पृकृति का रहस्य - एक प्राचीन कथा

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भद्रा अपने जगह वापस आकर लड़की को अपने से चिपकाकर लिटा लेता है और उसके शरीर पर हाँथ फिराता है अचानक उसके दिमाग में बिजली सी दौड़ जाती है जो कामवासना आज जामवती ने जगाई थी वो उत्तेजना पकड़ रही थी हालाँकि कुछ घंटे से वो इस कामवासना का दमन कर रहा था लेकिन अब ये दमन के बाद और ज्यादा उर्जावान हो गयी थी अब इसे रोकपाना मुश्किल ही होता जा रहा था

भद्रा का लिंग तेजी से तनने लगा फिर उसके दिमाग में अपराध का भाव आता है| की वो बच्चे के पास लेटा है| अपने लिंग को दबाकर सामान्य करने की कोशिश करता है कामवासना फिर से दमित होने से उसके शरीर में घुटन होने लगी और हो भी क्यूँ ना ऐसी उर्जा जो किसी को जीवन देने की सामर्थ्य रखती है उसको कैसे दबाया जा सकता है या तो उसका प्रयोग हो या उसका रुपान्त्रण हो| उसके पास रुपान्त्रण का कोई उपाय नही था| उपाय हो भी कैसे? ये उसकी पहली कोद्शिश थी कामूर्जा के प्राकृतिक बहाव को रोकने की| दिमाग बहुत सारे विचारों से भरने लगा था ज्यादातर विचारों की तीव्र पुनरावृत्ति हो रही थी इससे पहले उसे सम्भोग के लिए कभी इतना तड़पना नही पड़ा था सम्भोग की इच्छा होते ही वो किस्सी भी तरुणी के साथ सम्भोग कर लेता था लेकिन आज वो जामवती के वजह से चूक गया और जामवती भी नही मिली| अभी तक उसे सम्भोग से आनंद मिलता था| क्या सम्भोग का ना मिलना इतना दुखदायी हो सकता है आज उसे पहली बार पता चला था क्या सम्भोग या sex का दमन मनुष्य के आधे से ज्यादा बिमारियों की जड़ है?

बच्ची भद्रा से चिपटी हुयी सो रही थी भद्रा उसका मासूम चेहरा देखता है और अपनी ओर भींचकर सीने से लगा लेता है

भद्रा सोने की कोशिश करने लगता है आखिर में सोच सोचकर थकने से उसे नींद आ ही गयी उसने आज से ज्यादा कभी खुद को इतना दुखी नही पाया था शिकार में कई बार वो गम्भीर घायल हुआ था पर आज जैसे दुःख की अनुभूति उसे जीवन में पहली बार हुयी

जामवती के पेट में दर्द होने से वो रात में ही जाग जाती है ये दर्द भोजन के तुरंत बाद भीसड सम्भोग के कारण हो रहा था वो अपना पेट पकड़कर थोडा आगे जाती है और उकरु बैठकर गुदा से मल बाहर करने की कोशिश करती है पूरा जोर लगाने पर भी कोई परिणाम नही मिला| जामवती दोनों हांथों से अपना पेट दबाने लगती है इससे उसके पेट पर दवाब बढता है और मल बाहर निकलता है इससे उसे कुछ आराम महसूस होता है कुछ देर और बैठकर पेट खाली करके पत्ता लेती है अपना हाँथ पीछे ले जाकर अपने गुदा से मल पोंछती हुयी अपनी जगह वापस लेट जाती है फिर उसे शिकार की सारी घटना याद आती है कैसे वो भद्रा के साथ सम्भोग करने को लालायित थी वो आज भद्रा को ही अपना शरीर सोंपना चाहती थी| वो याद करने लगती है सायं कल को क्या हुआ था, "भोजन के बाद ज्यादा सुरा हो जाने से हलकी हलकी नीन्द में थी और एक तरुण आकर सम्भोग शुरू कर देता है"

उधर भद्रा को आज पहली बार सपना आ रहा था उसे बस जामवती की योनी और स्तन ही नजर आ रहे थे और सपने में वो जानवरों की तरह जामवती की योनी को प्यार कर रहा था, उसका हाँथ बार बार अपने लिंग पे जा रहा था बार बार वो करवटें बदलता रहा होता है जामवती भद्रा के पास आ जाती है और उसके नए कारनामे को देखकर हैरान रह जाती है वो नहीं समझ पा रही थी, ये क्या हो रहा है

