पहाड़ों की यादें

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पहाड़ों पर बिताये समय और इस दौरान बने संबंधों की कहानी.
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जिन्दगी से बहुत परेशान मन कहीं भाग जाना चाहता था, लेकिन कोई रास्ता नहीं मिल रहा था तभी एक ग्रुप में देखा कि दूर के पहाड़ी गाँव में महीना बिताने के लिये कमरा उपलब्ध है, दिये फोन नं. पर फोन करा तो पता चला कि पांच हजार में पुरे महीने रहा जा सकता है, खाने के पैसे अलग थे। मैंने बुंकिग करवा ली और पैसे भेज दिये। गाँव तक पहुँचते-पहुँचते शरीर थक गया, लेकिन गाँव में पहुँच कर मन खुश हो गया। प्राकृतिक वातावरण और शान्त एवं दूनिया से कटे इस गाँव में फोन के सिग्नल तक काम नहीं करते थे। बिजली भी नहीं पहुँची थी। लेकिन गाँव के बगल से बहती नदी की आवाज मन को मोहित करती थी। ऐसी ही जगह में चाहता था जहाँ आ कर मेरे मन को चैन मिले। यह गाँव बिल्कुल ऐसा ही था।

मकान की मालकिन से भेंट हुई। वह एक जवान 30-35 साल की महिला था, पति शायद दूसरे शहर में काम करते थे। उन्होनें मुझें मेरा कमरा दिखाया, कमरा साधारण था, जरुरी सुविधायें ही उपलब्ध थी। कमरें की खिड़की से बर्फ से ढ़के पहाड़ दिखायी दे रहे थे। यह दृश्य ही मन को चैन देने के लिये काफी थी। नदी की कल-कल की आवाज मन को शान्त कर रही थी। बाथरुम घर के बाहर एक कोने में था। मुझें इस से कोई परेशानी नहीं थी। मुझे मालकिन ने बताया कि पुरे महीने के दोनों समय के खाने के लिये 2500 रुपये और देने पड़ेगें। मैंने इस के लिये भी हामी भर दी। मैंने अपना थोड़ा सा सामान जो मैं साथ में लाया था, उसे कमरे में रख कर मै गाँव में घुमने निकल गया। आधा घंटा घुम कर लौटा तो मालकिन बोली कि खाना तैयार है, खा लिजिये। मुझे भी तेज भुख लगी थी सो तुरंत ही तैयार हो गया, हाथ धो कर उन की रसोई में ही बैठ कर चावल और दाल को जी भर के खाया और आराम करने के लिये कमरें में आ गया।

पैदल चलने के कारण थका था सो बिस्तर पर लेटते ही आँख लग गयी। नींद दरवाजे के खटखटाने से खुली तो देखा कि मालकिन खड़ी थी, उस के हाथ में चाय से भरा गिलास था वह बोली कि शाम हो रही है चाय पी कर आप गाँव के ऊपरी हिस्से में जा कर सूर्यास्त का आनंद उठा सकते है। मैंने उनकी बात मान कर चाय जल्दी से पी और कैमरा उठा कर उन के बताये रास्तें पर निकल गया। कुछ देर चलने के बाद गाँव के ऊपर पहुँच गया वहाँ से पहाड़ों के पीछे डुबता सूर्य देखते ही बनता था सो उस की फोटो लेने में लग गया। कुछ देर में अंधेरा हो गया और मैं नीचे के लिये निकल गया। कमरें पर पहुँचा तो मालकिन मिली और बोली कि यहाँ ऊपर जंगल है इस लिये शाम के समय जंगली जानवर बाहर निकलते है तो आप जब भी ऊपर या कहीं और जाये अंधेरा होने से पहले ही वापिस आ जाये।

मैंने उन की बात की सहमति में सर हिलाया। वह बोली कि आप हाथ मुँह धो ले मैं खाना लगा देती हूँ। बिजली ना होने के कारण रात का खाना भी जल्दी ही खाना पड़ता है। मैंने उन को बताया कि मैं रात के लिये लेम्प का इंतजाम करके लाया हूँ, आज आप चाहे तो इस की रोशनी में खाना बना सकती है। वह बोली कि आज तो यह चल जायेगा लेकिन बिजली के बिना इसे चार्ज कैसे करेगें? मैंने उन को बताया कि इस के ऊपर ही सोलर सैल लगा है दिन की रोशनी में रख कर इसे चार्ज कर लेगे। वह बोली चलिये आज इसे इस्तेमाल करके देख लेते है।

