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लेखिका:सीमा
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कहानी के सारे पात्र कहानी विवरण के समय अट्ठारह साल के या उसके ऊपर हैं।
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नेहा का परिवार Chapter 1
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दोस्तों, मैं तो बस बड़े मामाजी,दुसरे परिवार के सदस्यों और नेहा के प्यार का विस्तृत वर्णन ही कर रहीं हूं। उन्हें किस किस तरह तरह की रति-क्रिया से सुख मिलता है उस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं है। आशा है कि पाठकगण भी उनकी निजी काम-इच्छाओं का आदर करेंगे और बुरा नहीं मानेगें।
सीमा
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नेहा का परिवार Chapter 1
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१
हमारा छोटा सा परिवार नानाजी के शिलमा वाले घर जाने के लिए तैयार हो रहा था. मेरे परिवार में मेरे पिताजी, माँ और मैं, नेहा, इकलौती बेटी थे.
मेरे मामाजी के छोटे बेटे मनू (मनू प्रताप सिंह) की शादी के बाद नानाजी की इच्छा के अनुसार सारा परिवार एक निजी पार्टी के लिए इकठ्ठा हो रहा था. मनु भैया सिर्फ बीस साल के थे पर वो इस साल उच्च पढ़ाई के लिय़े अमरीका जा रहे थे. उनका अपनी प्रेमिका नीलम से प्यार इतना प्रबल था की वो नीलम के बिना अमरीका नहीं जाना चाहते थे. नीलम का परिवार काफी दकियानुसी था. नीलम के पिता बिना शादी हुए अपनी बेटी को किसी प्रेमी के साथ देश से बाहर भेजने के लिए तैयार नहीं थे. मामाजी और मेरे पापा ने काफी सोचने के बाद मनू और नीलम को शादी करने की सलाह दी. दोनों बहुत खुशी से तैयार हो गए. दोनों ही नीलम के पिताजी की इज्ज़त की फ़िक्र से वाकिफ थे.
दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से हुई. हमारा परिवार बहुत अमीर था. नीलम का घर भी खानदानी पैसे से समृद्ध था. नानाजी के योजना के अनुसार अगले ७ दिनों तक सिर्फ नज़दीक का परिवार मिलजुल कर उत्सव मनायेगा. नानाजी की उम्र भी अब ७० साल के नज़दीक पहुचने वाली थी. उनकी शायद सारे परिवार को एक छत के नीचे देखने इच्छा ज़्यादा प्रबल होने लगी थी.
मुझे नानाजी के घर जाना हमेशा बहुत अच्छा लगता था. नानजी मुझे हमेशा से बहुत प्यार करते थे.हमारी रेंज-रोवर तैयार थी. मैं जल्दी से बाथरूम में मूत्रत्याग कर के बाहर आ रही थी कि पापा मुझे खोजते हुए मेरे कमरे में आ गए . मुझे तैयार हुआ देख कर वो मुस्कराए, "नेहू, मेरी बेटी शायद अकेली तरुणा [टीनएजर] होगी इस शहर में जो इतनी जल्दी तैयार हो जाती है."
मेरे पिताजी, अक्षय प्रताप सिंह, ६'४" फुट ऊंचे थे. पापा का शरीर बहुत चौड़ा,विशाल और मस्कुलर था.
मैं अपने पापा की खुली बाज़ुओ में समा गयी,"पापा क्या आप यह तो नहीं कह रहे कि आपकी बेटी और लड़कियों जैसी सुंदर नहीं है?"
उसी वक़्त मेरी मम्मी भी मेरे कमरे की तरफ आ रहीं थीं, "देखा अक्शु, आपकी बेटी आपकी तरह ही होशियार हो गयी है."
मेरी मम्मी ने मुझे प्यार से चूमा. मेरी मम्मी, सुनीता सिंह, मेरे हिसाब से दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत औरत थीं. मम्मी अगले साल ३७ साल की हो जायेंगी.पापा उनसे एक साल बड़े थे. मेरी मुम्मू ५'५" फुट लम्बी थीं. मेरी मम्मी का मांसल बदन किसी भी कपड़े में बहुत आकर्षक लगता था. पर हलके नीले और हलके पीले रंग की साड़ी में उनका रूप और भी उभर पड़ता था. मेरी मम्मी का सीना उनकी सुंदरता की तरह सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लेता था. मेरी मम्मी के वक्षस्थल का उभार किसी हिमालय की ऊंची चोटी की तरह था. मम्मी की कमर गोल और भरी-पूरी थी. उनके भरी हुई कमर के नीचे उनके कूल्हों का आकार उनकी साड़ी को बिलकुल भर देता था. उनके लम्बे घुंघराले बाल उनके भरे कूल्हों के नीचे तक पहुँचते थे. मैं अपनी मम्मी की आधी सुंदरता से भी अपने को बहुत सुंदर समझती.
