नेहा का परिवार 10

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शीघ्र ही उनके ढीली कमीज़ के बटन खुल गए। उनकी गदराई हुई भारी धोरी से अपने ही वज़न से ढलकी अत्यंत सुंदर वक्ष बाहर आ कर सुरेश चाचा और बड़े मामा के हाथों में मचलने लगे।

"भैया आप दोनों और नेहा को तैयार हो जाना चाहिए। पिताजी ने सारे नौकरों की छुट्टी कर दी है और रामू ने ताज़े कबाब बनाने की तैय्यारी कर ली है। सिर्फ आप लोगों का इंतज़ार है।" जानकी दीदी सिसक उठीं। सुरेश चाचा और बड़े मामा ने उनके दोनों चूचुक को अपनी चुटकी में निर्ममता से मसल कर जानकी दीदी के नाज़ुक लोलकी [इअर लोब्स] को काट लिया।

"जानकी हमारी तो इस कबाब में ज़्यादा रूचि है। यदि आपको बहुत जल्दी है तो आप ही हमें तैयार कर दीजिये, " बड़े मामा ने अपने विशाल हाथों से जानकी दीदी के प्रचुर भरे नितिम्बों को कस कर मसल दिया।

"नेहा, अब तुम ही इन दोनों को समझाओ ना!" जानकी दीदी ने मेरी और दुहाई फेंकी।

"दीदी आपके इन्द्रप्रस्थ की देवी सामान सौन्दर्य के सामने सुरेश चाचू और बड़े मामा असहाय हैं। आप को ही इनकी विनती माननी पड़ेगी।" मैंने मुस्कुरा कर जानकी दीदी के लहंगे का नाड़ा खोल दिया।

उनका लहंगा सरक कर फर्श पर ढल गया। उनके गोल भारी उचंड नितिम्ब और मांसल झांगें सुरेश चाचा और बड़े मामा के अधीर हाथों के लिए नग्न हो गयीं।

"नेहा तुम भी दोनों भैय्या के साथ मिल गयी," जानकी दीदी ने मुझे प्यार से उल्हाना दिया।

"दीदी, मैं भी तो आपके रूप से अभिभूत हूँ।" मैंने अपने नन्हें हाथों से जानकी दीदी के सुंदर चेहरों को पकड़ कर उनके गुलाबी मुस्कराते होंठों को कस कर चूम लिया।

बड़े मामा ने जानकी दीदी की कमीज़ तो उतार कर उन्हें बिलकुल नग्न कर उन्हें अपनी बाँहों में उठ लिया।

सुरेश चाचा ने मुझे अपनी बाँहों में उठा कर स्नानगृह की और चल दिये।

सुरेश चाचा और बड़े मामा बारी बारी से जानकी दीदी और मुझे अपनी बाँहों में भर कर हमारे शरीर को मसल रहे थे।जानकी दीदी और मेरी सिस्कारियां सुरेश चाचा और बड़े मामा को और भी उत्तेजित कर रहीं थीं।

नम्रता चाची बहुत प्रसन्न लगती हुईं स्नानगृह में तेज़ी से प्रविष्ट हुईं।

"सुनिए जी, " उन्होंने अपने पति सुरेश चाचा को संबोधित किया, "डैडी, राज, ऋतू और बच्चे कल आने वाल हैं। हमें एक पिछले साल वाली पार्टी का इंतज़ाम करना चाहिये।"

जानकी दीदी खुशी से उछल पडीं।

"नेहा, बेटा आप को और रवि भैया को तो रुकना ही पड़ेगा," नम्रता चाची की आवाज़ में एक विशेष प्रकार का आवेदन था।

बड़े मामा ने मेरी उत्सुक आँखों में झाँक कर अपना सर हिला दिया।

नम्रता चाची का सुंदर चेहरा खुशी से दमक उठा।

"मैं अब बहुत खुश हूँ। मुझे मीनू और संजू के साथ नेहा बेटी का साथ इकठ्ठे मिलने के विचार से ही मुझे सिहरन हो उठती है। मुझे अब आप सबके मूत्र से स्नान करना है।" नम्रता चाची ने सुरेश चाचा और बड़े मामा के लंडों को प्यार से सहलाया।