मैं लेम्प लेने चला गया। आ कर लेम्प जला कर उन के हाथ में दे दी। वह बोली कि रोशनी तो काफी है अगर चल जाये तो काफी काम चल सकता है। मैंने उन्हें बताया कि मैंने भी इसे कभी इस्तेमाल नहीं किया है यहाँ आने से पहले ही इसे खरीदा था, क्योकि पता था कि यहाँ पर बिजली नहीं है। एक टार्च भी ले कर आया था कि रात में काम आ सकती है। मेरी इस बात को सुन कर वह बोली कि आप रात को अपने कमरें में बाहर ना ही निकले तो अच्छा है, जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है, दिन में तो नहीं आते लेकिन रात में कई बार घर के पास में भी घुस आते है। उन की इस बात से मुझें बड़ा डर लगा। वह बोली कि डरने की कोई बात नहीं है लेकिन सावधानी बरतना जरुरी है।

आज रात का खाना सोलर लेम्प की रोशनी में बना और हम दोनों ने एक साथ बैठ कर रसोई में ही खा लिया। फिर वह मेरे लिये पानी का जग और गिलास रख कर चली गयी। मैं भी सारे दिन का थका था सो खाना खाने के बाद बिस्तर पर लेटते ही निंद्रा देवी की अराधना में लीन हो गया।

सुबह पक्षियों की चहचहाहट से आँख खुली, दिन अभी निकला नहीं था, लेकिन पक्षी अपनें घोसलों से निकल कर नभ में उड़ चले थे। मैं भी दरवाजा खोल कर बाहर निकल आया फिर मकान मालकिन की रात की बात ध्यान आयी कि बाहर ध्यान से निकले, सो इधर उधर नजर दौड़ाई की कुछ है तो नहीं, मन को संतोष होने के बाद ही बाहर पुरी तरह से निकला। हवा में ठंड़क थी। गहरी सांस ले कर शुद्ध हवा से फैफड़ों को भर लिया। बाहर ठंड़ लगने के कारण फिर से कमरें में जाना पड़ा और चद्दर लपेट कर दोबारा बाहर निकला। तब तक मालकिन भी जग गयी थी, वह अपने पशुओं को पानी पिलाने और चारा डालने की तैयारी करने लगी। यहाँ पानी पाइप से नहीं आता था, मकान से कुछ दूर पर पानी का प्राकृतिक स्रोत था उस से भर कर लाना पड़ता था। वह अपने काम में व्यस्त हो गयी और मै प्राकृतिक सौन्द्रर्य को निहारने में लगा रहा। कुछ देर बाद वह चाय ले कर आ गयी और बोली कि नहाने से पहले आप बता देना मैं आप के लिये पानी गर्म कर दूंगी।

मैंने सर हिला दिया। चाय पीने के बाद मुझें बाथरुम में जाना पड़ा तो वहाँ पानी मिल गया, लेकिन हाथ धोने के लिये दूर जाना पड़ा। मै नहाने के लिये पानी भरने गया तो मैंने देखा कि पानी गुनगुना है इस लिये मुझे गर्म पानी की आवश्यकता नहीं पड़नी थी, इस लिये मैंने मालकिन को बता दिया कि मुझे नहाने के लिये गर्म पानी नहीं चाहिये। वह बोली कि देख लिजिये। मैंने उन्हें बताया कि मैं अभी धारे का पानी देख कर आया हूँ वह गुनगुना है मैं उस से अपना काम चला लुगा। वह यह सुन कर मुस्करायी। मैं बाल्टी ले कर पानी भरने चला गया। फिर बाथरुम में नहानें के लिये घुस गया। नहा कर मजा आ गया था।

