पहाड़ों की यादें

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आज भी बारिश होने के कारण सोलर सेल के बारें में कुछ नहीं हो सका और मेरे बीमार पड़ जाने से मेरा कहीं जाना मुश्किल लग रहा था। आशा जी ने शायद मेरे मन की बात पढ़ ली, इसी लिये बोली कि आप सोलर सेल की चिन्ता ना करे, यह बारिश काफी बड़ें क्षेत्र में हो रही है, इस लिये वह अभी तक यहाँ पर नहीं आया होगा। पहले आप का सही होना जरुरी है, मुझे तो अंधेरे की आदत है। उन की बात पर मैं कोई जवाब नहीं दे सका। कुछ देर बाद वह चाय बना कर लाई लेकिन यह चाय सामान्य चाय नहीं थी, उन्होनें बताया कि इस में जड़ी बुटी पड़ी है जो बुखार उतारने में काम आती है। चाय मैंने मन कड़ा करके पीली।

मेरे चेहरे के भावों को देख कर वह हँस कर बोली कि आप तो बच्चों की तरह शक्ल बना रहे है। मैंने कहा कि मुझे दवाईयों से परेशानी होती है। वह बोली कि लेकिन अभी तो छुटकारा नहीं है। अब आप जब तक यहाँ है मेरी हर बात मानेगें नहीं तो परेशानी में पड़ जायेगे। मैंने उन की तरफ देखा तो उनकी आँखों में शरारत झलक रही थी। मैंने भी उसी तरीके से जवाब दिया कि मास्टरनी की बात तो माननी ही पड़ेगी नहीं तो सजा मिलेगी। वह हँस कर बोली कि हाँ सजा तो जरुर मिलेगी लेकिन क्या मिलेगी यह बता नहीं सकती। आप ने सजा वाला काम किया है। हम दोनों मुस्कराते रहें। इन बातों के कारण मुझे अपना दर्द कुछ समय के लिये भुल गया।

रात के खाने के बाद वह एक गिलास में कुछ लाई और बोली कि आप शराब तो पीते होगे? मैंने हाँ में सर हिलाया तो बोली कि चुपचाप एक घुट में पी जाईये। मैंने गिलास ले कर नीट रम को गले में उतार लिया। सारा गला मानों जल सा गया और पेट तक आग सी लग गयी। मैंने उन की तरफ देखा तो वह बोली कि यह देशी इलाज है नीट रम से सर्दी भाग जाती है। सुबह मुझ से कहा होता तो अब तक काफी आराम मिल गया होता। यह कह कर वह रुकी और फिर बोली कि

मुझ से नाराज है?

मैंने कहा कि नहीं तो

फिर मुझे क्यों नहीं बताया?

मैं चुप रहा तो वह बोली कि अच्छा रात की बात को लेकर कुछ है,

मैंने कहा कि कुछ नहीं है लेकिन सब कुछ अचानक होने से भौचंक्का हूँ,

तो वह बोली कि मुझे भी पता नहीं क्या हुआ था, बता नहीं सकती लेकिन मै तो खुश हूँ आप?

मैं भी खुश हूँ।

लेकिन आप का व्यवहार तो कुछ और बयान कर रहा है।

मैं ऐसा ही हूँ कभी कभी अजीब सी हरकतें करता हूँ।

आगे से ऐसी हरकतें मत करना, मेरी परेशानी बढ़ जायेगी। यहाँ कोई डाक्टर भी नहीं है।

ऐसा कुछ नहीं हुआ है।

मुझे लगा कि रात की वजह से ऐसा हुआ है।

संभोग से कब से लोग बीमार होने लगे?

मुझे क्या पता?

तो फिर ऐसा विचार मन में कैसे आया?

बस आ गया, इस पर कोई रोक नहीं है

सो तो है, गल्ती मेरी थी मुझे लगा कि इतनी ठंड़ में झेल लुगा लेकिन मेरा सोचना गलत था।

मुझे क्यों नहीं बताया?

मुझे लगा कि छोटी बात है, आप को हर छोटी बात पर परेशान करना अच्छा नहीं लगा।

अब अच्छा लग रहा है।

क्या अच्छा लग रहा है

कि आप बिस्तर में पड़े है और किसी चीज का मजा नहीं ले सकते?

