नेहा का परिवार 12

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"अंकु अब मेरी गांड में अपना लंड खोल दो। अब अपने लंड से मेरी गंदी गांड को नहला दो। आँ... आँ...आँ... आँ...आँह... ऊँह... अंकू... ऊ ...ऊ... ऊ... ऊ... , मैं फिर से आ रही हूँ," मम्मी का मीठा खुशी का विलाप कमरे में गूँज रहा था।

डैडी ने तीन चार बार पूरे के पूरा लंड सुपाड़े से जड़ तक मम्मी की गांड में ठूंस कर उनके ऊपर गिर पड़े। मम्मी ने अपनी टांगें डैडी की कमर के ऊपर गिरा दीं। उनकी सुंदर गोल बाँहों ने हाँफते हुए डैडी को प्यार से कस कर जकड़ लिया। डैडी मम्मी के शरीर पसीने से लथपत हो चुके थे।

मम्मी ने प्यार से डैडी के पसीने से भीगे माथे को चूम लिया जैसे मैं और मम्मी अक्कू के माथे को चूमती थीं।

मम्मी के मुलायम नाज़ुक हाथ हाँफते हुए डैडी के सर के ऊपर प्यार से उनके बालों को सेहला रहे थे। मम्मी भी हांफ रहीं थीं।

अक्कू और मैंने डैडी और मम्मी को प्यार से लिपटे हुए काफी देर तक देखा और फिर हम दोनों एक दुसरे का हाथ कस कर पकड़ कर मम्मी और डैडी के शयन-कक्ष से धीरे से बाहर निकले और फिर मेरे कमरे की तरफ हलके पैरों से भागने लगे।

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७५

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कमरे में पहुँचते ही अक्कू और मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। कुछ ही क्षणों में हम दोनों पूर्णतया नंग्न थे। मैंने बिना एक क्षण व्यतीत किये अपने घुटनों पर बैठ कर अपने छोटे भैया का गोरा चिकना सुंदर अपने हाथों में भर कर उसका सुपाड़ा अपने मुंह में ले लिया। अक्कू का लंड लगभग पूरा खड़ा हो चूका था और जो भी कमी बची थी वो उसके लंड के मेरे मुंह में जाते ही सम्पूर्ण हो गयी।

अक्कू ने सिस्कारी मारी ," ओह दीदी। मेरा लंड चूसिये। " मुझे अक्कू से मुंह से नए अश्लील शब्द सुन बहुत अच्छा लगा।

मैंने मम्मी की तरह अक्कू का लंड और भी अपने मुंह में लेने का प्रयास किया। पर आधे से भी कम लम्बाई मुंह में लेते ही अक्कू का लंड मेरे गले में फंसने लगा और मेरी मुंह से ज़ोर से 'गोंगों' की आवाज़ उबल पड़ी।

अक्कू ने अपना लंड मेरे मुंह से अपना लंड बाहर खींचने का प्रयास किया। मैंने उसके भारी चिकने चूतड़ों को हाथों से पकड़ कर रोक लिया।

"अक्कू तुमने देखा था मम्मी को डैडी का लंड मुंह में लेते हुए। तुम मेरे मुंह में वैसे ही अपना लंड डालो। घबराओ नहीं जैसे मम्मी को डैडी का लंड अच्छा लगा था वैसे ही मुझे भी अच्छा लगेगा। जब तुम झड़ोगे तो पहले मेरे मुंह में झड़ना," मैंने अक्कू को स्पष्ट कर दिया कि जो ही हमने उस रात सिखा था उसका अच्छे से अभ्यास करने से ही मैं उसके लंड की देखबाल कर सकती हूँ।

अक्कू ने सर हिला कर अपनी सहमति दिखाई। उसके हाथों ने मेरे सर को कस कर पकड़ लिया जैसे डैडी ने मम्मी के साथ किया था। फिर अक्कू ने मेरे मुंह को अपने लंड पर दबाया और अपने चूतड़ों के धक्के से अपना लंड मेरे मुंह में आधे से भी ज़यादा मेरे हलक में ठूंस दिया। मेरे मुंह से ज़ोर से उबकाई जैसी आवाज़ मेरे न चाहते हुए भी निकल गयी मैंने अक्कू के चूतड़ों पर अपने हाथों से दवाब दाल कर उन्हें और भी अपने समीप खींचने लगी। मेरा स्याना भाई मेरे बात समझ गया।

