नेहा का परिवार 10

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मेरी गांड का संवेदनशील छिद्र चाचू के मोटे लंड की परिधि के ऊपर इतना फ़ैल कर चौड़ा हो गया था कि उसमे से उठा दर्द और जलन मेरे शरीर में फ़ैल गयी थी।

मुझे याद नहीं की कितने भीषण धक्कों के बाद अचानक मेरी गांड में से आनंद की लहर उठने लगी। मुझे सिर्फ इतना ही याद है कि मेरी चीत्कार सिस्कारियों में बदल गयीं। सुरेश चाचा ने मेरी सिस्कारियों का स्वागत अपना पूरा विकराल लंड इम्रे मलाशय से बाहर निकाल कर एक ही टक्कर में जड़ तक मेरी गाद की मुलायम कोमल, गहराइयों में स्थापित कर दिया।

मैं मचल उठी, "चाचू, क्या आप शुरूआत में मेरी गांड थोड़ी धीरे नहीं मार सकते थे? कितना दर्द किया आपने!"

सुरेश चाचू ने एक और भायानक धक्का लगा कर मुझे सर से चूतड़ों तक हिला दिया, "नेहा बेटा, आपकी नम्रता चाची का विचार है कि यदि पुरुष का लंड गांड मारते हुए स्त्री की चीख न निकाल पाए तो स्त्री को भी गांड मरवाने का पूरा आनंद नहीं आता।

मैं चाची के विचित्र तर्क से निरस्त हो गयी थी, और अब मेरी गांड में से उपजे कामानंद ने मेरी बोलती भी बंद कर दी थी।

"चाचू, अब आपका लंड मेरी गांड में बहुत अच्छा लग रहा है। इतना मोटा लंड है आपका," सुरेश चाचा के भीषण धक्कों ने मेरी सुरेश चाचा के मर्दाने भीमकाय लंड की प्रशंसा को बीच में ही काट दिया, "उन्ह ... चाचू ...आः ...आह ... ऊऊण्ण्णः ... ऊऊऊण्ण्ण्ण्घ्घ्घ्घ ऊफ ...ऊफ ... चाचू मेरी ... ई ... ई ... गा ...आ ... आ ... आनन ...आः।"

अब तक सुरेश चाचे ने मेरी गांड के मर्दन की एक ताल बना ली थी। चाचू दस बीस लम्बे दृढ़ धक्कों से मेरी गांड मार कर छोटे भीषण तेज़ अस्थिपंजर हिला देने वाले झटकों से मेरी गांड को अंदर तक हिला रहे थे। कमरे में मेरी गांड की मोहक सुगंध फ़ैल गयी थी।

सुरेश चाचा ने मेरे दोनों हिलते स्तनों को अपने हाथों में भर कर मसला और मेरे कान में फुसफुसाये, "नेहा बेटी आपके मलाशय की मीठी सुगंध कितनी आनंददायक है?"

मैं अब कामवासना से सिसक रही थी और कुछ भी नहीं बोल पाई, "आः .. चाचू ... मुझे ... झाड़ ...ऊऊऊण्ण्णः ऊँ ...आह।

सुरेश चाचा ने मेरी वासना भरी कामना की उपेक्षा नहीं की। उन्होंने मेरे मेरी दोनों चूचियों का मर्दन कर मेरी गांड को भीषण धक्कों से मारते हुए गुर्राये, "बेटी, आज रात हम आपकी गांड को फाड़ कर आपको अनगिनत बार झाड़ देंगे।"

मेरे चूतड़ अब चाचू के लंड के हिंसक आक्रमण से दूर आगे जाने के स्थान पर अब उनके धक्कों की तरफ पीछे हिल रहे थे।

सुरेश चाचू ने ने मेरा एक उरोज़ मुक्त कर मेरे संवेदनशील भगशिश्न को अपनी चुटकी में भर कर मसलने लगे। मेरा सारा शरीर मानो बिजली के प्रवाह से झटके मार कर हिलने लगा, "आह .. मैं ... आ गयी ... चा ... चू ...मैं ...आः ...झ ...झ ... ड़ गयी ... ई ... ई।"