नम्रता चाची स्नानगृह के फर्श पर बैठ गयीं। बड़े मामा और सुरेश चाचा ने अपने लंड को नम्त्रता चाची के मुंह पर लक्ष्य साध कर गरम सुनहरे मूत्र की धार से उन्हें नहलाना शुरू कर दिया।

नम्रता चाची ने अपना मुंह खोल कर कई बार अपने पति और बड़े मामा के मूत्र से भर कर उसे नदीदे बेसब्री से गटक लिया। जानकी दीदी ने भी अपनी कोमल घुंघराली झांटों को फैला कर अपनी चूत की गुलाबी पाटों को खोल कर जोर से अपनी सुनहरे मूत्र की धार को सीधे नम्रता चाची के मुंह पे सरसराहट की ध्वनी से खोल दी।

नम्रता चाची का सारा शरीर गरम मूत्र से नहा गया। उन्होंने ना जाने कितनी बार अपना मुंह गरम मूत्र से भर कर उसे बेसब्री से निगल लिया।

आखिर में मेरी बारी थी। नम्रता चाची ने मुझे प्यार से अपनने और खींच लिया और मेरी चिकनी छूट पर अपना मुंह लगा दिया। मैंने झिझकते हुए अपने मूत्र की धार को नम्रता चाची के मुंह में खोल दिया।

नम्रता चाची ने नादीदेपन से मेरे मूत को पीने लगीं। मेरे गरम मूत की तेज़ धार ने , उनके जल्दी जल्दी के बावज़ूद उनके मुंह और सीने को भी नहला दिया।

हम सब एक दुसरे को प्यार से सुगन्धित साबुन लगा कर नहलाने लगे। छेड़-छाड़ और चुहलबाज़ी की वजह से स्नान काफी लंबा हो गया।

हम सब हलके वस्त्रों में तैयार हो कर दोपहर के खाने के लिए निकल पड़े।

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हम सब को लम्बे सम्भोग के मेराथन के श्रम की वजह से बहुत भूख लगी थी।

गंगा बाबा ने स्त्रियों के लिए सफ़ेद मदिरा और पुरुषों के लिए बियर का प्रयोजन किया था।

मुझे भी मदिरा के दो गिलास मिल गए। स्वादिष्ट भोजन और मदिरा के प्रभाव से शीघ्र ही मेरा अल्पव्यस्क मस्तिष्क चकराने लगा।

नम्रता चाची ने हंस कर कहा, "चलिए आप सबने ने मेरी नन्ही नेहा को शराब पिला कर नशे में धुत कर दिया। इस अवस्था में तो बेचारी किसी को भी चोदने से मना नहीं कर पायेगी।"

मैं थोड़ा सा शर्मायी पर शराब के आगोश में मैंने थोड़ी सी नम्रता चाची जैसी शरारत भरी हिम्मत पा ली थी, " चाची मुझे शराब का सहारा नहीं चाहिए अपनी चुदाई के निमंत्रण के लिये। मैं तो अब चुदने के लिए पूरी तैयार हूँ।"

मेरे गाल अपनी बेशर्मी भरी बातों से सुर्ख लाल हो गये।

नम्रता चाची ने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी मुझे अपनी गोद में खींच लिया, "देखा आप सबने। मेरी छोटी सी बिटिया कितनी निखर गयी है।"

नम्रता चाची ने मेरे सूजे हुए होंठो को प्यार से चूम कर मेरे दोनों उरोजों को हलके झीने सूती लगभग पारदर्शी कुर्ते के ऊपर से मसल दिया, "नेहा बेटी, यहाँ तीन विकराल लंड चूत और गांड की गहरायी नापने के लिये बहुत उत्सुक हैं। थोड़ा सावधानी से बोलो कहीं लेने के देने ना पड़ जाएँ।"

मैं अब थोड़ा शराब और बड़े मामा और सुरेश चाचा के भीषण सम्भोग के प्रभाव से शायद बेशर्म हो चली थी, "नम्रता चाची, मैं तो अब किसी भी विकराल लंड के लिये तैयार हूँ पर मुझे आप और जानकी दीदी का भी तो ध्यान रखना है। आखिर में कम से कम एक लंड तो आप दोनों के लिए भी छोड़ना पड़ेगा।"