ऐसा किस ने कहा

मैंने

अब आप कुछ ज्यादा ही चिन्ता कर रही है। एक दो दिन में सही हो जाऊँगा।

आप ने पहाड़ की बारिश की ठंड़ झेली नहीं है इसी लिये ऐसा कह रहे है।

आप बताओं अब क्या करुँ?

मैं आप को एक काढ़ा बना कर देती हूँ, कड़वा है लेकिन पुरा पी जाना, फायदा करेगा।

बना दे वह भी पी लेता हूँ। मैं खुद भी बिस्तर में नहीं लेटना चाहता, लेकिन गल्ती तो हो ही गयी है।

आशा जी कुछ देर में काढ़ा बना कर ले आयी, मैंने उसे गरम-गरम ही पी लिया। बहुत कड़वा था लेकिन कोई चारा नहीं थी। इस के बाद में तो लेट गया और मिट्टी के तेल के लेम्प की मध्यम रोशनी में आशा जी कुर्सी पर बैठी रही। मैंने पुछा कि सोने क्यों नहीं जा रही है? तो जवाब मिला कि नींद नहीं आ रही है। मैंने कहा कि ठंड़ में बैठने की बजाए मेरे पास रजाई में आ कर बैठ जाओ, तो वह उठी और अपने कमरे का दरवाजा बंद करने चली गयी, वापस आयी तो उनके हाथ में एक और रजाई थी, उसे मेरे ऊपर डाल कर वह कमरे का दरवाजा बंद करके और लेम्प को भी बुझा कर मेरी बगल में लेट गयी। हम दोनों के बीच अब किसी तरह का परदा नहीं था। लेकिन मेरे में सेक्स करने दम नहीं था और नीट रम पीने की वजह से तगड़ा नशा हो रहा था, इसी वजह से मैं कब सो गया मुझे पता नहीं चला।

सुबह जब उठा तो आशा जी उठ कर जा चुकी थी। उन की रजाई भी नहीं थी। मेरा मन उठने का नहीं कर रहा था। बाहर से बारिश की आवाज आ रही थी। कुछ देर बाद आशा जी चाय का गिलास लिये कमरे में घुसी और मुझ से बोली कि अब तबीयत कैसी है तो मैंने बताया कि बुखार तो नहीं है लेकिन सारा बदन टुट रहा है, यह सुन कर वह बोली कि आप की तबीयत सही हो रही है। यह टुटन कुछ दिन तक रहेगी, लेकिन बुखार चला जायेगा। आप आज आराम करो, इस से जल्दी सही हो जायेगे। मैं चाय पीने लग गया। चाय पीने के बाद मैंने पुछा कि रात को नींद आयी तो वह बोली कि हाँ मैं तो कुछ देर बाद ही सो गयी थी। किसी के साथ आप हो तो मन को संतोष सा रहता है और नींद भी जल्दी आ जाती है। वैसे भी सारे दिन काम करने के बाद बदन आराम चाहता ही है। वह बोली कि आज भी मौसम खराब ही है, ज्यादा बारिश तो नहीं है लेकिन आकाश बादलों से लदा है, इस का मतलब है कि बारिश जोरदार होगी।

मैं जरुरी काम निबटा कर नाश्ता बनाती हूँ। मैंने उन से कहा कि वह खुले में सोलर लेम्प रख दे क्या पता इतनी रोशनी में शायद कुछ चार्ज हो जाये? वह बोली कि मैंने पहले से ही उसे बाहर रख दिया है। आज तो उसकी बहुत जरुरत है। मिट्टी का तेल भी खत्म हो रहा है। कहीं जा भी नहीं सकते। यह कह कर वह चली गयी और मैं मोबाइल ऑन करके बैठ गया तो कुछ देर बाद देखा कि सिग्नल आ रहे थे। सोलर सेल वाली ऐजेंसी को फोन लगाया तो वह बोला कि आप का माल आज शाम तक आ सकता है। यह सुन कर मन को चैन मिला। इस के बाद एक दो जगह फोन और किया। तब तक आशा जी नाश्ता ले कर आ गयी। मैंने उन्हें बताया कि सोलर सेल आज शाम तक ऐजेंसी के पास आ जायेगा तो वह बोली कि अच्छी खबर है। कल तो शायद यह बारिश भी बंद हो जाये। मैंने फोन पर मौसम का हाल पता करा तो पता चला कि मौसम तो अभी कई दिनों तक खराब रहना था। यह बात मैंने आशा जी को भी बतायी तो वह बोली कि यहाँ के मौसम का कुछ कह नहीं कह सकते।