नहाने के बाद अपनें कपड़ें धो कर बाहर तार पर सुखा कर कमरें में कपड़ें पहनने चला गया। तैयार हो कर बाहर आगंन में धुप में बैठ गया। गुनगुनी धुप बढ़िया लग रही थी। ना जाने कब तक बैठा रहता, लेकिन मालकिन की आवाज सुन कर उठना पड़ा वह नाश्ता करने के लिये बुला रही थी। नाश्ता भी रसोई में बैठ कर ही किया। नाश्ते के दौरान वह बोली कि आप नदी किनारें घुम आईयें। लेकिन दोपहर के खाने के लिये एक बजे तक अवश्य आ जाईयेगा। मैंने उन से नीचे नदी तक जाने का रास्ता पुछा तो वह बोली कि घर की बगल से जो पगड़ंडी नीचे जा रही है उसी पर चले जाईये, नदी तक पहुँच जायेगे।

मैं कमरा बंद करके नदी के लिये चल दिया। तभी मुझे याद आया कि रात को लेम्प इस्तेमाल करा था तो अब उसे चार्ज भी करना पड़ेगा तो वापस कमरा खोल कर लेम्प निकाल कर आगंन में रख दिया और मालकिन से कहा कि वह इसे धुप में रखती रहे ताकि यह चार्ज हो सके, उन्होनें सर हिला दिया। इस के बाद में नदी के लिये निकल गया। कोई बीस मिनट के बाद में नदी के किनारे पहुँचा, पहाड़ी नदी थी पानी ज्यादा नहीं था लेकिन गति बहुत तेज थी उस की कल-कल की आवाज सारे वातावरण में गुंज रही थी। यह दृस्य इतना मनोहर था कि मै वही नदी किनारे एक पत्थर पर बैठ गया और नदी को निहारने लगा। मै ना जाने कब तक ऐसे ही बैठा रहा। सुनसान नदी के तट पर मेरे सिवा कोई नहीं था। नदी की आवाज मेरे मन के शोर को दबा रही थी। मेरे मन के सारे आवेग उस के आगे फीके पड़ गये थे। मेरे मन को ऐसी ही शान्ति की तलाश थी जो मुझे यहाँ आ कर मिली थी। मैंने घड़ी देखी तो एक बजने वाला था सो मन मार कर वहाँ से उठ गया और वापिस ऊपर के लिये चल दिया।

इस बार जल्दी ऊपर आ गया। मुझें आता देख मालकिन रसोई में चली गयी, मैं हाथ धो कर रसोई में बैठ गया। वह खाना लगाने लगी, खाने में चावल, स्थानिय दाल और हरी सब्जी थी। खाने का स्वाद बढ़िया था, वह भी मेरे साथ ही खाना खा रही थी। खाना खाने के बाद में आगंन में आ गया लेकिन वहाँ धुप चली गयी थी। सो वहीं बैठ गया। मालकिन मुझ से बोली कि नदी कैसी लगी?, तो मैंने उन्हें बताया कि उस जगह जा कर तो चैन मिल गया। समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। फिर उन्होंने खाने के बारे में पुछा तो मैंने कहा कि खाना भी बढ़िया था। वह बोली कि क्या बात है आप को कोई खराबी नहीं दिख रही है।

मैंने कहा कि खराबी देखने की मेरे पास निगाह ही नहीं है मैं तो शान्ति की तलाश में यहाँ आया हूँ और किसी चीज की परवाह ही नहीं है लेकिन खाना वाकई में अच्छा बना था। घर के बने खाने में दोष कैसे निकाला जा सकता है, मेरी बात पर वह हँस कर बोली कि आप पहले आदमी है जो यहाँ आ कर संतुष्ट दिख रहा है नहीं तो शहरी आदमी, यह नहीं है, यह गलत है यहाँ इस की कमी है इसी बात से परेशान रहते है। मैंने कहा कि मैंने बताया ना कि मैं तो मन को इस सब बातों से दूर करके शान्ति का अनुभव करने आया था। वह यहाँ पर बहुत है, उस के आगे, पानी बिजली आदि की परेशानी मायने नहीं रखती। वह मेरी बात सुन कर बोली कि आप बहुत दिलचस्प आदमी है।