मेरा रति-निश्पति की प्रबलता ने मेरी सांस के प्रवाह ओ भी रोक दिया।

मेरा शरीर थोडा शिथिल हो गया। पर चाचू ने अपने मज़बूत हाथों से मेरे चूतड़ को स्थिर रख मेरे गांड में अपना विकराल लंड रेल के इंजन के पिस्टन की ताकत और तेज़ी से कर रहा था।

मेरे मलाशय की समवेदनशील दीवारें अब उनके लंड की हर मोटी शिरा,रग और नस को महसूस कर रहीं थीं।

**********

सुरेश चाचा ने मेरी गांड का मर्दन अब निसंकोच भीषण पर अत्यंत कामानंद उपजाते हुए धक्कों से करते हुए मुझे एक बार फिर से झाड़ दिया। मेरी चूत रति रस से लबालब भरी हुई थी और मेरा रस मेरी गुदाज़ झांगों पर फिसलने लगा।

मैं अब पूरे भ्रमांड से कट चुकी थी। मेरा अस्तित्व अब तो सुरेश चाचा के विकराल लंड और मेरी तड़पती गांड पर स्थिर हो गया था। सुरेश चाचा के लंड की भयंकर ठोकरों ने, और उनकी मेरे भग-शिश्न को सहलाती अनुभवी उँगलियों ने मुझे कामोन्माद के कगार पर फिर से पहुंचा दिया। जब मैं झड़ रही थी और मेरी सिस्कारियां मेरे कम्पित शरीर की स्तिथी अंकित कर रही थीं तब ही सुरेश चाचू ने गुर्रा कर तीन बार मेरी प्रताड़ित गांड में निर्ममता से ठूँस कर अपने गरम जननक्षम वीर्य से मेरी सुलगती गांड को सींचने लगे।

मेरे लम्बे निर्दयी गांड मर्दन और अनिगिनत रति-निष्पति से थका मेरा अल्पव्यस्क शरीर शिथिल हो कर बिस्तर पर गिर जाता यदि चाचू ने अपनी मजबूत भुजाओं से मुझे जकड़ ना रखा होता। सुरेच चाचा मुझे पकड़े हुए बिस्तर पर लेट गए। उनका लंड अभी भी मेरी गांड में समाया हुआ था।

**********

जब मुझे 'होश' आया तो मैंने अपने आप को चाचू के विशाल शरीर की गुफा में बेशकीमत मोती के सामान सुरक्षित पाया। मैंने मुस्कुरा कर अपने सर को चाचू के सीने तीन चार बार रगड़ा।

"नेहा बेटा, आप तो मुझे प्रस्सन लग रहें हैं," सुरेश चाचा ने मेरे दोनों कुचले हुए स्तनों को प्यार से सहलाया।

"ह्म्म्ममम्म! चाचू, आपने हमें आज रात कितना आनंद दिया है," मैंने सुरेश चाचा के साथ अविश्वसनीय सम्भोग के आनंद के लिए उन्हें धन्यवाद देने का प्रयास किया।

"नेहा बिटिया अभी रात तो और भी बाकी है।" चाचू ने मेरे दोनों चूचुक को होले से मसला।

मैं खिलखिला कर हंस दी, "तब तो मेरी गांड की खैर नहीं है।"

सुरेश चाचा ने भी अपनी भारी आवाज़ में कहकहा लगया कर मुझे अपने विशाल शरीर से जकड़ लिया।

मैं अपनी गांड को चाचा के लंड के ऊपर घुमाने लगी। सुरेश चाचा के मजबूत हाथ मेरे उरोजों के ऊपर कस गए। आधे घंटे की वासना भरी चुहलबाजी से चाचू का लंड फिर से हिनहिना कर ताना उठा। मेरी गांड की संवेदनशील कोमल दीवारों ने उनके फड़कते लंड की विकराल विशालता को कस कर जकड़ा कर उसे निचोड़ने के प्रयास से उसका स्वागत सा किया।

सुरेश चाचा ने मेरी गांड में अपना लंड धीरे धीरे अंदर बाहर हिलाना शुरू कर दिया। उनके हाथ मेरी दोनों चूचियों को मसल कर उन्हें सम्वेंदंशील उत्तेजना से भरने लगे।

मेरी कोमल पीठ की त्वचा उनकी बालों भरी सीने और पेट से रगड़ खा कर मुझे एक विचित्र से आनंद से भर रही थी।