कामौत्तेंजना जामवती के अन्दर भी आग लगा रही थी वो ज्यादा ना सोचकर भद्रा का लिंग पकड़ लेती है भद्रा तुरंत जाग जाता है उसका दिमाग आज भारी लग रहा था उसे नींद का कोई सुकून नही मिला था|

भद्रा तुरंत जामवती को पकड़कर नीचे पटक देता है मानो वो अपनी तड़प का बदला ले रहा हो पुरुष का ये अनोखा अंदाज जामवती को बहुत पसंद आता है दोनों एक दुसरे में गुत्थम गुथ्थई करने लगते है मानो एक दुसरे का शिकार कर रहे हो| भद्रा मारे उत्तेजना के सीधे अपना लिंग योनी में घुसा देता है और बहुत ही तेजी के साथ आगे पीछे करने लगता है जामवती को दर्द हो रहा था आज उसका लिंग कुछ ज्यादा ही बड़ा लग रहा था भद्रा पूरी ताकत के साथ सम्भोग कर रहा था जामवती भी भद्रा के शरीर में अपने नाखून गडा रही थी भद्रा अब जामवती के स्तनों का मर्दन करने लगता है उन्हें नोचता है काटता है जामवती आज पहली बार सम्भोग के समय चिल्ला रही थी

दोनों ने 8 बार जबरदस्त सम्भोग किया भद्रा का मन अभी भी तृप्त नही हुआ था पर उसका शरीर में अब ताकत नही बची थी जबकि जामवती आज बहुत खुश थी आज किसी ने उसकी शरीर की कमर तोड़ कुटाई की थी उसका पूरा शरीर दर्द कर रहा था पर वो संतुष्ट थी दोनों फिर से सो जाते है

अब सूर्य उगने ही वाला को था कृष्णावती जागकर बकरी का दूध निकालर एक बुढिया के पास पहुँचती है अभी तक तो दूध का इस्तेमाल सिर्फ शरीर की मालिश के लिए होता था कृष्णावती नीचे पसर जाती है बुढिया धीरे धीरे दूध से मालिश शुरू कर देती है आज कृष्णावती बच्चों जितनी मासुम थी चेहरे पे मुस्कान, नटखट अंदाज|

बुढिया के हाँथ कृष्णावती के चेहरे व गर्दन पर चल रहे थे अब वो उसके स्तनों पर दूध डालती है और तीन उँगलियों से स्तनों के ऊपर से घुंडियों की तरफ जाती है स्तन की मालिश के बाद उसका हाँथ पेट से होता हुआ नाभि पे आ जाता है अब जैसे ही उसकी ऊँगली नाभि के अन्दर प्रवेश करती है कृष्णावती हँसी के किलकोरे लेने लगती है "अम्मा! गुदगुदी हो रही है", कृष्णावती ने कहा

लेकिन बुढिया के हाँथ नहीं रुकते है वो अब योनी द्वार के पास आ जाते है, दो उँगलियों को दूध में डुबोकर योनी के अन्दर आधा इंच घुसेड़ देती है कृष्णावती के मुंह आह.. की आवाज निकल जाती है

बुढिया -- कृष्णावती, तेरा छोटा बच्चा घुटनों चलने लगा अभी तक तू पेट से नहीं हुयी

कृष्णावती -- में अब किसी के साथ सम्भोग नहीं करती

बुढिया -- लशा से कर ले दिन रात तुम दोनों साथ रहते हो

कृष्णावती ने कोई जवाब नहीं दिया|

वो पहले चाहती थी, लशा से सम्भोग करना पर अब उसे एक अनोखे प्रेम की अनुभूति हो चुकी थी

बुढिया के हाँथ बराबर चल रहे थे अब वो जांघो और घुटनों से होते हुए पैर के अंगूठो पे आ चुके थे वो पैर के अंगूठो व उँगलियों को दूध में डूबा डुबाकर अच्छे से मालिश करती है कृष्णावती के शरीर में मालिश से कुछ गर्मी आ जाती है

बुढिया उठकर चलने लगती है

कृष्णावती -- कहाँ?