मैंने कहा कि आदमी होने की कोशिश कर रहा हूँ दिलचस्प हुँ या नहीं यह नहीं जानता। वह बोली कि बातें बनाना जानते है। इस तरह हम दोनों के बीच बातचीत शुरु हुई। मैंने ध्यान से देखा कि मेरी मकान मालकिन 30-35 साल की गोरी लम्बी, पहाड़ी महिला थी। शरीर छरछरा था जैसा पहाड़ी महिलाओं का अमुमन होता है। और कुछ कपड़ों में दबा होने की वजह से दिख नहीं रहा था लेकिन वह बात करने में माहिर थी। पढ़ी लिखी भी थी, यह उन से बातचीत करके मुझे लगा। सुन्दर थी इस में कोई शक नहीं था लेकिन खेत का काम करने का असर कपड़ों और चेहरे पर दिख रहा था। ज्यादा पर्सनल बात करने का सवाल नहीं था। वह बोली कि आप जो यह सोलर लेम्प लाये है बढ़िया चीज है ऐसी चीज यहाँ बहुत जरुरी है।

मैंने कहा कि बिजली ना होने की वजह से ले कर आया था क्योंकि मुझे पता नहीं था कि बिना बिजली के मैं रह पाऊँगा या नहीं? फोन के सिग्नल के लिये गाँव के ऊपरी छोर पर जाना पड़ता था वहाँ पर ही सिग्नल मिलता था। वह बोली कि शाम को कुछ खास तो नहीं खाना है मैंने कहा कि आप मेजबान है जो बना कर देगी मैं खाऊँगा कोई खास पसन्द नहीं है। वह बोली कि आप के साथ समय अच्छा गुजरेगा। उन्होनें बताया कि उन की एक ननद उन के साथ रहती है वह इस समय ननिहाल गयी हुई है दो बच्चें है जो सैनिक स्कुल में पढ़ रहे है। पति सेना में है और अग्रिम मोर्चे पर है। जो बातें में जानना चाहता था वो सब उन्होनें अपने आप बता दी थी।

उन्होनें अपना नाम भी बताया था जो आशा था। आशा जी ने शायद कालेज की पढ़ाई भी की थी। हम दोनों काफी देर तक इधर-उधर की बातें करते रहें फिर वह बोली कि आप को यहाँ क्या पसन्द आया? मैंने जबाव दिया कि प्रकृति की हर चीज पसन्द है, शहर में सब कुछ नकली है यहाँ तक की इंसान भी नकली है, इस लिये यहाँ पर हर चीज, यहाँ के लोग सब पसन्द आ रहे है। वह मेरी बात सुन कर मुस्करा कर बोली कि आप को तो लेखक होना चाहिये, सामान्य बात को इस तरह से कहते है कि वह खास हो जाती है। मैंने उन्हें बताया कि लेखक तो नहीं हूं लेकिन घुम्मकड़ी पर लेख लिखता रहता हूं।

तभी बादल घिर आये और बुंदें बरसने लगी। आकाश एकदम काला हो गया, यह देख कर आशा जी बोली कि अब तो आप घुमने नहीं जा सकते, बहुत जोर की बारिश आने वाली है। उन की बात सही निकली और कुछ देर में मुसलाधार बारिश होने लगी वह कपड़ें वगैरहा समेटने लगी और में आगंन में खड़ा होकर गिरती बारिश को देखने लगा। हवा के साथ बारिश मुझे भिगों रही थी लेकिन मैं इस से बेखबर मस्त खड़ा था। आशा जी ने बांह पकड़ कर मुझे घसीटा और कहा कि अगर भीग गये तो बीमार पड़ जायेगें। उन के ऐसा करने से मैं तन्द्रा से जगा और कमरे में चला आया।

अंदर अंधेरा था। लेम्प जलाया तो कुछ रोशनी हुई, तभी आशा जी कमरें में आयी और बोली कि इसे बचा कर रखिये, रात को खाना बनाने के काम आयेगी। मुझे उन की बात समझ आ गई और मैंने लेम्प को बंद कर दिया। वह भी कमरें में ही बैठ गयी। हम दोनों बातें करने लगे तो वह बोली कि सोलर लेम्प जैसी कोई चीज होनी चाहिये जो तीन-चार बल्ब जला दे तो हमारा काम चल जाये। मुझे याद आया कि किसी कंपनी ने पिछले दिनों एक ऐसा ही प्रोडक्ट बाजार में लांच किया था। 10-12 हजार कीमत थी लेकिन काफी मजबुत था तथा चार बल्ब को जला सकता था। मैंने उस के बारे में आशा जी को बताया तो वह बोली कि यह अगर मिल जाये तो यहाँ किसी बात की परेशानी नहीं रहेगी। मैंने कहा कि मैं फोन करके देखता हूँ अगर यहाँ आस-पास में उनकी ऐजेंसी हुई तो काम बन सकता है। तभी मैंने देखा कि मेरे फोन पर सिग्नल आ रहे थे। बारिश आने के कारण सिग्नल मजबुत हो गये थे।