पापा ज़ोर से हँसे,"सुनी, मै तो दो बेहत सुंदर और बुद्धिमान महिलाओं के साथ रहने की खुशनसीबी के लिए बहुत शुक्रगुज़ार हूँ." पापा ने मेरे बालों के ऊपर मुझे चूमा, "मेरी चतुर और अत्यंत सुंदर पत्नी के सद्रश इस संसार में सिर्फ एक और नवयुवती है और वो मेरी बेटी है."
मैं और मेरी मम्मी दोनों बहुत ज़ोरों से हंस दिए. पापा हमेशा हम दोनों को अपने चतुर जवाबों और मज़ाकों से हंसाते रहते थे. मैं अपने पापा के सामने किसी और को उनके बराबर का नहीं समझती थी.
मम्मी और पापा एक साथ कॉलेज में थे. हमारे परिवार पहले से ही मिल चुके थे. पापा की बड़ी बहन की शादी छोटे मामाजी, विक्रम प्रताप सिंह,के साथ हो चुकी थी. दोनों का प्यार बहुत जल्दी परवान चढ़ गया. मम्मी का इरादा हमेशा से अपने घर और परिवार की देखबाल करने था. उनकी राय में दोनों, संव्यावसायिक (प्रोफेशनल) होना और घर में माँ पत्नी होना,काफी मुश्किल था. पापा मेरी मम्मी की, इस बात के लिए, और भी ज़्यादा इज्ज़त करते थे. मेरे नानाजी का बहुत बड़ा 'बिज़नस एम्पायर' था. मम्मी ने पापा की तरह बिज़नस डिग्री की थी. पापा उसके बाद हार्वर्ड गए. उन्होंने पापा के साथ शादी करने के इरादे के बाद कोई इंतज़ार करने की ज़रुरत नहीं समझी. मम्मी मेरे पापा की पढ़ाई के दौरान उनकी देखबाल करना चाहतीं थीं. मम्मी के बीसवें जन्मदिन के एक महीने के बाद उनकी शादी पापा से हो गयी. पापा दो साल के लिए हार्वर्ड गए. दो साल के बाद मेरा जन्म हुआ.
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हम दोपहर तक शिमला पहुँच गए. बाहर एक बहुत बड़ा शामियाना लगा हुआ था. नानाजी ने शहर के गरीब और मजलूमों के लिए खुला पूरे दिन खाने का इन्तिज़ाम किया था. उन लोगों का खाना खत्म हो जाने के बाद सारी सफाई हो चुकी थी.
मेरे बड़े मामाजी बाहर ही थे. मैंने चिल्ला पड़ी, "बड़े मामा," मामाजी ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और प्यार से कई बार दोनों गालों पर चुम्बन दिए. मुझे मुक्त कर के मम्मी को ज़ोर से आलिंगन में भर लिया. मम्मी दोनों भाइयों से छोटीं थी और दोनों भाई उनपर अपनी जान छिड़कते थे.
मामाजी और पापा गले मिले. मामाजी पापा जितने ही लम्बे थे पर उनका गए सालों में थोड़ा वज़न बड़ गया था. बड़े मामा ने सफ़ेद कुरता-पजामा पहना हुआ था जिसमे उनकी छोटी सी तोंद का उभार दिख रहा था, बड़े मामा बहुत हैण्डसम लग रहे थे. उनकी घनी मूंछें उन्हें और भी आकर्षित बनाती थी. मेरे बड़े मामा विधुर थे. मेरी बड़ी मामीजी का देहांत अचानक स्तन के कैंसर से बारह साल पहले हो गया था. तभी से बड़े मामा ने अपने दोनों लड़कों की देखभाग में अपनी ज़िन्दगी लगा दी.
मम्मी बोलीं,"रवि भैया, कोई काम तो नहीं बचा करने को?"
पापा ने भी सर हिलाया.
"नहीं सुनी, डैडी ने सब पहले से ही इंतज़ाम कर रखा था.तुम्हे तो पता है उनकी आयोजन करने की आदत का." बड़े मामा ने मेरे कन्धों के उपर अपना बाज़ू डालकर हमसब को अंदर ले गए.
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शिमला का घर विशाल था. वो करीब १०० एकड़ ज़मीन पर बना था. इस विशाल घर में शायद १५ कमरे थे. उसके अलावा १० बंगले भी इर्द गिर्द बने हुए थे. उन में से एक बंगला मनु और नीलम की सुहागरात के लिए सजाया गया था. जायदाद की परिधि के नज़दीक २५ घर में काम करने वालों के लिए थे.
नानाजी ने इस घर को सारे परिवार के लिए बनाया था. उनकी इच्छा थी की जब वो इस संसार से चले जाएँ तो सब परिवार के सदस्य इस घर में, कम से कम साल में एक बार इकट्ठे हों.