बुढिया उंगली देखाती है, लशा की तरफ

कृष्णावती तुरंत खड़ी होती है और बुढिया के हांथो से दूध का कटोरा ले लेती है "आज लशा की मालिश में करुँगी", कृष्णावती ने कहा

लशा अब उठकर बैठ चूका था उसकी आंखे अपनी प्रेमिका को खोज रही थी

अचानक से कोई पीछे से आकर सर्पट्टा में लशा के आँखों पे हाँथ रख लेता है लशा हांथो के अहसास से तुरंत समझ जाता है इतना स्नेह से भरे हाँथ सिर्फ उसकी प्रिय, कृष्णावती के ही हो सकते है लशा के बैचैन मन को अब जाके तृप्ति मिलती है

लशा हाँथ छुड़ाने की कोशिश नहीं करता है वैसे ही बैठे बैठे प्रेम के सागर में डुबकी लगाने लगता है कृष्णावती अब उसके सामने आकर उसका चेहरा अपने हाँथ में ले लेती है दोनों की आंखे एक दुसरे से हटने के बारे में सोच भी नही सकती थी बल्कि दोनों और बिलकुल करीब आकर गहराइ में उतरती ही जा रही थी

कृष्णावती लशा के ऊपर व नीचे के होठों को बारी बारी से चूमती है जैसे मधुमक्खी शहद को चूसती है

अब दोनों की जीभे एक दुसरे के मुंह में थी दोनों के खिले हुए चेहरे एक दुसरे में समा जाना चाहते थे

वो दोनों एक दुसरे में खो चुके थे उन्हें तो इतना भी मलूम नहीं था की उनके चारो तरफ कबीले के लोग आ चुके है उनकी भी निगाहें इस जोड़े से हटने का नाम नहीं ले रही थी

अब वो दोनों अलग होते है दोनों के चेहरे खिले हुए थे मानो उन्हें दुनिया में सबकुछ हासिल हो गया हो उन्हें किसी भी चीज की चाहत ना रही थी लशा का दिमाग खाली हो चूका था अब उसे कोई रहस्य को खोजने की चाह नही थी बल्कि अब वो दोनों खुद एक रहस्य बन चुके थे

कृष्णावती लशा के शरीर पे दूध डालकर मालिश करने लगती है उसने शिर से लेके पैर तक मजे ले लेकर मालिश की कभी वो चिकोटी काटती कभी गुदगुदी मचा देती उन्हें देखकर ऐसा लगता था मानों ये अभी अभी चौथे वर्ष में लगे हो सिर्फ उनके शरीर का आकर इस भ्रान्ति को तोड़ रहा था कृष्णावती आज लशा के लिंग व वृषण की भी मालिश करती है उनके सारे अच्छे और बुरे जैसे भेद मिट चुके थे

मालिश के बाद वो उठती है और खलेते हुए बच्चों के तरफ बढती है

आज उसकी चाल रोमांच से भरी हुयी थी नितंभ आगे पीछे ले जाके हिरनी के माफिक लहरा रही थी वो बच्चो के गोले में जुड़कर हाँथ झटक झटक के कमर हिलाती हुयी वामावर्त से दक्षिणावर्त फिर दक्षिणावर्त से वामावर्त घूम रही थी सारे बच्चों में सिर्फ यही एक बड़ी महिला थी गजब का दृश्य था ऐसा लग रहा था जैसे बकरियों की टोली में एक खुशमिजाज हिरनी शामिल हो गयी हो| वाह री पृकृति तेरा करिश्मा!