सुरेश चाचू ने ने मेरी गांड पीछे से मारना शुरू कर दिया। मैं भी अपनी गांड मटका कर उनके लंड को और भी अधिक आनंद देने का प्रयास करने लगी।

इस बार चाचू ने मेरी गांड धीरे हलके धक्कों से मारी। मेरी गांड का मर्दन में इस बार कोई भी बेताबी, निर्ममता नहीं थी। इस के बावजूद भी मेरी सिस्कारिया अविरत मेरे अध्-खुले मूंह से उबलने लगीं।

चाचू के वृहत स्थूल लंड ने मुझे चरम-आनंद के द्वार पर पहुंचा दिया। मैं एन्थ कर झड़ उठी। सुरेच चाचा ने मेरे बालों पर चुम्बन दे कर मेरे स्खलन को प्यार से स्वीकार सा किया।

उनका विशाल लंड लम्बे पर सुस्त रफ़्तार के प्रहरों से मेरी गांड में अपनी लम्बाई और मोटाई को नापते हुए मेरी गांड की जलती हुई कोमल रेशमी सुरंग की गहराइयों को अपने से अवगत करा रहा था।

मैं शीघ्र ही दो बार और झड़ गयी। सुरेश चाचे ने अपना खुला मूंह मेरे बिखरे घुंघराले बालों में छुपा कर अब थोड़ी तेज़ी से मेरी गांड मारने लगे। मेरे अवयस्क लड़की के शरीर में छुपी स्त्री ने उनके सन्निकट स्खलन को आसाने से महसूस कर लिया।

"चाचू, मेरी गांड में अपना लंड खोल दीजिये।मारी गांड को अपने वीर्य से भर दीजिये," मैंने सुबक कर कहा। मेरे कहने की देर थी कि सुरेश का लंड ज्वालामुखी के तरह फुट उठा।

उनके थरकते हुए लंड की हर थड़कन ने प्रचुर मात्रा में अपने फलदायक मर्दाने शहद से मेरी मलाशय की रेशमी दीवारों को नहला दिया।

"आं ...आं ... आं ... आं ऊऊंं ... ऊम्म ...चा ... आ ...आ ... आ ... चू ...ऊ ...ऊ ...ऊ ," मैं सिसकारी मार कर बुदबुदाई, "मैं फिर से झड़ गयी चाचू। "

मेरी आँखें आनंद के अतिरेक से बंद होने लगी और मैं कामोन्माद के थकन की निंद्रा के आगोश में समा कर सो गयी।

उस रात सुरेश चाचा और मैं एक बार और रात में जग गए। सुरेश चच का लंड मेरी गांड में तनतना कर तय्यार था। मैंने भी कुनमुना कर अपनी गांड का मर्दन के स्वीकृति दे दी। उस बार चाचू ने लगभग घंटे भर मेरी गांड को अहिस्ता और प्यार से मार कर मुझे अनेकों बार झाड़ दिया। जब तक उनका लंड मेरी गांड में स्खालुत हो रहा था तब तक मेरे अल्पव्यस्क शरीर ने चाचू के काम-क्रिया के अनुभव के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। मेरी शिथिल काम-आनन्द से अभिभूत कमसिन शरीर बेहोशी से भी गहरी नींद की गोद में छुप गया।

**************

सुरेश चाचा और मैं सुबह देर तक सोते रहे। जब नम्रता चाची और बड़े मामा ने हमें उठाया तब भी मैं सुरेश चाचा की बाँहों में थी। उनका लंड अभी भी मेरी गांड में घुसा हुआ था। सुबह सवेरे भी उनका लंड तन कर मेरी गांड को प्रताड़ित करने के लिए उत्सुक था।

मैं अभी भी निद्रालु थी पर नम्रता चाची की चहकती मदुर अव्वाज़ ने मेरी नींद पखोलने में मदद की।

