and showing the world and especially the Muslim women like me, what it means to embrace every bit of yourself.

Keep pushing those boundaries, unleashing your desires, and living life on your terms, unapologetically and without a care in the world. Remember, the journey you are on is an exhilarating one and there's a legion of eager Muslim women readers like me cheering you on! Keep shining your light and illuminating the path for others to follow, and know that your unapologetic spirit is lighting up the world one page at a time.

AnonymousAnonymous10 months ago

السلام علیکم تبسم، یہ بہت دلچسپ کہانی ہے۔ میں بھی اپنے تجربے سے آپ کی طرح یہ بات مانتی ہوں کہ کنوارے جوان لڑکوں کے ساتھ کرنے میں الگ ہی لطف آتا ہے! میں نے بھی اپنے دو کمسن بھانجوں کے ساتھ بہت مزے کیے ہیں! اب یہ کہانی پڑھ کر تو جانوروں کے ساتھ کرنے کا بھی میرا دل کرنے لگا ہے! کیا واقعی میں یہ ممکن ہے؟ ایک دفعہ کوشش کرکے یہ تجربہ کرنا تو لازمی ہے! 😉

AnonymousAnonymousover 1 year ago

‎السلام علیکم Tabassum ji

Nihayat hi hot story hai aapki… itna maza aaya padh kar ki bata nahi sakti… aap ne apne tajurbo aur jazbaato ko bohat hi tafseel se bayan kiya hai…. Jis tarah society ke restrictions aur apne inhibitions ko overcome karke aap apni zindagi apne terms pe wo bhi bagair kisi guilt ke bharpoor lutf ke saath jee rahi hai wo kamaal ki baat hai… har kisi mei itni himmat nahi hoti….

Maine aapko private feedback ke zariye message kiya tha lekin aapka koi response nahi mila… mumkin hai aapko message mila na ho ya junk folder mei chala gaya ho… baharhaal himmat karke yahaan publicly aapko approach kar rahi hun kyonki mujhe aapki help ki shadeed jarurat hai…. Darasal baat ye hai ki mai bhi aapki life style se kaafi had tak ittifaq rakhti hun…

Mai 37 ki shadishuda hu aur Maharashtra ke ek major city mei rehti hu apni family ke saath aur ek badi company mei HR manager hu… meri bhi sex mei kaafi dilachaspi rahi hai aur kuchh gair mardo ke saath sex bhi kiya hai….. lekin جانوروں aur khastaur pe کتوں ke saath sex ki fantasy hamesha se rahi hai aur

khaaskar aapne jis tarah mukhtalif جانوروں ke saath apne sex ko describe kiya usase zaahir hai ki aap haqiqat mei is tarah ke sex ka lutf uthati hai…. Please mujhe bhi aapki guidance chahiye taki nai bhi apni is hasrat ko poora kar saku… aisa nahi hai ki maine try nahi kiya… hamare padosi ke paas ek bada کتا hai jo wo kai dafa hamare yahan chhod jate hai jab kahin out of town jaate hai… to uske saath maine kai dafa internet se haasil jaankari aur tips aajmate hue try kiya par oral sex ke alawa actual sex mei kaamayaabi nahi mili… isliye aapse guzarish hai ki meri rehnumai kare taki mai bhi aapki tarah is lutf ka maza le saku… please bataye ki kaise aapse privately contact karu…

‎خدا حافظ

Arfa

AnonymousAnonymousover 1 year ago

फेसबुक पर मुझे आपकी प्रोफ़ायल से बेहद मिलती जुलती प्रोफ़ायल मिली लेकिन सब कुछ प्राइवट है वहाँ पर… मैंने फ़्रेंड request भी डाली पर कोई response नहीं आया… क्या ये आपका ही पेज हैः tabassum.akhtar.31149

AnonymousAnonymousabout 2 years ago

hume toh story bilkul vahiyat lagi.

Rubina

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