भद्रा और जामवती अभी भी चिपट कर सो रहे थे भद्रा एक दो करवट बदलकर जाग जाता है जामवती को चित्त करता है अब उसके हाँथ जामवती के स्तनों को पीस रहे थे उसका मुंह जामवती के मुंह पर चुम्बनों की बौछार शुरू कर देता है अब जामवती भी जाग गयी, आँखे बंद किये वो भी भद्रा का साथ देने लगती है भद्रा के वहसीपन से शरीर में दर्द की लहर दौड़ जाती है उसका शरीर काँप जाता है आह आह...हा..आह करके जोरों से चिल्लाने लगती है भद्रा का लिंग हड्डी की तरह कठोर हो जाता है और अपनी गुफा खोजने लगता है भद्रा अपना लिंग हाँथ में लेकर जामवती के योनिद्वार पे लगा देता है और एक सांस लेकर पूरे जोर से अन्दर कर देता है जामवती की चीख निकल जाती है उसकी आँखे खुलती है वो देखकर हैरान होती है आज इतनी जल्दी सवेरा हो गया हालाँकि सम्भोग के लिए उसका तन मन रोमांचित हो रहा था पर वो पुरखों के बनाये हुए नियमों का भली भांति पालन करने वालों में से थी

उसे भद्रा पे बहुत गुस्सा आती है ये जानता था की सूर्यास्त हो चूका है तब भी ये सम्भोग करने लगा जामवती गुस्से से तमतमा रही थी उसके शरीर की नसें तन चुकी थी वो भद्रा को बहुत जोर का धक्का मारती उसका लिंग योनी से बाहर निकलता है और भद्रा दूर गिरा जाकर

भद्रा लगभग पागल हो चूका था वो खड़ा होकर जामवती के स्तनों के ओर हाँथ बढाता है जामवती उसका हाँथ झटककर चल देती है|

अपना स्तन हाँथ में लेकर अपने बच्चे को घुमिती हुयी स्तनपान कराने लगती है भद्रा के दिमाग में अभी भी यही चल रहा था की जामवती उसके लिंग पे बैठकर उछल रही है इस उत्तेजना से उसकी कमौर्जा खुद ही अपना रास्ता बना लेती है उसके लिंग से वीर्य के फव्वारे छूटने लगते है थकान के अहसास के साथ वो वहीँ फिर से लेट जाता है

जामवती स्तनपान कराके अपने बच्चे को नीचे छोडती है और अपने शरीर की मालिश कराने लगती है आज उसका शरीर बिलकुल हल्का लग रहा था भद्रा के साथ सम्भोग से उसकी योनी 10 बार रस छोड़ी थी उसका शरीर दर्द से चरमरा रहा था लेकिन उसका मन अभी भी कर रहा था कि भद्रा के मर्दाने हाँथ उसको अपनी बाहों में जकड़े, उसके स्तनों को मसले, उसकी योनी में जोर जोर से लिंग के धक्के लगाये|

बैकुंठी को आग के लिए लकड़ियाँ बीनने के लिए बोला जाता है एक तरुण उससे कहता है तू चल लकडिया इकट्ठी करना में आके लकड़ियाँ लाने में मदद करूँगा दिन होने के कारण पास के जंगल में खतरा कम था वो अकेले ही जंगल को निकल पड़ती है

लशा अब तक लेटा लेटा कुछ सोच रहा था अचानक उसे कृष्णावती की याद आ जाती है वो तुरंत उठकर कृष्णावती को खोजने लगता है कृष्णावती दो दो तीन तीन बच्चो को लेकर झूम रही थी कभी उनको हवा झुलाकर हांथों में गुपकती कभी किसी बच्चे को छेडकर भागती बच्चे बदला लेने के लिए उसके पीछे दौड़ती अभी एक बच्चा उसके नितंभ पे थप्पड़ मरकर भाग रहा था कृष्णावती उसके पीछे धीरे धीरे दौड़ रही थी ताकि बच्चे को पकडे ना जाने का मनोवल बना रहे

लशा सामने से आके बच्चे को उठा लेता है कृष्णावती बच्चे को उसके हवाले करने की विनती करती है लशा अपने होंठों पे ऊँगली रखके इशारा करता है "पहले एक चुम्मि दो"

कृष्णावती गर्दन हिला के स्वीकृति भरती है "पहले बच्चे को मुझे दो"

लशा बच्चे को ढील देता है वो झपटकर हँसता हुआ जीत के अहसास से भागने की कोशिश करता है पर कृष्णावती उसको झपट लेती है और उसके पुट्ठों पे 2--3 चपात लगाती है अपनी पकड़ ढीली करके लशा को देख निहार रही थी बच्चा थोडा सा जोर लगाकर खुद को कृष्णावती की बाँहों से आजाद करा लेता है वो बहुत खुश था की अपने दम पे कृष्णावती के हांथों से निकल भागा

अब लशा और कृष्णावती के चेहरे आमने सामने को थे दोनों के होंठ जुड़ने के करीब थे पर अंतिम क्षड कृष्णावती के मन में एक शरारत सूझी वो जल्दी से अपना चेहरा पीछे करके पूरी रफ़्तार से दौड़ने लगती है

लशा, "रुको प्रिये!"