"नेहा बेटी, मैं तो आपसे बहुत ही प्रभावित हूँ। आपने अपने चाचू का लंड अभे भी गांड में छुपा रखा है," बड़े मामा और नम्रता चाची बिलकुल नग्न थे। नम्रता चाची का भरा गदराया हुआ शरीर और अत्यंत आकर्षिक चेहरा रात की प्रचंड चुदाई से निखरा हुआ था। उनके विशाल विपुल स्तन बड़े भारी और उनके छाती के ऊपर ढलक रहे थे। गोल थोड़े उभरे हुए पेट के के साथ उनकी भरी कमर के ऊपर दो तहों के बीच में एक गहराव था। उसके नीचे उनके दो विशाल, गदराये, विपुल नितिन्म्ब उनकी भारी गुदाज़ नारी सुलभ जाँघों और गोल भरी-भरी टखनों को और भे सुंदर बना रहे थे। उनके छोटे कोमल पैर एक सम्पूर्ण नारी का चित्रण करते प्रतीत हो रहे थे।

नम्रता चाची के पेट, नितिम्बों और जाँघों पर दो गर्भों के बाद के खिंचाव के निशाँ उन्हें और भी नारीत्व का आकर्षण प्रदान कर रहे थे। नम्रता चाची के रोम रोम से जनक्षम ईश्वरीय सुन्दरता के द्योतक था।

जब तक मैं नम्रता चाची की देवितुल्य सुन्दरता के मोहक समोहन से बहार निकल पाई तब तक उन्होंने मुझे अपने पति से छीन कर अपने बाँहों में भर लिया था। उनके गुलाबी होंठ मेरे होंठो से चिपक गए। उनके मूंह सोने के बाद के सवेरे का मीठा स्वाद मेरे उसे स्वाद से मिल गया।

मैंने भी अपनी बाहें चाची के इर्द-गिर्द दाल दीं।

चाची ने मेरे निचले होंठ को चूसते हुए कहा, "नेहा बेटी, मुझे आपकी चूत और गांड में अपने पति के वीर्य चाहिए।"

मेरे मूंह से मेरे बिना समझे शब्द निकल गए, "चाची यदि आप भी मुझे अपनी चूत और गांड में भरे बड़े मामा के मर्दाने शहद देंगीं।"

नम्रता चाची ने मेरी नाक की नोक को प्यार से काट कर कहा, "मेरी बेटी तो दो तीन दिन ही में इतनी चुदक्कड़ बन गयी है।"

मैंने भी इठला कर कहा, "आप और सुरेश चाचा जैसे शिक्षक मिलने का कमाल है यह तो।"

पर मैं ऐसी अश्लील वार्तालाप से शर्म के मारे लाल हो गयी।

"नेहा बेटी आप अपने बड़े मामा को तो भूल ही गयीं," सुरेश चाचा ने मुझे और भी शर्म से लाल कर दिया। मेरी उलझी हुई हालत देख कर नम्रता चाची, बड़े मामा और सुरेश चाचू जोर से हंस दिए।

नम्रता चाची ने मेरे दोनों दर्दीले चूचियों को मसल कर कहा, "नेहा बेटी अब मुझे अपनी चूत और गांड का प्रसाद दे दो। आज मुझे दो मोटे लंडो से एक साथ चुदना है।"

मैं नम्रता चाची के मूंह के ऊपर अपनी चूत रख कर उनके खुले मूंह के अंदर अपने योनी में भरे सुरेश चाचा के मर्दाने शहद को बाहर धकेलने लगी। नम्रता चाची ने टपकती बूंदों के रिसाव को प्यार से अपने मूंह में भर लिया। नम्रता चाची ने मेरी चूत में अपनी जीभ अंदर तक दाल कर मेरे रतिरस और सुरेश चाचा के लंड के जननक्षम द्रव्य को चाट कर सटक गयीं।

उन्होंने मेरे नितिन्म्ब खींच कर अपने मूंह के ऊपर मेरी गांड रख ली। मैंने ज़ोर लगा कर अपनी बेदर्दी से चुदी सुरेश चाचा के वीर्य से भरी गांड को नम्रता चाची के मूंह में खाली करने का प्रयास करने लगी।

नम्रता चाची ने अपनी गीली जीभ से मेरे झपकते हुए गुदा के छिद्र को चाट कर मुझे और भी उत्साहित करने लगीं। आखिर कार मेरी गांड में से एक मोटी लिसलिसी धार फिसल कर नम्रता चाची की मूंह में टपकने लगी। नम्रता चाची ने मेरे गांड से सुगन्धित अपने पति के गाड़े वीर्य को लपक कर अपने मूंह में भर लिया। मैंने ज़ोर लगा कर और भे भीतर से सुरेश चाचा के वीर्य को नीचे धकेल कर अपनी गांड से बाहर निकाल कर नम्रता चाची के अधीर मूंह में भर दिया।