नम्रता चाची ने तब तक मेरे कुर्ते के सारे बटन खोल दिए थे। उनके कोमल हाथों ने मेरे दोनों अविकसित पर भारी उरोजों को सहलाने लगे, "नेहा बेटी अभी आपने सारे लंड कहाँ लिए हैं?,"

नम्रता चाची ने प्यार से मेरी नाक की नोक को हलके से काट कर मुस्करा कर कहा, "गंगा भैया के लंड से तो अभी तक आपका परिचय नहीं हुआ।"

मैं थोडा सा शर्मा कर बोली, "मैं तो तैयार हूँ। गंगा बाबा ने अब तक पूछा ही नहीं। मैं शायद जानकी दीदी जैसी सुंदर नहीं हूँ।"

सब मेरी बचकानी मासूम बातों से हंस दिये।

"नेहा बिटिया। हमारी नज़र में तो हमारी सारी बेटियों से सुंदर कोई कहीं भी नहीं है", गंगा बाबा ने भी हंस कर मुझे और शर्म से लाल कर दिया।

मै शर्मा कर नम्रता चाची की गोद से उठ कर गंगा बाबा की भारी भरकम गोद में समा गयी। उनके भरी शक्तिशाली बाँहों ने मुझे कस कर जकड लिया।

"जानकी चलो, हमारी नेहा ने तो अपनी चूत की मरम्मत का इंतज़ाम कर लिया हमें भी तो एक लंड का इंतजाम कर लेना चाहिये।" नम्रता चाची ने खिलखिला कर कहा।

सुरेश चाचा ने अपनी खाली गोद को दिखा कर हँसते हुए कहा, "भाई हमारी गोद तो तैयार है। कोई बैठने वाली चाहिये।"

जानकी इठला कर झट से सुरेश चाचा की गोद में बैठ गयीं। नम्रता चाची भी अधीरता दिखाते हुए बड़े मामा की गोद में बैठ गयीं, "मुझे तो अपने रवि भैया की गोद और उसमे बसे दानव मिल जाये तो मैं तो बहुत खुश हूँ ."

हम सब पेट की क्षुदा शांत होने के बाद कामवासना की क्षुदा से विचलित हो चले थे।

मेरी दोनों बाहें गंगा बाबा की मोटी बलवान गर्दन के इर्द गिर्द जकड़ गयीं।

शीघ्र ही उनके मोटे होंठ मेरे नाज़ुक होंठो से चिपक गए। हमारी जीभ एक दुसरे की जीभ से लड़ने लगी। गंगा बाबा की जिव्हा के ऊपर से फिसलते हुए उनकी लार से मेरा मुंह भर गया।

मैंने गंगा बाबा के गरम थूक को निगल कर और भी कामुकता से उनके होंठो को चूसने लगी। गंगा बाबा के बड़े भारी खुरदुरे हाथों ने मेरे फड़कते उरोज़ों का मर्दन करना शुरू कर दिया था। मेरी सिस्कारियां गंगा बाबा के मुंह में समा गयीं।

मैं गंगा बाबा के मर्दाने चुम्बन और स्तनमर्दन से काम वासना से जल उठी थी। गंगा बाबा का लिंग मेरे नितिम्बों के नीचे धीरे धीरे सख्त हो चला था। हम दोनों नम्रता चाची की सिसकती आवाज़ से वापस धरती पर आ गए, "हम लोगों को वापस हाल में अंदर चलना चाहिये।"

मैंने देखा कि नम्रता चाची के दोनों विशाल स्तन बड़े मामा की बेदर्द रगड़ाई से लाल हो गए थे।

सुरेश चाचा ने भी जानकी दीदी के सुंदर बड़े भारी उरोज़ों को मसल मसल कर उन्हें सख्त और लाल कर दिया था।

तीनों मर्दों ने अपनी गोद में बैठी वासना से जलती सम्भोग की साझीधार को अपनी बाँहों में उठा लिया और भीतर हाल की ओर त्वरित कदमों से चल पड़े।

गंगा बाबा ने मुझे दीवान के ऊपर लिटा दिया और मेरा कुरता शीघ्र फर्श पर था। मेरा जांघिया मेरे रतिरस से गीला हो गया था। गंगा बाबा ने उसे अपने मुंह से लगा कर ज़ोर से सूंघा और फिर उसे चाटने लगे।