कृष्णावती, पीछे मुडती हुयी जीभ निकालती है

लशा भी अब कृष्णावती को दौड़ कर पकड़ने की कोशिश करने लगता है पर वो कृष्णावती के वेग को प्राप्त नहीं कर पा रहा था फिर भी दौड़ता रहता है और एक समय पश्चात थककर हांफने लगता है लेकिन तब भी वो अपने प्रेमिका को पाने की रह में दौड़ता रहता है

अब कृष्णावती से भी नही रहा जा रहा था अपने प्रेमी की तेज सांसों की आवाज सुनकर 180 डिग्री कोण पे घूम जाती है और डेढ़ गुने वेग के साथ लशा की ओर दौड़ जाती है लशा के शरीर में मिलन के विश्वास से स्फूर्ति आती है कुछ ही क्षड़ो में दोनों एक दुसरे को बेतहाशा चूम रहे होते है अब बारी लशा की थी लशा अपने दोनों हाँथ कृष्णावती के पीठ पे घुमाता हुआ भागने की तयारी करता है,

"अचानक कृष्णावती के नितंभ पे चपाक की आवाज होती है" ये कारनामा लशा के हांथो का था लशा अब तेजी हंसकर दौड़ता है

कृष्णावती कुछ क्षण चेहरे पे बनावटी गुस्से का भाव लाती हुयी खड़ी रहती है फिर लशा को मजा चखाने के लिए दौड़ पड़ती है पर लशा बहुत आगे निकल चूका था कृष्णावती थोडा आगे दौड़ी, उसके दिमाग में तरकीब सूझती है वो थोड़ा अभिनय के साथ लडखडाकर गिर जाती है, बच्चों के तालियों की आवाज आती है लशा बहुत आगे निकल चूका था अपने पीछे कृष्णावती को आता हुआ ना देखकर उसे चिंता होती है और उलटे पैर दौड़ पड़ता है जब देखता है की कृष्णावती नीचे पड़ी है और बच्चे ताली बजा रहे है वो और तेजी से कृष्णावती की तरफ दौड़ता है और पास आकर दुखी स्वर में आवाज देता है प्रिय!

कृष्णावती तुरंत हरकत में आती है और लशा के पैरों में अंटा डालकर लशा के पुठों पर चपात लगाने लगती है लशा को अब जाकर सारा मांजरा समझ आया कि ये गिरने का बहाना कर रही थी लशा उसके ऊपर पसर जाता है दोनों फिर से प्यारे प्यारे चुम्बनों में डूब जाते है

कबीले में बाकी पुरुष और स्त्रियाँ काफी अलग में मालिश कराके अपने अपने प्रेमियों से चिपक कर बैठे थे एक दुसरे को और अच्छे से जानने की कोशिश कर रहे थे जामवती अपने बेटे के गोद में सर रखके लेटी थी और उसका सबसे छोटा बच्चा जामवती के स्तन को मुंह लेकर दूध पी रहा था

भद्रा अब जाग जाता है उसके आँखों में अभी भी वासना के डोरे देखे जा सकते थे उधर जामवती के भी अचेतन मन में भद्रा की ही चाह थी एक बुढिया भद्रा के शरीर की मालिश करती है "आह आह......" , भद्रा के शरीर पर जामवती के नाखूनों के घाव होने से वो दर्द के कारण सहम जाता है बुढिया घावों पर मिट्टी लगाकर छोड़ देती है और बाकी की जगहों मालिश करने लगती है बुढिया की नजर भद्रा के लिंग पर पड़ती जोकि भीसड व असंस्कृत सम्भोग से छिल गया था बुढिया कटोरे से ढेर सारा दूध लिंग पर गिराती है और दोनों हथेलियों के बीच फसा कर, हथेलियों को लिंग के सिरे तक ले जाती और सिरे से वापस जड़ तक आती|