घर में घुसते ही नरेश भैया ने मुझे आलिंगन में भर लिया. नरेश भैया करीब ६'३" लम्बे और पापा की तरह बड़ी बड़ी मांस पेशियों से विपुल भारी भरकम शरीर के मालिक थे. नरेश भैया ने मुझे हमेशा के जैसे बच्ची की तरह प्यार दर्शाया. मम्मी और डैड ने नरेश को बेटे की तरह गले से लगाया.
नरेश की पत्नी अंजनी, जिसको सब अंजू कह कर पुकारते थे, दौड़ी दौड़ी आयी और हम सबसे गले मिली. अंजू बेहद सुंदर स्त्री थी. उसका गदराया हुआ शरीर किसी देवता को भी आकर्षित कर सकता था.
अंजू और नरेश भैया ने हम को हमारे कमरे दिखा दिए. ड्राईवर ने हम सबका सामान कमरों में रख दिया.
पापा और मम्मी नानाजी को ढूँढने चले गए. मैं अंजू भाभी के साथ मनू भैया और नीलम से मिलने के लिए साथ हो ली.
नीलम सीधी सादी मैक्सी में अत्यंत सुंदर लग रही थी. उसके बड़े बड़े स्तन ढीली ढाली मैक्सी में भी छुप नहीं पा रहे थे. अंजू ने नीलम से मज़ाक करना शुरू कर दिया, "नीलू आज मनू आपकी हालत खराब करने के लिए बेताब है."
नीलम शर्मा गयी और उसका चेहरा लाला हो गया. अंजू के मज़ाक और भी गंदे और स्त्री-पुरुष के सम्भोग के इर्दगिर्द ही स्थिर हो गए.
मैं भी अंजू के मज़ाकों से कुछ बेचैन हो गयी. मुझे स्त्री-पुरुष के सम्भोग के बारे में सिवाए किताबी बातों के कुछ और नहीं पता था. मैंने अंजू और नीलम से विदा लेकर मनु भैया को ढूँढने के लिए चल दी.
मनू भैया और छोटे मामा, विक्रम प्रताप सिंह, दोंनो एक बंगले के सामने कुर्सियों पर बैठे हुए स्कॉच के गिलास थामें हुए थे.
छोड़े मामा मनू भैया की तरह ६'४" लम्बे थे. मनू भैया काफी छरहरे बदन पर मज़बूत जिस्मानी ताक़त के मालिक थे. छोड़े मामा बड़े मामा की तरह थोड़े मोटापे की तरफ धीरे-धीरे बड़ रहे थे. दोनों ने मुझे बारी बारे से गले लगाया और प्यार से चूमा. मैंने काफी देर दोनों से बात की.
मनु भैया ने मुझे याद दिलाया की नानाजी मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे, "नेहा, दादाजी अपनी प्यारी इकलौती धेवती को देखने के लिए बेसब्र हो रहे होंगे."
मैं नानाजी को ढूँढने के लिए सब तरफ गयी. रसोई घर में छोटी मामी सुशीला [शीलू] पूरे नियंत्रण में थीं. शीलू मामी मेरे पापा की बड़ी बहन थीं, अतः मेरी बुआ भी लगती थीं. शुरू से ही मुझे उनको बुआ कहने की आदत पड़ गयी थी. सो मैंने उनको हमेशा बुआ कह कर ही पुकारा.
आखिर में मुझे नानाजी सबसे दूर वाले दीवान खाने में मिले. वहां दादा और दादी जी भी उनके पास बैठें थें.
नाना, रूद्र प्रताप सिंह, ७० साल के होने वाले थे. वो हमारे और पुरुषों की तरह ६'२" लम्बे और बड़े भरी भरकम शरीर के मालिक थे. दादा जी, अंकित राज सिंह, नाना जी से चार साल छोटे थे, वो ६६ साल के थे. दादाजे करीब ६ फुट लम्बे थे पर उनका महाकाय दानवाकार शरीर किसी पहलवान की तरह का था. दोनों नाना और दादा जी विशाल शरीर और सारे परिवार की तरह बहुत सुंदर नाक-नुक्श के मालिक थे. दादी जी, निर्मला सिंह, ६६ साल के उम्र में भी निहायत सुंदर थीं. उनका शरीर उम्र के साथ थोडा ढीला और मांसल और गुदगुदा हो चला था. उनका सुंदर चेहरा अभी भी किसी भी मर्द की निगाह खींचने के काबिल था.तीनो ने मुझे बहुत प्यार से गले लगाया और मेरे मूंह हज़ारों चुम्बनों से गीला कर दिया.
You are one of the three most interestin writers in Hindi. I am a woman myself so can relate to your stories.
Thanks Seema
Reads very well. Will catch up with other chapters.
Please make it a hot one
Seema ji very nice beginning.
I can see a long story like in Hindi script a rarity nowadays
Harrie
Very good start. Slow and steady. Please build it up to proper story we see on English site and not these bizarre short bursts of nonsense that people deposit here.