नम्रता चाची ने सारा पदार्थ इच्छुक उत्साह से सटक लिया।

अब मेरी बारी थी। नम्रता चाची के विशाल गदराये नितिन्म्बओं ने मुझे बहुत मोहक लगे। उन्होंने अपनी घने रेशमी बालों से ढकी चूत को के भगोष्ठों को फैला कर अपनी गुलाबी चूत के द्वार को मेरे मूंह के ऊपर टिका दिया। शीघ्र ही बड़े मामा के जनक्षम वीर्य की धार नम्रता चाची की योनी की सुरंग से फिसल कर मेरे मूंह में टपकने लगी। मुझे बड़े मामा के वीर्य की तीव्र सुगंध अत्यंत मादक लगी। जब नम्रता चाची की चूत से सारा बड़े मामा का रस मेरे मूंह में समां गया तब मैंने उसे लालचपन दिखाते हुए सटक लिया।

नम्रता चाची ने अपने प्रचुर विशाल नितिम्बों को अपने कोमल हाथों से फैला कर अपनी भूरी गुदा का छिद्र मेरे मूंह के ऊपर टिका कर नीचे की ओर ज़ोर लगाया। उनकी मेहनत का पुरूस्कार जल्दी ही मेरे मूंह में टपकने लगा। बड़े मामा ने भी, सुरेश चाचा की तरह, चाचीजी की गांड बहुत बार मारी होगी। उनकी गांड में से उनकी चूत से भी अधिक वीर्य मेरे मूंह में भर गया।

मैंने सारा स्वादिष्ट पदार्थ सटक कर नम्रता चाची की गांड को प्यार से चाट कर उन्हें धन्यवाद दे दिया।

***********

नम्रता चाची ने उठ कर एक गहरी अंगड़ाई ली। उनके विशाल मुलायम पर भरी उरोज़ उनके बदन के साथ मचल कर हिल उठे। बड़े मामा नम्रता चाची को अपनी बाँहों में भर कर प्यार भरे अधिकार से चूमने लगे।

"रवि भैया, क्या अप्प और सुरेश मेरे दोनों छेदों को छोड़ने के लिए तय्यार हैं?" नम्रता भाभी ने बड़े मामा के बालों भरी सीने को अपने कोमल हाथों से सहलाया।

सुरेश चाचा ने भी अपनी अर्धांगनी को पीछे से बाँहों में भर कर उनके गुदाज़ नितिम्बों को मसलने लगे, "रवि, आपको अपनी भाभी की गांड चाहिये या चूत?"

"सुनियेजी, इसमें मेरा कोई कहन नहीं है?" नम्रता चाची दो मर्दों के बीच पिसी हुईं थीं पर फिर भी उनकी चंचलता में कोई कमी नहीं आई थी।

बड़े मामा ने नम्रता चाची की सुंदर नाक को मूंह में भर कर चूसा और फिर प्यार से उनके दोनों निप्पलों को मसल कर बोले, "भाभी आपको तो दो लंड चाहियें। कौन सा लंड किस छेद में जाता है वो निर्णय तो हम दोनों का है।"

नम्रता चाची की सिसकारी निकल गयी, "ठीक है रवि भैया। जैसे आप दोनों ठीक समझें मुझे बाँट ले पर मुझे मेरी चूत और गांड का मर्दन पूरी निर्ममता से चाहिए। दर्द के मारे मेरी चीखें निकलनी चाहिए।" नम्रता चाची ने बड़े मामा और सुरेश चाचा को अपनी काम-इच्छाओं से आगाह कर दिया।

बड़े मामा बिस्तर पर चित लेट गए और नम्रता चाची को अपने ऊपर खींचने लगे। नम्रता चाची ने अपनी मुलायम रेशमी चूत बड़े मामा के विशाल लोहे जैसे सख्त लंड पर रख कर उसे धीरे धीरे अपने अंदर निगलने लगीं।

मैं जल्दी से बड़े मामा जांघों के पास अपना सर रख कर उनके विकराल लंड का नम्रता चाची की चूत में प्रवेश का चित्ताकर्षक दृश्य बिना पलक झपकाए एक टक देखने लगी।