गंगा बाबा के व्यवहार से मैं और भी कामुकता से जल उठी।

मैंने उठ कर बाबा के कुर्ते के बटन खोल कर उसे उतारने की अधीरता से मचलने लगी।

गंगा बाबा ने हंस कर अपना कुरता उतार दिय. तब तक मेरे अधीर हांथों ने उनके पजामे के नाड़े को खोल कर उसे उनकी जांघो से नीचे गिरा दिया।

अब गंगा बाबा का विशाल लंड मेरे मुंह के ठीक सामने था।

मैंने अपने छोटे छोटे हाथों से उनके विकराल लंड को उठा कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को बाद मुश्किल से अपने मूंह में भर लिया।

गंगा बाबा का लंड पहले से ही तन्ना रहा था। मेरे मुंह की गर्मी से कुछ ही क्षणों में उनका भीमकाय लंड लोहे की तरह सख्त हो गया और एक सपाट के खम्बें की तरह छत की तरफ उन्नत हो गया।

मैं अब बड़ी मुश्किल से उसे चूसने के लिये नीचे कर पा रही थी।

गंगा बाबा ने मुझे अपने लंड से अलग कर दीवान पर लिटा दिया। कमरे में अलग दीवानों पर अब नम्रता चाची और जानकी दीदी पूरी नग्न लेटी हुईं थी।

सुरेश चाचा जानकी दीदी की मांसल झांघों में अपना मुंह दबा कर उनके मीठी रतिरस को चाट रहे थे। उनकी कुशल जीभ अविरत जानकी दीदी की सिस्कारियां उत्पन्न कर रही थी।

बड़े मामा नम्रता चाची के विशाल गद्देदार स्तनों पर अपना पूरा वज़न डाल कर बैठे हुए थे। उन्होंने अपने हाथों से नम्रता चाची के सर तो ऊपर उठाया हुआ था जिस से वो उनके मूसल दानवीय लंड को चूस सकें।

मेरा ध्यान शीघ्र ही अपनी कसमसाती चूत पे वापस आ गया। गंगा बाबा ने अपने मूंह में मेरी चूत को भर का निर्ममता से उसे चूसने लगे। मेरी सिसकारी कामवासना और थोड़े दर्द से भरी हुई थी।

गंगा बाबा ने अपनी खुरदुरी जीभ से मेरे भगशिश्न को तरसाने लगे।मेरे नितिम्ब स्वतः दीवान से उठ कर मेरी चूत को गंगा बाबा के मुंह में दबाने लगे।

"गंगा बाबा अब मुझे चोदिये, प्लीज़," मैं कामवासना से छटपटा रही थी।

गंगा बाबा ने मेरे सुडौल टखनों को पकड़ मेरी मांसल झांघों को पूरा फैला कर मेरे अविकसित योनी द्वार को अपने वृहत लंड के आक्रमण के लिए खोल दिया।

गंगा बाबा का लंड बड़े मामा के लंड की तरह विशाल, लंबा और मोटा था।

गंगा बाबा ने मेरे पैर दीवान पर रख कर मेरी खुली मांसल झांगों के बीच अपने घुटनों पर बैठ गए।

गंगा बाबा ने अपने भीमकाय लिंग के सुपाड़े को मेरी गीली फड़कती हुई चूत के तंग रेशम जैसे नर्म मुहाने पे पांच छे बार रगड़ कर उसे स्थिर कर धीरे से मेरी चूत के अंदर दबाने लगे। मैं धीरे से सिसक उठी। मेरी कमसिन अविकसित चूत गंगा बाबा के सेब जैसे सुपाड़े के दवाब से चौड़ी होने लगी।

मैंने कस कर अपना निचला होंठ अपने दांतों के बीच दबा लिया। अचानक एक झटके से गंगा बाबा का पूरा सुपाड़ा मेरी नन्ही चूत के अंदर समा गया। मेरी चूत एक बार फिर से मोटे लंड के ऊपर अमानवीय आकार में फ़ैल गयी।