आशा जी यह देख कर पति से बात करने चली गयी। मैंने उस कंपनी को फोन किया तो वहाँ से पता चला कि प्रदेश की राजधानी में डिस्ट्रिबियूटर है, उसका फोन नंबर ले कर उसे फोन करा तो वह बोला कि एक पीस पड़ा है अगर आप भुगतान कर दे तो मै आप के पास के शहर तक छुड़वा दूंगा। मैंने कहा कि मैं आप को आधा भुगतान कर देता हूँ तो वह बोला कि हाँ इस से काम चल जायेगा। बाकि का आप डिलिवरी के समय पर कर देना। मैंने उन का एकाउन्ट नंबर ले कर उस में ऑनलाइन रकम डाल दी। उन से फोन करके पुष्टि भी कर ली की रकम मिल गयी है या नहीं। उन्होनें मुझे बताया कि परसों पास के शहर में इस ऐजेन्सी पर अपना परिचय पत्र दिखा कर मैं सोलर सेल को ले लूँ। यह सब कर के मुझे बड़ी खुशी मिली की इस उपकरण का सही उपभोग यहाँ ही हो सकता है। आधें घंटें बाद आशा जी चाय लेकर आयी तो मैंने उन्हें यह खबर सुनायी तो वह बोली कि यह तो बहुत बढ़िया है, इस बात को मैंने अभी अपने पति को भी बताया था तो वह कह रहे थे कि ऐसी चीज तो बहुत उपयोगी है तुम अवश्य ले लो।

मैंने कहा कि शायद परसों तक यहाँ पर आ जायेगीं, फिर मैं जा कर उसे ले आऊँगा। वह बोली कि यह तो बहुत अच्छी खबर है बिजली के होने से रहना आसान हो जायेगा तथा जो गेस्ट आयेगें वे भी कम परेशान होगे। बारिश जोरदार बरस रही थी। चारों तरफ बिजली कड़कने की आवाज आ रही थी। ऐसी बरसात का यह मेरा पहला अनुभव था। हम दोनों चाय पीते रहे।

आशा जी को कुछ याद आया तो बोली कि आप ने अपने बारें में कुछ नहीं बताया? मैंने कहा कि कुछ बताने लायक नहीं है जिन्दगी ने इतने धोखे दिये है कि अब किसी पर विश्वास नहीं होता है इस लिये सब कुछ छोड़ कर भाग आया हूँ। मेरी बात सुन कर उन्होनें आगे कुछ नहीं पुछा। अंधेरा गहरा गया था हाथ को हाथ नहीं सुझ रहा था इस लिये मैंने लेम्प को ऑन कर दिया। वह बोली कि बिना रोशनी के ऐसा लगता है कि सब कुछ एक जैसा हो गया है। रोशनी सब चीजों की सुन्दरता और बदसूरती को प्रगट कर देती है। उन की इस बात को सुन कर मैंने आशा जी से कहा कि वह तो दार्शनिकों जैसी बातें करने लगी है तो वह हँस दी और बोली कि कभी-कभी सच्चाई भी दर्शन लगती है।

वातावरण भारी हो गया था तो मैंने उसे हल्का करने के लिये कहा कि आज तो आप की अपने पतिदेव से घर में ही बैठे-बैठे बात हो गयी तो वह बोली कि हाँ आज पहली बार ऐसा हुआ है कि घर से बात कर पायी हूँ नहीं तो ऊपर की तरफ ही जाना पड़ता था। कभी बात हो पाती है और कभी नहीं। मैंने आशा जी से पुछा कि यहाँ एकांत में रहते हुये डर नहीं लगता तो वह बोली कि आप शहर से है जहाँ चारों तरफ भीड़ है यहाँ पर ऐसा ही है, हम लोगों को जो यहाँ पर रहते है डर नहीं लगता बल्कि शहर की भीड़-भाड़ में घबराहट होती है। मैं तो इसी लिये इन के साथ पोस्टिग में एक-दो बार रही थी, लेकिन फिर मन ना लगने के कारण यहीं आ गयी।