उसने अपने मोटे लम्बे लड़ से मेरे मुंह की चुदाई शुरू करदी। हमारे कमरे में मेरी 'गोंगों ' की दयनीय आवाज़ें गूंजने लगीं। मेरा गला दर्द करने लगा पर मैं अक्कू की सिसकारी से और भी उत्तेजित हो रही थी। आंसू मेरी नाक में बहने लगे। मैंने बहुत सुड़कने की बहुत कोशिस की पैर मेरे आंसू मेरी नासिका से बहने लगे। मेरी लार भी मी मुंह टपक कर मेरी छाती को भिगो रही थी। इस सब होने के बावज़ूद मुझे मुंह चोदना इतना अच्छा लग रहा था कि मेरी चूत गीली होने लगी। पहले तो मुझे लगा कि मेरा पेशाब निकलने वाला था ।

अक्कू अब तक अभ्यस्त हो गया और उसने भीषण तेज़ लय बना ली थी। उसका लंड मेरे गोंगों करते गले को निर्मम प्यार से चोदता रहा। मुझे लगा कि अक्कू ने मेरा मुंह कई घंटों तक चोदा पर शायद एक घंटे की अवधी अधिक सम्भावित है।

अक्कू ने अजीब सी गुर्राहट की आवाज़ निकाली और उसका लंड मेरे मुंह में फट पड़ा। उसके लंड से उबली मीठी ने मेरे मुंह को भर दिया और मेरे हलक के उबकने के साथ मेरे मुंह और नाक में से बह निकला।

पर उसके बाद मैंने एक बूँद भी बर्बाद होने दी और अक्कू के लंड से निकली अनेक धार को मैं प्यार से सतक गयी। मुझे अक्कू के झड़ने का स्वाद उसकी महक जितना ही अच्छा लगा।

मैं और हांफ थे। अक्कू का चेहरा ठीक डैडी के चेहरे संतुष्टी सेदमक रहा था। हम दोनों पहले अभियान के सफलता से कि पागलों की तरह एक दुसरे से लिपट कर लगे। अक्कू मुझे इतनी बार चूमा कि मैं और भी खिलखिला कर हंस दी।

अक्कू चेहरा चूम कर अपने थूक से लस दिया। फिर उसने मुझे पलंग पर कमर के बल लिटा कर मेरी टांगें चौड़ा दीं।

अक्कू ने मेरे होंठों को चूसा फिर मेरे खुले मुँह में अपनी जीभ घुसा दी। हमरा वो बड़ों जैसा चुम्बन बहुत ही बेढंगा था पर हमारे लिए उसमे उतना ही प्यार और उत्तेजना थे जितनी आज है।

अक्कू ने मेरे छाती के उभारों को डैडी के नक़ल करके ज़ोरों से मसलना लगा। मेरी दर्द भरी सिसकारी तो निकली पर मैंने अक्कू का हाथ अपने हाथ से अपनी छाती पर और भी कस कर दबा लिया।

अक्कू ने मेरे मटर के दानों जैसे छाती की घुन्डियाँ अपनी उंगली और अंगूठे में दबा कर स कर मसल दीं.

" आह अक्कू ऊ आंह ," मेरे मुंह से निकली लम्बी दर्द भरी सिसकारी ने अक्कू की प्रंशसा सी की।

अक्कू ने मेरा निचला होंठ दातों तले दबा कर कसके काट लिया। मेरी हल्की सी चीख निकल गयी पर मेरी मोटी गोल जांघों के नीचे में मेरी चूत से बहता पानी इकठ्ठा होने लगा।

अक्कू ने मेरे एक घुंडी अपने मुंह में ले ली और दूसरी को बेदर्दी से मसलने लगा। मेरे मम्मी जैसे मुलायम विशाल चूचियाँ तो नहीं थी पर अक्कू ने मेरी छाती के मोटे उभारों को उतनी हे निर्ममता से मसला जैसे डैडी ने मम्मी के पसुंदर चूचियों को किया था।