गंगा बाबा अपने लंड के सुपाड़े को मेरी चूत में फंसा कर मेरे ऊपर लेट गए। मैंने अपनी दोनों बाँहों से उनकी गर्दन को कस कर जकड़ लिया।

गंगा बाबा ने अपने खुले मूंह को मेरे सिसकते मूंह से कस कर चुपका दिया। उन्होंने अपने लंड के सुपाड़े को धीरे धीरे गोल गोल घुमा कर मेरी तंग योनि के द्वार को ढीला करने लगे।

मेरी सिस्कारियां मेरी तड़पती चूत की हालत बयान कर रहीं थीं।

मेरे कानों में पहले एक फिर दूसरी चीख भर गयीं। पहली चीख जानकी दीदी की थी और दूसरी नम्रता चाची की। स्पष्टः यह सुरेश चाचा और बड़े मामा के विशाल लंड का उनकी कोमल चूत पर बेदर्दी से आक्रमण का परिणाम था।

अगले दो तीन मिनटों तक जानकी दीदी और नम्रता चाची की दर्द और वासना भरी चीखें हाल में गूँज रहीं थीं। पर शीघ्र ही उनकी चूत विकराल लंडों के ऊपर फ़ैल गयीं।

अब हाल में उनकी सिस्कारियां गूंजने लगीं।

मैं अब और प्रतीक्षा नहीं कर सकती थी। मेरा धैर्य निरस्त हो चुका था, "गंगा बाबा मुझे चोदिये। अपना पूरा लंड मेरी छूट में डाल दीजिये।"

जैसे गंगा बाबा मेरी प्रार्थना का इंतज़ार कर रहे थे। उनके विशाल शक्तिशाली कुल्हे पहले एक बार सुकड़े फिर उनकी मज़बूत कमर के मिलेजुले प्रयास से उन्होंने अपना विकराल भीमकाय लंड निर्ममता से मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया। मेरी चीख जानकी दीदी और नम्रता चाची से भी ऊंची थी।

"गंगा ... बा आआआअ बा आआआआआ। आआआआह धीरे ऎऎऎऎए ... ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ... बहुत दर्द आआआह ... ," मैं दर्द से तड़प उठी।

पर गंगा बाबा ने सुरेश चाचा और बाद मामा की तरह जितनी निर्ममता से अपना लंड मेरी कमसिन चूत में ठूंसा था उन्होंने उसे बाहर खींच कर एक बार फिर उतनी बेदर्दी से से उसे मेरी योनि में जड़ तक डाल दिया।

गंगा बाबा ने मेरी चूत मर्दन जानलेवा भयंकर धक्कों से करना शुरू कर दिया।

मेरी चूत मुझे लगा की मानों फट जायेगी। पर अब मुझे ज्ञान हो चला था कि मेरी चूत पहले जितना भी दर्द करे पर थोड़ी देर में गंगा बाबा मोटे लम्बे लंड के आनंद से अभिभूत हो जायेगी।

गंगा बाबा ने मेरे होंठो को चूस कर उन्हें सुजा दिया।

मैं अब सिसक सिसक कर गंगा बाबा के लंड का स्वागत कर रही थी। उनका लंड मेरी रस से भरी चूत में सपक सपक की आवाज़े पैदा करते हुए रेल इंजन के पिस्टन की तरह अविश्वसनीय रफ़्तार से मेरी चूत में अंदर बाहर आ जा रहा था।

मैं गंगा बाबा से कस कर लिपट गए और मेरी जाँघों ने उनकी कमर को अपनी गिरफ्त में लेने का असफल प्रयास किया।

गंगा बाबा के वृहत भीमकाय मूसल ने पांच मिनटों में मुझे कामोन्माद के द्वार पर ला पटका।

"आआआआह ... गंगा बाबा ... आआआआअ मैं आने वाली हूँ," मैं वासना के ज्वार से सुलगते हुए बुदबुदाई।

गंगा बाबा ने मेरे सुबकते मुंह को अपने मर्दाने मुंह से दबोच लिया और उनका लंड अब दनादन मेरी चूत को बेरहम धक्कों से छोड़ रहा था।