इस के बाद वह लेम्प ले कर खाना बनाने चली गयी और मैं अंधेरे में ही लेटा रहा। बाहर बरस रही बारिश की आवाज मन को शुकून पहुँचा रही थी। कुछ देर बाद ही आशा जी आवाज सुनाई दी तो मैं खाना खाने रसोई में चला गया। हम दोनों ने खाना खाया और वह बरतन साफ करने लग गयी मैं वापिस अपने कमरें में आ कर बिस्तर पर लेट गया। कुछ देर बाद आशा जी लेम्प ले कर आयी और बोली कि यही रख जाऊँ, मैंने कहा कि मेरे पास टार्च है आप इसे अपने पास रखो, वह उसे ले कर चली गयी। जाते समय रुकी और बोली कि रात को किसी और वस्तु की आवश्यकता हो तो बोल दिजियेगा। मैंने कहा कि अवश्य आप को कष्ट दूँगा। उन के जाने के बाद मैं कब सो गया मुझे पता नहीं चला। बारिश सारी रात होती रही। पहाड़ों पर यह सामान्य बात है।

सुबह उठा तो बाहर बारिश जारी थी। आशा जी ऐसे में भी पशुओं के चारे आदि का काम कर रही थी। मैं भी उठ कर नित्यक्रम में लग गया। तब तक वह भी काम से खाली हो कर आ गयी और बोली कि चाय पियेगे? मैंने कहा नेकी और पुछ-पुछ मेरा जबाव सुन कर वह हँसती हुई चाय बनाने चली गयी। चाय पीते में वह बोली कि आज लगता तो नहीं है कि आप कहीं जा पायेगे। रास्तें पानी से भर गये है तथा पत्थर चिकने हो गये है इस लिये कहीं जाने की ना सोचियेगाँ। आज घर में ही बैठ कर बारिश का आनंद ले। मैंने उनकी बात में हाँ मिलाते हूये कहा कि आज तो कोई किताब पढ़ते हुये दिन काटना पड़ेगा, लेकिन यह भी सही रहेगा।

वह बोली कि कितनी तैयारी करके आये है? सामान के नाम पर तो एक बैग ही नजर आता है मैंने कहा कि किंडल है उस में किताबें भरी पड़ी है। वह शायद किंडल के बारें में जानती नहीं थी तो बोली कि क्या चीज है जिसमे इतनी किताबें भरी पड़ी है। मैंने अपने बैग से किंडल निकाल कर उन को दिखायी और किताबों की लिस्ट खोल कर दिखा दी, वह इसे देख कर आश्चर्यचकित थी, एक किताब खोल कर पढ़ने को दी तो वह उसे पढ़ कर बोली कि यह तो जादूई चीज है इतनी सारी किताबें एक छोटी से किताब की जगह में। मैंने उन्हें बताया कि यह सब टेक्नोलोजी का चमत्कार है।

इस के बाद वह नाश्ता बनाने चलने लगी तो बोली कि आप आज गरम पानी से नहाना, नहीं तो बीमार पड़ सकते है यहाँ पर कोई इलाज करने वाला भी नहीं मिलेगा। मैंने जब धारे पर मुँह धोया तो मुझे उन की बात समझ आ गयी। कुछ देर बाद वह पानी गर्म करके दे गयी और मै उसे ले कर नहाने चला गया। नहा कर आया तो ठंड़ लग रही थी। एक हाफ स्वैटर के सिवा में कोई और गरम कपड़ा नहीं लाया था। मैंने उसे ही पहन लिया लेकिन उस से ठंड़ से राहत नहीं मिली। नाश्तें के समय मुझे कांपता देख कर वह चुपचाप गयी और अपनी एक शॉल ला कर मुझे ओंढ़ने को दे दी। उसे ओढ़ कर मुझे आराम मिला। मैंने उसके लिये उन्हें धन्यवाद दिया तो वह बोली कि इस की कोई जरुरत नहीं है।