मेरे दर्द भरी सिस्कारियों में एक नया आनंद था ज मैंने कभी भी नहीं महसूस किया था।

'अक्कू, हाय अक्कू और ज़ोर से मसलों अक्कू," मैं बिना सोचे बोल उठी।

अक्कू ने मेरी दोनों घुन्डियाँ और छाती के उभारों को मसलते हुए अपना मुंह मेरी जांघों के बीच में दबा दिया। जैसे ही मेरे छोटे भाई का मुंह मेरे गुलाबी संकरी दरार पर लगा मैं चिहुंक गयी और मैंने ज़ोर से फुसफुसाया , "अक्कू मेरा अक्कू। "

अक्कू ने अपने जीभ से मेरे चूत की पूरी दरार को चूम कर चाटने लगा। पता नहीं कैसे प्राकर्तिक रूप से मेरी चूत की दरार के दोनों छोटे से होंठ अलग हो गए और अक्कू की जीभ ने मेरे चूत के अंदर के द्वार को चाटते हुए मेरे पेशाब के छेड़ को ले कर मेरे चूत के ठेक ऊपर एक और मेरे छाती की घुंडी से भी छोटी घुंडी को अपने जीभ से संवेदन शील कर दिया।

मेरे चूतड़ पलंग से ऊपर उठ गए ," अक्कू यह तो बहुत अच्छा था। एक बार फिर से करो अक्कू। "

अक्कू ने अब बिना रुके मेरे छातियों को मसलते हुए मेरी चूत चटनी शुरू की तो तभी रुका जब मैं अचानक झड़ने लगी।

मेरी सांस मनो मेरे गले में अटक गयी। मेरा गोल मटोल शरीर तन कर कमान हो गया। अक्कू ने मेरे चूतड़ों को बिस्तर में दबा लिया पर फिर भी मैं हवा में थी।

फिर मेरे नीचे के पेट में तेज़ दर्द उठा जो जल्दी से मेरी चूत में पहुँच गया। उसके बाद तो मानों मेरा पूरा शरीर बुखार से जलने लगा।

मैं घबरा के चीखी , "अक्कू, मुझे कुछ हो रहा है। अक्कू... अक्कू... मेरा अक्कू ऊ.. ऊ... ऊ... हाआआय... ," और मैं पलंग पर वापस शिथिल हो कर ढलक गयी।

अक्कू एक क्षण के लिए भी बिना रुके मेरी चूत छॉटे रहा। मेरी चूत में उसके चाटने से एक अजीब सा दर्द हो रहा था। अक्कू ने मेरी उसे रुक जाने की विनतियां को उनसुना कर दिया। अक्कू ने डैडी से एक रात में बहुत कुछ सीख लिया था।

और वातव में मैं भी मम्मी की तरह कुछ देर में अक्कू को उकसा रही थी ,"अक्कू और ज़ोर से मेरी चूत चूसो। अक्कू अपने जीभ अंदर डाल दो। "

अक्कू ने तो मेरी निर्देशों से भी आगे बढ़ गया। अक्कू अब मेरी गांड के छेद से ले कर मेरी पूरी चूत चाट रहा था। अब तक मैं समझ गयी थी कि अक्कू ने मुझे झाड़ दिया था। मैं खुशी से दूसरी बार झड़ने की प्रतीक्षा करने लगी।

अक्कू की जीभ अब मेरे पूरे शरीर में आग सी लगा रही थी। मैं कुछ मिनटों में ज़ोरसे चीख कर फिर से झाड़ गयी। अक्कू ने मेरे हाँफते हुए शरीर को बाँहों में भर लिया।

मैंने अक्कू के होंठों पर अनगिनत प्यार से भरी पुच्चियाँ जमां दीं।

हम दोनों दस पंद्रह मिनट तक अपनी साँसे ठीक होने का इंतज़ार करते एक दुसरे को हलके हलके चूम रहे थे। मैंने अक्कू के उन्नत खम्बे जैसे खड़े लंड को सहला कर और भे सख्त कर दिया। मुझे अक्कू की रेशम जैसी चिकनी त्वचा का स्पर्श बहुत अच्छा लग रहा था।

फिर मैंने अक्कू से पूछा ,"अक्कू तुम अब मेरी गांड मारने के लिए तैयार हो? तुम्हे याद है न कैसे डैडी ने मम्मी की गांड मारी थी?"