आशा जी अपने काम में लग गयी और मैं किंडल निकाल कर पढ़ने लग गया। पढ़ने में समय कब बीत गया मुझे पता नहीं चला, आशा जी जब खाना लेकर आयी तब पता चला कि दोपहर हो चुकी है। खाना खाते समय आशा जी ने पुछा कि आप ने अपने बारें में कुछ नहीं बताया है लेकिन मुझे लगता है कि मैं आप से पुछने की अधिकारी हो गयी हूँ। मै उन की बात सुन कर बोला कि मैं एक कंपनी में बहुत ऊंचें पद पर कार्य करता था। कंपनी भी मैंने अपने दोस्त के साथ मिल कर शुरु की थी। जब वह चल गयी तो दोस्त नें मुझे कंपनी से हटाने के लिये षडयंत्र करने शुरु कर दिये। उस ने मेरी प्रेमिका को भी अपने साथ मिला लिया और मुझें कंपनी से निकाल दिया। इस बात से मन नहीं टुटा जितना इस बात से टुटा कि मेरी प्रेमिका जिसे मैं अपनी जिंदगी मानता था, उसी ने मेरी पीठ में छुरा मार दिया।

नौकरी तो दूसरी मिल जाती लेकिन प्रेमिका से मिले धोखे ने जिंदगी से मन उचट गया। लगा कि सब बेकार है, एक बार तो लगा कि मर जाऊँ, लेकिन फिर लगा कि मरना तो शत्रुओं के मन की करना होगा। लेकिन मन कही ठहर ही नहीं रहा था, तभी आप के रुम के बारें में पता चला तो यहाँ चला आया। लगा कि यहाँ कि शान्ति में शायद मैं सही तरीके से सोच पाऊँ। हालात से सामना करने के लिये तैयार हो सकुँ। बस इतनी सी कहानी है। जीवन का अर्थ ढुढ़ रहा हूँ। राख हो गये सपनों की राख में क्या मिलेगा, मुझे पता नहीं है? यह कह कर मैं चुप पड़ गया।

आशा जी बोली कि मेरा उद्देश्य आपके मन को दूखाना नहीं था, मैं तो केवल आप के बारें में जानने को उत्सुक थी, कि इतना सभ्य, सुस्सकृत, पढ़ा लिखा सुन्दर व्यक्ति सब कुछ छोड़ कर महीने भर को यहाँ क्यों आया है। परेशान लोग ही यहाँ इतनी दूर आते है लेकिन हफ्तें भर में चले जाते है। एक महीना यहाँ काटना मुश्किल काम है। कुछ तो बड़ी बात होगी जो ऐसा कर रहे है। फिर आप से परसों रात के संबंध के बाद मेरी यह सब जानने की उत्कन्ठा और बढ़ गयी थी। आप जैसा व्यक्ति तो इस समय जीवन में सैटल होता है। उसे जीवन से भागने का अवसर कहाँ होता है। मैं बोला कि अब तो आप को समझ आ गया होगा कि मैं क्यों भाग रहा हूँ?

वह बोली कि सब कुछ समझ आ गया है, जीवन में किसी को नही पता कि कब क्या हो जायेगा? मुझे नहीं पता था कि परसों रात को मैं आप के साथ सो कर अपने पति को धोखा दूंगी। मैंने कभी सपनें में भी नहीं सोचा था, लेकिन ऐसा हो गया। कुछ किया नहीं जा सकता। आप को देख कर मन पर कंट्रोल ही नहीं रहा। पता नहीं कैसे आप की प्रेमिका आप को धोखा दे कर चली गयी। मैं नहीं समझ सकती। मैंने उन्हें बताया कि मेरे दोस्त नें उसे कंपनी में हिस्से का लालच दे कर ऐसा कराया। यह सुन कर वह बोली कि अच्छा हुआ कि उसका यह रुप आप के सामने आ गया, नहीं तो पता नहीं जब वह आप के जीवन में होती तो क्या नुकसान करती। मैं उन की बात सुन कर चुप रहा।