नम्रता चाची की चूत अविश्वसनीय आकार में चौड़ी हो कर बड़े मामा के भीमकाय लंड के ऊपर फ़ैल गयी। नम्रता चाची का सुंदर मूंह थोडा सा खुला हुआ था, उनकी भूरी कजराली आँखें आधी बंद थीं। उनके अत्यंत आकर्षक नथुने उनकी तीव्र साँसों के साथ फड़क रहे थे। नम्रता चाची का दैविक रूप उनकी वासना के ज्वार में और भी सुंदर हो चला था।

स्त्री के सुन्दरता जब वो कामाग्नि में जल रही होती है तो उसका रूप और भी निखर जाता है। यदि स्त्री नम्रता चाची जैसी परिपक्व दिव्य-रूपसी हो तो उसके नैसरगिक आकर्षण से कोई भी उन्मुक्त नहीं रह सकता।

सुरेश चाचा ने अपनी अर्धांगनी के प्रचुर गदराये नितिम्बो को अपने विशाल हाथों से फैला कर मेरी तरफ देखा। मुझे उनका मंतव्य एक क्षण में ही समझ आ गया। मैंने अपना मूंह नम्रता चाची की विशाल गहरी नितिम्बों के बीच की दरार में दाल कर उनकी गांड को चाटने और चूसने लगी।

नम्रता चाची की सिसकारी ने मुझे और भी उत्साहित कर दिया।मैंने अपनी जीभ को गोल करके नम्रता चाची की गांड के छिद्र को कुरेदने लगी। शीघ्र ही मुझे सफलता मिल गयी। नम्रता चाची का गुदा-द्वार धीरे धीरे फड़क कर खुल गया और मेरी जीभ उसके अंदर प्रविष्ट हो गयी।मैंने जितना हो सकता था उतनी अपनी लार नम्रता चाची की गांड में जमा कर दी।

सुरेश चाचा ने मुझे होले से अलग कर अपने विकराल लंड के सूपाड़े को नम्रता चाची की गांड के अधखुले गुदा द्वार पर रख कर कस कर अंदर दबाने लगे।

नम्रता चाची के नन्हे से गुदा द्वार के छिद्र को मैंने धीरे धीरे अमानवीय आकार की और चौड़ते हुए देख कर मेरी सांस मनो रुक गयी।

सुरेश चाचा ने अपना सेब जैसा मोटा सुपाड़ा नम्रता चाची की गांड के अंदर डाल कर एक गहरी सांस ली। बड़े मामा ने अपनी शक्तिशाली बाहों से नम्रता चाची की छाती को जकड़ कर अपने सीने से चिपका लिया।

सुरेश चाचा ने नम्रता चाची की भरी कमर को कास कर पकड़ कर अपने भारी नितिम्बों की ताकत से अपने मोटे लंड को भीषण धक्के से नम्रता चाची की गांड में निर्ममता से धकेल दिया।

नम्रता चाची की चीख कमरे में गूँज उठी, "हाय ऊंऊंऊंऊंह ह्हहूम।"

सुरेश चाचा ने अपना आधा घोड़े जैसा लंड एक ठोकर में अपनी पत्नी की गांड में बेदर्दी से ठूंस कर शीघ्र दूरे धक्के से उसे जड़ तक नम्रता चाची की चूत में घुसेड़ दिया।

नम्रता चाची की दूसरी चीख और भी ऊंची थी।

बड़े मामा ने नम्रता चाची के हिलते डोलते चूचियों के चूचुक को अपने होंठों में कास कर पकड़ लिया। उन्होंने अपने शक्तिशाली हाथों से नम्रता चाची के चूतड़ों को ऊपर उठा कर अपने लंड को एक भयानक धक्के से उनकी चूत में आखिरी इंच तक धकेल दिया।

सुरेश चाचा और बड़े मामा ने नम्रता चाची की चूत और गांड भीषण ठोकरों से मारनी शुरू कर दी। नम्रता चाची के आनंद और दर्द भरी चीखें कमरे में गूँज उठीं।