अक्कू ने थोडा डरते हुए कहा ," मम्मी को तो बहुत दर्द हुआ था , सुशी दीदी। " अक्कू मुझे बहुत प्यार करता है और तब वो और मैं भी प्यार भरे दर्द और दर्द भरे दर्द के बीच के अंतर से अनभिज्ञ थे।

"अक्कू यदि मम्मी डैडी को गांड मारने से मज़ा आता है तो शायद दर्द भी उसके लिए ज़रूरी है। " मैंने छद्म-विज्ञान से उपजी परिकल्पना का सहारा लिया।

अक्कू ने फिर मुझे कायल कर दिया ,"पर दीदी हमारे पास डैडी वाले ट्यूब कहाँ है?"

मैंने माथा सिकोड़ कर सोचा। डैडी ने उस ट्यूब को अपना लंड और मम्मी की गांड को गीला करने के लिए इस्तेमाल किया था। मुझे याद आये कि कितनी बार मम्मी जब अपनी अअंगूठी आसानी से उतार नहीं पाती थीं तो वो अपनी उंगली को मुंह में ले कर गीला कर लेती थीं और फिर उनकी अंगूठी आसानी से निकल आती थी।

मैंने खुश खुश इस समस्या का हल अक्कू से बात लिया।

"अक्कू मैं तेरे लंड को मुंह से गीला कर दूंगी और तू मेरी गांड गीली कर देना बस उस से काम बन चाहिए ," मैं अपने प्यारे भैया के साथ आज की इकट्ठी की सारी शिक्षा का अभ्यास करने के लिए उतावली थी।

अक्कू ने मुझे मम्मी की तरह घोड़ी की तरह कोहनियों और घुटनों पर पलट दिया। उसने मेरे मुंह में अपना लंड घुसा दिया ,"दीदी, थूक लगा दीजिये। मैं आपको कम से कम दर्द करना चाहता हूँ। "

मुझे तो मेरा अक्कू जान से भी प्यारा था और तब मैं कहाँ से और प्यार लेके आती उसके लिए?

मैंने अक्कू के लंड को अपने ठोक से लिसलिसा कर पूरा गीला कर दिया।

अक्कू ने मेरी गांड के छेद को खूब अच्छे से चूसा और अपना थूक मेरी गांड के ऊपर उलेढ़ दिया।

अब मेरी गांड की चुदाई का समय आ गया था। मेर्रे तीव्र इच्छा के बावज़ूद भी मेरा दिल और भी तेज़ धड़कने लगा और मेरा गला सूख गया। अक्कू का लंड बहुत ही मोटा है , मेरे दिमाग में से यह ख्याल निकल ही नहीं पाया।

मेरी गांड के नन्हे छेद के ऊपर अक्कू के गरम और गीले मुंह के प्रभाव ने मेरी अविकसित चूत में हलचल मचा दी। मुझे बिना किसी पहले अनुभव के बिना भी अब अपनी गांड में कुछ अंदर लेने की इच्छा जागृत हो चली थी।

"अक्कू ,अब अपना लंड मेरी गांड में घुसा दो, प्लीज़। वह मुझे बहुत है अब ," मैं अब जल रही थी पर मुझे बाद में पता चलेगा कि वो कामवासना का ज्वर था।

अक्कू ने हमेश के तरह अपनी दीदी की इच्छा का पालन किया। अक्कू ने अपने मोटे लंड के सुपाड़े को मेरी थूक से सनी गांड के छिद्र पर कस कर दबाया। मुझे ऐसा लगा कि अक्कू ने अपनी मुट्ठी मेरी गांड पर लगा दी हो। अक्कू ने और भी ज़ोर लगाया। पर मुझे सिर्फ दर्द होने के अलावा, कुछ और नहीं हुआ।

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७९

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"अक्कू डैडी ने जैसे ज़ोर से अपना लंड मम्मी की चूत के घुसाया था उसी तरह से प्रयास करो। मेरे दर्द की बिलकुल परवाह नहीं करना। तुम्हें मेरी कसम है अक्कू भैया," मैंने अपना निचला होंठ दातों से कस कर दबाते हुए कहा।