माहौल काफी भारी हो गया था। आशा जी खाना खा कर बरतन ले कर चली गयी। बाहर बारिश रुक गयी थी। धुप निकल आयी थी, मैं भी बाहर आ कर बैठ गया। कमजोरी तो थी लेकिन धुप अच्छी लग रही थी। लेम्प भी चार्ज होने लग गया था। अभी दो-तीन घंटें की रोशनी बाकि थी अगर ऐसे ही धुप रहती है तो लेम्प रात के लिये चार्ज हो सकता है। मौसम शाम तक खुला रहा, इस लिये लेम्प फुल चार्ज हो गया था। रात को खाना बनाने में लेम्प ने अपना कार्य किया। रात को खाना खाने के बाद आशा जी ने फिर से नीट रम पिला दी और सोते समय काढ़ा पिला दिया। आज वह अपने कमरें में ही सोयी।

सुबह धुप निकली हुई थी, मेरी तबीयत भी सही थी। नाश्ता करने के बाद मैंने आशा जी से कहा कि मैं आज सोलर सेल लेने जाना चाहता हूँ तो वह बोली कि आप पहलें पता तो कर ले कि माल आया भी है या नहीं? मैंने उन्हें बताया कि मैं फोन लगा तो रहा हूँ लेकिन सिग्नल नहीं आ रहे है। मुझे ऊपर जाना पड़ेंगा जहाँ पर सिग्नल मिलेगा तो वह बोली कि जैसा आप उचित समझे, वहाँ पहुँच कर खाना खा लिजियेगा, ताकि कमजोरी ना आये। मैं अपना बैग कंधे पर डाल कर निकल गया। रास्तें में सिग्नल आ गया, फोन किया तो पता चला कि माल आ गया है। मैंने उसे बता दिया कि मैं आ रहा हूँ। पैदल चल कर मैं सड़क तक पहुँचा फिर वहाँ से गाड़ी पकड़ कर अपने गन्तव्य के लिये चल पड़ा। एक घंटें के सफर के बाद मैं वहाँ पर पहुँच गया। गाड़ी ने बाजार में ही छोड़ा था, सो दूकान ढूढ़ने में परेशानी नहीं हुई। मुझे देख कर दूकानदार बोला कि इतनी महँगा सोलर सेल हम सब भी देखना चाहते है कि कैसा है? मैंने पैकेट खोल कर उसे निकाला और असेम्बल कर के चला कर दिखाया, उसे काम करता देख कर कई लोग इकठ्ठें हो गये।

कंपनी ने बहुत मजबुत सोलर सेल बनाया था। गिर जाने पर भी उसका कोई नुकसान नहीं होता था। दूकानदार को बकाया पैसे दे कर मैं चलने लगा तो मुझे कुछ याद आया तो मैंने किसी अच्छे खाने की दूकान के बारे में पुछा, तो उस ने पास ही की एक दूकान की तरफ इशारा कर दिया। फिर मैंने किसी बिजली के सामान की दूकान के बारें में पुछा तो वह बोला कि थोड़ा आगे चल कर बिजली के सामान की दूकान भी मिल जायेगी। मैंने भरपेट खाना खाया और बिजली की दूकान से बल्ब, तार और पेचकस खरीद लिया। इस के बाद गाड़ी पकड़ कर गाँव के लिये चल पड़ा। होम स्टे तक पहुँचते पहुँचते चार बज गये। पहाड़ पर शाम जल्दी हो जाती है। कमरे पर पहुँचा तो आशा जी मेरा इंतजार ही कर रही थी। मुझे देखते ही बोली कि कोई परेशानी तो नहीं हुई? मैंने उन्हें बताया कि सब कुछ आराम से हो गया। फिर वह चाय बना कर ले आयी।

चाय पीने के बाद मैंने सोलर सेल निकाल कर उन को दिखाया तो वह बोली कि यह तो छोटा सा है, मैंने उन्हें बताया कि साइज छोटा है लेकिन काम बड़ा है। फिर मैंने उसे चला कर दिखाया और बताया कि कैसे काम करता है। वह भी उसे देख कर खुश थी। मैंने उस के बाद तार में होल्डर लगा कर एक बल्ब किचन मे तथा एक आंगन में लगा दिया। एक-एक बल्ब कमरें में भी लगा दिया। सोलर सेल से कनैक्ट करते ही कमरें जगमगा गये। यह देख कर आशा जी के चेहरे पर रौनक आ गयी।