लिंग के घाव दूध लगने से भद्दे पड़ गये थे मालिश के कारण छिलछिलाता हुआ खून पुछ गया था बुढिया पूरे शरीर की मालिश के बाद दोबारा घाव वाले क्षेत्रों पे आती है और बहुत ही साध साध के मालिश करने लगती है

अब आग जल चुकी थी सभी आग के चारो तरफ बैठकर भुनता हुआ मांस देख रहे थे बच्चे भी अब यहाँ आ गये थे जबकि लशा और कृष्णावती अभी भी एक दुसरे में चिपटे हुए थे उनके नेत्र मुंदे हुए थे बीच बीच में एक दुसरे के शरीर को सहला देते कभी कभी एक दुसरे को चुमते भी

बैकुंठी जंगल पहुच चुकी थी अपने गले में हड्डियों की माला तथा हाँथ में एक नुकीले डंडे को लिए लकड़ियाँ इकठ्ठी कर रही थी उसे एक खरा दिखता है वो सीधे डंडा फेंकर मारती है खरा वहीँ ढेर हो जाता है वो खरा को खाने लगती है और आगे को बढती जाती है उसे झाड़ियों के पीछे किसी के क़दमों की आवाज आती है उसके कान सतर हो जाते है वो डंडा तान के आवाज का पीछा करती है वहां एक तरुण खड़ा हुआ था वो गौर से देखती है "ये मेरे कबीले का तो मालूम नही होता क्या हमारे जैसे और भी प्राणी रहते है इस धरती पे और ये क्या ये अपने कमर पे पत्ते बंधा हुआ है", बैकुंठी सोच में डूबी हुई थी

वो तरुण तब तक बैकुंठी को देख लेता है और ऐसे बातें करना आरम्भ कर देता है मानों वो इसे बहुत अच्छे से जानता हो

तुम कौन हो? यहाँ क्या कर रहे हो? क्या तुम हमारे जैसे हो? पहले तुम्हे कभी नही देखा?

तरुण अब उसके पास आ जाता है और उसके एक हाँथ को अपने दोनों हांथों में दबा लेता है "हम दोनों मनुष्य है, में भी तुम्हारी तरह यहाँ लकड़ियाँ बीनने आया हूँ मेरे साथ मेरी माँ और एक तरुण आया है, हम उस नदी के उस पार रहते है", तरुण ने जवाब दिया

बैकुंठी -- क्या नदी के उस पार लकड़ियाँ नही है? और तुम्हारे बाकी के साथी कहाँ है? नदी के उस तरफ कैसा दिखता है?

तरुण -- उस पार की धरती थोड़ी अलग है वहां पुष्प और फल उगते है उधर ऐसे जंगल नही है जब हमारे लकड़ियों की पूर्ति नही पड़ती है तो कभी कभी इस पार आना पड़ता है

बैकुंठी -- फिर से, तुम्हारी माँ और साथी?

तरुण -- हाँ वो लोग सम्भोग करने गये है इधर की जलवायु कुछ ठंडी है जल्दी उत्तेजना आ जाती है

बैकुंठी -- सम्भोग का नाम सुनकर अपने डंडे की नोंक दांतों में फसाकर मुस्कराती हुयी, तुम्हे उत्तेजना नहीं है हमारे कबीले में तो दिन में सम्भोग नहीं किया जाता है इसे अपशगुन माना जाता है, ऐसा करने से भारी संकट आ जाता है

तरुण -- हाँ मुझे उत्तेजना आती है पर कोई तरुणी नहीं आयी है मेरे साथ, मेरे कबीले में कोई भी किसी भी वक्त प्रेम या सम्भोग कर सकता है अपसगुन की कोई मान्यता नहीं है

बैकुंठी -- कोई तरुणी?, तुम्हारे साथ तुम्हारी माँ तो आयी है

तरुण -- नहीं हम लोग अपनी माँ के साथ सम्भोग नहीं करते है

दोनों एक दुसरे का हाँथ पकड़कर आगे पीछे झुलाते हुए मस्ती में आगे बढ़ रहे थे चिड़ियों की चेंच आहट की प्रतिध्वनी एक सगीत का माहौल बना रही थी

बैकुंठी -- हम लोगों को मिले हुए काफी देर हो चुकी है क्या तुम्हारी माँ अभी भी सम्भोग कर रही है?