पर अक्कू का लंड मेरी नन्ही गांड में घुस ही नहीं पा रहा था। अक्कू ने विफलता से कुंठित से हो कर अपना लंड मेरी गांड से हटा लिया और जब तक मैं कुछ बोल पाती अपने तर्जनी एक झटके में मेरी गांड के अंदर घुसा दी।

मैं बिलबिला कर चीख उठी अक्कू ने मेरे निर्देशानुसार मेरी चीख की उपेक्षा कर दी। मेरी आँखों में आंसू भर गए। मैं अभी अक्कू के एक उँगली के दर्द से सम्भली भी नहीं कि अक्कू ने अपने मझली उँगली भी तरजनी के साथ मेरी गांड में एक झटके से घुसा दी। मैं फिर से दर्द के आधिक्य से बिलबिला कर चीख उठी। अक्कू ने बिना मेरे दर्द की परवाह किये मेरी गांड को अपनी दो उँगलियों से मारने लगा। मेरी गाड़ में दर्द के अलावा उसके छल्ले पर बेहद जलन भी हो रही थी। अक्कू ने अपनी पूरी उंगलियां गांड में ठूंस दीं। मेरी गांड में दर्द के साथ साथ एक नया संवेदन भी जाग उठा। जब अक्कू की उँगलियाँ मेरी गांड के बहुत भीतर के भाग को कुरेदती थीं तो मेरे पेट में अजीभ से कुलबुलाहट पैदा हो जाती थी।

मेरा दर्द अब कम होने लगा। मुझे दर्द के बीच में एक नये आनंद की अनुभूति भी होने लगी।

अक्कू ने दस पंद्रह मिनटों तक दो उंगलीओं से मेरी गांड मारी अब मुझे गांड में से अनोखा आनंद आने लगा जिसने दर्द के तूफ़ान को मंद कर दिया।

"अक्कू अब मुझे समझ आया कि मम्मी गांड मारने का दर्द बर्दाश्त कर रहीं थीं। अक्कू मैं तुम्हारे लंड का अपनी गांड में घुसने का इंतज़ार नहीं कर सकती ," मैं अब एक दूसरी ही की 'पीड़ा ' से कुलबुला रही थी।

अक्कू ने मेरे हृदय की पुकार सुन ली और अपनी उंगलियां बाहर निकाल कर उन्हें मुंह में भर कर चाट लीं ,"उफ़ अक्कू यह क्या कर रहे हो? गंदी उंगलियां क्यों मुंह में डालीं? " मैंने दिखावे के लिए अक्कू को झिड़की दी थी पर मेरा दिल अक्कू की क्रिया से पुलकित हो गया था।

अक्कू ने मुस्करा कर कहा ," दीदी आपने स्वाद लिया होता तो मुझे नहीं डाँटतीं,"

अक्कू का लंड का वृहत सुपाड़ा एक बार फिर से मेरी गांड के छेद पर दस्तक देने लगा। इस बार अक्कू ने पूरी ताकत लगा कर एक ज़ोर से झटके जैसा धक्का मारा और मेरी गांड का छेद यकायक खुल गया और मेरे छोटे भैया का सुपाड़ा मेरी गांड को चीरता हुआ मेरे मलाशय में घुस गया।

"अक्कू मैं माआआअर गयीईईई। ...," मैं असहाय दर्द से बिलबिलाती हुई चीख उठी। मेरी आँखों से तुरंत आंसू बहने लगे। मैंने फिर भी अक्कू के मज़बूत हाथों से छुड़ने का कोई प्रयास नहीं किया।

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८०

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अक्कू ने बिना मेरी चीख पर ध्यान दिए एक और भयंकर धक्का मारा और उसका लंड कुछ और मेरी कुंवारी गांड के भीतर घुस गया। अब मेरी चीखें हमारे कमरे में गूँज रहीं थीं। मैं सुबक सुबक कर रो रही थी पर अक्कू ने एक के बाद एक ताकत भरे धक्कों से आखिरकार अपना पूरा लंड मेरी गांड में जड़ तक ठूंस दिया।

अक्कू ने मेरी कांपती पीठ को प्यार से सहलाया ," सॉरी दीदी, आपने ही मुझे कहा था पूरा लंड डालने को। "

मैं अक्कू को आश्वासन देना चाहती थी पर दर्द से सुबकते हुए मेरे से कोई शब्द ही नहीं बन पा रहे थे। अक्कू ने पूछा, "दीदी मैं रुक जाऊं या गांड मारना शुरू कर दूं?"