वह बोली कि आज पहली बार कमरें में सही तरह से रोशनी हुई है। सोलर सेल 8-10 घंटें का बैकअॅप देता है। रात का खाना भी उस की रोशनी में बना तथा उस के आने की खुशी में की गयी पार्टी भी उसी रोशनी में हुई। मैंने तथा आशा जी ने दोनों ने रम के कई बैग गटक लिये। उस के बाद सोने के समय दोनों नें भरपुर आनंद उठाया। नशा कहे या खुशी आज आशा जी ने मुझे वो करने दिया जो मैं उस दिन कर रहा था यानि उन्हें बिना कपड़ों के निहारना। उनके सौन्दर्य के आगे मेरी जबान बंद हो गयी। फिर जो आशा जी चाहती थी वह हुआ और एक जोरदार संभोग का आनंद दोनों ने उठाया।

सुबह घुप खीली हुई थी। एक सामान्य दिन था आशा जी अपने कई दिनों से पड़ें कार्यों के करने में लग गयी और मैं अपनी मनपसन्द जगह नदी के तट पर चला गया। नदी की कलकल करती ध्वनि अच्छी लग रही थी। नदी किनारें के पेड़ हवा के साथ हिल कर मधुर संगीत पैदा कर रहे थे। यह सब मेरे बैचेन मन को शान्त कर रहा था। मुझें सोचने का मौका दे रहा था कि मैं अब आगे क्या करुँ? दिमाग जब शान्त होता है तभी वह कुछ सही सोच पाता है। अपने साथ हुये धोखे को भुलने में मुझे बहुत परेशानी आ रही थी। समझ नहीं आ रहा था कि मैं कभी इस चक्र से निकल भी पाऊँगा या नहीं, मेरा एकाग्रता तो एक आवाज ने तोड़ दिया।

जब गरदन घुमा कर आवाज की ओर देखा तो पता चला कि आशा जी मेरे पास आ रही थी। वह आ कर मेरे पास बैठ गयी और बोली कि आज मैं भी महसुस करना चाहती हूँ जो आप महसुस करते है कुछ देर बाद वह बोली कि यहाँ तो मन बिल्कुल शान्त हो जाता है, नदी की कल-कल की आवाज सारा तनाव हर लेती है। मैं इतने सालों से यहाँ रह रही हूँ लेकिन मैंने कभी इस बात को महसुस नहीं किया। मैंने कहा कि आप सारें दिन काम में व्यस्त रहती है तो यहाँ कैसे आ कर बैठ सकती है। यह काम तो हम जैसे निठल्लें ही कर सकते है।

मेरी बात सुन कर वह हँस कर बोली कि ऐसा निठल्लापन भगवान सब को दे। मैंने कहा कि आज काम जल्दी खत्म हो गया है क्या? तो जवाब मिला कि क्या तुम से बात करने के लिये बहाना करना पड़ेंगा? उनकी सीधी बात सुन कर मैं हैरान रह गया और अचकचा कर बोला कि बहाने की क्या आवश्यकता है, आप तो कभी भी कोई भी बात कर सकती है, वह मेरी बात सुन कर बोली कि आइन्दा फिर कभी ऐसी बात मत किजियेगा। आशा जी की यह बात सुन कर मैं हँस कर बोला कि मास्टरनी जी अपने रंग पर आ रही है तो वह बोली कि ज्यादा तेज मत बनों, ये तेजी तुम पर अच्छी नहीं लगती। मेरा मन तुम्हारें साथ बैठने का था सो यहाँ आ गयी। तुम से पुछ कर थोड़ी ना आऊँगी।

मैंने अपने दोनों कानों को हाथ लगाया और मजाक में कहा कि बंदें की खता माफ हो। दूबारा ऐसी गल्ती नही करुँगा। वह हँस हँस कर दोहरी हो गयी और बोली कि तुम्हारा यह रुप कहाँ छिपा रहता है, मैंने कहा कि मुझे भी पता नहीं है कहाँ रहता है लेकिन इधर देख रहा हूँ कि आप के सामनें बार-बार आ जाता है। लगता है इसे आप पसन्द आ गयी है। वह बोली कि फिर शब्दों का खेल खेल रहे हों। सीधे क्यों नहीं कहते की मुझे पसन्द करते हो? मैंने उनकी आँखों में देख कर कहा कि इतना स्वार्थी नहीं हूँ कि अपने छोटे से स्वार्थ के लिये किसी के भरे पुरे परिवार में आग लगा दूँ।