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सुरेश चाचा और बड़े मामा के लंड भयानक तेज़ी और ताकत से नम्रता चाची दोनों गलियारों को अपने भीमकाय लंदों से मर्दन करने लगे। नम्रता चाची के सिस्कारियां और चीखें मिल कर काम-वासना का संगीत बन गयीं।

पांच दस मिनट के बाद ही नम्रता चाची घुटी घुटी चीख के साथ झड़ गयीं,"हाय, कितना दर्द ... मैं झड़ने वाली हूँ ... ओओओओः और जोर से आह ...आ ...आ ...आं ,...आँ ...हाय माँ।"

बड़े मामा ने मुझे अपनी चूत में उंगली करते हुए देख कर अपने मूंह की तरफ खींचा।

मैंने अपनी चूत बड़े मामा के मूंह पर टिका दी। उनके होंठो और जीभ ने बिना देर किये मुझे भी रति-निष्पति के द्वार पर ला पटका।

मैं भी सिस्कार मार कर झड़ गयी। नम्रता चाची ने मेरे फड़कते हुए चूचियों के ऊपर अपना बिलखता हुआ मूंह दबा दिया। उनके दांत और होंठों ने मेरी चूचियों को चूसना और काटना शुरू कर दिया।

बड़े मामा के मूंह और जीभ ने मेरी चूत की तंग सुरंग और भग-शिश्न को तरसा तड़पा कर मेरी चूत को फिर से उत्तेजित कर दिया।

नम्रता चाची की चूत और गांड का मर्दन निर्ममता से चलता रहा। जैसे ही मैं और नम्रता चाची फिर से झड़ने वाले थीं, सुरेश चाचा और बड़े मामा ने अपने लंड सुपाड़े तक निकाल कर एक ही धक्के से नम्रता चाची की चूत और गांड में मोटी जड़ तक ठूंस दिये।

नम्रता चाची दर्द और आनंद के अतिरेक से बिलबिला उठीं और उन्होंने मेरी चूचुक को अपने दातों से कस कर दबोच लिया। मेरी भी चीख उबल उठी। हम दोनों कामानंद से अभिभूत कांपते हुए फिर से झड़ गयीं।

बड़े मामा और सुरेश चाचा ने अगले घंटे तक बिना धीमे हुए और रुके नम्रता चाची के दोनों गलियारों को बेदर्दी से कुचल दिया। नम्रता चाची की आनंद से भरी सिस्कारियां और चीखें कमरे की दीवारों से टकरा कर हम सबकी काम -वासना को और भी उत्तेजित करने लगीं।

मैं भी न जाने कितनी बार झड़ चुकी थी। मेरा शरीर अनगिनत रति-निष्पति की थकन से शिथिल हो चला।

बड़े मामा ने मेरे क्लिटोरिस को अपने होंठो और दांतों से मसल कर फिर से मुझे झाड़ दिया।

नम्रता चाची भी मेरे साथ हाँफते हुए झड़ रहीं थीं। सुरेश चाचा ने एक खुन्कार धक्के के साथ अपने लंड का गरम वीर्य के अनेकों फुव्वारों से नम्रता चाची की गांड को नहला दिया।

बड़े मामा ने भी अपने जननक्षम वीर्य से नम्रता चाची के गर्भाशय को सराबोर कर दिया।

मैं शिथिल अवस्था में बिस्तर पर गिर कर गहरी नींद में डूब गयी।

**************

हम चारों फिर से थकी उनींदी अवस्था में बिस्तर पर लेट गये. नम्रता चाची सुरेश चाचा और बड़े मामा के लंदों को अभी भी अपनी गांड और चूत में दबाये हुए उनकी बलशाली भुजाओं में समा कर होले होले अध्र-निंद्रा में भी मुस्कुरा रहीं थीं। मैंने उनके दैवत्य सुंदर वासना की त्रिप्ती से उज्जवलित मुंह को देख कर अपने से वचन लिया कि मैं भी नम्रता चाची की तरह संसार और सम्भोग के हर कृत्य को खुली बाँहों से सत्कार करूंगी। आखिर स्त्री के रूप में इतना निखार लाने वाले सम्भोग से अच्छा और क्या श्रृंगार हो सकता है।