बेचारा अक्कू एक तरफ तो अपनी दीदी के रोने से दुखी था और दूसरी तरफ उसे मेरे हुए दिए निर्देश का पालन भी करना था। मैंने बड़ी मुश्किल से अपना सर हिला कर उसे गांड मारने के लिए प्रोत्साहित किया। अक्कू ने अपना लंड बाहर निकाला और उसकी घबराहट की सिसकी से मैं भी घबरा गयी। अक्कू को मेरी गांड में लंड घुसाते हुए लंड पर चोट तो नहीं लग गयी.

मैंने सुबकते हुए मुश्किल से फुसफुसा कर पूछा ," अक्कू, तुम्हारा लंड तो ठीक है?"

"दीदी, आपकी गांड से खून निकल रहा है। मैं क्या करुँ?" अक्कू की आवाज़ की घबराहट में मेरे लिए प्यार और मेरी हिफाज़त की फ़िक्र थी।

"अक्कू मम्मी के भी गांड से खून निकला होगा पर डैडी ने तो उसका ज़िक्र भी नहीं किया। तुम मेरी गांड डैडी की तरह मारो। मम्मी की तरह मेरी गांड भी कुछ देर में ठीक हो जायेगी, " मेरा अक्कू को दिया आश्वासन पर खुद मुझे उतना भरोसा नहीं था।

अक्कू ने मेरे कांपते चूतड़ों को कस कर पकड़ कर अपना लंड डैडी की नकल करते हुए बेदर्दी से मेरी गांड में एक धक्के के बाद दुसरे धक्का मारते हुए फिर से जड़ तक ठूंस दिया। मैं चीख उठी और मेरी सुबकियां और भी ज़ोर से कमरे में गूंजने लगीं। पर इस बार मेरे छोटे भैया ने अच्छे बच्चे की तरह मेरे निर्देशों का पालन करते हुए अपना लंड जल्दी से बाहर निकाल कर पूरी ताकत से मेरी गांड में वापस घुसा दिया।

अक्कू ने मेरी गांड मारनी शुरू की तो बिना रुके उसने अपने लंड को मेरी तड़पती फटी हुए गांड में अंदर बाहर करने लगा। मेरी चीखें बहुत देर बाद मद्धिम हो गयी पर मेरे सुबकियां तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं।

अक्कू का लंड मेरी जलती दर्द भरी गांड में तूफ़ान की तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था। मुझे दर्द से सुबकते हुए भी अपने नन्हे भाई पर अभिमान आ रहा था कि कितनी जल्दी उसने डैडी की तरह मेरी गांड मारने की कला की दक्षता दिखाने में सफल हो गया था।

दर्द और पीड़ा से मेरे माथे, ऊपर के होंठ पर पसीना आ गया था।

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८१

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अक्कू ने मेरी गांड मारने की रफ़्तार को बिलकुल धीमा नहीं होने दिया। मैं अब सुबकना बंद कर दिया था। मुझे अभी तक गांड से उस आनंद का आभास नहीं हो रहा था जैसे अक्कू की उँगलियों से होने लगा था। फिर भी मेरी गांड में अब दर्द बर्दाश्त होने लगा था। मुझे पहले दर्द और फिर अक्कू की आनंद भरी सिस्कारियों ने इतना तल्लीन कर लिया था कि समय का कोई अंदाज़ हे नहीं रहा। पर मुझे थोडा अंदाज़ा था कि अक्कू मुझे एक घंटे से चोद रहा था।

"दीदी मेरे लंड से पहले की तर्क का पानी निकलने वाला है ,' अक्कू ने दांत किसकिसा कर कहा।

"अक्कू तुम झड़ने वाले हो। जैसे मम्मे और डैडी झड़े थे, और तुम स्नानगृह में झड़े थे ," मुझे गांड मरवाते हुए भी बड़ी बहन के छोटे भाई की शिक्षा के उत्तरदायित्व का पूरा ख़याल था।

अक्कू के लंड ने गरम द्रव्य की फ़ुहार मेरी गांड में खोल दी। पहले तो मैंने हर बौछार को गिना पर अक्कू रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था और मैं गिनती भूल गयी।

अक्कू ने हाँफते हुए मुझे अपनी बाँहों में जकड लिया , " दीदी आप भी जड़ गयीं?"