शीघ्र ही मैं झड़ने लगी। मेरी सिसकारी हल्की सी चीख में बदल गयी।

गंगा बाबा ने बिना धीरे हुए मेरी चूत का मर्दन निरंतर अविरत भीषण धक्कों से करते हुए मेरे दुसरे रतिविसर्जन को तैयार कर दिया।

मैं अब वासना की आग से पागल सी हो उठी। मई सुबक सिअक कर अपनी चुदाई के आनंद के अधिक्य से बिलबिला रही थी।

मेरे कान अब जानकी दीदी और नम्रता चाची की सिस्कारियों की तरफ बेहरे हो गए थे। अब मेरा पूरा ब्रह्म्बांड मेरी चूत में पिस्टन की तरह चलते गंगा बाबा के विकराल लंड के ऊपर सिमट चुका था।

गंगा बाबा ने अपने धक्कों में और भी ज़ोंर लगाना शुरू कर दिया। मेरा पूरा शरीर उनके भारी विशाल शरीर के नीचे दबे होने के बावज़ूद उनके हर भीषण धक्कों से सर से पैर तक हिल रहा था।

मैं अब तक ना जाने कितने बार झड़ चुकी थी। मैं अब कामानंद के अविरत आक्रमण से हवा में डोलते पत्ते की तरह कांप रहे थी।

गंगा बाबा का लंड मेरी चूत में अभी भी एक बेदर्द धक्के के बाद दूसरा धक्का लगा रहा था।

मैं थोड़ी देर में नए रतिविसर्जन के आनंद से डोल उठी। मेरा मस्तिष्क उत्तेजना और कामानंद के प्रभाव से शिथिल हो जा रहा था।

मेरा आखिरी कामोन्माद इतना तीव्र गहन और प्रचंड था कि मैं एक चीख मार कर दीवान पर शिथिल हो कर निसहाय लेट गयी। मैंने अपने आप को गंगा बाबा और उनके भीमकाय लंड के ऊपर न्यौछावर कर उनके रहम और उनकी करुणा के ऊपर छोड़ दिया।

मुझे कुछ देर बाद होश सा आया।

गंगा बाबा का विशाल लोहे जैसे सख्त खम्बे की तरह मेरी चूत में जड़ तक समाया हुआ था।

मैंने गंगा बाबा के मुस्कुराते मुंह को लगभग मात्र-वात्सल्य सामान प्रेम से चुम्बनों से भर दिया। आखिर उन्होंने सुरेश चाचा, बड़े मामा के बाद मेरे सम्भोग ज्ञान को और भी परवान चड़ा दिया था।

गंगा बाबा धीरे से बोले, "नेहा बेटी, अब हमें आपकी चूत पीछे से घोड़ी बना कर मारनी है।"

मैं धीमे से मुस्कुराई और फुसफुसाई, "गंगा बाबा आप जैसे भी चाहें मेरी चूत मार लें।"

गंगा बाबा बड़े नाटकीय रूप से हँसे, "सिर्फ चूत, नेहा बेटा?"

मेरे शरीर में रोमांच की सिहरन दौड़ पड़ी। गंगा बाबा अपने अमानवीय विकराल लंड से मेरी गांड मारने का सन्देश दे रहे थे।

मैं सिर्फ उनकी आँखों में झांक कर मुस्कुरा दी, "गंगा बाबा, मैं तो लाचार आपके नीचे दबी हुई हूँ। मैं आपके जैसे शक्तिशाली पुरुष की किसी भी इच्छा का विरोध करने में बिलकुल असमर्थ हूँ।"

मेरी लज्जा भरी स्वीकृति सुन कर गंगा बाबा की आँखों में एक अजीब सी आदिमानव जैसे वहशी पुरुष की हवस की चमकार फ़ैल गयी।

गंगा बाबा ने मुझे अपनी इच्छा अनुसार पेट पर लिटा कर मेरे कन्धों को दीवान पर दबा दिया। मैंने अपना चेहरा अपने मुड़े हुए हांथों पर रख कर अपनी गांड हवा में ऊपर उठा दी। मेरे घुटने दीवान पर टिके हुए थे।

मैंने देखा कि अब जानकी दीदी सुरेश चाचा के ऊपर सवारी करते हुए उनके मोटे लम्बे लंड से अपनी चूत मरवा रहीं थीं।सुरेश चाचा उनके उछलते मचलते बड़ी बड़ी चूचियों को बेरहमी से मसल रहे थे पर जानकी दीदी सिसक सिसक कर उन्हें और भी प्रोत्साहित कर रहीं थीं।