मेरी बात सुन कर वह कुछ देर चुप रही फिर बोली कि भावना तो सही है लेकिन मन को मारना नहीं चाहिये। अगर किसी को चाहते हो तो उसे सामने वाले पर जाहिर करना चाहिये। किसी तो पसन्द करना कोई पाप नहीं है। किसी को चाहने भर से कोई परिवार कैसे टूट जायेगा? परिवार बहुत मजबुत नींव पर खड़ें होते है। मैं चुप बैठा रहा तो वह बोली कि मैं तो बात करने आयी थी लेकिन तुम मौन व्रत धारण कर लोगे तो क्या फायदा। मैंने कहा कि बैठो तो बात भी कर लेते है। वह बैठ गयी और बोली कि कल मुझे शहर जाना है कुछ खरीदारी करनी है, तुम्हें चलना है? मैंने पुछा कि क्या मेरा चलना सही रहेगा? तो वह बोली कि कह नहीं सकती। मैंने कहा कि मैं सामान लिखा दूँगा तुमे मिले तो ले आना, अगर ज्यादा सामान लाना है तो मैं साथ चलता हूँ।

वह बोली कि शहर से राशन इत्यादि कई चीजें लानी है तुम साथ चलोगे तो सही रहेगा। मैंने कहा कि मैं साथ चलुँगा, इस के बाद वह बोली कि क्या मगाँना है? मै पहले तो चुप रहा फिर बोला कि अब मैं जा ही रहा हूँ तो खुद ले लुँगा। वह बोली कि क्या है जो इतनी शर्म आ रही है? मैंने कहा कि कोई कंडोम लाना चाहता था, कही तुम्हें गर्भ ना रह जाये तो वह हँस कर बोली कि इस बात की तो मुझे चिन्ता करनी चाहिये थी और तुम कर रहे हो। यही तो तुम्हारी शराफत है जिस ने दिल जीत लिया है। वह बोली कि इस बात की चिन्ता मत करों, दो बच्चों के बाद कॉपरटी लगवा ली है। उस की बात सुन कर मेरे चेहरे पर संतोष झलकने लगा। वह बोली कि और कुछ? मैंने कहा कि बाजार में देखेगें कुछ पसन्द आयेगा तो ले लेगे।

आशा बोली कि मुझे तुम पहले मर्द मिले हो जो मेरी इतनी चिन्ता करता है। मैंने कहा कि यह मेरी आदत में शामिल है। वह बोली कि तो भी तुम्हें मिलेगी वह सुखी रहेगी। यह मैं दिल से कह रही हूँ। तुम्हारें जैसे आदमी मुश्किल से मिलते है। मैं मुस्करा दिया। फिर कुछ याद करके मेरा चेहरा स्याह हो गया। यह बात आशा ने नोट कर ली और बोली कि एक औरत के जाने से निराश ना हो तुम्हें जल्दी ही अपनी पसन्द की मिल जायेगी। ऊपर वाला सब के लिये एक ना एक जरुर लिखता है। हम दोनों ऐसे ही बातें करते रहे। फिर खाना खाने के लिये ऊपर आ गये। खाना खाने के बाद आराम करने लेटा तो कुछ देर बाद आशा बोली कि अपनी किंडल दो मैं आज कोई किताब पड़ना चाहती हूँ। मैंने किंडल निकाल कर उस के हाथ में दे दी और उस से कहा कि जो किताब पढ़ना चाहती हो उसे क्लिक कर देना खुल जायेगी। फिर उसे पेज आगे कैसे करते है यह बता दिया। वह किंडल ले कर चली गयी। मैं सो गया। ठंड़ा मौसम होने के कारण नींद अच्छी आ रही थी।

दूसरे दिन सुबह जल्दी ही हम नाश्ता करके निकल गये। पहले पैदल सड़क तक गये वहाँ से गाड़ी पकड़ कर शहर चले गये। वहाँ पर खरीदारी करी। मैंने भी एक स्काच की बोतल खरीद ली। सारा सामान काफी भारी हो गया था। गाड़ी की छत पर रख कर गाँव की सड़क पर उतर गये। आशा ने बैग से रस्सी निकाली और सामान को बांध कर अपने कंधें पर लाद लिया और हम दोनों धीरे-धीरे घर की तरफ चल दिये। दो किलोमीटर का सफर पुरा करके हम घर पहुँचे तो आकाश काला हो गया था। लग रहा था कि बारिश होने वाली थी। सारा सामान आशा जी के कंधें से उतार कर घर में रखवा कर मैं आंगन में खड़ा हुआ तो आशा जी पीछे आ कर बोली कि स्काच क्यों लाये हो।