मैं शुरू के दर्द से आने की स्थिति में नहीं थी पर मुझे न जाने कैसे समझ आ गया था कि अक्कू को यह सुन कर दुख होगा , "क्या तुम बहन ढूंढ रहे और अपनी बहन की गाड़ न मारने का? यदि मैं आ गयी तो तुम मेरी गांड मारना बंद कर दोगे?"

अक्कू ने मेरी पसीने से भीगी पीठ को प्यार से चूम कर कहा ," दीदी आपकी गांड मारना तो मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं बता ही नहीं सकता। देखए मेरा लंड अभी भी पूरा खड़ा है। यदि आप थकी नहीं हो तो मैं दुबारा गांड मारना शुरू कर दूं?"

नेकी और पूछ पूछ। मैंने खुशी से लपक कर कहा ," अक्कू तुम मेरी गांड जितनी देर तक और जितनी बार मारना चाहो मारो। मैं तो चाहूंगी कि तुम रोज़ मेरी गांड मारो और मैं तुम्हारा लंड भी चूसूंगी। "

"दीदी, आप मुझे अपनी चूत और गांड भी चूसने देंगीं ना?" अक्कू ने जल्दी से आश्वासन मांगा।

"बिलकुल मेरे भोले भैया ," मेरी छोटी से हंसी निकल गयी और एक क्षण बाद ही मेरी चीख बात करते हुए अक्कू ने अपने लंड निकल कर मेरी गांड मारने की तैयारी कर ली थी और दो तीन खुन्कार धक्कों से अपना लंड मेरी गांड में हुआ दिया।

इस बार मेरी चीख में दर्द के साथ विचित्र सा अनद भी शामिल था ,"हाय अक्कू तुम्हारा लंड मेरी गांड में जाते हुए बहुत अच्छा लग रहा है। भैया ज़ोर से अपनी बड़ी बहन की गांड मारो।

अक्कू ने अपनी बहन के निर्देश और निवेदन का अपने पूर्ण शक्ती से प्रतुत्तर दिया। अक्कू ने मेरी गांड का मर्दन भीषण धक्कों से करना शुरू कर दिया। दर्द और आनंद के मिश्रित लहर मेरे शरीर में बिजली की तर्क कौंध गयी। मेरी सिस्कारियां मध्यम से तीव्र हो गयीं।

"अक्कू मेरे प्यारे भैया मेरी गांड और ज़ोर से मारो। अक्कू अब तो बहुत ही अच्छा लग रहा है, " मैं मम्मी के तरह कामाग्नि से जल रही थी। हमारे अविकसित शरीर अब शारीरिक प्रेम की भूख से परिचित हो चले थे। थोड़े से ही अनुभव से हम दोनों बहन-भाई उस भूख को भुजाने की तरतीब भी समझ गए थे।

अक्कू का लंड मेरी गांड में सटासट एंड बाहर हो रहा था। उसके लंड पर मेरे पहली गांड की चढ़ाई का खून, उसका वीर्य और मेरे गांड के रस का मोटा सा लेप चढ़ चूका था। कमरे में मेरी गांड के मनोहर महक फ़ैल गयी थी। हम दोनों उस सुगंध से और भी उत्तेजित हो गए।

"दीदी, दीदी, मुझे आपकी गांड मारना बहुत अच्छ ... हुन ," अक्कू ने हचक कर अपना लंड निर्मम प्रहार से मेरी गांड में जड़ तक डालते हुए कहा।

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८२

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मेरी चेहरे पर पसीने की बूंदे छा गयी थीं, "मुझे भी तुम्हारा लंड अच्छा लग ...ओ...ओ...ओ... ओह ... अक्कू मैं अब आने वाली हूँ ," अचानक मेरा शरीर मेरे रति निष्पति के द्वार पर खड़ा था।

मैं वासना के ज्वर से प्रताड़ित कांपते हुए चीखी ," अक्कू मेरी गांड फाड़ डालो पर मुझे झाड़ दो। अक्कू मेरे अक्कू मारो मेरी गांड ... आँ... आँ... आँ...आँ...आँ...ओऊन्न्ग्ग्ग...अाॅन्न्ह...अक्कू ," मैं चीखते हुए झड़ने लगी।