बड़े मामा ने भी नम्रता चाची को घोड़ी बना कर, पीछे से भयानक हिंसक धक्कों से उनकी चूत मार रहे थे। नम्रता चाची के विशाल मुलायम भारी उरोज़ बड़े मामा के हर धक्के से गदराये खरबूज़ों की तरह लटक लटक कर आगे पीछे झूल रहे थे। बड़े मामा ने अपने फावड़े जैसे हाथों से नम्रता चाची के डोलते स्तनों को दबोच लिया और उन्हें कस कर मसलने लगे. बीच बीच में बड़े मामा नम्रता चाची के तने हुए मोटे लम्बे चूचुकों को भी बेदर्दी से खींच कर मसल देते थे।

नम्रता चाची भी सिसकारी मार कर बड़े मामा को अपनी विशाल चूचियों का मर्दन और भी निर्ममता से करने के लिए उत्साहित कर रहीं थीं।

बड़े मामा का हर धक्का नम्रता चाची को सर से पैर तक हिला रहा था।

मेरा ध्यान अपनी चूत पर गंगा बाबा के लंड के स्पर्श से फिर से अपनी चुदाई पर केन्द्रित हो गया।

गंगा बाबा ने अपने दानवीय सुपाड़े को मेरी रतिरस से भरी चूत में फंसा कर मेरे दोनों नितिम्बों को अपने मर्दाने शक्तिशाली हांथों से जकड़ कर मुझे अपने लंड के आक्रमण के लिए बिलकुल स्थिर कर लिया।

मैं अब हिल भी नहीं सकती थी। मैं गंगा बाबा के भीमकाय लंड के निर्दयी धक्के के लिए अपनी तरफ से बिलकुल तैयार थी पर फिर भी जैसे ही उन्होंने एक गहरी साँस ले कर एक क्रूर धक्के में अपना विकराल मूसल मेरी फड़कती चूत में जड़ तक ठूंसा तो मेरे हलक से एक चीख उबल पड़ी।

गंगा बाबा ने मेरी चूत का मर्दन पहले की तरह बहुत तेज़ और बहुत ही भारी धक्कों से करना प्रारंभ कर दिया।

उनके लंड का हर धक्का मानो मेरे अस्थिपंजर हिलाने के लिए ढृढ़ संकल्पी था।

पर मेरी चूत अब गंगा बाबा के हिंसक धक्कों का हार्दिक स्वागत कर रही थी।

एक बार जब गंगा बाबा मेरी चुदाई की लय से संतुष्ट हो गए तो उन्होंने आगे झुक कर मेरे कमसिन स्तनों को अपने बड़े हात्नों में भर कर उन्हें मसलने लगे।

मेरी सिस्कारियां जब शुरू हुईं तो उन्होंने रुकने का नाम ही नहीं लिया।

मैं सिसक सिसक कर गंगा बाबा को अपने रति विसर्जन का हाल सुना रही थी, "आआअह ... गंगा आआआआ ...बाआआआआ ... बाआआआआआआ मैं फिर से झड़ रही हूँ। बाबा आआआअ ...अन ... अन ... अन ...अन अर्ररर आरर नन्न ... मेरी चूत ...आआअह। मैं तो मर जाऊंगी बाबा आआआअ।"

मेरे वासना से लिप्त अनर्गल बकवास की गंगा बाबा ने पूर्ण रूप से उपेक्षा कर मेरी घनघोर चुदाई की तेज़ी और प्रचंडता बिलकुल भी कम नहीं होने दी।

एक के बाद एक मेरे रति विसर्जन मेरे अल्पव्यस्क शरीर को तड़पा रहे थे। मेरा शरीर आनंद भरे कामोन्माद के दर्द से करहा उठा।

"गंगा बाबा मेरी चूत में अब झड़ जाइये। आपने मुझे बिलकुल ही थका दिया।" मैंने ने अपने नए ताज़े रति विसर्जन के अतिरेक से कांपते शरीर को बड़ी मुश्किल से घोड़ी की अवस्था में रख पा रही थी।