मैंने कहा कि तुम ने मुझे जबरदस्ती रम पिलायी है तो मेरा हक बनता है कि तुम्हें कम से कम स्काच का सेवन तो कराऊँ। वह बोली कि तुम्हें तो दवाई की तरह दी थी। मैंने कहा कि हम भी तुम्हें दवायी की तरह देगें और फिर तुम्हारा इलाज करेगें। मेरी बात सुन कर वह घबराई सी बोली कि मेरा क्या इलाज करोगें। मैंने कहा कि डरों मत स्काच रम की तरह कड़वी नहीं होती है, पीने में मजा आता है। बरसात में स्काच का मजा ही कुछ और है। वह कुछ नहीं बोली।

रात घिरने पर हम दोनों बोतल खोल कर बैठ गये। स्काच के दो-दो पैग लगाने के बाद नशा तारी हो गया था। आशा बोली कि मैं भी तुम्हारें लिये कुछ लायी थी। मैंने उसे देखा तो वह बोली कि तुम्हारी ब्रीफ खराब हो रही थी सो नयी खरीद लायी हूँ। फिर बोली कि तुम्हारी ब्रीफ पहन कर मुझे बहुत उत्तेजना होती है आज वही करने वाली हूँ। मैंने कहा कि यार तुम तो छुपी रुस्तम हो। वह मुस्कराई और चली गयी। खाना खाने के बाद जब हम दोनों सोने के लिये तैयार हो रहे थे तो मुझे अंदाजा नहीं था कि आज की रात इतनी शानदार होने वाली थी।

रात को सोते समय आशा बोली कि मुझे नींद नहीं आ रही है तो मैंने कहा कि आज की रात सोना कौन चाहता है। यह कह कर मैंने उन का चेहरा पकड़ कर चुम लिया। मेरा ऐसा करना था कि आशा ने मुझे बुरी तरह से चुमना शुरु कर दिया। हम दोनों गहरे चुम्बन में डुब गये। जब सांस फुल गयी तभी अलग हुये। आज हम दोनों के बीच शर्म का परदा नहीं था। अब जो होना था वह खुल कर होना था। वह सेक्स की पुरानी खिलाड़ी थी मैं नया खिलाड़ी था। खेल जोरदार होना था। चुम्बन के बाद मेरे हाथ उन की सीने पर घुमने लग गये। बड़ा कठोर और कसा हुआ सीना था। दो बच्चों की माँ के उरोजों में यह कसाव नहीं होता जो उन के उरोजों में था। उत्तेजना के कारण निप्पल तन गये थे और कपड़ों के बाहर से फिल हो रहे थे।

कुछ देर तो उन्हें कपड़े के ऊपर से ही दबाता रहा फिर हाथ उन के ब्लाउज में डाल दिया। आशा ने कहा कपड़ें फाड़ने का इरादा है मैंने कहा नहीं तो लेकिन जगह नहीं मिल रही है। वह बोली कि आराम से ब्लाउज उतारों फिर जो मर्जी हो करो। मैंने उन की बात मानी और ब्लाउज उतार दिया। इस के बाद मेरे होंठ उन के उरोजों का रस पीने लग गये। आशा मुँह से आहहहह उहहहह करने लगी। कुछ देर बाद होंठ नीचे कमर पर आ गये। सपाट कमर को चुम कर आशा की नाभी का चुम्बन ले कर मैं नीचे की तरफ चला तो वहाँ पर साड़ी की बाधा आ गयी। मैंने हाथ से ही आशा की जाँघों के बीच हाथ से सहलाया और जाँघों को सहलाना शुरु कर दिया था।