तरुण -- हम लोग कभी कभार सम्भोग करते है लेकिन पूरा मन लगाकर

बैकुंठी -- हमारे कबीले के लोग तो बहुत सम्भोग करते है पर इतनी देर तक नहीं

तरुण -- आओ, उन्हें सम्भोग करते हुए देखते है

तरुण की माँ सर जमीन पे रखे अपने नितंभ को आसमान की तरफ किये हुए थी और तरुण अपने घुटनों पे खड़ा हुआ अपना लिंग स्त्री के योनी में दे कर लह के साथ धीरे धीरे धक्का लगा रहा था हर धक्के के साथ दोनों के चेहरे खिल जा रहे थे

इतने धीमे सम्भोग किया जाता है? और सम्भोग में तो स्त्री कराहती है और ये तो खुश हो रही है, बैकुंठी ने कहा

तरुण -- नहीं ऐसा तो नहीं होता है क्या तुमने कभी सम्भोग नही किया?

बैकुंठी -- नहीं पहली बार तरुणी को बहुत दर्द होता है इस लिए मेंने कभी सम्भोग नही किया

तरुण तो इन सब बातों की कल्पना भी नही कर पा रहा था सम्भोग में दर्द होना और कराहना

तुम्हे इनको सम्भोग करते हुए देखकर अपनी कोई बात सच मालूम होती है?, तरुण ने पूछा

तरुणी, गर्दन हिला कर मना करती है

अब वो दोनों संभोगरत जोड़े के पास आ जाते है तरुण तरुणी का परिचय कराता है उसकी माँ सुझाव देती है तुम लोग भी सम्भोग करो

तरुण और तरुणी करीब आ जाते है कुछ देर तक चुम्बन करते है और वहीँ लेट जाते है तरुण तरुणी के होंठ , गर्दन , और स्तन चूम रहा था तरुणी की सम्भोग के बारे में जो धारणा थी वो बदल रही थी उसे बहुत आनंद महसूस हो रहा था

तरुण बीच बीच में तरुणी की योनी को टटोल रहा था ये सुनिश्चित करने के लिए तरुणी की योनी से पर्याप्त काम रस रिस चूका है या नही जब तक उसे यकीन नही हो जाता है की उसकी योनी पूरे तरीके से गीली नही हो गयी, तब तक तरह तरह के तरीके अपना कर तरुणी को और उत्तेजित करने की कोशिश कर रहा था

अब तो तरुणी पूर्ण रूप से उत्तेजित हो चुकी थी और वो खुद ही पहल करके लिंग को अपने योनी में डाल लेती है और धीमें धीमें धक्कों की शुरुआत हो जाती है तरुणी की योनी कुंवारी होने से बहुत टाईट थी इसलिए अभी सिर्फ आधे लिंग से सम्भोग हो रहा था जब उसकी योनी हलकी खुल जाती है तो तरुण आसन बदलने को कहता है दोनों अपने बगल में हो रहे सम्भोग का आसन अपनाते है जिससे तरुणी की योनी और खुल जाती है तरुण कुछ धक्के और लगाकर अपना पूरा लिंग योनी के अन्दर कर देता है लिंग बच्चेदानी से स्पर्श कर रहा था तरुणी एक क्षण के लिए हिल जाती है तरुण रुक जाता है ये सुनिश्चित करने के बाद की तरुणी ठीक है फिर से लिंग अन्दर बाहर करने लगता है अब दोनों को परमसुख की अनुभूति हो रही थी तरुणी का चेहरा खिलकर टमाटर की तरह लाल हो गया था तरुण बीच बीच में रुककर तरुणी की गर्दन, कान, व पीठ को चूम लेता जिस लहबद्ध तरीके से सम्भोग हो रहा था वो फ़िलहाल झड़ने वाले नही थे

कबीले में सभी भोजन करके थोड़ी देर बैठे रहते है और अपने अपने काम पे लग जाते कोई दीवारों का मुआयना करता कोई डंडे छीलकर उन्हें पैना करता कोई पत्ते तोड़ कर लाता कोई जानवर की खोपड़ी से कटोरा बनाता

जामवती को, मुखिया होने के कारण ये सब नहीं करना पड़ता था आज काम कम होने से शिकार के समूह को भी कुच्छ नहीं करना पड़ रहा था

भद्रा और जामवती की नजरे मिलती है दोनों एक दुसरे के करीब बढ़ते है

जामवती -- प्रिये!