मेरी छोटी से ज़िंदगी में वो सबसे प्रचंड रति-निष्पति थी। उसकी तीव्रता से मेरी सांस मेरे गले में अटक गयी। मेरे पेट में एक अजीब सा दर्द फ़ैल गया। मेरे सारा शरीर अकड़ गया और फिर मानों एक सैलाब मेरे शरीर में बाँध तोड़ कर बाढ़ की तरह सब तरफ फ़ैल गया।

मैं बेबस अपने चरम-आनंद के प्रचंड झोंकों से कांप-कांप कर अपने भाई को दुहाई दे रही थी ," अक्कू मेरे अक्कू मेरे प्यारे अक्कू मुझ और झाड़ो। "

अक्कू को उस कच्ची उम्र में भी मम्मी और डैडी की चुदाई देख कर समझ आ गया था कि अब उसकी बड़े बहन अनर्गल बक रही थी। उसने मेरे पसीने से लथपत कमर को सहला कर और भी ज़ोरों से मेरी गांड की बेदर्द निरंकुश चुदाई बिना थके और धीरे हुए अविरत जारी रखी।

मेरी गांड से अब 'फच-फच ' की आवाज़ें आ थीं। अक्कू का लंड अब बे रोक-टोक मेरी गांड में रेल के इंजन के पिस्टन की तरह सटासट दौड़ रहा था। मेरी साँसे अब हांफने में बदल गयीं थीं।

अक्कू को मेरी ज़ोर से गांड मारने की याचनाएं बेकार लग रहीं होगीं क्योंकी वो अब मेरी गांड उतनी हैवानियत से मार रहा था जितनी डैडी ने मम्मी की गाड़ मारते हुए दिखाई थी।

मैं फिर से आने वाली थी। मेरी सिस्कारियों में मेरे झड़ने की मीठी पीड़ा से सुबकने के मधुर स्वर भी शामिल हो गए ,"अक्कू ... अक्कू ... अक्कू ... अक्कू ... आन्ह... आन्ह... अआह... ओऊन्नन्न्न्न... उउउउन्न्न्न्न्न्म्म्म्म्म्म... , " मैं बिलबिला के झड़ने लगी।

अक्कू के मेधावी मस्तिष्क ने उसके सारे अनुभवों की विवेचना कर ली थी और अब उसे अपनी बड़ी बहन के निर्देशों की कोई भी आवश्यकता नहीं थी।

अक्कू ने मेरी पसीने से लथपत कमर कके ऊपर झुक कर ममेरी छाती के उभारों को अपनी बड़ी मुट्ठियों में जकड़ लिया। मेरी छाती से उपजे दर्द ने मेरी गांड से उबलते आनंद को और भी परवान चढ़ा दिया। अक्कू ने मेरी घुंडियों को बेदर्दी से मसला,खींचा और मड़ोड़ा। मैंने चीख कर, सुबक कर और सिसकारी मर कर बार बार झाड़ गयी।

इस बार अक्कू ने तो झड़ने का नाम ही नहीं लिया। मैं पांच के बात गिनती गिनना भूल गयी। अक्कू के एक भयंकर धक्के से मेरा रति-निष्पति से शिथिल शरीर पूरा हिल उठे और मैं मुंह के बल पलंग पर गिर गयी। अब मैं मुंह के बल पट लेती थी। अक्कू ने एक पल के लिए भी अपना लंड मेरी फड़कती गांड में से नहीं निकलने दिया। पट लेटने से मेरी गांड और संकरी हो गयी। अक्कू का लंड मुझे और भी भीमकाय लगने लगा। उसके हाथ मेरी छाती के नीचे दबे हुए थे पर उनसे मेरी घुंडियों की प्रतारणा अविरत होती रही।

मैं बार बार झड़ने की मीठी यातना से थक कर चूर हो चुकी थी , " अक्कू अब तुम झड़ जाओ प्लीज़। मेरी गांड अब बहुत जल रही है। उसे अपने रस से ठंडा कर दो। "

अक्कू अब तलक मेरी गांड एक घंटे से भी ऊपर मार चूका था।