नाश्ते के बाद में आंगन में बैठ कर किताब पढ़ने लगा। दोपहर होने पर सोलर सैल वाले के ऐजेंट को फोन किया तो वह बोला कि आज तो पानी के कारण कोई गाड़ी नहीं आयी है। हो सकता है कि शाम को कोई आये, अगर आप का सामान आता है तो मैं आप को फोन से बता दूंगा। आप आ कर ले जाना। सोलर लेम्प को चार्ज किये दो दिन हो रहे थे उस का चार्ज भी खत्म होने को था। मिट्टी के तेल की लालटेन को थी ही। मेरी परेशानी हो सकती थी कि फोन चार्ज ना होने पर बंद हो सकता था। सो मैंने फोन बंद कर के रख दिया। दोपहर के खाने के बाद बारिश कुछ कम हुई तो मैं और आशा जी उन के खेतों में चक्कर मार आये। वह कुछ घास भी काट लायी। शाम को बारिश फिर से तेज हो गयी। हम दोनों चुपचाप घर के आंगन में बैठ कर बारिश का आनंद लेते रहे।

आज अंधेरा होने से पहले ही आशा जी ने खाना बना कर रख दिया और मुझे कहा कि खाना खाने के लायक रोशनी तो हो जायेगी। जब मन करे बता दिजियेगा। अंधेरें में चारों तरफ बरसती बारिश की आवाज और कभी-कभी कड़कती बिजली के सिवा सन्नाटा छाया था। आठ बजे के करीब हम ने खाना खा लिया। खाना खाने के बाद कुछ देर हम कमरे में बैठ कर बात करते रहे, इस के बाद लेम्प का चार्ज खत्म हो गया। आशा जी अंदाजे से अपने कमरे में चली गयी। मैं भी अपना कमरा बंद करके बिस्तर पर लेट गया। बारिश की आवाज की वजह से नींद नहीं आ रही थी। बिस्तर पर करवटें बदल रहा था। तभी दरवाजा खटखटाया गया।

मैंने उठ कर दरवाजा खोला तो आशा जी थी, उनके बदन से आती महक से मैंने उन्हें पहचाना। वह दरवाजा बंद करके मेरे से लिपट गयी। उन के सुगठित शरीर के पुष्ठ भाग मेरे सीने में चुभ गये। मैं उन की तगड़ी पकड़ में था। फिर मेरे हाथ भी उन की पीठ पर कस गये। मैं भी किसी महिला से सालों से दूर था। महिला शरीर की मादक महक मेरे नथुनों में भर रही थी। मेरा अपने पर लागु कंट्रोल खत्म हो गया। फिर वही हुआ तो पुरातन काल से नर और नारी के बीच हुआ है। बाहर बारिश और अंदर हम दोनों की चित्कारें गुंज रही थी। मुझें समझ नहीं आ रहा था कि हम दोनों क्यों आवाजें निकाल रहे थे? लेकिन एक आदिम भुख को खत्म करने का तरीका भी आदिम ही हो सकता था। कुछ देर बाद तुफान उतर गया और दोनों एक-दूसरें की बगल में सांसें सभांलने में लग गये। कोई कुछ बोल नहीं रहा था। हमारें होंठो, और हाथों ने बोलने का काम किया था। प्यास बुझ जाने के बाद हुई थकान के कारण दोनों सो गये।

सुबह मोबाइल के अलार्म से आँख खुली तो देखा कि आशा जी बगल में सो रही थी, अस्त-व्यस्त कपड़ों से उनका सौन्दर्य झांक रहा था जो सामान्य तौर पर उन के कपड़ों के कारण छुपा रहता था। पुष्ठ उरोज, कसा बदन, केले के तने के समान जाँघें, सुन्दरता मानों सारे शरीर मे भरी हुई थी, लगता था कि काम ने अपने सारे बाण उन के शरीर में भर दिये है। मैं उन्हें निहार ही रहा था कि वह जग गयी और मुझे घुरता देख अपने कपड़ें सही करके उठ कर कमरें से बाहर चली गयी। बाहर अभी भी अंधेरा था। मैं भी जग जाने के बाद अपने कपड़ों को सही करने में लग गया उन पर जगह-जगह वीर्य और योनि द्रव्यों के दाग लग गये थे। गाढ़ा-गाढ़ा सफेद सा कुछ जम गया था।