आशा के हाथ भी मेरी छाती पर घुम रहे थे। उन के नाखुनों के बीच मेरे निप्पल थे और वह उन्हें दबा रही थी इस से मेरी चीख सी निकल रही थी। उन्हें पता था कि पुरुषों को कैसे उत्तेजित किया जाता है वह वही कर रही थी। कमीज के बटन खोलने के बाद उन के होंठ मेरे निप्पलों पर आ गये और उन्हें पीने लग गये। बीच बीच में वह मेरे निप्पलों को अपने दांतों के बीच दबा लेती थी इस से मेरी चीख निकल जाती थी। लेकिन उन का यह काम मेरे शरीर में उत्तेजना की आग भड़का रहा था।

मैंने अपना हाथ पेटीकोट के अंदर से डाल दिया। नीचे सफाचट मैदान था। हाथ योनि तक पहुँच गया। कुछ देर तक आशा की योनि को ऊपर से नीचे तक सहलाने के बाद मेरी ऊंगली योनि में चली गयी और उस की गहराई नापने लगी। इस पर आशा के दाँत मेरे कंधें में गड़ गये। मैं अपने काम मे लगा रहा। मेरी ऊंगली आशा की योनि में अंदर बाहर होती रही। उन का जीस्पाट उसे मिल गया और मैं उसे मसलने लगा। कुछ देर बाद आशा ने मेरे होंठों को अपने होंठों से दबा लिया और उन्हें काटने लगी। उनके दांत मेरे होंठों में चुभ रहे थे। मेरी जीभ ने उन के होंठों को छुआ तो उन्होंने मेरी जीभ को अंदर आने दिया और उसे चुसना शुरु कर दिया।

आशा जीस्पाट को सहलाने के कारण बहुत अधिक उत्तेजित हो गयी थी और लगता था कि शायद ऑर्गाज्म की तरफ बढ़ गयी थी। ऐसा ही हुआ कुछ देर बाद उन का शरीर कांपने लगा और मेरी ऊँगली पर जोरदार गरम पानी की धार लगी। ऑर्गाज्म के कारण आशा का सारा शरीर लहर रहा था मुझे लगा कि अब देर करने का कोई कारण नहीं है। मैंने अपना पायजामा उतारा और उन की जाँघों के बीच बैठ कर अपना तना हुआ लिंग योनि के मुँह पर लगा कर जोर लगाया तो वह योनि में घुस गया। अंदर नमी की कमी नहीं थी। लिंग फिसलता हुआ जड़ तक पहुँच गया। आशा ने आहहहहह करी।

मैंने धक्कें लगाने शुरु कर दिये। कुछ देर बाद आशा ने भी अपने कुल्हें उठा कर मेरा साथ देना शुरु कर दिया। वह अपने ऑर्गाज्म का मजा ले रही थी और साथ ही लिंग को कस रही थी। लिंग अगर बड़ा कस कर जा रहा था। उन की योनि की मांसपेशियां संकुचित हो कर लिंग को दबा रही थी। दोनों ऐसी दौड़ में लगे हुये थे जिस में अंत नजर नहीं आ रहा था। काफी देर तक दौड़ चलती रही फिर मैं निढाल हो कर आशा के ऊपर गिर गया। आशा मुझे चुमती रही। इस के बाद में आशा के ऊपर से उठ कर उन की बगल में लेट गया।

दोनों ऐसी ठंड़ में भी पसीने से भीगे हुये थे। दोनों की सांसे जब संभली तो आशा मेरी तरफ पलटी और बोली कि तुम तो कहते हो तुम्हारी शादी नहीं हुई है लेकिन तुम तो उस्ताद लगते हो। मुझे आज तक ऐसा आनंद नहीं मिला जैसा आज मिला है। मुझे लग रहा है कि मैं हवा में उड़ रही हूँ। मैंने उन्हें अपने से लपेट लिया और कहा कि आप ने शायद पहली बार ऑर्गाज्म का आनंद लिया है ऐसा मुझे लगता है वह बोली कि पता नहीं यह क्या है लेकिन पहली बार मेरे साथ हुआ है सारा शरीर कांप रहा था लगता था कि कोई लहर सी सारे शरीर में दौड़ रही थी। तुम बहुत बदमाश हो। बाहर से तो शरीफ दिखते हो लेकिन पुरे बदमाश हो, सारा शरीर तौड़ दिया है। मैंने भी बहुत दिनों बार सेक्स का ऐसा आनंद उठाया था इस लिये कुछ कह नहीं पा रहा था। उन को चुमा और अपनी बांहों में कस लिया। कब सो गया पता नहीं चला।