"दिन में सम्भोग नहीं कर सकते पर बाकी सब कुछ तो कर सकते है", भद्रा ने जामवती के हाँथ को अपने हाँथों में लेकर कहा

जामवती भद्रा के होंठ चूमकर स्वीकृति देती है भद्रा तुरंत जामवती के नितंभ पकड़कर उठा लेता है जामवती भद्रा के गर्दन में गुम्फी डालकर अपने दोनों पैर उसके कमर में फंसा लेती है भद्रा जामवती के नितंभ जकड़कर कुठरिया की तरफ दौड़ पड़ता है और अन्दर आकर जमीन पे पटकता है उसकी वासना ने फिर से वहसी रूप ले लिया था अब उसके लिए सम्भोग प्राकृतिक नहीं रह गया था बल्कि ये तो अब उसकी कपोलकल्पित कल्पना को पूरा करने का माध्यम बन चूका था उसकी कलपनाओं का रूप बिगड़ चूका था वो सही गलत या अच्छे बुरे का भेद ना करकर हमेशा गलत और बुरे को चुन रहीं थी

जबकि बेचारी जामवती इसे प्रेम समझ बैठी थी

दोनों एक दूसरे को बुरे तरीके से चूमने लगते है भद्रा अपने कड़े हांथों से उसके स्तनों को मसलता इससे जामवती को मजा मिलता हालाँकि उसे दर्द भी हो रहा था पर प्रेम से मिलने वाला सुख का, दर्द के मुकाबले पलड़ा भारी था

अभी उसके दिमाग पे प्रेम और सम्भोग हावी था इसलिए दर्द की वजह से एक दुसरे से अलग हो जाना संभव नहीं था

जामवती भद्रा लिंग को जकड़ लेती है भद्रा अपनी तीन अंगुलिया योनी में घुसेड़ देता है जामवती म्हों.. उम्म... की आवाज के साथ न्होंक जाती है अब भद्रा उठ बैठता है जमावती को पट करता है और उसकी कमर को उठाने लगता है अब जामवती के नितंभ बाहर की ओर उठे हुए थे भद्रा घुटने के बल आ जाता है और अपना लिंग उसकी योनिद्वार पे रगड़ने लगता है और और उसके नितंभ पे ताबड़तोड़ थप्पड़ बरसाने लगता है

जामवती का दर्द और उत्तेजना से मूत्र निकल जाता है थप्पड़ों की बौछार जारी रहती है अब भद्रा एक ऊँगली जामवती के गुदा में घुसा देता जामवती के मांसपेशियों पे दवाब बढने से चीख के साथ झड़ने लगती है जामवती अपने हाँथ पीछे ले जाकर भद्रा के लिंग को मसलने लगती है भद्रा के लिंग से वीर्य छूटने लगता है अब वो एक आखिरी बार और हाँथ ढीले करके पूरी ताकत से नितंभ पे थप्पड़ मारता है अब वो झड. चूका था उर्जा की हानि के कारण भद्रा जामवती के नितम्भो पर ज्यादा देर पकड़ नहीं रख पाता और वहीँ लेटकर हांफने लगता

जामवती की कमर अब आजाद होती है उसके पैरों में जान ना रहने से ढीले पड़ जाते है वो भी उलटी होकर वहीँ पसर जाती है दोनों दर्द और सुख के मिलेजुले भाव से हांफने लगते है| मन कितनी देर तक एक अति पे रह सकता है इसके पैर ना होने पर भी सबसे ज्यादा चलायमान होता है अब उनका मन दूसरी अति पे जाने लगता है दोनों सोचते है अब सिर्फ पहले जैसा सम्भोग करेंगे इसमें बहुत दर्द होता है आखिर इन्सान गलतियों से ही सीखता है