पर गंगा बाबा ने जैसे मेरे अनुरोध को बिलकुल उन्सुना कर दिया और वो और भी ज़ोर से मेरी चूत मारने लगे।

घंटे से भी ऊपर की भीषण चुदाई से मेरा अविकसित शरीर थक कर चूर हो चला था।

आखिर जब गंगा बाबा ने अपना पूरा लंड मेरी चूत से बाहर निकाल कर असीम क्रूरता से मेरी चूत में धकेला तो मेरे शिथिल होता शरीर की मांसपेशियों ने गंगा बाबा के भयंकर चूत-मर्दन धक्के के बल के सामने समर्पण कर दिया।

मैं दीवान पर पेट के बल लुढ़क पड़ी।

गंगा बाबा का लंड मेरे आगे गिरने से मेरी चूत से निकल पड़ा।

गंगा बाबा ने किसी अदि मानव की गुर्राहट जैसे आवाज़ निकाल कर अधीरता से मेरे कांपते नितिम्बों और झांघों को फैला कर मेरे ऊपर अपना पूरा वज़न डाल कर लेट गए।

उनका विकराल अस्तुन्ष्ट लंड ने अपने आप से मेरी जलती चूत के द्वार को ढूंढ लिया।

गंगा बाबा ने दो भीषण धक्कों में अपना पूरा लंड मेरी चूत में आखिरी इंच तक ठूंस दिया।

उस अवस्था में मेरी अल्पव्यस्क तंग योनि और भी कस गयी थी। मुझे लगा जैसे गंगा बाबा का लंड और भी मोटा हो गया था।

मेरे थके शरीर ने सिर्फ हल्की सी दर्द भरी सिसकारी मार कर अपनी झांघें और भी फैला दीं।

गंगा बाबा ने बेदर्दी से मेरी चूत मारते हुए मेरे गालों को चुम्बनों से गीला कर दिया।

"नेहा बेटा, मैं अब आपकी चूत में झड़ने वाला हूँ।' गंगा बाबा ने गुर्रा कर और भी ज़ोर से अपना लंड मेरी छूट में जड़ तक ठूंस दिया।

मैं सिर्फ अनर्गल बुबुदाहत के अलावा कुछ और बोल क्या सोच भी नहीं पा रही थी।

मेरा सारा आनंद अब गंगा बाबा के गरम जनक्षम वीर्य की फुहार के लिए उत्तेजित और उत्सुक था।

गंगा बाबा के चुदाई के लय अब अनियमित हो चली। उनकी बालों भरी महाकाय पेड़ के तने जैसी झांघें मेरे गुदाज़ नितिम्बों के ऊपर थप्पड़ जैसे प्रहार करते हुए उनके लंड को मेरी चूत में अपनी संतुष्टी की तलाश में बेदर्दी से अंदर बाहर कर रहीं थीं।

अचानक गंगा बाबा ने अपना मुंह मेरे बिखरे सुगन्धित घुंघराल बालों में दबा कर मुझे ज़ोर से अपनी बाँहों में भींच लिया।

उनके लंड का हर स्पंदन मेरी चूत में सिहरन भर देता था।

उनके पेशाब के छेड़ से फूटी पहली वीर्य की मोटी भारी धार ने मेरे योनि की दीवारों को नेहला दिया। मैं गंगा बाबा के गरम वीर्य की फुहार के प्रभाव से सिसक उठी।

गंगा बाबा के लंड ने एक के बाद एक अपने गरम गाढ़े वीर्य की मोटी धार से मेरी चूत को लबालब भर दिया।

मैं गंगा बाबा के गरम वीर्य की फुहारों फुहारों से अपनी चूत के स्नान से विचलित एक बार फिर से झड़ गयी।

मेरे सुबकते मुंह से एक ऊंची सिसकारी उबल उठी और मेरा शिथिल शरीर बेहोशी के आलम में दीवान पर ढलक गया।

मुझे याद नहीं की गंगा बाबा के लंड ने कितनी देर तक उनके गरम वीर्य की बारिश से

मेरी चूत को सराबोर किया।

मैंने अपनी आँखे बंद कर अपना शरीर बिलकुल ढीला छोड़ दिया।

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