मैंने अपना चेहरा बड़े मामा की बलिष्ठ चौड़ी कमर से चुपका कर अपनी आँखें बंद कर दीं। सुबह की मंद निर्मल शीतल वायु फूलों की सुगंध से भरी थी। मैंने एक गहरी सांस से रजनीगंधा और चमेली की सुगंध को अपने अंदर भर कर बड़े मामा की पसीने से महक रही कमर की त्वचा को चूम कर सो गयी।

जानकी दीदी की मधुर आवाज़ सुन कर मेरी आँख खुली। जानकी दीदी खिलखिला कर हंसी, "लगता है नम्रता भाभी का आखिर में सुरेश भैया और रवि भैया के विकराल लंडों ने समर्पण करवा ही लिया।"

नम्रता चाची भी खिलखिला कर हंस दीं, "जानकी, दो मर्द जो इतना प्यार करतें हों और उनके विशाल भीमकाय लंड जब दोनों विवरों में घुसें हो तो कोई भी भाग्यवान स्त्री किसी भी भी समय समर्पण के लिए तैयार हो जायेगी।"

जानकी दीदी ने प्यार से नम्रता चाची का हँसता हुआ मुंह अपने गुलाबी होंठों से चूम लिया।

"जानकी, क्या तुम्हें अपने भाइयों का गाढ़ा वीर्य चाहिए? मेरे दोनों विवर उनके वीर्य से लबालब भरे हुए हैं।" नम्रता चाची ने जानकी दीदी को अमृत समान द्रव्य का उपहार पेश कर दिया।

"नेकी और बूझ बूझ?" जानकी दीदी ने नम्रता चाची के विशाल थरकते हुए कलशों को सहला कर सुरेश चाचा और बड़े मामा को भी प्यार से चुम्बन दिए।

दोनों पुरुषों ने अपने अभी भी आधे खड़े लंड नम्रता चाची की गांड और चूत से धीरे से बाहर निकाल लिये. जानकी दीदी ने प्यार से पहले सुरेश चाचा के नम्रता चाची की मदभरी गांड और सुरेश चाचू के मर्दाने फलदायक वीर्य से लंड को चूम चाट के अपने थूक से चमका दिया।

फिर उन्होंने बड़े मामा के लंड को भी उतने ही प्यार से चाट चाट कर साफ़ कर दिया। नम्रता चाची ने पहले अपनी चूत के रस को जनके दीदी के अधीर मुंह में एक लम्बी धार के रूप में टपका दिया. जानकी दीदी ने लोभ भरी उत्सुकता से उसे निगल लिया।

जानकी दीदी ने अपना खुला मुंह नम्रता चाची के भरे नितिम्बों के बीच में स्थिर कर दिया।

नम्रता चाची ने अपने हाथों से अपने वृहत गदराये मुलायम नितिम्बों को चौड़ा कर अपनी से चुदी गांड के नाज़ुक छोटे से छिद्र को जोर लगा कर खोल दिया. शीघ्र ही उनकी निर्मम चुदाई से सूजी गांड खुल गयी और जानकी दीदी के मुंह में नम्रता चाची की गांड के रस से मिले सुरेश चाचू का गाढ़ा जननक्षम वीर्य एक भारी लिसलिसी धार से बहने लगा। जानकी दीदी बेसब्री से नम्रता चाची की गांड से सारा मीठा रस अपने मुंह में टपकने का इंतज़ार रहीं थीं। उन्होंने चटकारे ले कर सारा मीठा नमकीन रस सटक लिया।

सुरेश चाचा और बड़े मामा ने जानकी दीदी को अपनी बाँहों में भर कर उनके भारी कोमल उरोज़ों को कस कर दबाते हुए उन्हें चुम्बनों से सराबोर कर दिया।

जानकी दीदी खिलखिला कर हंस रहीं थीं, "भैया, प्लीज़, भैया! आप लोगों ने मुझे ज़रूरी बात तो भुलवा ही दी। नम्रता भाभी ऋतू का फोन आया था। ऋतू, नानाजी, संजू, मीनू और राज भैया इकठ्ठे हैं पहाड़ वाले बंगले पे। ऋतू ने आपको उन्हें वापस फोन करने को कहा है।"

नम्रता चाची की प्रसन्नता ने उन्हें और भी सुंदर बना दिया।

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सुरेश चाचा और बड़े मामा ने फिर से जानकी दीदी के यौवन का मर्दन शुरू कर दिया।