यह सब कुछ इस बात का द्योतक था कि कल रात को जो खेल हुआ था वह भरपुर मजा देने वाला था तभी दोनों के शरीरों नें भरपुर द्रव उगला था। आशा भी शायद काफी दिनों से संभोग से वंजित थी। इसी लिये ऐसा हो गया था। और कोई अनुमान लगाना या पुछना उचित नहीं था। इस लिये उठ कर बाहर आंगन में बैठ गया। सूरज बादलों के पीछे से झांकने लगा था। आशा जी जानवरों की सेवा में लग गयी और मैं नित्यक्रम में लग गया। उस के बाद ठंड़ें पानी से ही नहा लिया। कपड़ें भी धो कर सुखाने डाल दिये। नहा कर अच्छा लगा लेकिन उस अच्छे का जो परिणाम होना था वह तो मुझें बाद में जा कर पता चला।

नाश्ता करने के बाद मुझे लगा कि मेरा शरीर कुछ गरम सा हो रहा है तो मैंने हॉफ स्वेटर पहन लिया लेकिन जब उस से भी आराम नहीं मिला तो आशा जी की दी गरम चद्दर भी काम नहीं कर रही थी। इस लिये रजाई लेकर उस में घुस गया। लेकिन कंपकपी पीछा नहीं छोड़ रही थी, कुछ देर ऐसे ही लेटने के बाद उठ कर बैग में से दवाई का डिब्बा निकाला और एक गोली पानी के साथ निगल ली इस के बाद रजाई से मुँह ढ़क कर लेट गया। कुछ देर बाद जोर से पसीना आया और बुखार उतर गया, लेकिन बदन दर्द कर रहा था। कुछ करने का दम नहीं था, बारिश फिर से शुरु हो गयी थी।

ठंड़ें पानी से नहा कर मैंने आफत मौल ले ली थी। सोने की कोशिश करता रहा लेकिन नींद नहीं आ रही थी। दोपहर के खाने की आवाज पर जब में बाहर नहीं गया तो आशा जी ने कमरें में मुझे जगाने आयी तो मैंने उनकी आवाज का कोई जवाब नहीं दिया तो उन्होनें रजाई हटा कर मेरे माथे पर हाथ रखा तब उन्हें पता चला कि मैं बुखार से तप रहा हूँ, गोली का असर जल्दी खत्म हो गया था। वह वापिस गयी और एक और रजाई ला कर मुझे उढ़ा दी। मुझे कुछ राहत सी महसुस हुई, वह मेरे पास ही बैठ गयी। ना जाने कब तक बैठी रही।

तीन या चार बजे में उठा तो देखा कि वह कमरें में बैठी थी, उन्हें देख कर मैंने उठने की कोशिश की तो वह बोली कि आप से मना किया था कि ठंड़े पानी से मत नहाना लेकिन आप ने बात नहीं मानी और तबियत खराब कर ली। कोई गोली ली है तो मैंने उन्हें बताया कि गोली खाई थी लेकिन कुछ देर बाद उस का असर खत्म हो गया और बुखार फिर से आ गया है। वह बोली कि आप पहले खाना खा लो फिर दवाई की दूसरी खुराक ले कर सो जाना, रात को मैं आप को कुछ और दूँगी उस से जल्दी आराम आयेगा यह कह कर वह खाना लेने चली गयी। जब खाना ले कर आयी तो मैंने पुछा कि आप ने खा लिया तो वह बोली कि नहीं आपको आवाज देने आयी थी उस के बाद यहीं पर बैठी हूँ।

यह सुन कर मुझे बहुत शर्मिन्दगी महसुस हुई और मैंने उन से क्षमा माँगी और कहा कि वह भी अपना खाना यहीं ले आये, मैं आइंदा ऐसी गलती नहीं करुँगा, मेरी बात पर वह बोली कि मैदान में और पहाड़ में अलग तरह से रहना पड़ता है, अब आप हमेशा इस बात का ध्यान रखेगें। हम दोनों खाना खाने के बाद बातें बनाने लगे। वह बोली कि लगातार बारिश होने से तापमान बहुत कम हो जाता है इस में ठंड़ें पानी से नहाने से शरीर को काफी धक्का सा लगता है और बुखार आ जाता है जो पुरा बदन तोड़ देता है, इस लिये पहाड़ की बारिश में भीगने के बाद फौरन शरीर को सुखा लेना चाहिये। नहीं तो लेने के देने पड़ सकते है। मैं उन की इस बात से पूर्णरुप से सहमत था।